मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२) Saroj Verma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२)

कुछ देर बाद आखिरी रेलगाड़ी गुजर गई और स्टेशन मास्टर साहब कृष्णराय निगम जी के साथ उनके घर की ओर चल पड़े,अँधेरी रात और सुनसान सा रास्ता लेकिन रेलवें काँलोनी स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं थी इसलिए दोनों ही जल्दी घर पहुँच गए....
दोनों घर पहुँचे तब घड़ी में सुबह के चार बज चुके थें,स्टेशन मास्टर साहब ने घर का गेट खोला और लाँन को पार करके घर के मेन दरवाजे के पास आएं जो लकड़ी का बना हुआ था,उन्होंने वहाँ आवाज़ लगाई....
रामजानकी....ओ....रामजानकी...दरवाजा खोलो...भाग्यवान!!
आती...हू्ँ....आती...हूँ,सुन लिया मैनें ,बहरी नहीं हुई हूँ और फिर इतना बड़बड़ाते हुए रामजानकी ने दरवाजा खोला और जैसे ही उसने अपने पति के साथ किसी अपरिचित को देखा तो सिर पर पल्लू ले लिया,रामजानकी की ऐसी स्तिथि देखकर स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
घबराओ मत पगली,ये हमारे मेहमान हैं और कुछ दिन तक हमारे साथ ही रहेगें...
ओह...तो आप बाहर क्यों खड़े हैं?भीतर आ जाइएं,रामजानकी बोली....
और रामजानकी के कहने पर कृष्णराय जी भीतर चले गए तभी स्टेशन मास्टर साहब भी बोले...
अरे!भाग्यवान!मुझे भीतर आने को ना कहोगी....
तुम क्या कोई मेहमान हो जो तुम्हें विशेष रूप से घर के भीतर आने को कहूँगी?तुम्हारा घर है कभी भी भीतर आओ,कभी भी बाहर जाओ,रामजानकी बोली....
हाँ!भाई!घर की मुर्गी दाल बराबर,लो भाई मैं भी भीतर आ ही जाता हूँ और इतना कहकर स्टेशन मास्टर साहब भी भीतर चले गए,
तब रामजानकी दोनों से बोली.....
आप लोंग बैठिए,मैं आप लोगों के लिए चाय लेकर आती हूँ,रामजानकी चाय बनाने चली गई तो दोनों फिर से बातें करने लगें,कुछ ही देर में रामजानकी चाय बनाकर ले आईं,दोनों की चाय खतम होने के बाद स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
अभी तो साढ़े चार ही बजे हैं, मैं आपके लिए रजाई लेकर आता हूँ,आप यहीं बैठक में पड़े पलंग पर सो जाइए क्योंकि मैं भी अब थोड़ी देर के लिए सोऊँगा....
जी!ठीक है,जैसा आप कहें,कृष्णराय जी बोले...
और फिर स्टेशन मास्टर साहब भीतर के बड़े सन्दूक से एक रजाई निकाल लाएं और उन्होंने कृष्णराय जी के बिस्तर पर रख दी,कृष्णराय ने जी ने अपना कोट और ओवरकोट उतार कर एक ओर रख दिया और रजाई ओढ़कर लेट गए ,कुछ देर में उन्हें नींद भी आ गई....
सुबह लगभग साढ़े आठ बजे स्टेशन मास्टर साहब ने कृष्णराय जी को जगाते हुए कहा....
जागिए!श्रीमान जी!बहुत समय हो गया....
स्टेशन मास्टर साहब की आवाज़ सुनकर कृष्णराय जी जागे और उठकर बिस्तर पर बैठ गए,फिर आँखें मलते हुए बोले....
बहुत मीठी नींद आईं,कितना सुकून और शांति है यहांँ पर....
जी!ये तो है,छोटी सी जगह है,ज्यादा भीडभाड़ भी नहीं है,चारों ओर सन्नाटा ही सन्नाटा है,स्टेशन मास्टर सहब बोलें....
जी,सही कहा आपने,मैं तो तरस गया था ऐसी शांति के लिए,कृष्णराय जी बोले....
ऐसा लगता है कि विलायत आपको रास ना आया,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
जी!विलायत में भी शांति है,लेकिन अपना देश और अपने लोगों की बात ही अलग है,पहले मैं ने दिल्ली में रहकर पढ़ाई की,वहाँ भी बहुत भीडभाड़ थी,फिर आगें की पढ़ाई के लिए विलायत चला गया,पढ़ाई के बाद वहीं नौकरी भी मिल गई,बीच में एक बार कुछ दिनों के लिए भारत वापस आया था अपनी शादी के सिलसिले में,शादी होते ही फिर से वापस चला गया,तबसे वहीं रह रहा हूँ,तब का गया अब लौटा हूँ,कृष्णराय जी बोले...
तो आपके वें दोस्त जिन्हे आप खोज रहे हैं ,वें आपकी शादी में नहीं पहुँचे क्या?स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा....
वो मेरी शादी में नहीं पहुँचा था,तभी मुझे शंका हुई थी लेकिन उस समय मेरे पास ज्यादा छुट्टियाँ नहीं थीं जो मैं उसके गाँव जाकर उसके बारें में पता करता,कृष्णराय जी बोलें....
ओह...तो ये बात है,अच्छा!पहले आप नित्यकर्म से निवृत्त होकर नाश्ता कर लीजिए,फिर आराम से बातें करेगें,मुझे भी दस बजे तक रेलवें स्टेशन पहुँचना होगा,रेलगाड़ी के आने का वही समय है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
जी!बिल्कुल!कितनी तकलीफ़ उठा रहे हैं आप मेरी वजह से,कृष्णराय जी बोलें....
ऐसी कोई बात नहीं है अतिथि तो भगवान के समान होता है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
जी!चलिए!अब मैं स्नानादि कर लेता हूँ और फिर इतना कहकर कृष्णराय जी बिस्तर से उठे ,उन्होंने बिस्तर की सिलवटें ठीक की और रजाई की भी ठीक से तह बनाकर बिस्तर के सिराहने रख दी और फिर अपनी अटैची में से अपने कपड़े निकालकर वें स्टेशन मास्टर साहब के साथ आँगन की ओर निकल आएं,जहाँ पर चापाकल लगा था और बगल में ही सन्डास के साथ स्नानघर भी बना था,स्टेशन मास्टर साहब बोलें.....
यहाँ आपकी जरूरत की सभी चीजें मौजूद हैं,तेल साबुन इत्यादि,आपके यहाँ के जैसा विलायती तो नहीं होगा सबकुछ लेकिन आपका काम चल जाएगा.....
अरे!आप ऐसे क्यों कह रहे हैं?मैं तो वैसें भी बहुत देशी इन्सान हूँ,मैनें अपने ऊपर विलायत का रंग ज्यादा नहीं चढ़ने दिया...,कृष्णराय जी बोले....
ये तो बहुत अच्छी बात है कि आप अब अभी पूर्णतः विलायती नहीं हुए,अच्छा अब आप जल्दी से तैयार हो जाइए,रामजानकी चूल्हे पर गरमागरम नाश्ता तैयार कर रही है और इतना कहकर,स्टेशन मास्टर साहब आँगन से बाहर की ओर लाँन में चले आएं और उन्होंने वहाँ से कुछ ताजा मूलियाँ और ताजा गाजर उखाड़ीं फिर उन्हें एक डलिया में रखकर आँगन में लेकर गए,चापाकल से बाल्टी में पानी निकाला और उन्हें ठीक से धोकर रसोईघर में लेकर गए और उन्होंने उन्हें काटकर अच्छा सा सलाद बनाया,साथ में नींबू के पेड़ से ताजा नीबू तोड़े,मिर्च के पेड़ से कुछ हरी मिर्चें तोड़ी और सलाद के साथ सजाकर रख दीँ ,
कृष्णराय जी तैयार होकर रसोईघर की ओर चले आएं,जो बाहर के बरामदे की ओर बनी थीं,उनसे स्टेशन मास्टर साहब ने ही कहा था कि वें तैयार होकर रसोईघर की ओर चलें आएं,उन्होंने देखा कि स्टेशन मास्टर साहब का रसोईघर पारम्पारिक तरीके का बना हुआ था,वहाँ पर माटी के बने दो चूल्हें थें,एक चूल्हे पर स्टेशन मास्टर साहब की पत्नी रामजानकी पूरियाँ तल रहीं थीं और दूसरे चूल्हे पर बटलोई में कुछ चढ़ा था,स्टेशन मास्टर साहब की नजर जैसे ही कृष्णराय जी पर पड़ी तो उन्होंने वहाँ पर पड़े बिछौने की ओर इशारा करते हुए कहा....
आइए...आइए....इन्जीनियर साहब यहाँ पर बैठिए,देखिए मैनें अभी ताजा ताजा सलाद बनाया है आपके लिए इसका आनन्द उठाइए....
जी!जरूर और इतना कहकर कृष्णराय जी बिछौने पर बैठ गए....
उनके बैठने के बाद रामजानकी ने दोनों जनों के लिए पीतल की थालियों में खाना परोसा,खाने में गरमागरम पूरियांँ,तरी वाली आलू-टमाटर की सब्जी ढ़ेर सारी हरी धनिया डाली हुई,ताजा अमरूद की तीखी मीठी चटनी,आँवले का अचार और मीठे में बेसन का हलवा था,साथ में ताजा सलाद तो था ही जो स्टेशन मास्टर साहब ने अभी काटा था....
दोनों जनों ने नाश्ते का आनन्द उठाया और फिर स्टेशन की ओर चल पड़े,रास्ते में कृष्णराय जी ने स्टेशन मास्टर साहब को अपने दोस्त किशोर जोशी के बारें में और भी बातें बताईं,
उन्होंने कहा कि जब वो दस साल के बाद विलायत से लौटें और किशोर के गाँव उनसे मिलने पहुंँचे तो उन्होंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया,उसके गाँव के बारें में वें भलीभाँति परिचित थे क्योंकि जब दोनों दिल्ली में रहकर पढ़ रहे थे तो एक कमरें में किराएं से रहते थे और उसी दौरान कृष्णराय जी किशोर के गाँव एक दो बार गए थे,किशोर की माँ और एक छोटी बहन थी ,पिता जी थे नहीं...
घर के दरवाजे किशोर की छोटी बहन ने खोलें,मैने उसे अपना परिचय दिया तो उसने मुझे फौरन पहचान लिया क्योंकि जब मैं उनके घर जाया करता था तब किशोर की बहन बहुत छोटी थी लगभग दस साल की और जब मैं दस साल बाद उनके घर पहुँचा तो वो अब सयानी हो चुकी थी,उसकी हालत देखकर मेरा मन बहुत ही उदास हो गया.....
आपका मन उदास क्यों हुआ?स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा....
तब कृष्णराय जी बोलें....
क्योकिं किशोर की छोटी बहन कल्याणी ने बताया कि माँ को गुजरे हुए तो तीन साल हो चुकें हैं,तब से वो इस घर में अकेली रह रही है,उसके पास खर्चे के पैसें भी नहीं रहते इसलिए दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम करती है...
और किशोर .....स्टेशन मास्टर जी ने पूछा.....
तब कृष्णराय जी बोलें.....
मुझे कल्याणी ने बताया कि जब मैं विलायत गया तो उसी साल किशोर को फोरेस्टर आँफिसर की नौकरी मिल गई,उसने मुझे ये खबर तार देकर बताई भी थी और फिर वो अपनी नौकरी ज्वाइन करने ऊधवगढ़ के जंगलों में आ गया,कल्याणी ने बताया कि तब से वो घर नहीं लौटा,कल्याणी ने उस पते पर बहुत चिट्ठियांँ भेजीं लेकिन एक भी चिट्ठी का जवाब नहीं आया,किशोर के ग़म में ही उसकी माँ चल बसी और उसकी बहन बेचारी एक एक पैसें के लिए मोहताज थी इसलिए मैं उसे खर्चे के लिए कुछ रूपये दे आया और फिर मुझसे कल्याणी ने किशोर को खोजकर लाने की गुजारिश की इसलिए मैं यहाँ चला आया.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....