मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 13 राज कुमार कांदु द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 13


लघुकथा क्रमांक 35

प्यार ही पूजा
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" ओए, अमर ! क्या बात है ? कहाँ खोया हुआ है ? कबसे आवाज लगा रहा हूँ..सुन ही नहीं रहा है !"

" सॉरी यार ! आज बहुत दिन बाद रजनी का मैसेज आया है , वही पढ़ने में इस कदर डूबा हुआ था कि तेरी तरफ ध्यान ही नहीं गया। तू तो जानता ही है न रजनी के बारे में ? "

" हाँ ..हाँ ! जानता हूँ रजनी के बारे में ..! वही रजनी न जो जहाँ भी अपना फायदा देखती है उससे जोंक की तरह चिपक जाती है। जी भर कर उससे फायदा उठाती है और फिर उससे किनारा कर लेती है। तेरे साथ भी तो यही किया है न उसने ? चरित्रहीन कहीं की ..!" सुरेश बड़बड़ाया था।

" नहीं यार.. सुरेश ! ऐसा नहीं ! प्लीज मेरे सामने उसे चरित्रहीन न कह ! वह जैसी भी है, मेरा पहला व अंतिम प्यार है। मुझे हमेशा उसका इंतजार रहेगा !"

" पता नहीं ऐसा क्या पसंद आ गया तुझे उसमें ? मुझे तो वह बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती !"

" यार सुरेश ! वो कहावत सुनी है न ...दिल लगा गधी से, तो परी क्या चीज है ? ' बस कुछ ऐसा ही है ..तू नहीं समझेगा यार ये दिल का मामला ..!"

"लेकिन उसका इतने सारे लड़कों के साथ घूमना फिरना, सबसे संबंध रखना ,तुझे बुरा नहीं लगता ?"

" यार सुरेश ! तू कभी मंदिर गया है ?"

"हाँ ! अक्सर जाता हूँ !"

"तो क्या वहाँ तू अकेले होता है ? कोई और भक्त नहीं होता वहाँ माताजी का ?"

" अच्छा ! अब समझा ! तो रजनी देवी है और उसके पीछे मंडरानेवाले सारे लड़के उसके भक्त ....!" कहते हुए सुरेश ने जोर से ठहाका लगाया।

... और लड़के क्या करते हैं, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं अपनी तपस्या कैसे छोड़ दूँ ?" कहने के बाद अमर एक पल भी वहाँ रुका नहीं था। चल दिया था एक तरफ दीवानों की तरह।
" तुमने ये नहीं सुना 'प्यार ही पूजा है' ? और मैं दिल से उससे प्यार करता हूँ।


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लघुकथा क्रमांक 36

निश्चय
*****

हाँ हाँ....! जाकर डूब मर ..लेकिन मुझे अपनी शक्ल न दिखाना !"
" देखो..! मैं सच में डूब कर मर जाऊँगी नदी में !"
" तो मना किसने किया है ? जा अभी चली जा ...और हाँ मरने से पहले अपना एक वीडियो बनाकर भेज देना ताकि सबको पता चल जाए कि तूने अपनी मर्जी से आत्महत्या किया है।"
"ठीक है ..भेज दूँगी .!" कहकर सुबकते हुए रोशनी तेज कदमों से घर से बाहर निकल गई।
नदी किनारे पहुँचकर उसने वीडियो बनाया और इकबाल को भेजने के बाद वह नदी में छलाँग लगाने जा ही रही थी कि तभी उसकी अंतरात्मा चित्कार कर उठी, ' बेवकूफ लड़की ! यह क्या करने जा रही है तू ? इससे तुझे क्या हासिल हो जाएगा ? इससे क्या यही संदेश नहीं जाएगा कि जब तक सह सको ,किसी के जुल्म सहो और जब जुल्म की इंतेहा हो जाए तो खुदकुशी कर लो और इस खुदकुशी की वजह बननेवाले को बेदाग कानून से बच जाने दो। जरा सोच , आज तूने यह कदम उठाया तो कल और न जाने कितने इकबाल पैदा हो जाएंगे जो तुझ जैसी रोशनियों को जलील करके खुदकुशी को मजबूर कर देंगे । क्या तू वाकई ऐसा चाहती है ?'
" नहीं ....! " अचानक उसके मुँह से एक गुर्राहट सी निकली और चेहरे पर उभर आए थे सख्त भाव और आँखों में दृढ़ इरादों की नई चमक । उसके कदम मुड़े और तेजी से पुलिस स्टेशन की तरफ़ बढ़ने लगे।