DOLI ARMANO KI - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

डोली अरमानों की - भाग 2

कहते  है  अगर  रास्ते  मे  कोई  प्रेत  हो । 

तो  वहा से  निकलते  वक्त  भूल से  भी  ये  नहीं  कहेना  चाहिए  की  चलो  या  फिर  मेरे  साथ  चलो  । 

चाहे  आपके  सामने  आपका  कोई  चाहीता व्यक्ति  ही  क्यू  ना हो ।

और  दुशरी  बात  उस  रास्ते  पे  पड़ी  या  फिर  मिली  किसी  वस्तु  को  घर  नहीं  ला  ना  चाहिए  । 

 

क्युकी  ऐशा  करने  से  उस  प्रेत  को  ऐशा  लगता  है  की  आप  उसे  अपने  साथ  आनेका  नियोंता  दे  रहे  हो । 

जाने  से  या  अनजाने  से  कोई  फर्क  नहीं  पड़ता  । 

 

आगे  आपने  देखा की  कैसे सब  बाराती  एक - एक  करके  पार्थ  मे  से  साये  की  तरह  गुजर  गए । 

ओर  उसे  वहा  पोटली  मिली  । 

जिसमे  सोने  के  गहेने  थे  अब  आगे  । 

 

सुबह  होने  वाली  थी  । 

पार्थ  बहोत  खुश  था ।  इतना  खुश  उसके  मम्मी - पापा  ने  उसे  पहले  कभी  नहीं  देखा । 

उसका  यह  रूप  देखकर  उसके  पापा  नटवर लाल  ने  उसे  कहा  । 

क्या  बेटा  इतना  खुश  हो  रहे  । 

क्या  कोई  खजाना  मिला  है  । 

तब  उसने  कहा  ऐसा  ही  समजो  पापा  । 

इस बात पर  शंका  जताते  हुए  । 

उसके  पापा  ने  उसे  सारी  बात  बताने  को  कहा  । 

पार्थ  ने  कल  रात  जो  भी  घटित  हुआ  था  वो  सारी  बात  कही । 

 

ये  सब बात  सुनकर  । 

वो  फुट - फुट  कर  रोने  लगे । 

वो  दोनों  चिंता  के  मारे  नीचे  गिर  पड़े  । 

ओर  कहने  लगे  तूने  तुम्हारे  बाप - दादा  की  सालों  की  महेनत  पर  पानी  फेर डाला । 

 

आखिरकार  उन  भूतों की  डोली  ने  तुजे  अपनी  आजादी  का  जरिया  बना  ही  दिया  । 

क्या  बात  है  पापा  कुछ  खुलकर  बताइएना  । 

तब  उसके  पापा  ने  ये  कहानी  सुनाई । 

 

ये  बात  है  कई  सालों  पुरानी  । 

इसी  गाव  की  एक  लड़की  थी  रंभा  । 

देखने  मे  कोई  अप्सरा  से  कम  नहीं  थी  । 

जैसे  किसी  कवि  की  कल्पना  हो । 

दिखने  मे  सुंदर  पर  दिमाग  से  उतनी  ही  सातीर  । 

 

धीरे - धीरे  गाव  मे  कई  मौते  होती  चली  गई  । 

किसी  को  कुछ  पता  नहीं  चला । 

पर  एक  दिन  गाव  के  एक  शख्स  भोलराम  ने  इस  राज  पर  से  पर्दा  हटा  दिया  । 

 

उसने  देखा की  गाव  के  बाहर  वाली  सड़क  जो  अभी  प्रतिबंधित  है  । 

उसके  एक  और  कई  तांत्रिक  ओर  तांत्रिका  एक  शव   को  लेकर  आ  रहे  है । 

वो  शव   किसी  ओर  का  नहीं  पर  उसके  ही  छोटे  भाई  राजाराम  का  था  । 

 

उन  सब  ने  पहले  उस  शव  को  अपने  इष्टदेव  को  समर्पित  किया  । 

फिर  उसकी  बलि  चड़ाई  । 

उन्मे  से  एक  ने  उस  शव  की  खोपरी  निकाल  दी  । 

ओर  सब  बारी - बारी  उसमे  रक्त  पीने  लगे । 

फिर  उसके  मांस  को  बारी - बारी  सबने  खाया । 

उसकी  हड़ियों  की  माला  बनाई । 

 

ये  सब  देखकर  भोलाराम  सहम  गया । 

पर  कुछ  कर  नहीं  शकता  था  । 

क्युकी  वो  बहुत  सारे  ओर  तंत्र विध्या  के  जानकार  थे  । 

पर  उसने  भी  अपने  छोटे  भाई  का  प्रतिशोध  लेने  की  प्रतिज्ञा  ले ली  । 

आखिर  वो  तांत्रिक  ओर  तंत्रिका ए  कोन  थी  । 

ओर  भोलाराम  इन  सबसे  कैसे  बदला  लेगा  । 

 

जानने  के  लिए  पढे - डोली  अरमानों  की  भाग - ३ 

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