Kalvachi-Pretni Rahashy - 46 books and stories free download online pdf in Hindi

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४६)

"अचलराज! ये क्या कह रहे हो तुम?,महाराज कुशाग्रसेन एवं उनके माता पिता जीवित हैं",कालवाची ने पूछा...
"हाँ! ये सत्य है,ये सूचना मुझे वत्सला ने दी",अचलराज बोला...
"कौन वत्सला",?,कालवाची ने पूछा...
"वो भी हम दोनों की भाँति यहाँ की दासी है,वो भी गिरिराज की सताई हुई है,गिरिराज ने उसके समूचे कुटुम्ब की हत्या कर दी,उसके होने वाले पति को भी मार दिया,वत्सला एक राजपरिवार से सम्बन्ध रखती है,वो प्रशान्त नगर के राजा समृद्धिसेन की पुत्री है",अचलराज बोला...
"ओह...तो वो भी पीड़िता है",कालवाची बोली....
"हाँ!वो भी रात्रि के दूसरे पहर के पश्चात यहाँ आ जाएगी,तब तुम स्वयं ही उससे मिल लेना",अचलराज बोला....
"अच्छा! ये सब तो ठीक है किन्तु अब हम सभी की अगली योजना क्या होगी?",कालवाची ने पूछा....
"अभी केवल ये योजना है कि हम वत्सला के संग रात्रि के दूसरे पहर के पश्चात अपना अपना रूप बदलकर राजमहल के बाहर जाऐगें और उन सभी को सूचना देगें",अचलराज बोला...
"कौन सी सूचना",?,कालवाची ने पूछा...
"यही कि कि महाराज कुशाग्रसेन एवं उनके माता पिता जीवित हैं",अचलराज बोला...
"इसके पश्चात क्या करेगें",?कालवाची ने पूछा...
"उसके पश्चात जो सभी का निर्णय होगा उसी के आधार पर अगली योजना बनाई जाएगी",अचलराज बोला....
दोनों यूँ ही रात्रि भर वार्तालाप करते रहें,इसी मध्य कालवाची बाहर जाकर अपना भोजन भी ग्रहण करके लौट आई,दूसरा पहर बीत जाने के पश्चात वैशाली के कक्ष के समक्ष वत्सला आकर मद्धम स्वर में बोली....
"वैशाली...वैशाली...मैं आ गई",
"तभी भीतर से वैशाली बोली...
"कौन?वत्सला है क्या"?
"हाँ! मैं ही हूँ",वत्सला बोली...
तत्पश्चात वैशाली ने धीरे से अपने कक्ष के किवाड़ खोलें,वत्सला जैसे ही भीतर पहुँची तो उसने शीघ्रता से कक्ष के किवाड़ बंद कर लिए,वत्सला को देखकर कालवाची बोली...
"अच्छा! तो तुम हो वत्सला",
"हाँ! मैं ही हूँ वत्सला ,कदाचित तुम कालवाची हो",वत्सला बोली...
"हाँ! मैं ही प्रेतनी कालवाची हूँ",कालवाची बोली...
"किन्तु तुम तो मुझे बिल्कुल भी भयावह प्रतीत नहीं हो रही हो",वत्सला बोली...
"तो तुम क्या चाहती हूँ,मैं भयावह हो जाऊँ",कालवाची बोली...
"नहीं सखी! ऐसा कदापि मत करना,मैं तो यूँ ही कह रही थी",वत्सला बोली...
"तो अब आगें की योजना क्या है"?,वत्सला ने वैशाली से पूछा...
"बस ! अब हम सभी अपना रूप बदलकर राजमहल के बाहर जाऐगें",वैशाली बोली....
"तो बिलम्ब किस बात का,इस कार्य को शीघ्र ही पूर्ण करते हैं",वत्सला बोली...
"तो अभी लो",
और ऐसा कहकर कालवाची ने सभी को तोता,मैना और बुलबुल का रूप दे दिया और वें सभी कक्ष के वातायन से बाहर पहुँचे और इसके पश्चात वें राजमहल से बाहर निकल गए,जब तीनों राजमहल से कुछ दूर आ गए तो कालवाची बोली...
"चलो!अब तुम दोनों इसी स्थान पर खड़े हो जाओ,मैं तुम दोनों का रूप बदल देती हूँ",
और सभी एक स्थान पर खड़े हो तो कालवाची ने अचलराज और वत्सला को मानव रूप में बदल दिया और तीनों वहाँ पहुँचें जहाँ सभी रह रहे थें,तीनों भीतर पहुँचे तो भैरवी ने पूछा....
"अब ये कौन है?,कहीं ये भी राजा कि सताई हुई कोई अबला तो नहीं है",
"ये राजा की सताई हुई तो है किन्तु अबला नहीं है,ये प्रशान्त नगर की राजकुमारी वत्सला है और इसे भी राजा से प्रतिशोध लेना है",कालवाची बोली...
"ये सब छोड़िए पहले आप सभी मेरी बात सुनिए",अचलराज बोला....
"ऐसा क्या सुनाने जा रहे हो तुम"?भूतेश्वर ने पूछा...
"शुभ समाचार सुनाने जा रहा हूँ",अचलराज बोला...
"ऐसा कौन सा शुभ समाचार सुनाने वाले हो तुम"?,त्रिलोचना ने पूछा...
"अरे! हमारे महाराज कुशाग्रसेन जीवित हैं",अचलराज बोला....
"क्या कहा तुमने पुत्र?वें जीवित हैं....मेरे स्वामी जीवित हैं",रानी कुमुदिनी ने हर्ष के साथ पूछा...
"हाँ! महारानी वें जीवित हैं",अचलराज बोला...
भैरवी भी इस समाचार को सुनकर स्तब्ध रह गई...
"तुम्हारे पास इसका क्या प्रमाण है"?,कौत्रेय ने पूछा....
कौत्रेय के प्रश्न पर रानी कुमुदिनी मौन हो गईं और उकी सारी प्रसन्नता जाती रही,तब अचलराज बोला...
"साक्षात् प्रमाण तुम्हारे समक्ष खड़ी है,वत्सला को सब ज्ञात है और महाराज के साथ साथ उनके माता पिता भी जीवित हैं",
"इसने कहा और तुमने मान लिया",कोत्रेय बोला....
"अरे!ये बहुत समय से राजमहल में रह रही है,इसे सब ज्ञात है",अचलराज बोला....
"ये भी तो हो सकता है कि ये कोई गुप्तचर हो",कौत्रेय बोला....
"कौत्रेय! तुम अपना मस्तिष्क चलाना अब बंद करो तो हम कुछ वार्तालाप कर लें",कालवाची बोली....
"तुम भी कैसीं बातें कर रही हो कालवाची!",कौत्रेय बोला....
"तो क्या करूँ?जो बात है ही नहीं उसे संदेहात्मक क्यों बनाए जा रहे हो "?,कालवाची बोली....
"मैं तो यूँ ही अपना मत रख रहा था",कौत्रेय बोला....
"जिसके पास जो वस्तु ना हो तो उस पर अपना समय नष्ट नहीं किया करते",त्रिलोचना बोली...
"तुम तनिक शान्त रहोगी या नहीं,किसी के वार्तालाप के मध्य तुम्हारा कूदना आवश्यक है क्या?",कौत्रेय त्रिलोचना से बोला....
"जब मस्तिष्क की कमी होने लगती है ना तो मानव इसी प्रकार का वार्तालाप करने लगता है",त्रिलोचना बोली....
"हाँ! तुम ही तो संसार में सबसे अधिक बुद्धिमान हो,शेष सभी तो मूर्ख ठहरे",कौत्रेय बोला...
"और सभी के विषय में तो मैं नहीं जानती,किन्तु तुम्हारी बुद्धिमत्ता पर मुझे तनिक संदेह है कौत्रेय!", त्रिलोचना बोली...
"त्रिलोचना! तुम अब अपनी सीमाएँ लाँघ रही हो",कौत्रेय ने चेतावनी देते हुए कहा...
"अरे!भूतेश्वर!तुम यहीं बैठों हो,तुम त्रिलोचना को शान्त नहीं करवा सकते क्या?",कालवाची बोली....
"और तुम भी तो यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठी हो ,तुम भी तो कौत्रेय को शान्त करवा सकती हो,भूतेश्वर बोला....
"ये कैसीं बातें कर रहे हो तुम?",कालवाची बोली....
"जैसी बातें तुम कर रही हो,वैसी ही बातें मैं भी कर रहा हूँ",भूतेश्वर बोला....
"ये आज तुम सभी को क्या हो गया है? सब आपस में झगड़ क्यों रहे हो,मुझे पहले महाराज के विषय में जानने दो इसके पश्चात झगड़ लेना"?,रानी कुमुदिनी बोली...
"हाँ! तो महारानी महाराज जीवित हैं और उन्हें राजा गिरिराज ने बंदीगृह में बंद कर रखा है",अचलराज बोला....
"पुत्री वत्सला ! क्या तुमने कभी महाराज को देखा है,क्या तुम कभी बंदीगृह गई हो?" रानी कुमुदिनी ने वत्सला से पूछा..
तब वत्सला बोली....
"हाँ! महारानी! मुझे जब मेरे राज्य से लाया गया था तो उसी बंदीगृह में मैनें कुछ दिन बिताए थे जहाँ भूतपूर्व महाराज बंदी हैं,मैंने उनसे वार्तालाप भी किया था,तब आपकी सास मृगमालती ने भी मुझसे बात की थी और आपके श्वसुर प्रकाशसेन भी वहीं उपस्थित थे,महाराज ने मुझसे बात की थी ,मुझे ढ़ाढ़स बधाया था और ये भी कहा था कि मेरी भाँति उनकी भी एक पुत्री है जिसका नाम भैरवी है और उनकी महारानी का नाम कुमुदिनी है",
"ये सब कहा था महाराज ने तुमसे", रानी कुमुदिनी ने पूछा...
तब वत्सला बोली...
"जी! वें मुझे दयालुहृदय प्रतीत हो रहे थे,उन्होंने मुझे बहुत समझाया था उस समय,मैं उस समय अत्यन्त दुखी थी अपने परिवार को खोकर,वें मुझे ना समझाते तो कदाचित मैं अपने प्राण त्याग देती,उन्होंने कहा था कि कभी भी साहस मत हारो एक दिन तुम्हारी अवश्य जीत होगी",
"मुझे भी उनके पास जाना है,ना जाने कैसें होगें वें",रानी कुमुदिनी ऐसा कहकर रो पड़ी...
तब सेनापति व्योमकेश बोलें....
"महारानी! आप ऐसे दुखी होगीं तो कैसें चलेगा? आपको तो प्रसन्न होना चाहिए कि हमारे महाराज जीवित हैं और अब हम सभी को अपना प्रतिशोध लेने में दुगुनी प्रसन्नता होगी",
"आप कदाचित सच कहते हैं सेनापति जी! किन्तु मैं कैसें समझाऊँ अपने मन को,मैं स्वयं को समझा नहीं पा रही हूँ कि मन तनिक धीर धर,महाराज शीघ्र ही हम सभी के समक्ष होगें",रानी कुमुदिनी बोली....
"अच्छा!अब हम तीनों को प्रातःकाल होने से पूर्व राजमहल वापस जाना होगा,हम तो आप सभी को ये शुभ समाचार देने आए थे,क्योंकि प्रातःकाल होने में अब अधिक समय नहीं बचा है",कालवाची बोली...
"अच्छा! अब तुम तीनों जाओ,कहीं तुम तीनों के लिए कोई संकट ना खड़ा हो जाए",सेनापति व्योमेश बोले...
अब हमें आज्ञा दे और ऐसा कहकर तत्पश्चात कालवाची ने सभी को पुनः तोता,मैना और बुलबुल में परिवर्तित कर दिया और तीनों पुनः राजमहल की ओर उड़ चले....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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