पुस्तक समीक्षा - 9 Yashvant Kothari द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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पुस्तक समीक्षा - 9

मानवीय मंत्रालय

लेखक: अरविन्द तिवारी

प्रकाशक: विवेक पब्लिशिंग हाउस चौड़ा रास्ता जयपुर-3

पृप्ठ: 177 मुल्यः एक सौ साठ रुपए

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अरविन्द तिवारी का यह व्यंग्य-सग्रह राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से छपा है। इस पुस्तक में 47 व्यंग्य है, लेकिन कई रचनाओं में व्यंग्य के तीखे तेवर दिखाई देते। उदाहरण के लिए, ‘अफसर और ट्यूर’, ‘रचना मांग रही में डाल’, आदि। दूसरी तरफ कुछ रचनाएं ऐसी हैं, जो व्यंग्य के रुप में कथा के ताने-बाने के साथ चलती है। ये रचनाएं प्रभावित करती है, जैसे ‘घोटालों का स्वर्ण पदक’, ‘प्रयोग शाला में व्यंग्य’, ‘साहित्यकार का तकिया’ आदि। होली व्यंग्यकारों का प्रिय विपय है, अरविन्द तिवारी के होली पर इस पुस्तक में 4 व्यंग्य लेख है और चारों ही कमजोर। ये केवल होली पर छपास पूरी करते हें। ‘चमचा कथा’ नामक व्यंग्य लेख भी निप्प्रभावी है।

‘दिल्ली के जूता चोर’ में लेखक ने नए प्रतीक तलाशने की सफल कोशिश की है।’ ‘प्राइमरी के चमत्कार’ में शिक्षा नीति पर करारा व्यंग्य किया है। राजनीतिक व्यंग्यों में ‘पार्टी में लोकतंत्र है।’, ‘समर्थन दिया-दिया, न दिया’, ‘नेताजी जीते’, कम्प्यूटर हारा आदि व्यंग्य लेख अच्छे है। कुल मिलाकर अरविन्द तिवारी की व्यंग्य रचनाएं एक व्यंग्यकार के रुप में उनके उज्वल भविप्य के प्रति आश्रस्त करती है। पुस्तक सुमुद्रित है।

0 0 0 अवसर वादी

लेखक- भरतराम भट्ट

प्रकाशक- जगतराम एंड संस, दिल्ली

पृप्ठ-88

मूल्यः पच्चीस रुपए

समीक्ष्य पुस्तक भरमराम भटृट की पूर्व प्रकाशित पुस्तक का नया संस्करण है। भरतराम भट्ट ने अपनी बात में लिखा है, ‘वक्ता और औचित्य के बिना काव्यत्व की बात निरर्थक है।’ लेकिन उनकी 20 रचनाओं का यह संकलन बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करता।

संकलन की प्रथम रचना ‘अवसरवादी बनो’ में भट्ट कहते है, मेरी बात मानिए और चाटुकारिता का महामंत्र गांठ में बान्धिए। इसी के बलबूते आप विशालतम जिंदगी का मैच बिना गोल के ही जीत सकते है।’

व्यंग्य की मूलभूत आवश्यकता कथात्मकता न होकर विसंगतियों और विद्रूपताओं पर पकड़ होना है। भट्ट ने लगभग सभी रचनाओं में कथात्मकता का सहारा लिया है और इस कारण कथ्य पर उनकी पकड़ ढीली हो गई है। कई रचनाओं में अनावश्यक विस्तार है।

कबाड़-कबाड़ी का मूल्यांकन, भ्रप्टाचार का भार, रेडीमेड काव्य स्टोर आदि रचनाएं अच्छी है। पुस्तक का गैटअप अच्छा है और मूल्य बाजार के हिसाब से कम है।

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भारत में विदेशी हाथ

लेखक:भगुनाथ सिंह

नवीन प्रकाशनः 28 श्याम पथ, गोविन्द नगर, कदमा, जमशेदपुर-831005

पृप्ठः 105

मृल्यः 27 रु.

समीक्ष्य लघु पुस्तक भृगुनाथ सिंह के छोटे बड़े 27 लेखों का संग्रह है। ये लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं, फीचर सेवाओं के लिए लिखे गए थे। लेखों के विपय राजनैतिक, अर्थशास्त्र, अंतर्राप्टिय अपराध, औद्योगिक विज्ञान, मानव जीवन तथा शहीदों को श्रद्धा सुमन आदि है।

लेखक ने भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता होते हुए भी राजनीतिक और आर्थिक विपयों पर भी लेखनी चलाई है। ‘प्रतिभा पलायन या बौद्धिक तरकी नामक आलेख में वे कहते है। ‘ बाहरी देशों में प्रतिभा पलायन से कम बुरी स्थिति आंतरिक प्रतिभा पलायन की नहीं है। अति विशिप्ट और उत्साह वाले डाक्टर इंजीनियर तथा कृपि वैज्ञानिक विभागीय भ्रप्टाचार तथा भाई भतीजावाद के शिकार होते है। उनके अनुसंधान में तरह तरह की बाधाएं उत्पन्न की जाती है।

‘‘काले धन का अंतर्राप्टिय माफिया’’ नामक आलेख में काले धन के बढ़ते दुप्प्रभावों की विस्तार से चर्चा लेखक ने की है। इसी प्रकार नशीले पदार्थो पर भी कलम चलाई है।

मानव अंगो की तस्करी पर भी एक लघु आलेख है। आतंकवाद, राजनैतिक हत्याएं, जैसे विपयों के साथ-साथ वायं प्रदूपण और जंगल, बढ़ती गर्मी, औद्योगिक रोग जैसे विपय भी है। यद्यपि विपयों में विविधता है, लेकिन लेख संक्षिप्त और सपाटबयानी से लिखे गए है।

पुस्तक के शहीदों के श्रद्धा सुमन खण्ड के अंतर्गत बाबू कुंवर सिंह, बिरसा मुण्डा, आजाद हिन्द फौज, जय प्रकाश का जेल से पलायन तथा सरदार पटेल पर लिखे आलेख महत्वपूर्ण है।

सम्पूर्ण पुस्तक पढ़ जाने के बाद भी कोई स्पप्ट राय नहीं बन पाती है, सामान्य पत्रकारिता वाली शैली में लिखे ये लेख पुस्तकाकार में क्यों प्रस्तुत हुए ? विज्ञान संबंधी लेख सामान्य श्रेणी के है। पुस्तक का कागज, छपाई साधारण है। मूल्य कुछ अधिक है। 000