मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१३) Saroj Verma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१३)

"याद करो कभी तुमने इस नाम के शख्स के बारें में किसी से कुछ सुना हो" कृष्णराय जी ने पूछा...
"नहीं हुजूर",मैंने तो ऐसे नाम के किसी शख्स के बारें में नहीं सुना",दयाराम बोला...
"अच्छा! ये बताओ,तुम यहाँ कितने साल से हो",कृष्णराय जी ने दयाराम से पूछा...
"यही कोई चार साल से",दयाराम बोला...
"अच्छा! तो ये बताओ,जो साध्वी जी के साथ जो नर्स रहतीं हैं,वो कितने सालों से साध्वी जी के साथ काम कर रहीं हैं",कृष्णराय जी ने दयाराम से पूछा...
"अच्छा! वें....वें तो रुकमनी बहनजी हैं! उन्हें सभी रुकमनी बहनजी कहकर पुकारते हैं,साध्वी जी का सारा कार्यभार वही तो सम्भालतीं हैं",दयाराम बोला...
"अच्छा तो वें रुकमनी बहनजी हैं,तो क्या तुम मुझे ये बता सकते हो कि वो साध्वी जी के साथ कब से काम कर रहीं हैं",,कृष्णराय जी ने पूछा....
"वो मेरे यहाँ आने के बाद आई थीं,मतलब उनको साध्वी जी के साथ काम करते लगभग साढ़े तीन साल हो गया होगा",दयाराम बोला...
"साढ़े तीन साल... तब तो वें भी किशोर के बारें में कुछ नहीं बता सकेगीं",दयाराम जी बोलें...
"अरे! नाहीं हुजूर!वें सबकुछ जानतीं हैं,शान्तिनिकेतन के बारें में,साध्वी जी के बारें में,इन सबके के बारें में जितना वें जानतीं हैं उतना कोई नहीं जानता होगा,सब कहते हैं कि वो बहुत पढ़ी लिखीं भी हैं",दयाराम बोला...
"तो क्या मेरा उनसे मिलना हो सकता है,कहाँ रहतीं हैं वो? क्या तुम मुझे उनके घर ले चलोगे"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"रहती तो वें पाठशाला के पास ही हैं,लेकिन इस वक्त तो वें साध्वी जी के साथ ही होगीं",दयाराम बोला...
"तो रात में तो उनसे मिल सकते हैं ना!",कृष्णराय जी बोले...
"वो तो ठीक है हूजूर! लेकिन उन्हें ये नहीं पता होना चाहिए कि उनके घर का रास्ता मैनें आपको बताया है,नहीं तो कहीं ये खबर साध्वी जी के पास पहुँच गई तो फिर तो मेरी शामत आ जाएगी",दयाराम बोला..
"तो फिर तुम मुझे दूर से ही उनका घर दिखा देना",कृष्णराय जी बोलें...
"हाँ! दिखा दूँगा हुजूर!",दयाराम बोला...
"तो चलो फिर इसी बात पर गरमागरम चाय पिला दो",कृष्णराय जी बोले...
"अभी लाया हूजूर!",
और ऐसा कहकर दयाराम चाय बनाने चला गया और शाम की चाय पीने के बाद कृष्णराय जी का वक्त नहीं कट रहा था,इसलिए वो रेस्ट हाउस के बगीचें में घूमने लगे,इधर कृष्णराय जी बगीचे में घूमते रहे और उधर दयाराम ने रात का खाना भी तैयार कर लिया और कृष्णराय जी के पास आकर बोला....
"खाना लगा दूँ हुजूर!",
"हाँ! लगा दो,मैं तब तक हाथ मुँह धो लेता हूँ",
और ऐसा कहकर कृष्णराय जी हाथ मुँह धोने चले गए और जब तक वें हाथ मुँह धोकर आएं तो तब तक दयाराम ने खाना परोस दिया था,तब कृष्णराय जी ने दयाराम से पूछा...
"वैसे आज क्या क्या बनाया है खाने में?",
"बस ज्यादा नहीं हुजूर!,मैंथी आलू है,अरहर की दाल है और आम का अचार ,साथ में गरमागरम रोटी है,अचार मेरी पत्नी ने भेजा है,दोपहर में गाँव का कोई व्यक्ति इस तरफ आया था उसने उसके हाथों घी,बेसन के लड्डू और अचार भेज दिया,आप खाना खतम कर लें तो फिर मैं आपके लिए बेसन के लड्डू लाता हूँ",दयाराम बोला...
"नहीं! दयाराम! बस बहुत खा लिया,अब मैं बेसन के लड्डू नहीं खाऊँगा,खाना खाकर मुझे तुम रुकमनी बहनजी के घर ले चलो",कृष्णराय जी बोले....
"तो आप पहले खाना खतम कर लीजिए तो बस फिर चलते हैं उनके घर",दयाराम बोला...
फिर कृष्णराय जी ने जल्दी जल्दी खाना खतम किया और वें दयाराम के साथ रुकमनी बहनजी के घर चल पड़े,बाहर काफी अँधेरा था,कृष्णराय जी को बड़ी मुश्किल हो रही थी गाँव के रास्ते पर चलने में,फिर कुछ ही देर में वो दोनों पाठशाला के पास पहुँच गए तो दयाराम ने दूर से ही कृष्णराय जी को रुकमनी बहनजी का घर दिखाते हुए कहा......
"हुजूर! वो जो दूसरा वाला घर है ना! वो रुकमनी बहनजी का घर है ,उनके घर में अभी भी लालटेन की रोशनी हो रही है,शायद वें अभी जाग रहीं हैं,मैं यहीं इसी पेड़ के पास आपका इन्तजार करता हूँ,आप उनसे मिलकर आ जाइएं",
और फिर कृष्णराय जी रुकमनी बहनजी के घर पहुँचे और उनके घर के दरवाजे की कुण्डी खड़काई,तभी भीतर से आवाज़ आई ....
"आ रही हूँ"
और जैसे ही रुकमनी बहनजी ने दरवाजा खोला तो उन्होंने अपनी हाथ में पकड़ी हुई लालटेन के उजाले में जैसे ही कृष्णराय जी का चेहरा देखा तो बोल पड़ीं....
"आप! और यहाँ",
तब कृष्णराय जी ने उन्हें नमस्ते करते हुए कहा....
"देखिए! रुकमनी बहनजी! साध्वी जी तो मुझसे बात नहीं करना चाहती तो मैं आपसे मिलने आ गया",
"मैं आपके लिए कुछ नहीं कर सकती ,मैं उनका आपसे ना मिलने का कारण नहीं पूछ सकती",रुकमनी बहनजी गुस्से से बोली...
"देखिए बुरा मत मानिए,मैं ये नहीं कह रहा कि आप मेरी मुलाक़ात साध्वी जी से करवा दीजिए,मैं तो आपसे मिलने आया हूँ",कृष्णराय जी बोले...
"मुझसे मिलने,वो क्यों भला?",रुकमनी बहनजी बोलीं...
"क्या मैं आपसे दो मिनट बात कर सकता हूँ"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"ठीक है जो कहना है जल्दी कहिए",रुकमनी बहनजी बोलीं.....
तब कृष्णराय जी बोलें....
"मैं दरअसल यहाँ एक गुमशुदा शख्स की तलाश में आया हूँ,मुझे पूरा यकीन है कि वो यहाँ आया था लेकिन मुझे कोई कुछ बताता ही नहीं,एक रहस्य सा बनकर रह गई है उसकी खोज",
"आप मुझसे क्या बात करना चाहते हैं वो कहें",रुकमनी बहनजी बोली...
"यही कि क्या आप किसी किशोर जोशी नाम के शख्स को जानती हैं",कृष्णराय जी बोले...
"तो क्या आप मुझसे यही पूछने आएं हैं"?,रुकमनी बहनजी बोली...
"जी! हाँ!",कृष्णराय जी बोलें...
"तो फिर आप ये बात किसी से मत पूछिएगा",रुकमनी बहनजी बोलीं...
"लेकिन क्यों"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"क्योंकि जो बात साध्वी जी सुनना नहीं चाहतीं,वो बात इस इलाके का कोई भी इन्सान सुनना पसंद नहीं करेगा",रुकमनी बहनजी बोलीं...
"क्यों? आखिर ऐसी क्या बात है,जो कोई भी सुनना पसंद नहीं करेगा"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"आपकी इस क्यों का जवाब मेरे पास तो नहीं है",रुकमनी बहनजी बोलीं....
तब कृष्णराय जी बोले....
"तो मैं क्या करूँ? मैं अपने घर,अपने परिवार से इतनी दूर जिसकी खोज में आया हूँ क्या मेरी वो खोज कभी पूरी नहीं होगी,बस मैं ऐसे ही नाकाम होकर लौट जाऊँ,कभी कभी तो ऐसा लगता है कि बस मेरी खोज पूरी हो गई और मेरे दोस्त का पता मिल गया है लेकिन फिर दूसरे ही पल कोई ना कोई अड़चन खड़ी हो जाती है,आपकी साध्वी जी ने तो जैसे मेरे लिए सारे रास्ते ही बंद कर दिए हैं,इतनी मायूसी और मजबूरी का सामना तो मैनें अपनी जिन्दगी में कभी नहीं किया",
"आप इतने मायूस एवं निराश मत होइए क्योंकि एक बात का तो मुझे पूरा यकीन है कि साध्वी जी के द्वार से कोई निराश होकर नहीं लौटता,जो यहाँ आता है,वो अपनी मनोकामना पूरी करके ही लौटता है",रुकमनी बहनजी बोली...
"शायद मेरे साथ ऐसा नहीं होगा,मैं वो बदकिस्मत इन्सान हूँ जो उनके माथे पर दाग लगाकर जाएगा कि एक इन्सान को उन्होंने अपने द्वार से खाली हाथ भेज दिया",कृष्णराय जी बोलें....
"ऐसा मत कहिए,अगर आपको भगवान पर भरोसा है तो आप यहाँ से निराश होकर नहीं जाऐगें",रुकमनी बहनजी बोलीं",
"आप सच कह रहीं हैं",कृष्णराय जी ने पूछा...
"हाँ! सच!बिलकुल सच!,हो सकता है कि साध्वी जी आपके धैर्य की परीक्षा ले रहीं हों,रुकमनी बहनजी बोलीं...
"तो ठीक है,मैं दूँगा परीक्षा,नमस्ते!अब मैं चलता हूँ",
और ऐसा कहकर कृष्णराय जी वहाँ से चले आएं...

क्रमशः....
सरोज वर्मा...