सुखना के दुःख हम सबके दुःख है Yashvant Kothari द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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सुखना के दुःख हम सबके दुःख है

पाठकीय प्रतिक्रिया

सुखना के दुःख हम सब के दुःख है .

शशि कान्त सिंह का तीसरा व्यंग्य उपन्यास  सुखना के नाम से आया है .इस से पहले उनके दो उपन्यास प्रजातंत्र के प्रेत व दीमक आये थे ,दोने पढ़े गए और सराहे गए .उनके व्यंग्य संकलन भी आये .वे भूगोल के अध्यापक हैं.

परसा नामक गाँव में ,किसान नामक प्रजाति पाई जाती थी. इस वाक्य से यह रचना शुरू होती है . यह अकेला वाक्य ही बहुत कुछ कह देता है.ग्रामीण जनजीवन ,राजनिती ,हत्या बलात्कार ,पुलिस ,प्रशासन ,नेता ,और सबसे उपर आत्म हत्या .इस ताने बने के साथ यह रचना चलती है .मुआवजा और उसके साथ के लटके झटके .उपन्यास ग्रामीण घटिया पत्रकारिता को भी खोलता है .नेता -प्रशासन -पत्रकार गठबंधन के लाभार्थी सर्वत्र पाए जाते हैं.यहाँ भी है.

उपन्यास राम लगन काका की आत्म हत्या से शुरू होता है और सुखना की  हत्या पर ख़तम होता है.

शिक्षा व्यवस्था पर करारा तमाचा राजू भैया के चरित्र के जरिये किया गया है ,न पढाई न  लिखाई  न कमाई.राजू भैया कलक्टर से शुरू हुए और कहीं  नहीं पहुंचे उन्होंने गाँव के बच्चों को भी कही नहीं पहुचने दिया.उपन्यास  में हत्या, बलात्कार, दबंगई, घटिया नेतागिरी ओछा सामाजिक व्यवहार पर तीखी प्रतिक्रिया दी गयी है. लेखक ने  गाँव को तीन भागों में  बांटा है –बबुआन ,चमर टोली  व् मियां टोला यही  स्थिति भारत के हर गाँव की है इन टोलों में रोटी बेटी के व्यव्हार की कल्पना मुश्किल है  हाँ बलात्कार, हत्या सत्रर अत्याचार  की सुविधा है ,शक्तिशाली बाहुबली सब कर सकता है ,यहाँ तक की उच्च वर्ग भी पिट सकता है ,गाँव बदल रहा है.कानून के लम्बे हाथ दबंग तक क्यों नहीं पहुचतें हैं यह यक्ष प्रश्न  इस उपन्यास में सर्वत्र उपस्थित है. ,जिसका कोई जवाब व्यवस्था ,सरकार प्रशासन के पास नहीं है .ग्रामीण राजनिती के कई पहलुओं  पर शशि कान्त ने लिखा है पलटूसिंह वह चेहरा है जो हर गाँव में पाया जाता .पुलिस का व्यवहार अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया तक एक जैसा है ,फिर भारत याने इंडिया का गाँव बेचारा कहाँ टिकता है .

इसी प्रकार का एक अन्य पात्र है अलबेला सिंह जो अपराध विश्व विद्यालय से पीएचडी है ,हर अपराध सफाई से करते हैं.गरीब की जोरू गाँव की भाभी होती है दबंगों ,पंडितों,राजपूतों ,बनियों का उस गरबड़ी पर हक़ बनता है और पुलिस तो बार बार रपट लिखती है बल्कि थाने  का हर सिपाई रपट लिखता है ,जो कभी एफआई आर नहीं बनती .

बबली है मौजी है और पटाने- जबरदस्ती करने के रास्ते है जिन पर कोई भी चल सकता है.और चलता ही जाता है.

सुखना वर्दीवाला गुंडा भी पढता है ,कैदी नम्बर सौ भी पढ़ेगा क्योंकि उसके बिना गुजर नहीं.

लेखक ने गायब होते तालाबों पोखरों जमीनों के बढ़ते भावों की चर्चा के बहाने खेती किसानी के डूबते भविष्य की भी चिंता की है ,खेत रहे नहीं ,पानी बरसता नहीं ,किसान मजदूर बन गया ,जमीन, नेताओं उद्ध्योगपतियों  ,अफसरों की भेंट चढ़ गयी .अंत में पलटूसिंह  के कमीने पण की खूब चरचा  हुई मगर व्यवस्था का कुछ नहीं बिगड़ता है व्यवस्था किसीएक कौवे  को मार कर  चौराहे टांग  देती है ताकि हर कोई उसे देखे समझे व भोगे .सुखना एक संगठन में जाता है अलबेला सिंह को सजा देता है उसका संगठन ,बुधना की जोरू का हिसाब बराबर करता  है.सुखना को कसूरवार मान लिया जाता है.नक्सल वाद -मावोवाद का भी जिक्र है .पुलिस अलबेला सिंह की हत्या के एवज में सुखना को गोली मार देती है.

पूरा उपन्यास पठनीय  है भाषा के गजब के पञ्च है जो  शशि की विशेषता है कही कही रागदरबारी व फणीश्वर नाथ रेणु की याद आती है बबली की शादी और मौजी के दुःख का भी वर्णन किया गया है .पलटू  सिंह चुनाव हार गए जीतने वाले जोगना भगत को गोली मारने की जुगत में लग गए .उपन्यास दलित विमर्श महिला विमर्श  नारी अत्याचारों  की भी चर्चा करता है

 

बिहार के आंचलिक शब्दों का भी खूबसूरत प्रयोग हुआ है

इस तीसरे उपन्यास से शशि आपने समकालीन लेखकों से काफी आगे निकल गए हैं

अगर मुझे ठीक से याद है तो यह रचना एक जगह इनाम हेतु भेजी गयी थी ,इनाम के योग्य है भी मगर एक वरिष्ठ भांजी मार गया .

भाषा  शिल्प कथ्य तीनों में ही शशी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराइ है.प्रूफ व संपादन में सुधार की गुंजाईश है.

चमार टोली में मर्द है कहाँ ,सब पंजाब असाम भाग गए थे.

यह वाक्य ही सब कुछ कह देता है.दोषियों को छोड़ा नहीं जायगा व् किसी निर्दोष को सजा नहीं होगी यह वेद वाक्य सर्वत्र चलता है इस उपन्यास में भी है

यह कथा किसी एक गाँव ढाणी मगरा  या मैदान की नहीं सब की  है इसे पढ़ा जाना चाहिए व्यवस्था को विचारना चाहिए .शशि ने बहुत मेहनत की है . सबसे बड़ी बात व्यंग्य का सौन्दर्य जिसे पढ़ कर ही महसूस किया जा सकता है.

 कुछ पञ्च

१-पुलिस वाले अतिथि है उनका आदर किया जाये.

२-उनको बेइज्जती की अच्छी आदत थी.

३-गली गलोज हंगामे का लाइव टेलीकास्ट हुआ.

४-आदरणीय -लफंगा.

५-बक थोथी के बहुत से मैडल जीते.

शशि को बधाई.

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यशवंत कोठारी ,701,SB-5,BHAWANI SINGH ROAD ,BAPUNAGAR ,JAIPUR-302015 MO-9414461207