मेरे शब्द मेरी पहचान - 19 Shruti Sharma द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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मेरे शब्द मेरी पहचान - 19

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---- कुछ कहना था जो रह गया ----

* क्या कहना था पता नहीं
पर कुछ कहना था जो रह गया ।
समझना बाकी था अभी मेरा
कुछ बताना था जो रह गया ।
अभी तो जी भर के पढ़ा ही नहीं
कुछ लिखना था जो रह गया ।
इतनी बड़ी दुनिया है
जिसमें किसी को एक टक तकना था जो रह गया ।
हँसमुख लोग रोते थोड़ी है
एक वक्त जी भर के रोना था जो रह गया ।
सपने देखे थे हमने भी
उन्हें बस धागे में पिरोना था जो रह गया ।
किसी और के हम काबिल ही कहां
हमे तो बस खुद का होना था जो रह गया ।
खुद को ना सही
पर दूसरों को हंसाना था जो रह गया ।
डर इंसान की कमज़ोरी है
डर को ही डराना था जो रह गया ।
जैसी हूँ वैसे ही खुद को अपनाना था जो रह गया ।
किसी के साथ का तो पता नहीं पर एक रिश्ता खुद से निभाना था जो रह गया ।
भरी आँखें ओर उदास दिल के साथ किसी को कस के गले लगाना था जो रह गया ।
अधूरा छोड़ रखा है सब कुछ
कुछ करना था पूरा जो रह गया ।
मंजिल की परवाह किए बिना अनजानी राहों यू ही मीलों चलना था जो रह गया ।
कामयाब तो नहीं हैं हम
पर इस जिंदगी में जिंदगी को कमाना था जो रह गया।
* अभी बेख़बर हूँ इस चीज़ से पर बाद में मलाल होगा
कि जिंदगी थी
जिंदगी को जीना था जो रह गया । । ।


❤ ❤ ❤ ❤ ❤ ❤ ❤ ❤ ❤ ❤ ❤ ❤


---- तो कुछ बात बने ----

* मैं हर बार नहीं कहती अपने दिल का हाल
कोई सुने मेरी खामोशी तो कुछ बात बने ।
मैंने समझा है औरों को उनके बिना बोले
कोई मुझे भी समझे तो कुछ बात बने ।
मैंने जाने दिया है लोगों को उनकी खुशी ले लिए
कोई मेरी खुशी के लिए भी ठहरे तो कुछ बात बने ।
रखी है औरों की खुशी अपनी खुशी से पहले
कोई खुद से पहले मुझे रखे तो कुछ बात बने ।
मैं भी इंसान हूँ मुझे भी दर्द होता है
कोई हो जो मेरा भी दिल रखे तो कुछ बात बने ।
मुझे खुद को छोड़ के सबकी फिक्र है
कोई मेरी भी करे तो कुछ बात बने ।
मैं डरती हूँ अपनों को खोने से
कोई मेरे रोने से डरे तो कुछ बात बने ।
मेरी जुबान कुछ ओर दिल कुछ कहता है
कोई उन फर्जी अल्फाज को अनसुना कर मेरे दिल को पढ़े तो कुछ बात बने ।
मैं उलझा देती हूँ लोगों को अपनी झूठी मुस्कराहट से
कोई देखे मेरी नम आँखों को तो कुछ बात बने ।
हाँ मैं भी रोती हूँ फ़ूट फ़ूट कर अकेले में
कोई बिन बोले गले लगाए तो कुछ बात बने ।
मैं समय ना होते हुए भी समय निकाल लेती हूँ अपनों के लिए
पर कोई बहाने से मेरे साथ भी वक्त बिताए तो कुछ बात बने ।
मैंने यारी निभायी है सबके साथ
कोई वैसी यारी मुझसे निभाए तो कुछ बात बने ।
माना मैं अकेली रहती हूँ
पर कोई हो जो ज़बरदस्ती साथ बिठाए अपने तो कुछ बात बने ।
खुद को आज तक समझ नहीं पायी
जैसी हूँ वैसी क्यों हूँ कोई मुझे ही समझाये तो कुछ बात बने ।
मैं रो पड़ती हूँ आसानी से दूसरों के लिए
कोई मेरे लिए रोये तो कुछ बात बने ।
मरना तो निश्चित है जीवन में
कोई मेरे मरने के ख्याल से घबराए तो कुछ बात बने ।
अपनों से मिलना खुशी देता है मुझे
कोई मुझसे मुलाकात की बात पे मुस्काये तो कुछ बात बने ।
चुप रहना आदत है मेरी
कोई ज़बरदस्ती बातें उगलवाए तो कुछ बात बने ।
मेरी रूह को सुकून मिले ये इंसानों के बस की बात कहाँ
ऐ मेरे मालिक
अब तू खुद ही उतर कर आए मेरे लिए तो कुछ बात बने । । ।

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻


-श्रुति शर्मा 🥀