मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२०) Saroj Verma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२०)

लक्खा ठाकुर साहब के कहने पर अपने घर वापस तो आ गया लेकिन वो बेला को कभी भूल नहीं पाया और ये कहते कहते साध्वी जी रुक गई तो कृष्णराय जी बोलें...
"आप रुक क्यों गई,आगे कहिए ना कि फिर ये दुश्मनी अब तक खतम क्यों नहीं हुई"
"लगता है आपको पूरी कहानी जानने की बहुत जल्दी है",साध्वी जी ने पूछा...
"हाँ! कहानी जानने की जल्दी तो है",कृष्णराय जी बोले...
"वो क्यों भला!",साध्वी जी ने पूछा...
"वो इसलिए कि मैं जिसे ढूढ़ने आया हूँ,शायद उस कहानी में उसका कोई सुराग मिल जाए",कृष्णराय जी बोलें...
कृष्णराय जी की बात सुनकर साध्वी जी का चेहरा उतर गया और वें बोलीं....
"आगें की कहानी भी तो सुनिए",
"जी! सुनाइए ना!",कृष्णराय जी बोले...
"आप ही तो बीच में टोककर मेरा ध्यान भटका देते हैं",साध्वी जी बोलीं...
"अब से ऐसा नहीं होगा,अब मैं पूरी कहानी सुनकर ही आपसे कोई प्रश्न पूछूँगा",कृष्णराय जी बोले...
"तो फिर सुनिए "
और ऐसा कहकर साध्वी जी ने आगें की कहानी सुनानी शुरु की,
तो फिर लक्खा हवेली से ठाकुर साहब की डाँट खाकर आ तो गया लेकिन वो बेला को कभी भूल नहीं पाया और इसी बीच बंसी को उमरिया गाँव के रेस्ट हाउस में चौकीदार की नौकरी मिल गई तो वो बेला से शादी करने के बाद वहीं रेस्ट हाउस के सरवेन्ट क्वार्टर में रहने लगा,बेला रेस्ट हाउस में आने वाले मेहमानों के लिए खाना बनाती और बंसी रेस्ट हाउस की रखवाली करता,अब बेला और बंसी की शादी हुए कई महीने बीत चुके थे और एक दिन बंसी को पता चला कि बेला माँ बनने वाली है,इस खबर से दोनों बहुत खुश थे,इस खुशी को जाहिर करते हुए बंसी बेला से बोला....
"बेला! तूने तो मेरी जिन्दगी ही सँवार दी,तेरे आने से मुझे रेस्ट हाउस में नौकरी मिल गई,रहने को छत मिल गई और अब ये नन्हे मुन्ने की खुशखबरी पाकर तो मैं फूला ही नहीं समा रहा हूँ,अब जिन्दगी में कोई इच्छा बाकी नहीं रह गई है,भगवान ने सब दे दिया",
"लेकिन अभी मुझे तो एक इच्छा बाकी है",बेला बोला...
"वो का पगली! का चाहिए तुझे"?,बंसी ने पूछा...
"अपना घर चाहिए,जहाँ हम दोनों और हमारा बच्चा रह सकें,मैं पूरी जिन्दगी इस रेस्ट हाउस के क्वार्टर में नहीं गुजार सकती है",बेला बोली...
"घर भी हो जाएगा पगली,क्यों घबराती है,अब मैं हूँ ना!",बंसी बोला...
"लेकिन ये तेरी दारू की लत है ना! निगोड़ी ये मेरी सौतन बनी हुई है,तेरा पीना मुझे फूटी आँख भी नहीं भाता,तू जो दारू में पैसें उड़ाता है तो वहीं सोचकर परेशान हो जाती हूँ कि कैसें बन पाएगा अपना घर",बेला बोली...
"तेरी सारी बातें मेरी दारू पर आकर ही क्यों अटक जातीं हैं"?,बंसी ने पूछा...
"क्योंकि इस दारू ने अच्छे अच्छो को बर्बाद कर दिया है,उस मुए लक्खा ने ही तुझे इस मुई दारू की लत लगवाई है",बेला बोली...
"मैं उसे भूल चुका हूँ तो अब उस लक्खा का नाम मेरे सामने मत लिया कर",बंसी बोला...
"ठीक है उसका नाम कभी ना लूँगी,लेकिन तू ये दारू छोड़ दे,अब हम दो से तीन होने वाले हैं,कुछ तो सोच",बेला बोली...
"ठीक है अब तू नाराज़ मत हो मैं इसे छोड़ने की कोशिश करूँगा",बंसी बोला...
और इस तरह से बेला और बँसी अपनी गृहस्थी में खुश थे,लेकिन लक्खा अभी तक बंसी से अपनी दुश्मनी भूला नहीं था और उसने बंसी से फिर से दोस्ती करने का विचार बनाया इसलिए एक दिन वो उमरिया के रेस्ट हाउस बंसी से मिलने पहुँचा और वहाँ पहुँचकर उसने बंसी को आवाज़ दी तो बंसी बाहर आकर उससे बोला....
"अब तू यहाँ क्या लेने आया है"?
"मैं तो यहाँ अपने यार से मिलने आया था",लक्खा बोला...
"लेकिन मैं तुझसे नहीं मिलना चाहता",बंसी बोला....
"बेला से शादी क्या कर ली तूने,तू तो अपने यार को ही भूल गया",लक्खा बोला....
"हमारी बातों में बेला को बीच में मत ला",बंसी बोला....
"यार!अब बहुत हो गया रुठना,मैं तुझे यहाँ मनाने आया हूँ,मैं तुझसे अपने बर्ताव के लिए माँफी माँगता हूँ और मैं यहाँ बेला से भी माँफी माँगने आया हूँ,उसे बाहर बुला दे तो मैं उससे माँफी माँग लूँ",लक्खा बोला...
"तूने फिर से धोखा दिया तो",बंसी ने पूछा...
"कहा ना गलती हो गई मेरे यार! माँफ कर दे",लक्खा बोला...
"अच्छा! ठीक है जा माँफ किया ",बंसी बोला...
"मुझे बेला से भी माँफी माँगनी है उसे बाहर बुला दे",लक्खा बोला....
और फिर बंसी ने बेला को बाहर बुलाया तो बेला ने जैसे ही लक्खा को देखा तो बंसी से बोली...
"ये यहाँ क्यों आया है? मैं इसकी शकल भी नहीं देखना चाहती",
"माँफ कर दे बेला!ये ले अब मैंने अपने कान भी पकड़ लिए,माँफ कर दे मुझे",लक्खा बोला...
"मुझे तुझ पर भरोसा नहीं,का पता ये तेरी कोई चाल हो",बेला बोली...
"अरे! मैं तुम लोगों पर चाल क्यों चलूँगा? मैं तो शादी करने की सोच रहा हूँ ,सोचा था कि तू मेरे लिए कोई लड़की देख लेगी,इसलिए चला आया था यहाँ",लक्खा बोला...
"तू सच कह रहा है ना!",बेला बोली....
"बिल्कुल सच! अपनी कसम",लक्खा बोला...
"तो जा मैनें भी तुझे माँफ किया"बेला बोली...
और फिर दोनों उस दिन लक्खा की मीठी मीठी बातों में आ गए और फिर अब बंसी लक्खा के संग दारू पीकर देर रात घर लौटने लगा तो बेला को अब इस बात से परेशानी होने लगी फिर एक रात बंसी ने शराब पीकर लक्खा के संग जुआँ खेला और उसने जोश जोश में दारू के नशे में जुएँ के दाँव में बेला को भी लगा दिया ,अब लक्खा बोला कि बेला मेरी,कल मैं उसे लेने आऊँगा और फिर जब बंसी घर पहुँचा तो उसने ये बात बेला को बताई तो बेला गुस्से से बोली...
"मैंने कहा था ना कि दारू छोड़ दे,अब भुगत ,अब वो लक्खा ना जाने क्या करेगा,इसलिए मैं उस पर भरोसा नहीं कर रही थीं,लेकिन तेरी वजह से मुझे ये दिन देखना पड़ रहा है",
और फिर बंसी बेला से बोला...
"लक्खा के चंगुल से बचने का एक ही उपाय है"
"वो का",बेला ने पूछा...
"हम यहाँ से अभी इसी वक्त भागकर जमींदारन साहिबा के पास जाते हैं,अब वें ही हमें बचा सकतीं हैं,जैसे पहले बचाया था तो अब भी बचा लेगीं,इसलिए हमें अभी रात को ही भागकर रामस्वरूप जी के पास जाना होगा,उन्हें हम सारी बात बता देगें,वें ही हमें जमींदारन साहिबा के पास ले जाऐगें",बंसी बोला...
"इस वक्त,इतनी रात को",बेला बोली...
"और कोई उपाय ना है बेला! यही करना होगा",बंसी बोला...
और दोनों उसी वक्त रात को एक एक चादर लपेटकर रेस्ट हाउस से भाग निकले....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....