साथिया - 4 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 4

गजेंद्र सिंह का घर रात का समय।

पुरा घर गहरी नींद मे था सिर्फ नियति जाग रही थी।
उसकी नजर अपनी घडी पर थी। जैसे ही रात के साढे बारह बजे नियति धीरे से उठकर गैलरी की एक अलमारी में रखे डब्बा वाले फोन ( लैंडलाइन) फोन के पास आई।


अंधेरे में टटोल के उसने उस डिब्बे के निचले हिस्से से गोल पहिया घुमाकर उसकी घंटी बिल्कुल कम कर दी और धड़कते दिल से फोन को देखने लगी।

पांच मिनट बाद हल्की सी घण्टी बजी तो नियति ने झट से फ़ोन उठाया।

"हैलो..!" नियति बोली और फिर इधर उधर देख के खुसुर पुसूर करने लगी।

पांच मिनट बाद वो कोल कट करके बिस्तर पर आ गई।

नियति ने अपनी तेज चलती धड़कनों को संभालते हुए सीने पर हाथ रखा।

"न जाने क्या अंजाम होगा इसका जिस राह पर मैं चल पड़ी हूं..! पर कहते हैं ना दिल पर किसी का जोर नहीं होता । हे भगवान बस सब सही कर देना।" नियति खुद से ही बोली और फिर आंखें बंद कर ली।


*नई दिल्ली*

अक्षत का घर

रात का एक बज गया था। अक्षत ने घड़ी देखी और अपनी किताबों को समेट कर टेबल पर एक साइड रखा और आकर बिस्तर पर लेट गया।


अपना फोन खोला और उसमें सांझ की तस्वीरों को देखने लगा। पूरा गैलरी सांझ की तस्वीरों से भरा हुआ था। अनगिनत तरह-तरह की तस्वीरें जो कि अक्षत ने छुप छुप कर ली थी और सांझ को पता भी नहीं था।



"तुमसे दिल के एहसासों का रिश्ता तो ना जाने कब से जुड़ गया है सांझ। बस अभी तक कह नहीं पाया हूं , इंतजार कर रहा हूं उस दिन का जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा, तब तुमसे अपने दिल की बात कहूंगा। हालांकि कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। अच्छा खासा बिजनेस है पापा का पर मेरे अपने उसूल है। मैं अपना नाम अपनी पहचान बनाना चाहता हूं और अपना और अपने परिवार का खर्चा भी खुद उठाना चाहता हूं इसीलिए अब तक तुमसे अपने दिल की बात नहीं कही। बस इस बार एग्जाम क्लियर कर लुं उसके बाद तुम्हें बहुत ही खूबसूरत अंदाज में प्रपोज करूंगा।" अक्षत सांझ की तश्वीर देख बोला।


"और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम जरूर मेरा प्रपोजल एक्सेप्ट करोगी..! भले ही तुमने कुछ भी नहीं कहा है। मेरी तरफ ठीक से देखा भी नहीं है पर तब भी तुझे अंदाजा लग गया है तुम्हारी चोर नजरो को देखकर कि तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए एहसास है। मैं जानता हूं कि तुम भी मुझे चाहती हो इसलिए शायद कभी इंकार नहीं करोगी।
जितना जाना है ईशान और शालू से तुम्हारे बारे में उतना समझ आ गया हैं कि तुमने बहुत तकलीफ सही है अपनी जिंदगी में। बस एक बार मैं जज बन जाऊंगा उसके बाद तुमसे धूमधाम से शादी करूंगा और फिर हमारी जिंदगी में खुशियां ही खुशियां होगी सांझ। आई लव यू सांझ।" अक्षत ने कहा और अपने फोन में सांझ के फोटो को देखा और फिर हौले से किस किया तश्वीर को उसके बाद फोन को सीने पे रख आंखें बंद कर ली।

सांझ के हॉस्टल में।


सांझ को भी नींद नहीं आ रही थी। उसने भी पढ़ाई बहुत देर पहले बंद कर दी थी और बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी।


शालू हमेशा कहती है कि आप मुझे देखने आते हो, उसे टालती रहती हूँ पर कई बार मैंने भी महसूस किया है कि आप मेरे लिए आते हो। क्या मैं वाकई में इतनी खास हूं कि आपके जैसा लड़का मुझ में इंटरेस्ट ले। मैं तो देखने में भी उतनी खूबसूरत नहीं हूं और आप इतने हैंडसम हो। इतने बड़े परिवार से हो फिर भी क्या आपके एहसान मेरे दिल के साथ जुड़े हैं। और अगर ऐसा है तो मुझसे ज्यादा किस्मत वाली लड़की तो कोई हो ही नहीं सकती। जिसे मैं दिल ही दिल सालों से पसंद करती हूं वह भी मुझे चाहे इससे बढ़कर और क्या हो सकता है?" सांझ बोली और उठकर खिड़की पर खड़ी हो गई।


"पर अगर आपके दिल में मेरे लिए एहसास है और आप मेरे लिए कॉलेज आते हो तो कभी आपने मुझसे कुछ कहा क्यों नहीं? किसका इंतजार कर रहे हो आप?

शायद आपकी कोई मजबूरी होगी पर मैं आपके मुंह से अपने लिए फीलिंग सुनने के लिए बेताब हूँ। एक बार कहिए तो सही कि आप मेरे लिए आते हो...! एक बार कहिये तो सही कि आप मुझे चाहते हो..! पूरी दुनिया को छोड़कर आपका हाथ थाम कर चल दूंगी मैं क्योंकि दिल ही दिल में आपको भी बहुत चाहती हूं मैं। आपसे इन दिल के एहसास ना जाने कब और कैसे जुड़ गए पर पर यह बंधन इस जीवन में तो नहीं टूट पाएगा।" सांझ बोली और फिर बिस्तर पर गिर आंखें बंद कर ली।


आंखों के आगे अक्षत का आकर्षक चेहरा आ गया और सांझ के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।



*अगले दिन सुबह-सुबह साउथ दिल्ली का एक शानदार बंगला बंगला*

यह बंगला है शहर के जाने-माने बिजनेसमैन और अरविंद जी के दोस्त और बिजनेस पार्टनर दिवाकर वर्मा का। दिवाकर अपनी पत्नी सुजाता और दोनों बच्चों नील और निशी के साथ रहते हैं।


नील अक्षत और ईशान का दोस्त है उसने अक्षत के साथ एल एल एम किया और फिर एक-दो साल तक सिविल सर्विसेज की तैयारी भी की पर सिलेक्शन नहीं हो पाया फाइनली उसने वकालत शुरू की और अब अब दिवाकर के कहने पर उनका बिजनेस जॉइन कर लिया है। और दिवाकर के साथ-साथ अरविंद जी कई कंपनी में भी लीगल एडवाइजर भी है।


निशी ने दिल्ली के जाने-माने कॉलेज से बीएचएमएस किया है और आज पूरे जोश के साथ क्लीनिक चला रही है। उसका हाथ अपनी मेडिकल फील्ड में काफी अच्छा है और उसकी पकड़ मेडिसन पर कमाल की है, जिसके चलते जल्दी ही उसने अपना नाम और पहचान बना ली है। उसकी क्लीनिक के बाहर पेशेंट्स की लंबी कतार देखकर कोई भी बता सकता है कि निशी एक काबिल डॉक्टर है। पैसे की तो वैसे भी उसे कोई कमी नहीं थी पर फिर भी उसने यह प्रोफेशन चुना क्योंकि दूसरों की सेवा करने में जो सुख और सुकून मिलता है वह किसी चीज में नहीं मिलता।



सुबह-सुबह दिवाकर जी के घर में चहल-पहल मची हुई है। नौकर दौड़ दौड़ कर काम कर रहे हैं तो वही सुजाता सबको काम समझा रही हैं।

दिवाकर नाश्ते की टेबल पर आकर बैठे, उन्हीं के साथ-साथ नील भी आकर बैठने को हुआ पर इससे पहले कि वह बैठता निशी उसकी जगह पर आकर बैठ गई।



नील ने घूरकर उसे देखा तो निशी ने क्यूट सा पप्पी फेस बनाकर उसे देखा।




"तू कभी बड़ी होगी भी कि नहीं होगी? ये डॉक्टर किसने बना दिया।" नील ने कहा।


" मेडिकल कॉउंसिल ऑफ होम्योपैथी ने।" निशी ने आँखे गोल करके कहा।

" ग्रो अप बेबी..!" नील ने उसके सिर पर थपकी मारी।


"जरूरी तो नहीं कि हर कोई बड़ा हो। तू तो है ना बड़ा। सारा बड़प्पन अपने नाजुक कंधों पर ढो रहा है, तो एक तो बच्चा रहे घर में।" निशी ने उसी अंदाज में कहा तो दिवाकर के चेहरे पर जहां मुस्कुराहट आई वही नील का चेहरा और भी ज्यादा तन गया।



"मैं तो कह रहा हूं तू ये क्लीनिक छोड़ और पापा के साथ ऑफिस ज्वाइन कर ले। आखिर क्या रखा है साबूदाने की गोलियों मे।" नील ने कहा तो निशी का पारा एकदम से चढ़ गया। उसे नही बर्दाश्त है कि कोई उसके प्रोफेशन को कुछ भी बोले। आखिर सालों दिए हैं उसने। जमकर पढाई की है, हाउस जॉब इंटर्नशिप की उसने तब जाकर मेडिकल की डिग्री उसके हाथ में आई है और नाम के आगे डॉक्टर लिखने का अधिकार उसे मिला है।


"तू न अपनी एडवाइजर अपने पास ही रख। और हर किसी के बस का नही डॉक्टर बनना तो जिनको अंगूर न मिले उन्हे तो खट्टे ही लगेंगे न छछुंदर।" निशी ने मुँह बनाकर नील को छेड़ा।


नील मुस्करा उठा।

"और हां जिन्हे तू साबूदाने की गोलियां कह रहा है ना वह पूरी दुनिया में अपना नाम कर चुके हैं जब लोग हर तरफ हर जगह से हार जाते हैं तभी साबूदाना गोलियों की शरण में आते हैं और हम सब जानते हैं कि कितने सारे असाध्य रोगों का इलाज किया है साबूदाने की छोटी-छोटी गोलियां ने।" निशी ने अपने जैकेट की पॉकेट से निकालकर होम्योपैथिक दवाई की एक वॉयल ( बॉटल) टेबल पर रखते हुए कहा।


"सब तेरे मन का भ्रम है चुहिया।" नील ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, जबकि असल बात तो यह थी कि पूरा घर सिर्फ और सिर्फ निशी की दवाइयों पर डिपेंड करता था।


" अबे छछूंदर ज्यादा मत बोल... जब तुझे भी कोई तकलीफ होती है ना तब तू भी मेरे ही चरणों में आकर गिरता है क्योंकि मेरी होम्योपैथिक मेडिसिन के अलावा तुझे कुछ सूट जो नही करता और यह मेरी छोटी छोटी नन्ही नन्ही गोलियां ही तुझे राहत देती हैं।" निशी बोली।

"सही कह रही है निशी आज होम्योपैथिक ट्रीटमेंट में इतनी ज्यादा एडवांस हो गई है कि कई बड़ी बड़ी बीमारियों का इलाज जब अंग्रेजी डॉक्टर भी नहीं कर पाते तब लोग होम्योपैथी से लाभ लेते हैं और उन्हें आराम भी मिलता है।"दिवाकर जी बोले।



"हां ठीक है मान लिया मैंने पर फिर भी रहेगी तो यह साबूदाना खिचड़ी वाली डॉक्टर ही ना।" नील ने निशी को छेड़ते हुए कहा।



"हां तुझ जैसे छछुन्दरों के लिए मैं साबूदाना खिचड़ी वाली डॉक्टर हूं जोकि खुद को तीस मार खां समझते है। बाकी मैं क्या हूँ तेरे आगे साबित करने की जरूरत नही।नाम के आगे डॉक्टर है मेरे। लोग सम्मान करते हैं समझा और हर कोई नहीं बन जाता डॉक्टर। सिर पटकना बात अलग है और कुछ करके दिखाना बात अलग है। मुंह चलाने से तो कुछ मिलना ही नहीं। तू खुद को बहुत होशियार समझता है ना पहले साइंस का स्टूडेंट बनता था फिर तूने लॉ की पढ़ाई की और फिर सालों तक आईएएस की तैयारी करता रहा और आखिर में नतीजा वही ढाक के तीन पात...! आ गया न पापा के बिजनेस में। इससे तो अच्छा मैं ठीक हूं अपनी खुद की एक पहचान खुद का एक नाम है। डॉ निशी वर्मा।" निशी ने भी उसी अंदाज में कहा।


" हाँ तो मै भी लॉयर हूँ। नील वर्मा एडवोकेट और देख लियो चुहिया एक दिन मैं ऐसा नाम करूंगा और ऐसा केस जीतूँगा कि तू आँखे फाड़ के रह जायेगी और नतमस्तक होगी मेरे आगे।" नील ने कहा तो निशी मुस्करा उठी।


" जानती हूँ आखिर मेरा ट्विन ब्रदर जो है तु।" निशी ने कहा।


तभी सुजाता ने आकर दोनों के कंधे पर हाथ रखा।

"तुम दोनों के बीच में इतना प्यार है दोनों जुड़वा हो एक दूसरे के बिना एक पल नहीं रह पाते पर फिर भी झगड़े बिना नहीं रहते हो। तेरा काम उसकी होम्योपैथिक दवा के बिना नहीं चलता है और उसका काम तेरी सलाह के बिना नहीं चलता है, फिर झगड़ा क्यों? दोनों बराबर हो क्यों एक दूसरे को कम बोलते हो!" सुजाता बोली।


"अरे मम्मी मैं तो जानता हूं कि मेरी बहन टैलेंटेड है..! एंट्रेंस एग्जाम क्लियर किया उसने तब जाकर उसे सीट मिली थी मेडिकल की। दिल्ली के टॉप कॉलेज से उसने बी एच एम एस किया है और आज शहर का जाना माना नाम है निशी वर्मा।" नील बोला तो निशी मुस्करा उठी।


"दूर-दूर से लोग आते हैं इलाज कराने के लिए मैं जानता हूं कि मेरी बहन क्या है पर इस को चिढ़ाने का हक तो मुझे मिला हुआ है तो वह तो मैं नहीं छोड़ने वाला।" नील ने हंसकर कहा।


"हां मम्मी और हम भाई-बहन के बीच में आप मत आया करो। हम दोनों का तो यह रोज का है जब तक एक दूसरे की टांग नहीं खींच देते हम लोगों का खाना ही नहीं पचता है।" निशी बोली और उसमें अपनी हथेली नील के सामने कर दी। बदले में नील ने उसकी हथेली पर अपना हाथ मारा और फिर दोनों नाश्ता करने लगे।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव।