पुस्तक समीक्षा - 10 Yashvant Kothari द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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पुस्तक समीक्षा - 10

वैद्य कुलगुरु काव्य वैभवम्

संपादक: वैद्य देवेन्द्र प्रसाद भट्ट

प्रकाशक: कीर्ति ष्शेखर भट्ट, चौड़ा रास्ता, जयपुर-3

पृप्ठ: 407

मूल्य: सात सौ पचास रुपए।

वैद्य कुलगुरु श्री कृष्ण राम जी भट्ट की स्मृति में यह ग्रंथ राजस्थान संस्कृत अकादमी के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुआ है। ग्रंथ के सम्पादक वैद्य देवेन्द्र प्रसाद भट्ट है।जो उनके सुपुत्र है.

वैद्य कृप्णराम भट्ट प्रणीत प्रमुख ग्रंथ है- कच्छावंश महाकाव्यम्, जयपुरविलासम्, मुक्लकमुक्तावती, पलाण्डुराजशतकम् तथा सिद्ध भैपजमणिमाला, जिनमें ‘सिद्ध भैपजमणिमाला’ आयुर्वेद का एक अप्रतिम ग्रंथ है। इससे आयुर्वेद के विद्यार्थी, अध्यापक, चिकित्सक लम्बे समय से लाभान्वित हो रहे है।

श्रीकृप्णराम भट्ट सर्जनात्मक प्रतिभा के धनी और विख्यात लेखक थे। उनका जन्म सं. 1905 की कृप्ण जन्माप्टमी को हुआ था। अभिनन्दन ग्रंथ में कुल 63 आलेख है, जो आयुर्वेद तथा संस्कृत के प्रतिप्ठित विद्वानों द्वारा लिखे गए हैं यथा प्रो. रामप्रकाश स्वामी, प्रो. मदनगोपाल शर्मा, जामनगर के प्रो. हरिशंकर शर्मा, डॉ. कलानाथ शास्त्री,प्रो. बनवारी लाल गौड़, डॉ. नारायण कांकरशास्त्री, वैद्य सत्यनारायण शर्मा, डॉ. गंगाधर भट्ट, डॉ. प्रभाकर शास्त्री, गोपाल नारायण बहुरा, श्रीमती सविता दवे आदि।

इन रचनाकारों ने कृप्णराम भट्ट के व्यक्तित्व तथा कर्तृत्व पर प्रर्याप्त प्रकाश डाला है। प्रो. बनवारी लाल गौड़ ने ‘सिद्ध भैपजमणिमाला’ पर अपने लेख में विस्तार से प्रकाश डाला है। प्रो. मदन गोपाल शर्मा लिखित ‘नाडी विज्ञान’ लेख भी पठनीय है और नए वैद्यो को दिशा-बोध देता है।

इस महत्वपूर्ण ग्रंथ में ‘होलोत्सव’ का भी वर्णन है। ‘जयपुरविलासम्’ पर डॉ. कलानाथ शास्त्री का लेख भी पठनीय है।

प्राचीन विद्वानों पर इस प्रकार के ग्रंथों की आवश्यकता है और यह ग्रंथ इस कमी को आंशिक रुप से पूरी करता है।

इस सुसम्पादित पुस्तक का मुद्रण, कागज व बाइंडिंग सुन्दर है। पुस्तक पुस्तकालयों के लिए उपयोगी है।

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सब देखते हैं नाच

लेखक: डॉ. त्रिभुवन चतुर्वेदी

प्रकाशक: आनन्द प्रकाशन, कोटा

मूल्य: 70रु.

पृप्ठ: 87

डॉ. त्रिभुवन चतुर्वेदी का ललित निबंध संग्रह ‘सब देखते हैं नाच’ राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुआ है। संग्रह की प्रथम रचना ‘सब देखते हैं नाच’ में लेखक कहते हैं, ‘आज तो प्रत्येक व्यक्ति साधना किए बगैर सिद्धि का आकांक्षी है।’ इसी प्रकार ‘नपुंसक क्रोध’ नामक लेख में वे कहते है- ‘यह नंपुसक क्रोध जब दिशाहीन होता है, तो थोथी अहमन्यता में बदल जाता है, व्यक्तिगत हो या सामूहिक। ‘विकलांग प्रजातंत्र’ में प्रजातंत्र तथा तत्संबधित प्रक्रियाओं पर व्यंग्यात्मक तरीके से चोट की गई है।

बस यात्रा की पीडा़ का चित्रण लेखक ने ‘बिसाले बस’ नामक निबंध में किया है। विज्ञापनों में नारी दे हके चित्रण पर कटाक्ष करते हुए ‘अमृत-घट में यह कैसा विप’ नामक लेख में लेखक लिखता है-

‘इस महाजनी व्यवस्था का मूलाधार है बिक्री, अधिक से अधिक बेचो, अधिक से अधिक कमाओ। व्यापार में नैतिक, अनैतिक, मर्यादा, अमर्यादा की भावनाएं मत ठूंसो। वास्तव में खुली बाजार व्यवस्था में हमें किस मुकाम पर पहुंचा दिया है ?

पुस्तक में कुल 28 रचनाएं है। डॉ. चतुर्वेदी की इन रचनाओं में रंजन तत्व है, पठनीयता है और यही लेखक की सफलता है। पुस्तक का कवर सुन्दर है मगर बाइंडिंग कमजोर है। मूल्य भी कम है। पुस्तक पठनीय है।



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