शकराल की कहानी - 9 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शकराल की कहानी - 9

(9)

"वो इसीलिये वह तुम्हें भगोड़ा कह रहा था -?" राजेश ने पूछा ।

"हां..." सरदार बहादुर ने कहा। "फिर वहां कोई नहीं रुका था । हम उसे छोड़ भागे थे । आस्मान वाला ही जाने कि यह सब कैसे हो गया था। मैं इसकी खबर बड़े उपासक को पहुँचा आया हूँ ।"

"क्या उसने तुम्हें यह नहीं बताया था कि उस दिन वह घाटी में किस ओर गया था?" राजेश ने पूछा।

“जब वह वापस आया था तो बुखार इतना तेज था कि उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी और बाद की हालत बस क्या बताऊं- बहुत शर्मिन्दा हूँ।"

राजेश तो कुछ नहीं बोला मगर आदिल ने कहा। "वह कुछ बताने पर तैयार ही नहीं-"

"क्या रजवान के वह ग्यारह आदमी भी अपनी यात्रा के मध्य मीरान घाटी से गुजरे होंगे?" राजेश ने पूछा। “जरूर गुजरे होंगे—” सरदार बहादुर ने कहा "क्योंकि हम मीरान घाटी से गुजर कर ही पीले रेगिस्तान में दाखिल होते हैं-'"

राजेश किसी सोच में पड़ गया।

तीन घन्टे बाद राजेश फिर खुशहाल के घर जा धमका । वह आदिल को भी अपने साथ लेता गया था और जाने से पहले सरदार बहादुर को आदेश दे गया था कि यह घर से बाहर न निकले और उन लड़ाकों से भी मुंह बन्द रखने को कह दे जो खुशहाल को स्थिति को जानते थे उन्हें आदमी से वनमानुष बनते देखा था ।

"तुम आखिर क्या करोगे?" आदिल ने कहा "वह कुछ नहीं सुनेगा—''

"बस देखते जाओ-शायद कुछ कर ही सकू-।"

**********

खुशहाल का बूढा बाप अत्यन्त व्याकुल था और इस बार उसने राजेश को बड़े ध्यान से देखा था क्योंकि अब राजेश के चेहरे पर रेडीमेड मेकअप नहीं था । उसने एकदम से अपनी स्कीम बदल दी थी।

"त...त तुम?" बुढा हकलाया। "हाँ मैं सूरमा हूँ" राजेश ने कहा।

"तुम मुझे भूले न होगे ।"

"आस्मान वाले की कसम —तुम्हें तो कोई दोगला कुत्ता ही भुला सकेगा—'' बुढ़े ने कहा।

"अच्छा आओ मेरे साथ अब मैं कोशिश करूंगा कि खुशहाल सीधे रास्ते पर आ जाये। यह बात मुझे मालूम हो गई कि उसने अपने आप को कोठरी में क्यों बन्द कर लिया है।"

"तुम जानते हो?" बूढ़े ने आश्चर्य से पूछा ।

"हां..." और मैं ने तै कर लिया है कि महामारी को शकराल में नहीं फेलने दूंगा–" राजेश ने कहा "तुम ने रजवान के ग्यारह आदमियों के बारे में सुना ही होगा--"

"हां और इसीलिये तो मैं ज्यादा परेशान हूँ।"

"अब परेशान होने की जरूरत नहीं सब ठीक हो जायेगा-"

राजेश ने उसे सांत्वना दी।

यह तीनों कोठरी के निकट पहुँचे ही थे कि खुशहाल ने अन्दर से चीखना आरम्भ कर दिया।

"भाग जाओ, चले जाओ। वर्ना मैं गोली मार दूंगा।”

"अरे अभागे - तू जानता है कि कौन आया है-?" बूढ़े ने क्रोध पूर्ण स्वर में कहा।

"सब जानता हूँ-वही भगोड़ा होगा।" अन्दर से आवाज आई।

"मैं सूरमा हूँ खुशहाल -" राजेश ने ऊंची आवाज में कहा ।

"क...क...'कौन सूरमा---?"

"क्या तुम किसी दूसरे सूरमा को भी जानते हो?" अन्दर से कोई आवाज नहीं आई और राजेश कहता रहा ।

"फिरंगियों से किसने तुम्हें छुटकारा दिलाया था। —सूरमा ने---वही सुरमा फिर तुम्हें मुसीबत से बचाने के लिये आ गया है—आसमान वाले का नाम ऊंचा रहे।"

अन्दर से सिस्किया और हिचकियां सुनाई देने लगी थीं। कदाचित् खुशहाल रो पड़ा था । राजेश फिर बोला ।

"तुम सरदार बहादुर को बार बार भगोड़ा कह रहे हो मगर क्या किसी वक्त यह भी सोचा है कि अगर तुम्हारी जगह सरदार बहादुर होता और तुम सरदार बहादुर की जगह होते तो क्या होता?  मेरा दावा है कि तुम भी भाग खड़े हुये होते— खुशहाल ! आदमी तोप के मुंह में सर दे सकता है मगर आस्मानी बलाओं के सामने तो कोई भी नहीं ठहर सकता।"

"मगर अब मेरा क्या होगा- शायद वह भी वापस आ गया है और उसने तुमको सब कुछ बता दिया है-" अन्दर से आवाज आई भराई हुई आवाज ।

“मुझे सब कुछ मालूम हो चुका है इसीलिये कह रहा हूँ कि अपने आपको काबू में रखो। मैंने तुम्हारे साथियों और वरदार बहादुर से इस बात का वादा ले लिया है कि वह तुम्हारे बारे में किसी से कुछ नहीं कहेंगे। क्या तुम अब भी मुझे अन्दर आने के लिये नहीं कहोगे?"

"और कौन कौन है तुम्हारे पास है?" अन्दर से पूछा गया।

"आदिल और तुम्हारा बाप "

“उन्हें हटा दो—बस तुम अकेले अन्दर आ सकते हो।".

"शुक्रिया खुशहाल।"

"मगर कहीं यह बला तुम्हारे भी न चिमट जाये।" "तुम मेरी फिक्र न करो --।"

" फिर सोच लो---"

"सोच लिया है—अगर चिमट भी गई तो मुझे तुमसे कोई शिकायत न होगी ।"

"अच्छी बात है—उन दोनों को हटा दो।”

राजेश ने तेज आवाज में उन दोनों से हट जाने को कहा— फिर वह दोनों जब हट गये तो उसने खुशहाल से कहा ।

"वह दोनों चले गये अब दरवाजा खोल दो।"

"आ जाओ" अन्दर से कहा गया साथ ही दरवाजा भी थोड़ा सा खुल गया । राजेश ने अन्दर दाखिल होकर दरवाजा फिर बन्द कर दिया। सामने जो वस्तु नजर आई वह किसी रींछ से भी अधिक घने बालों वाली प्राणी थी। पूरे शरीर पर बाल ही बाल थे—केवल आंखें नजर आ रही थीं- लाल लाल डरावनी आंखें।

"देखो सूरमा भाई—मुझे गौर से देखो" खुशहाल ने खिसियानी हंसी के साथ कहा।

"देख रहा हूँ दोस्त——'' राजेश ने कहा वैसे यह सत्य था कि उसके पूरे शरीर में ठण्डी लहर दौड़ गई थी ।

"क्या मैं इस योग्य रह गया हूँ कि किसी को अपनी शक्ल दिखा सकू?"

"बिल्कुल नहीं-" राजेश ने कहा। "वैसे मानसिक तौर पर तुम बिल्कुल ठीक हो।"

"हां मैं सब कुछ और समझ सकता हूँ मगर अब मेरा क्या होगा?"

"तुम फिर अस्ली हालत पर आ जाओगे मगर इसके लिये तुम्हें मुझे पूरा सहयोग देना होगा ।"

"मैं हर तरह से तैयार हूँ जो कहोगे वह करूंगा ।"

"पहले मैं इसका कारण मालूम करना चाहूँगा-फिर तुम्हारा इलाज हो जायेगा ।"

“कारण कैसे मालूम करोगे जबकि मुझे खुद भी नहीं मालूम –"

"बुखार तुम्हें कैसे चढ़ा था और घाटी में किस स्थान पर चढ़ा था-?" राजेश ने पूछा ।

"स्थान का नाम मुझे मालूम नहीं। घना जंगल है। वहां आबादी तो है नहीं कि जगहों के नाम रखे जाते -"

“ठीक है—” राजेश ने कहा “मगर यह तो बता ही सकते हो कि बुखार चढ़ने से पहले तुमने क्या महसूस किया था—?"

"शायद मैं बेहोश हो गया था-"

"वह किस प्रकार ?” राजेश ने पूछा ।

'एक जगह घोड़े से उतर कर मैं आराम करने लगा था कि अचानक मेरी आंखें बन्द होने लगी थीं और सिर चकराने लगा था। मैंने उठने की कोशिश की मगर उठ न सका--आखिर मैं बेहोश हो गया। दुबारा जब होश में आया था तो मुझे बुखार चढ़ा हुआ था और मेरा दाहिना हाथ दर्द से फटा जा रहा था- मुझे याद नहीं कि मैं किस तरह डेरे तक पहुँचा था।"

राजेश किसी सोच में पड़ गया फिर बोला ।

"क्या बेहोश होने से पहले तुमने अपने आस पास किसी को देखा भी था ?"

"किसी को भी नहीं देखा था-"

"किसी प्रकार की महक महसूस की थी?"

"महक "

"हां— शायद ....ठहरो.... मुझे सोचने दो ।" थोड़ी देर तक खामोशी छाई रही फिर खुशहाल ने कहा।

"हां ----याद आया -- किसी तरह की मीठी मीठी महक थी— मैंने यह अन्दाजा लगाने के लिये कि वह किस चीज की महक हो सकती है गहरी गहरी सांसें भी ली थीं और फिर अपने आप पर काबू पाने की कोशिश करने के बावजूद बेहोश हो गया था ।"

"मैं समझ गया।" राजेश ने सिर हिला कर कहा ।

"क्या समझ गये?"

“यही कि तुम्हारा इलाज हो जायेगा—तुम फिर पहले जैसे हो जाओगे-"

"इसके लिये मुझे क्या करना होगा?"

"बस जिस तरह आये थे उसी तरह आज रात को मेरे साथ चुपचाप निकल चलो। किसी को कानों कान खबर न होगी।"

"कहाँ--?"

"वहीं-जहां तुम बेहोश हुये थे-"

"नहीं सूरमा अब मैं वहां जाने की हिम्मत नहीं कर सकता ।"

"चिन्ता न करो।" राजेश ने हंसवर कहा "इस बार तुम्हारे सिर पर सींग नहीं निकलेंगी।"

"मेरी हंसी उड़ा रहे हो सुरमा?" खुशहाल ने कहा।

"नहीं दोस्त! बल्कि यह कह रहा हूँ कि अब कुछ नहीं होगा। सरदार बहादुर भी हमारे साथ होगा और चौथा कोई नहीं।"

"मेरे दिल में उनके लिये भय नफरत और गुस्से के अलावा और कुछ भी नहीं ।"

"देखो खुशहाल ।" राजेश ने समझाने वाले भाव में कहा।

"वह मजबूर था -- तुम सभी आस्मानी बलाओं से डरते हो ।"

"तो क्या तुम नहीं डरते ?" खुशहाल ने आश्चर्य के साथ पूछा।

"नहीं—क्योंकि मैं खुद भी एक आस्मानी बला हूँ-मेरे मां बाप यही समझते हैं।"

"तो तुम रात में आओगे ?"

"जरूर आऊंगा।"

"अस्तबल में चले आना वहीं मिलूंगा।" खुशहाल ने कहा ।

"एक बार फिर तुम्हें यकीन दिला रहा हूँ कि तुमको इस तरह ले चलूंगा कि किसी की भी नजर तुम पर न पड़ने- पायेगी ।"

"तुम बात के धनी हो मैं जानता हूँ" खुशहाल ने कहा। "इतना और करो कि किसी न किसी तरह मेरे बाप को समझा दो कि वह दरवाजा खोलने के लिये मुझसे जिद न करे।"

"मैं समझा दूँगा-अच्छा अब मैं चला।"

राजेश बाहर निकला था और खुशहाल ने दरवाजा बन्द करके कुन्डी चढ़ा दी थी। राजेश को देखते ही बूढ़ा उसकी ओर का और राजेश हाथ उठा कर बोला ।

"परेशान होने की बात नहीं है---वह बिल्कुल ठीक ठाक है भ्रम की बीमारी उसे हो गई है।"

"मैं समझा नहीं--" बूढ़े ने विस्मय के साथ कहा । "पता नहीं क्यों और कैसे उसके दिन में यह ख्याल पैदा हो गया है कि वह शीशे का आदमी बन जाता है । कहता है कि मुझे हाथ न लगाना- मैं बाहर नहीं निकलुंगा—अगर किसी बच्चे ने पत्थर मार दिया तो टुट फुट जाऊंगा ।"

"आस्मान वाला अपना रहम करे" बूढ़ा कराहा।

"बस तुम इसे छेड़ना नहीं इसी तरह उसे बन्द रहने दो-में उसका इलाज कर दूंगा।" आदिल खामोश या घर की वापसी पर उसने पूछा ।

"तुमने क्या देखा?"

"वही जो सरदार बहादुर की जबान से सुन चुका था— "

फिर आदिल ने और कुछ नहीं पूछा था। इस बार वह राजेश के साथ सरदार बहादुर के पास नहीं गया था। राजेश ने सरदार बहादुर को बताया कि उसने किस तरह खुशहाल को निकट से देखा था। सरदार बहादुर ने कहा।

"समझ में नहीं आता कि यह सब क्या हो रहा है-" बहादुर ने कहा ।

"जो कुछ भी हो— मगर यह आस्मानी बला नहीं है।"

"यह किस तरह कह सकते हो?"

"इस सिलसिले में तुम्हें विश्वास दिलाने के लिये अभी तो मेरे पास कुछ नहीं है--मगर जल्द ही तुमको इसका विश्वास हो जायेगा कि यह आस्मानी बला नहीं है।"

सरदार बहादुर बोला तो कुछ नहीं मगर उसका चेहरा बता रहा था कि वह राजेश की बात से संतुष्ट नहीं हुआ था । राजेश ने उसे विश्वास दिलाने के अभिप्राय से कहा ।

"अच्छा सरदार बहादुर ! यह बताओ कि वह औरत क्या थी—उसने रज़वानी सरदार लाहुल की बीवी बन कर रजवान के उन ग्यारह आदमियों का भेद खोलने की कोशिश क्यों की ?"

"मेरी समझ में नहीं जाता"

अच्छा तो फिर समझने की जिम्मेदारी मुझ पर डाल दो-आखिर तुम्हें भी तो उस औरत पर सन्देह हुआ था ना ?"

"हां बात भी सन्देह करने की थी!"

"तो फिर कुछ समझने की चिन्ता छोड़ दो और जो मैं कहूँ वह करते रहो--" राजेश ने कहा ।

"कहो क्या कहते हो?"

"मैंने खुशहाल को अपने साथ चलने पर राजी कर लिया है-"

"कहां चलने पर राजी कर लिया है?" सरदार बहादुर ने चौंकते हुये पूछा ।

"वहीं-जहां वह बेहोश हुआ था-".

"अच्छा तो फिर-?"

"हमारे साथ तुम भी चलोगे।" राजेश ने कहा, "हम रात को यहां से इस प्रकार रवाना होंगे कि खुशहाल पर बस्ती के किसी भी आदमी की नजर न पड़ सके। रात ही रात हम गुलतरंग पहुंचेंगे और इसके लिये वही गुप्त रास्ता अपनाया जायेगा जिसे तुमने हाल ही में खोज निकाला है।"

"वह तो मैं किसी को नहीं बताना चाहता -"

"तब तो हमें लम्बा सफर करना पड़ेगा और हो सकता है किसी की नजर भी खुशहाल पर पड़ जाये।" राजेश ने कहा।

"और यह किसी तरह मुनासिव नहीं होगा।"

"आखिर हम यहां जाकर क्या करेंगे —?”

"उन लोगों से निपटेंगे जो इन हरकतों के जिम्मेदार हैं--"

सरदार बहादुर ने अट्टहास लगाया फिर बोला ।

"सूरमा हवा से लड़ेगा-"

"विश्वास करो... सरदार बहादुर...।"

“ठहरो–” सरदार बहादुर हाथ उठा कर बोला, "मैं दूसरे लोगों के लिये घरदार बहादुर हूँ तुम्हारे लिये केवल बहादुर मुझे सिर्फ बहादुर ही कहोगे-"

"सब के सामने भी--?" राजेश ने हंस कर पूछा ।