साथिया - 2 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 2

उत्तर प्रदेश....

उत्तर प्रदेश के देहात में बसा एक गांव। जहां पर अवतार सिंह की हवेली है। जहां पर अवतार सिंह अपनी पत्नी और कुछ नौकरों के साथ रहते हैं। अवतार सिंह की एक इकलौती बेटी है नेहा जो उन्हें बेहद ही प्यारी है मुंबई में रहती है। उसका एमबीबीएस खत्म हो चुका है और अब वो जॉब करती है।


इसी गाँव में रहते है गजेंद्र ठाकुर। उनके परिवार मे उनकी पत्नी एक बेटा निशांत और बेटी नियति है। इसके अलावा उनके छोटे भाई सुरेंद्र भी उनके साथ रहते है जिनका एक बेटा है सौरभ और बेटी आव्या।

गजेंद्र और अवतार खुद के गाँव के अलावा आसपास के गांवों में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। दोनों का उच्च स्तर है और दोनों ही पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं को लेकर चलने वाले हैं।

अवतार सिंह ने हालांकि अपनी बेटी के मोह में आकर उसे बाहर पढ़ने की इजाजत दे दी है पर आज भी उनकी सोच ग्रामीण ही है, जहां पर बेटी को पढ़ने की तो इजाजत है पर अपने लिए वर ढूंढने की नहीं और यह तय करना आज भी अवतार सिंह अपना ही अधिकार समझते हैं।

बात सिर्फ अवतार सिंह और गजेंद्र सिंह की नहीं है इस एरिया के ज्यादातर लोगों का यही सोचना है और इसके चलते यहां पर कानून व्यवस्था भी इन्हीं के हाथों रहती है। युवा पीढ़ी भी यह बात भली-भांति जानते हैं कि उनके परिवार वाले प्यार मोहब्बत को स्वीकार नहीं करेंगे और यहां पर भाग्य विधाता उनके परिवार के मुखिया ही होते हैं।

भले सब परिवार एक दूजे को श्रेष्ठ समझे पर बात जब भी समाज की आती है सब एकजुट हो जाते है और फिर विद्रोही के लिए सजा निर्धारित होती है और ये सजा देते समय इतने कठोर हो जाते है कि कोई मोह इन्हे कमजोर नही कर पाता।

इस क्षेत्र का ये कटु सत्य जानते हुए भी कभी जाने अनजाने युवा पीढ़ी गलती कर देती है और उस गलती का भुगतान भी उन्हें इन लोगों का बनाया खास समाज देता है और इसकी भनक भी बाहर नहीं जा पाती। ना ही यहां पर किसी पुलिस का का कोई हस्तक्षेप होता है और ना ही कोई कानून यहां पर लागू होता है।

यहां के कुछ बड़े और रसूखदार परिवार ही यहां की पुलिस है और वही यहां का कानून। उनमें से ही आता है अवतार सिंह और गजेंद सिंह का परिवार।


दोपहर का समय गजेंद्र सिंह का घर..!

गजेंद्र सुरेंद्र सौरभ और निशांत खाने के लिए बैठे थे।

जमीन पर कायदे से चटाइयाँ बिछी थी और सामने चौकी पर थाली रखी थी।

छोटी और बड़ी ठाकुराइन रसोई मे थी खाना बना रही थी और घर की बेटियां आव्या और नियति खाना परोस रही थी।


"बाबूजी मेरा बीए का रिजल्ट आ गया है और अब मैं पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन ले लूं? नियति ने कहा..तो गजेंद्र सिंह के हाथ खाते-खाते रुक गए और उन्होंने नियति की तरफ देखा।

वही नियति की मां दरवाजे पर खड़ी है सुन रही थी। वो जानती थी कि गजेंद्र सिंह का जवाब क्या होगा।


"जितना पढ़ना था पढ़ लिया...! तुम लोगों की जिद थी इसलिए मैंने तुम्हें पढ़ने दिया पर अब नहीं। जवान छोरियों का यूँ रोज शहर जाना मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसलिए हो गया बहुत। तुम्हें ना कहीं नौकरी करनी है ना कहीं बाहर निकलना है इसलिए आगे की पढाई की जरूरत नहीं है।" गजेंद्र सिंह ने कहा तो नियति ने उम्मीद से सुरेंद्र की तरफ देखा।



"पढ़ने दीजिए ना भाई साहब ..! बच्ची पढ़ने में अच्छी है अच्छा रिजल्ट लाती है तो फिर परेशानी ही क्या है? और शहर कौन सा दूर है रोज तो यहां से बस जाती है ना। चली जाती है बस में बैठकर और आ जाती है। वैसे मैंने तो कहा भी था आपसे कि उसे वही हॉस्टल में छोड़ दो पर आप नहीं माने।" सुरेंद्र बोले।


"तुम्हारे लाड प्यार में ही सारे बच्चे पूरे बिगड़ रहे हैं लल्ला। मैंने पहले ही कहा था कि मुझे नियति को 12वीं के बाद नहीं पढ़ाना..! मैं नहीं चाहता कि कल को कोई ऊँच नीच हो और समाज में हमारी नाक कटे।" गजेंद्र बोले।


" पर भाई सा..?" सुरेंद्र बोले।


" तुम्हारी और नियति की जिद के कारण मैंने इसे शहर जाने की इजाजत दे दी। अब यह हो गया है बीए तो अभी आगे एम ए नहीं करना है। अब क्या कोई मास्टरनी बनना है जो पढ़ती जाए पढ़ती जाए। अब घर पर रहे घर गृहस्थी सीखे क्योंकि एक साल के अंदर ब्याह करने का सोच लिया है मैंने।" गजेंद्र बोले।



"ब्याह तय हो तब कर देना ताऊजी पर तब तक तो यह पढ़ने जा सकती है ना? जब तक रिश्ता तय नहीं हुआ है जाने दीजिये। रिश्ता होने के बाद फिर निर्णय नियति और उसके ससुराल वाले कर लेंगे।" तभी सुरेंद्र का बेटा सौरभ बोला।



"और तुम क्या चार अक्षर पढ़ गए अब हमें अक्ल सिखाओगे। अपने आप को बहुत बड़ा जर्न... जर्न...


"जर्नलिस्ट..!" आव्या बोली।

" हाँ वही.. खुद को बहुत बड़ा जर्नलिस्ट समझते हो? यह तुम्हारी पत्रकारिता और अखबार सब शहर तक सीमित रखो..! इसको अपने गांव में लाने की जरूरत नहीं है समझे तुम..! और दो-चार दिन के लिए यहां आते हो शांति से रहा करो तुम्हारी शिकायत आई है!" गजेंद्र बोले तो सौरभ ने गर्दन झुका ली।



"शिकायत आई है मतलब? " सुरेंद्र बोले।

"सब कुछ तुम्हारे ही कारण है लल्ला। हम तुमको स्नेह करते है तो तुमको विरोध नही करते और तुम सब बच्चो को सह देते हो। तुम को ही इन्हें पत्रकार बनाना था तो बन गए पत्रकार। अब आकर यही गांव में अगर खोजबीन करेंगे और यहां की परंपराओं और रीति-रिवाजों पर उंगली उठाएंगे तो गांव वाले तो विरोध करेंगे ना? तुम तो जानते हो ना लल्ला कि यहां पर सिर्फ यहाँ का नियम है। इस गांव में ना कोई कानून चलता है और ना ही कोई पुलिस..! यहां के कानून भी हम लोग है और यहां की पुलिस भी हम। तो अपने बेटे से कहो कि यह अपनी पत्रकारिता शहर तक ही सीमित रखें। यहां दो-चार दिन के लिए आता है आराम से रहे। बेवजह की बातों में उलझा तो ना ही इसके लिए सही होगा ना ही हमारे लिए।" गजेंद्र रौबदार आवाज को और भी सख्त करके बोले।




"जी ताऊ जी ध्यान रखूंगा ..! आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।" सौरभ बोला।

"और हाँ अब तुम भी आगे पढ़ने का विचार त्याग दो.. ! का समझी?" गजेंद्र बोले।


नियति का मुँह लटक गया।


"आप जो कह रहे हो बाबू जी वह बिल्कुल ठीक है..! पर जहां तक मैं जानता हूं नियति को पढ़ने देने में कोई बुराई नहीं है। आजकल सब लड़कियां पढ़ती है। पढ़ने लिखने से थोड़ा घर गृहस्थी भी अच्छे से चलाने लगते हैं।" गजेंद्र का बेटा निशांत नियति को देखकर बोला।

गजेंद्र को अपने बेटे पर हद ज्यादा विश्वास और फक्र है आखिर उनकी पूरी जमीदारी निशांत ही तो संभाल रहा है।


"ठीक है तुम कहते हो तो पढ़ने देता हूँ पर समझा देना इसे ठीक से रहे। कोई भी ऐसी वैसी बात हुई तो जानते हो ना तुम यहां का कानून किसी के लिए नहीं बदलता फिर चाहे वह है गजेंद्र सिंह की बेटी हो या सुरेंद्र सिंह का बेटा ।" गजेंद्र ने नियति की तरफ देख कर कहा।

" और ताऊ जी मैंने तो डिसाइड कर लिया है मेरा इस बार टवेल्थ भी हो जाएगा उसके बाद पापा मुझे दिल्ली भेजने वाले हैं मेडिकल की पढ़ाई के लिए। मुझे भी डॉक्टर बनना है नेहा दीदी की जैसी। " आव्या ने चहकते हुए कहा।


"हां तो तुम्हारे भविष्य का फैसला करने का निर्णय तुम्हारे बाप का है , तो मैं उसे नहीं रोकूंगा। मैं सिर्फ इस गांव में कुछ भी गलत नहीं होने दूंगा। मुझे यहां पर गलत बातें होने से परेशानी है। तुम दिल्ली जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करो या इंजीनियर बनो मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं है , और हां एक बात ध्यान रखना भले तुम लोग किसी भी शहर चले जाओ कोई भी पढ़ाई करो कोई भी नौकरी करो पर इस गांव के नियम कानून और कायदे कभी मत भूलना और यह मत भूलना कि तुम किस परिवार को हो। तुम लोग गलतियां नहीं करोगे तो सब सही रहेगा। " गजेंद्र बोले और उठ कर हाथ धोने चले गए।



" हे आव्या नेहा कब आ रही है कुछ पता है? " तभी धीमे से निशांत बोला

" क्या बात है बड़े भैया बड़ी याद आ रही है आपको तो? " नेहा ने मुंह बनाकर कहा।


"तुमसे जितना पूछ रहा हूं उतना बताओ? तुम्हारा तो उनके घर आ जाना है ना इसलिए पूछा मैंने?" निशांत बोला।


"हां तो मै जाती हूं ना जब भी दोनों दीदी आती है मैं तो जाती हो ना मिलने के लिए। और पता नहीं कब आने वाली है अब तो उन्होंने नौकरी भी ज्वाइन कर ली है देखो शायद आए कुछ दिनों में।" आव्या ने आगे कहा।


सुरेंद्र जो दोनो की बातें सुन रहे थे उठकर जाने लगे।


"इस बार उसके आते ही बात कर लूंगा..!" निशांत धीरे से बोला तो आवाज सुरेंद्र और गजेंद्र दोनों के कानों में पड़ी।

गजेंद्र के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई और वह बाहर निकल गए।

"क्या बात कर लोगे? " सुरेंद्र ने कहा तो निशांत के गले में पानी अटक गया।

"कुछ नहीं चाचा जी बस मैं तो यूं ही कह रहा था।" निशांत बोला।


"कोई बात नहीं अगर तुम्हें पसंद है तो भैया से बात कर सकते हो..! वैसे भी हमारे बराबर का परिवार है रिश्ता जाएगा तो उनके घर तो अवतार सिंह कभी मना नहीं करेंगे।" सुरेंद्र बोले और और निशांत की पीठ थपक के बाहर निकल गए।


निशांत के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और जब उसने सामने देखा तो आव्या नियति और सौरभ उसे देख कर मुस्कुरा रहे थे।


"तुम तीनों न गजब हो।।यू इस तरीके से मेरी तरफ मत देखा करो। निशांत सिंह है हम? पता नहीं है का बाबूजी के उत्तराधिकारी है हम। इस गांव के भावी भाग्य विधाता और साथ-साथ तुम सब के भी।" निशांत फुल एटीट्यूड के साथ बोला और निकल गया।


"इनका कुछ नहीं हो सकता...! पता नहीं इनके दिमाग से यह भाग्य विधाता और जमीदारी कब निकलेगी? दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है पर ताऊजी और उसके बाद निशांत भैया आज भी उन्हीं बेड़ियों में जकड़े हुए हैं ।" सौरभ बोला और उठकर चला गया।

उसके जाते ही नेहा ने खुश होकर नियति को गले लगा लिया।


"अब खुश हो जाइए जीजी आपको परमिशन मिल गई है..! अब आप आराम से पोस्ट ग्रेजुएशन कीजिए और जैसा कि ताऊ जी ने कहा कि मैं कौन मास्टरी करनी है तो अब तो आप मास्टरी करके दिखा दीजिए उन्हें। फिर एक बहिन मास्टर और दूसरी डॉक्टर..! " आव्या बोली।

नियति ने कोई जवाब नहीं दिया पर उसकी आंखों में आई चमक कुछ अलग ही बात है कह रही थी और एक नई क्रांति का आगाज कर रही थी।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव