Kalvachi-Pretni Rahashy - 45 books and stories free download online pdf in Hindi

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४५)

"वत्सला क्या हुआ था,तुम्हारे विवाह वाले दिन",वैशाली बने अचलराज ने पूछा...
तब वत्सला बोली...
"राजकुमार सूर्यदर्शन पहले ही दूल्हे के रूप में मण्डप में पधार चुके थे एवं मैं दुल्हन बनकर मण्डप में प्रवेश करने ही वाली थी कि तभी उस क्रूर गिरिराज ने हमारे राजमहल पर आक्रमण कर दिया,वो ये षणयन्त्र कई दिनों से रच रहा था एवं उसने इस कार्य हेतु मेरे विवाह वाला दिन ही चुना था"
"इसके पश्चात क्या हुआ वत्सला!",वैशाली ने पूछा...
तब वत्सला बोली....
"इसके पश्चात उसने मेरे पिता समृद्धिसेन ,मेरी माता अहिल्या और भाई चन्द्रभान की हत्या कर दी और जब राजकुमार सूर्यदर्शन ने उस पर आक्रमण किया तो उसने उनकी भी हत्या कर दी एवं उसका बेटा सारन्ध सिंह मुझे वहाँ से यहाँ अपने अश्व पर ले आया और मुझे बंदीगृह में बंद कर दिया और जब गिरिराज मेरे राज्य को अपने आधीन करके वहाँ से लौटा तो उसने मेरे संग कुकृत्य किया,मैं उसके चरणों पर गिरकर भीख माँगती रही लेकिन उसने मेरी एक ना सुनी और इसके पश्चात मुझे यहाँ की दासी बना दिया,तब से मैं यहीं रह रही हूँ और इसी प्रतीक्षा में हूँ कि मुझे कोई ऐसा मिल जाएं जिसके संग मिलकर मैं अपना प्रतिशोध ले सकूँ",
"प्रतिशोध तो मैं भी लेने आया हूँ अपनी माता की हत्या का",वैशाली बना अचलराज बोला....
"कहना क्या चाहती हो वैशाली? प्रतिशोध लेने आई हूँ या लेने आया हूँ,",वत्सला ने पूछा....
"लेने आया हूँ,मैं युवती नहीं युवक हूँ ",वैशाली बना अचलराज बोला...
"किन्तु! ये युवती वेष ,ये तुमने कैसें पाया"?,वत्सला ने पूछा...
"इसके पीछे बड़ी लम्बी कहानी है वत्सला!",वैशाली बना अचलराज बोला....
"कैसी कहानी?मुझे भी सुनाओ",वत्सला बोली...
"यहाँ नहीं वत्सला! हम दोनों रात्रि को राजमहल से बाहर जाऐगें,तब मैं तुम्हें वो कहानी सुनाऊँगा",वैशाली बना अचलराज बोला...
"किन्तु! अब हम राजमहल के बाहर नहीं जा सकते,वहाँ बहुत से अभिरक्षक होते हैं,हम सरलता से राजमहल के बाहर नहीं निकल सकते",वत्सला बोली...
"यदि हम अपना रूप बदल ले तब तो निकल सकते हैं ना!",वैशाली बना अचलराज बोला...
"मैं कुछ समझी नहीं",वत्सला बोली...
"मेरे कहने का आशय है यह है कि यदि हम किसी पंक्षी का रूप धर ले तो यहाँ से हम सरलता से बाहर निकल सकते हैं और कोई भी अभिरक्षक हमें पकड़ नहीं पाएगा",वैशाली बना अचलराज बोला....
"क्या तुम्हें रूप बदलने की विद्या आती है"?,वत्सला ने पूछा...
"नहीं! मुझे नहीं आती! किन्तु मेरी सखी यानि कि जो मेरे साथ मेरी बहन बनकर आई थी जिसका नाम कालवाची है उसे आती है,वो एक प्रेतनी है",वैशाली बना अचलराज बोला...
"अब तुम मुझे भयभीत कर रहे हो",वत्सला बोली...
"नहीं! ऐसा नहीं है वत्सला! इसमें भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है,एक प्रेतनी मेरी मित्र हैं,उसने ही मेरा रूप बदला है और वो तुम्हारा रूप भी बदल सकती है ",वैशाली बना अचलराज बोला....
"ओह...तो ये बात है",वत्सला बोली....
"तो रात्रि में चलोगी तुम मेरे संग राजमहल से बाहर ,तब मैं तुम्हें अपने और भी साथियों से मिलवाऊँगा,मेरी एक साथी यहाँ के भूतपूर्व राजा की पुत्री भी है",वैशाली बना अचलराज बोला....
"तो क्या तुम सभी भी यहाँ राजा से प्रतिशोध लेने आए हो"?,वत्सला ने पूछा...
"हाँ! हम सभी राजकुमारी का राज्य उन्हें वापस दिलवाने आए हैं",वैशाली बना अचलराज बोला...
"सच कह रहे हो तुम,मैं भी अब अपना प्रतिशोध ले सकती हूँ",वत्सला बोली...
"हाँ! अब तुम्हें और अधिक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं वत्सला! अब इस क्रूर ,कपटी राजा का इस संसार से जाने का समय आ गया है",वैशाली बना अचलराज बोला...
"जब तुम वैशाली नहीं हो तो तुम्हारा नाम क्या है"?,वत्सला ने पूछा...
"मेरा नाम अचलराज है और मैं यहाँ के भूतपूर्व सेनापति व्योमकेश जी का पुत्र हूँ",अचलराज बोला....
"अच्छा!तो ये बात है,तभी तुम इतने निडर हो",वत्सला बोली...
"ऐसी बात नहीं है किन्तु! वें हमारे राजा थे और उनकी सहायता करना हमारा कर्तव्य है",अचलराज बोला....
"चलो! अब यहाँ से चलते हैं,हम और अधिक देर तक यहाँ बैठकर बातें नहीं कर सकते,नहीं तो किसी को हम पर संदेह हो जाएगा",वत्सला बोली...
तब वैशाली बना अचलराज बोला...
"हाँ! तुम सही कह रही हो,चलो यहाँ से चले और रात्रि को हम सब दूसरे पहर के पश्चात यहीं मिलेगें,तब तक मैं ये ज्ञात करता हूँ कि कालवाची कहाँ है,वैसे तुम्हें तो ये ज्ञात होगा ना कि राजनर्तकी का कक्ष कौन सा है,कालवाची वहीं होगी और मैं उससे मिलने का प्रयास करता हूँ और अब तुम यहाँ से जाओ"
इसके पश्चात वत्सला ने वैशाली बने अचलराज को राजनर्तकी के कक्ष के विषय में जानकारी दी और वहाँ से वापस आ गई एवं कुछ समय पश्चात वैशाली अपनी बहन कर्बला को खोजने राजनर्तकी के कक्ष के समीप पहुँची एवं वहाँ की दासी से उसने संदेश भिजवाया कि वो अपनी बहन कर्बला से मिलना चाहती है,वो उससे मिलकर ये कहना चाहती है कि उसे कक्ष मिल गया है,अब कर्बला निश्चिन्त हो जाएं मेरी चिन्ता ना करें....
और कुछ समय के पश्चात कर्बला वैशाली से मिलने कक्ष के बाहर आई और उससे बोली....
"बहन! रहने योग्य कक्ष मिल गया ना! कोई कष्ट तो नहीं हुआ ना!
तभी वैशाली प्रसन्नता के साथ कर्बला से बोली...
"नहीं बहन! मुझे तो कोई कष्ट ही नहीं हुआ,मुझे तो महाराज ने अपने कक्ष की दासी बना लिया है एवं इतना सुन्दर कक्ष दिया है मुझे रहने के लिए कि जैसे वो कोई राजमहल हो,वहाँ सरोवर भी है,मैं तो अत्यधिक प्रसन्न हूँ",
"मुझे अच्छा लगा ये सुनकर",कर्बला बोली....
"और बहन तुम भी प्रसन्न हो ना ,तुम्हें यहाँ कोई कष्ट तो नहीं है"?,वैशाली ने पूछा....
"नहीं!बहन! मुझे तो राजकुमार सारन्ध ने अपनी दासी बना लिया है,किन्तु मुझे रहने के लिए यहीं कक्ष दिया गया है,मैं भी अत्यधिक प्रसन्न हूँ,यहाँ के महाराज और राजकुमार दोनों ही दयालु हैं,परोपकारी हैं ,हम दोनों बहने तो धन्य हो गईं इस राजमहल को पाकर",कर्बला बोली....
"सही कहती हो बहन",वैशाली बोली....
"तो बहन! अब कब मिलना होगा",कर्बला ने पूछा....
"आज रात्रि तुम मेरे कक्ष में रह लो ना! मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी",वैशाली बोली...
"किन्तु! मुझे इसके लिए राजकुमार से अनुमति लेनी होगी",कर्बला बोली...
"अनुमति लेने में कोई बाधा है क्या"?,वैशाली ने पूछा...
"नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है,मैं उनसे अनुमति ले लूँगी और रात्रि को तुम्हारे कक्ष में ही रहूँगी",कर्बला बोली...
"हाँ! बहन!कक्ष! अत्यधिक विशाल है,मुझे वहाँ अकेले रहने में भय लगेगा,यदि तुम वहाँ होगी तो अच्छा रहेगा",वैशाली बोली...
"तुम चिन्ता मत करो,मैं राजकुमार से अनुमति लेकर अवश्य वहाँ आऊँगी",कर्बला बोली...
"अच्छा!बहन तो अब मैं चलती हूँ,रात्रि को मिलते हैं",वैशाली बोली...
"हाँ! बहन!अब तुम जाओ",कर्बला बोली...
कर्बला और वैशाली को जो भी सांकेतिक भाषा में बात करनी थी,वें दोनों तो वो बात तो कर ही चुकीं थीं और उनकी अगली योजना क्या होगी ये भी दोनों संकेतों में कह चुकीं थीं,वहाँ और भी दासियाँ उपस्थित थी इसलिए उन्होंने आपस में ऐसे वार्तालाप किया कि किसी को कुछ भी ज्ञात ना हो सके कि वें कौन हैं और उनका प्रयोजन क्या है? कर्बला का प्रथम दिवस था इसलिए उसे सरलता से राजकुमार सारन्ध ने अपनी बहन वैशाली से मिलने की अनुमति दे दी और कर्बला रात्रि को वैशाली के कक्ष में पहुँची और तब उसे ज्ञात हुआ कि महाराज कुशाग्रसेन एवं उनके माता पिता जीवित हैं...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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