वजूद - 17 prashant sharma ashk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वजूद - 17

भाग 17

शंकर के लिए ? प्रधान गोविंदराम ने चौंक कर पूछा।

हां शंकर के लिए। आप सभी गांव के लोग उसे बरसों से जानते हैं। गांव के कोई पांच या सात लोग एक कागज पर लिखकर दे दें कि आप लोग शंकर को कई वर्षों से जानते हैं तो उसे भी सहायत राशि मिल जाएगी। उसके पास उसका एक ठिकाना हो जाएगा और उसकी जिंदगी फिर से पटरी पर लौट आएगी।

इंस्पेक्टर की बात को सुनकर गोविंदराम इस बार कुछ गंभीर होकर बोले- साहब आप तो सरकारी कामकाज से अच्छे से वाकिफ है। हम ठहरे गांव के लोग कोई परेशानी हो गई तो हम कहां सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटते फिरेंगे। मैं लिखकर भी दे दूं प्रधान होने के नाते, पर गांव का कोई और व्यक्ति लिखने को तैयार नहीं होगा।

इंस्पेक्टर ने कहा- आप एक बार गांव के लोगों से बात करके देखिए, आपके कहने से गांव वाले मान जाए तो एक गरीब का भला हो जाएगा।

ठीक है आप कहते हैं तो मैं गांव वालों से बात करता हूं।

पर थोड़ा जल्दी कीजिएगा प्रधान जी, क्योंकि राशि को वापस जाने में ज्यादा समय नहीं है। इंस्पेक्टर ने निवेदन की तरह प्रधान गोविंदराम से यह बात कही थी।

इसके बाद इंस्पेक्टर वहां से चला जाता है। शाम के समय ही गोविंदराम गांव के कुछ लोगों को अपने घर बुलाता है। गांव के कुछ विशेष लोग प्रधान के घर पहुंच भी जाते हैं। फिर प्रधान उनसे अपनी बात कहता है-

मैंने आप सभी को एक जरूरी बात करने के लिए यहां बुलाया है। आप सुबह हमारी गांव के बाहर जो पुलिस चौकी है उसके इंस्पेक्टर आए थे। उन्होंने मुझसे अपने शंकर के लिए मदद मांगी है।

सुखराम काका ने बीच में ही पूछा- कैसी मदद प्रधान जी ?

उनका कहना था कि बाढ़ के बाद सरकार की ओर से हम सभी को सहायता राशि के रूप में दो-दो लाख रूपए मिले थे। वो सहायता राशि शंकर को भी मिलना थी। उसके पास उसकी पहचान का कोई कागज नहीं था इसलिए उसे वह राशि नहीं मिल सकी।

मेहर सिंह जो कि गांव में राशन की दुकान चलाता है, उसने कहा तो उसमें हम क्या कर सकते हैं प्रधान जी।

प्रधान ने फिर कहना शुरू किया। सरकारी नियम के अनुसार अगर हम सभी गांव के लोग यह लिखकर दे दें कि हम शंकर को जानते हैं तो वह राशि उसे मिल सकती है।

सुखराम काका ने कहा तो फिर लिखकर दे देते हैं ने प्रधान जी। शंकर का भला हो जाएगा।

दे तो दे सुखराम जी पर ये सरकारी काम है। कल को कुछ गड़बड़ हो गई तो हम मतलब वो जिन्होंने कागज पर लिखा था कि वे शंकर को जानते हैं कहां सरकारी कार्यालय के चक्कर काटते फिरेंगे।

मेहर सिंह ने पूछा इसमें कोई गड़बड़ हो सकती है क्या प्रधान जी ?

वैसे नहीं होती पर शंकर को यह राशि तीन महीने बाद मिलेगी, कोई गड़बड़ हो गई तो।

गांव के सबसे बड़े किसान तारा चंद ने कहा तो फिर रहने दो प्रधान जी। हमें किसी झंझट में नहीं फंसना। बड़ी मुश्किल से तो बाढ़ के बाद फिर से खुद को संभाल रहे हैं, उसके चक्कर कुछ परेशानी हो गई तो कौन झेलेगा। ऐसे ही उसे कोई छोटा मोटा काम दे देंगे, जिससे उसका काम चलता रहे।

हां ताराचंद सही कह रहा है। मेहर सिंह ने भी ताराचंद की बात का समर्थन किया।

आपका क्या कहना है सुखराम जी।

मेरे हिसाब से जो सभी को उचित लगे वहीं ठीक है। हालांकि ताराचंद की बात में दम है।

मेहर सिंह वैसे आपका क्या मानना है प्रधान जी।

मैं भी वहीं सोचता हूं जो सभी लोग सोचते हैं। ठीक है तो फिर मैं कल इंस्पेक्टर साहब को मना कर देता हूं। हो सकता है इंस्पेक्टर साहब आप सभी से अलग-अलग भी मिले पर आप सभी अपनी बात पर कायम रहना।

सभी ने एक स्वर में हां कहा और फिर सभी अपने-अपने घर के लिए रवाना हो गए।

दो दिन बाद इंस्पेक्टर फिर से प्रधान गोविंदराम से मिलने के लिए पहुंचा।

आइए इंस्पेक्टर साहब। प्रधान गोविंदराम ने इंस्पेक्टर को देखते ही कहा।

नमस्कार प्रधान जी। इंस्पेक्टर ने भी प्रधान का अभिवादन किया। मैं बस ये जानने के लिए चला आया कि क्या आपकी गांव वालों से शंकर वाले मुद्दे पर बात हुई थी ?

प्रधान ने कहा- जी हां हुई थी पर जैसा कि मुझे लगा था वहीं बात सही साबित हुई सभी ने मना कर दिया। सभी सरकारी काम-काज और वहां के रवैये से डर गए हैं।

अगर आप कहें तो मैं बात करके देखूं। इंस्पेक्टर ने फिर कहा।

मुझे कोई एतराज नहीं है साहब। पर मुझे लगता है कि आप अपना समय ही खराब करेंगे। वैसे क्या कोई ओर तरीका नहीं है कि शंकर को राशि मिल जाए। प्रधान ने पूछा।

नहीं है प्रधान जी। फिर भी मैं कोशिश जरूर करूंगा। एक बार कलेक्टर साहब से ही बात करूंगा। उस गरीब का भला हो जाएगा।

हां साहब। बेचारे पर चारों और से मुसीबत आई है। अब तो घर भी नहीं है, जमीन भी उसकी पूरी खराब हो गई और भैया-भाभी भी छोड़कर चले गए हैं।

ठीक है तो फिर मैं चलता हूं। इतना कहने के बाद इंस्पेक्टर वहां से चला जाता है।

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