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कंप्यूटर साक्षात्कार

 

कम्प्यूटर साक्षात्कार

 

         यशवन्त कोठारी

 

सम्पूर्ण राष्ट्र दो धाराआंे मंे बंट गया है। मुख्य धारा के पास कम्प्यूटर है, दूसरी धारा कम्प्यूटर प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। दोनांे धाराआंे का लक्ष्य कम्प्यूटर है। वे भारत को कम्प्यूटर-प्रधान देश बनाने जा रहे हैं। मुख्य धारा उनके साथ है वे धारा के साथ बह रहे हैं, देश मंे कम्प्यूटरांे की बाढ़ आ रही है। आजादी के चालीस वर्षों के बाद सिद्ध यह हुआ कि कम्प्यूटर हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है। देश मंे सब फूलमालाएं, पान लेकर कम्प्यूटर का इन्तजार कर रहे हैं। प्रगति की मंजिल अब कम्प्यूटर सिद्ध हो गई है। खेतांे मंे कम्प्यूटर बोने, ऊगाने और काटने की वृहद योजनाएं बन रही हैं। हर कोई खड़ा, बैठा, सोया हुआ भी बस एक ही काम कर रहा है, वह कम्प्यूटर का इन्तजार कर रहा है। हमने देश मंे सड़क, रेल और हवाई जहाज बना लिये, मगर बिना कम्प्यूटर सब सून, जो काम आज तक नहीं हुआ वो अब होगा, पूरे प्रयत्नांे के बाद हम बीसवंे सूत्र से आगे इक्कीसवीं शताब्दी का इक्कीसवीं सूत्र बनायंेगे, कम्प्यूटर-सूत्र।

आम लोगांे की राय ये है कि भारत के खेतांे की जमीन बड़ी उपजाऊ है। यदि माइक्रोचिप्स के बीजांे को सिस्टम एनलिसिस की खाद से तैयार किया जाये तो कम्प्यूटरांे की बढ़िया फसल लहलहा सकती है। अनाज, दूध आदि मंे हम आत्म निर्भर हो चुके हैं। अब समय आ गया है कि हम कम्प्यूटर मंे आत्म निर्भर हो जायंे अब नया नारा होगा, ‘‘देश किस का ? जिसके पास कम्प्यूटर उसका’’!

सोचा, चलो कुछ लोगांे से कम्प्यूटर के मामले मंे बात करंे। सर्वप्रथम एक आलोचक मिले मैंने उनसे कम्प्यूटर की चर्चा की उन्हांेने कहानी से ग्रामीण परिवेश और कविता की वापसी की चर्चा की।

मैंने कहा-‘‘क्यांे साहब, आप, कम्प्यूटर के माममले मंे क्या सोचते हैं ?’’

‘‘यार कोठारी सोचने को अब बचा क्या है। सिवाय कम्प्यूटर के।’’ हां ये बताओ कम्प्यूटरांे के आने के बाद भी समीक्षाएं छपेगी या नहीं।’’

मैंने कहा-‘तब आलोचना की आवश्यकता ही समाप्त हो जायेगी। तब कम्प्यूटर स्वयं तय करोगा कि रचना का स्तर कैसा है, वामपंथी, प्रगतिवादी, जनवादी है या परिमलवादी है।

‘‘अच्छा यह बताओ क्या कम्प्यूटर का एक सर्व ग्राह्म माडल नहीं बन सकता।’’ उन्होंने पूछा।

हां-हां, क्यांे नहीं लेकिन नामवरसिंह मानंेगे क्या ? यह नाम सुनते ही आलोचकजी चलते बने। सोचा चलो भोपाल चलते हैं, वह हमेशा खबरांे मंे रहता है। वास्तव मंे भोपाल को नेताआंे की तरह खबरांे मंे रहना आता है। वहां पर देखा कवि कलाकार भारत-भवन के बाहर लाईन लगाकर खड़े हैं। मैंने देखा गेट पर ही एक रोबोट ऊंची आवाज मंे डांट फटकार रहा है।

मैंने रोबोट से पूछा-‘‘अरे भाई अब देश मंे कम्प्यूटर आ रहा है, तुम क्यांे कष्ट कर रहे हो।’’

‘‘तुम नहीं समझोगे। हमने शरद जोशी तक को भोपाल से बाहर कर दिया।’’ तुम किस खेत की मूली हो। भागो-भागो यहां से। मैं फिर भागा।’’

मैंने एक किसान नेता को पकड़ा वे बोले-‘‘भाई कम्प्यूटर का क्या करना है। किसान झौंपड़ी मंे रहता है उसे कम्प्यूटर का क्या करना है।’’

‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप। जब किसान ट्रैक्टर खरीद रहा था तब भी आपने यही कहा था।’’

‘‘तब तो मैं सच्चा कृषिवादी हूं। अगर मेरी सलाह से चलते तो आज देश की यह हालत थोड़े ही होती। खैर चलो तुम ऐसा करो कम्प्यूटर की स्क्रीन पर किसान का हल और बैल का चिन्ह लगवा दो।’’

’’लेकिन यह तो मुश्किल होगा।’’ मैंने चिन्तित स्वर मंें कहा। ’’क्यांे, क्यांे मुश्किल होगा भाई, वे अधराएं। आगे बोले-‘‘अच्छा ऐसा करो माइक्रोचिप्स पर मेरा नाम खुदवा दो।’’

‘‘यह भी सम्भव नहीं हो पायेगा।’’ मैंने नम्रता से कहा।

‘‘क्या यह भी सम्भव नहीं होगा। आने दो चुनावांे का मौसम, मैं तुम्हंे बताऊँगा कि क्या-क्या हो सकता है।’’

‘‘कम्प्यूटर बनायंेगे.....हूं....।’’ वे चले गये।

मैं फिर आगे चला। एक उद्योगपति मिले।

वे पचास डालर का चश्मा लगाये सिगार फंूक रहे थे। यदा-कदा सफारी की गर्द झाड़ रहे थे।

मैंने पूछा-सर।

‘‘हूं, क्या है, कौन है ?’’

‘‘सर मैं व्यंग्यकार।’’

‘‘अच्छा। पी.ए.। इन्हंे कुछ रुपये दे दो।’’

मैं चन्दा लेने नहीं आया हूं।

‘‘ तो फिर।’’

वो ऐसा है कि हम कम्प्यूटर हेतु एक राष्ट्रीय डिजाइन पर विचार कर रहे हैं। जिस पर सभी वर्ग सहमत हांे।

‘‘अच्छा पब्लिक-सैक्टर मंे या प्राइवेट-सेक्टर मंे बनेगा।’’

‘‘तय क्या करना है, आज तक पब्लिक-सेक्टर मंे कोई काम ढंग का हुआ है क्या ?’’

‘‘देख लो सरकार पब्लिक-सेक्टर मंे है, कैसे लड़खड़ा कर चल रही है। सरकार को प्राइवेट-सेक्टर मंे कर दो फिर देखो मजा।’’

मैंने निवेदन किया मेरे ख्याल से सरकार तो प्राइवेट-सेक्टर मंे ही है।

वो नही माने । खैर मैंने बहस को मुख्यधारा की ओर मोड़ते हुये कहा यदि कम्प्यूटर का मॉडल बने तो कैसा हो ?

‘‘कैसा हो, ये भी कोई पूछने की बात है, अमेरिका के सुपर कम्प्यूटर जैसा हो। उद्योग धन्धे की जो सुविधा उस देश मंे है, वो यहां भी हो और क्या।’’

‘‘लेकिन क्या बिना कम्प्यूटर के देश नहीं चल सकता।’’

‘‘अमॉ यार ये सवाल तो किसी देश चलाने वाले से पूछो। मैं तो फैक्ट्री चलाता हूं। देश से मुझे क्या लेना-देना।’’

‘‘अच्छा कम्प्यूटर का स्क्रीन कैसा होना चाहिये।’’

‘‘स्क्रीन कैसा भी हो चलेगा, उसे बनाने का ठेका मेरी फर्म को मिलना चाहिये। हमने अभी जापान से नई तकनीक का आयात किया है। जापान के नाकाताने मारावाया का पत्र भी आया है। दिखाऊं आपको। मैंने भागने मंे ही कुशलता समझी। सोचा अन्त मंे चल कर किसी आम आदमी की राय भी कम्प्यूटर हेतु जाननी चाहियें यह सोचकर आम आदमी की तलाश मंे चौपड़ की ओर निकल पड़ा। चौपड़ के फुटपाथ पर आम आदमी पड़ा-पड़ा कराह रहा था।

मैंने उसे फिर झकझोरा।

‘‘सुनो देश मंे कम्प्यूटर आ रहे हैं। तुम कैसा लोगे।’’

‘‘क्या ?’’

‘‘कम्प्यूटर और क्या।’’

‘‘मुझे नहीं चाहिये कम्प्यूटर, तुम देना ही चाहो तो रोटी का एक टुकड़ा दे दो।’’

‘‘पाठकों, तब से मेरा मूड खराब चल रहा है कहां कम्प्यूटरांे वाला सुनहरा देश और कहां रोटी का बिलखता देश क्षमा प्रभु हमंे क्षमा करना। हम नहीं चाहते ये क्यांे हो रहा है और किसके लिये हो रहा है। प्रभु इन्हंे क्षमा करना, ये नहीं जानते, ये क्या कर रहे हैं।’’

 

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यशवन्त कोठारी 86, लक्ष्मी नगर,, ब्रह्मपुरी बाहर,, जयपुर-302002,

 

 

 

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