वजूद - 14 prashant sharma ashk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वजूद - 14

भाग 14

इंस्पेक्टर ने शंकर से कहा कि पहले तुम यह खा लो। फिर तुम्हारी एफआईआर की बात करेंगे। शंकर ने तुरंत ही नाश्ता कर लिया। जिस गति से वो खा रहा था उसे देखकर लग रहा था कि वो बहुत भूखा है। नाश्ता करने के बाद वो दो गिलास पानी भी पी गया। फिर इंस्पेक्टर के पास पहुंचा और कहा आपका बहुत बहुत धन्यवाद साहब। हम तीन दिन से भूखे थे, आपने हमको खाना खिलाकर हम पर उपकार किया है। हम आपका यह उपकार जिंदगी भर नहीं भूलेंगे। अब एक उपकार और कर दो हमको वो एफआईआर दे दो।

इंस्पेक्टर अपनी सीट से उठा और शंकर के पास आया। उसके कंधे पर हाथ रखते हुए इंस्पेक्टर ने उससे कहा- देखो शंकर, एफआईआर भी एक सरकारी कागज होता है, इसे ऐसे ही किसी को नहीं दे सकते हैं।

इंस्पेक्टर के अच्छे व्यवहार के कारण शंकर का डर काफी हद तक दूर हो चुका था, उसने तुरंत ही इंस्पेक्टर से पूछ लिया तो साहब कैसे दे सकते हैं ? आप बस हमको एफआईआर दे दो फिर आपका जो भी काम होगा वो हम कर देंगे।

इंस्पेक्टर ने शंकर को समझाते हुए कहा- नहीं शंकर तुम समझे नहीं। एफआईआर किसी अपराध के लिए होती है। और तुमने तो कोई अपराध किया नहीं है, इसलिए हम तुम्हें एफआईआर नहीं दे सकते हैं।

तो साहब फिर हमको वो रूपए कैसे मिलेंगे ? शंकर ने उदास होते हुए इंस्पेक्टर से सवाल किया।

तुम्हारे पास तुम्हारी पहचान का कोई भी कागज नहीं है ?

नहीं साहब हमारा तो पूरा का पूरा घर ही बाढ़ में बह गया। घर के साथ हमारे भैया और भाभी का भी कुछ पता नहीं है। गांव वाले कह रहे थे कि वो तो मर गए होंगे। इतना कहते हुए शंकर फिर से रो पड़ा था।

इंस्पेक्टर ने फिर से उसे शांत कराया और कहा- शंकर देखो सच तो यही है कि मैं तुम्हें एफआईआर नहीं दे सकता हूं। क्या कोई और तरीका नहीं है उन रूपए को पाने का ?

पता नहीं साहब। हमें तो कहा कि पहचान का कोई कागज लाओ और रूपए ले जाओ।

अच्छा तुम अभी कहां रहते हो ?

साहब हमारा तो पूरा घर ही बह गया है, हमारे पास तो घर भी नहीं है। कुछ दिन यहां कैंप में रहे थे, फिर बस ऐसे ही।

अच्छा ठीक है, एक काम करते हैं कल तुम्हारे उन साहब के पास मैं तुम्हारे साथ चलूंगा, फिर मैं उनसे बात कर लूंगा, हो सकता तो तुम्हें तुम्हारे रूपए जल्दी मिल जाएंगे। इंस्पेक्टर ने शंकर से कहा।

शंकर के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई और उसने हां में गर्दन हिला दी।

इंस्पेक्टर ने फिर उससे पूछा कि अच्छा अब तुम कहां जाओगे ?

पता नहीं साहब। यही कहीं गुजार लेंगे रात। शंकर ने कहा।

पर बाहर तो बहुत ठंड है और तुम्हारे पास तो गर्म कपड़े भी नहीं है, इंस्पेक्टर ने शंकर के प्रति अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा।

हमारे पास कुछ नहीं बचा साहब।

ठीक है तुम एक काम करो बाहर एक टेबल है आज रात तुम उसी पर सो जाना। मैं सिपाही को बोल दूंगा वो तुम्हें ओढ़ने के लिए कंबल भी दे देगा। शाम को तुम्हारे लिए खाना भी ले आएगा। मैं सुबह जब वापस आउंगा तो फिर हम तुम्हारे उन साहब के पास चलेंगे।

इंस्पेक्टर की बात सुनने के बाद शंकर ने सिर्फ हां कह दिया। इंस्पेक्टर ने सिपाही को बुलाकर पूरी बात बता दी और कहा कि अगर कही जाना चाहे तो जाने देना। यह कोई अपराधी नहीं है। इसका ख्याल रखना और रात को इसके लिए खाना भी ले आना। इतना कहते हुए इंस्पेक्टर ने सिपाही को कुछ रूपए दे दिए। साथ ही यह भी कहा कि सुबह बाजार जाकर इसके लिए कुछ अच्छे कपड़े और गर्म कपड़े भी लेकर आ जाना।

सिपाही हां कहता है और फिर रात हो जाने के कारण इंस्पेक्टर अपने घर चला जाता है और शंकर वहीं चौकी में एक टेबल पर सो जाता है। इंस्पेटर के कहे अनुसार सिपाही उसके लिए खाना भी ले आया और ओढ़ने के लिए कंबल भी दे देता है।

टेबल पर लेटे हुए शंकर एक बार फिर बीते समय में पहुंच जाता है। जब एक बार दीपावली के त्यौहार से पहले उसका भाई हरी शहर गया हुआ था। कुसुम घर में त्यौहार की तैयारी कर रही थी। वो उसने त्यौहार के लिए कई पकवान बनाए थे और उसकी खुशबू पूरे घर में फैल रही थी। शंकर घर पर ही था और पकवानों की खूशबू से उसका उन पकवानों को खाने का बड़ा मन कर रहा था। वो कुसुम के पास पहुंचता है और कहता है-

वाह भाभी क्या खुशबू आ रही है, थोड़ा हमको खाने को दो ना।

नहीं जब तक तुम्हारे भैया नहीं आ जाते हैं कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा। कुसुम ने कहा।

भाभी बहुत भूख भी लगी है, थोड़ा सा दे दो। भैया को आने में अभी बहुत समय है।

नहीं तुम्हारे भैया आने ही वाले होंगे। जैसे ही वो आएंगे हम सब खाना खाएंगे।

भाभी थोड़ा सा दे दो।

---------------------