महान सोच - भाग 8 - (रिश्तेदारों की कमी) r k lal द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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महान सोच - भाग 8 - (रिश्तेदारों की कमी)

महान सोच  भाग 8  (रिश्तेदारों की कमी)

आर 0 के 0 लाल

 

डॉक्टर कहते हैं वरिष्ठ नागरिकों को अधिक बात करनी चाहिए, बोलना मस्तिष्क और स्मृतिको सक्रिय  रखता है। यह बात प्रमोद ने कहीं सुन ली थी और तभी से वे इतना बोलते रहते हैं कि पूरे घर वालों की बोलती बंद हो गई थी। उनकी बहू रुची तो कहती है," शायद बाबूजी की मानसिक बीमारी दूर हो रही है परंतु हम सबका तनाव का स्तर बढ़ रहा है क्योंकि वे हमें सोते जागते कोई न कोई उपदेश देते  ही रहते हैं। अब तो हम चाहते हैं कि हमें कोई सलाह न दें" ।

बाबूजी को आए हुए अभी पंद्रह दिन भी नहीं बीते और सब उनके उपदेश सुनकर इतना पक गए थे  कि उन्हें किसी फल की तरह चू जाने का डर लगने लगा था।बाबू जी कुछ दिनों पहले ही अपने बेटे के यहां आए थे जो बेल्जियम में पिछले दस वर्षों से रहता था ।  बाबू जी कह रहे थे कि तुम हम लोगों से बात ही नहीं करते, कभी इंडिया अपने घर भी नहीं आते। यहां कितना कमाओगे ? इंडिया में मैं और तुम्हारी मां अकेले पड़े रहते हैं । तुमने तो सभी रिश्तेदारों से भी किनारा कर लिया है, किसी से तुम्हारा संपर्क नहीं है। यह बात गांठ बांध लो कि किसी को अपना सामाजिक संस्कार नहीं छोड़ना चाहिए । फिर बाबूजी बताने लगे कि उनके साथ काम करने वाले रामफल अब अपने गांव में बेटे के साथ रहते हैं। उनका बेटा बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं है फिर भी अपने मां बाप का बहुत ख्याल रखता है। अक्सर बाबूजी अपने बेटे से पूछते कि आज जब वो बूढ़े हो गए हैं तब तू क्या थोड़ा मेरे पास रहेगा? हम लोग साथ में गप्पें लड़ाएँगे, भले ही कुछ पल के लिए क्यों न हो। कोई ढंग का रिश्तेदार भी नहीं इसलिए मेरा समय नहीं कटता ।

रोज रोज ऐसी बातें सुनकर बाबूजी के बेटे से चुप नहीं रहा गया तो कहने लगा, "पापा, मैं तो आपका आज्ञाकारी बेटा हूं । बचपन से ही जैसा आप कहते थे वैसा ही कर रहा हूं। सब कुछ आपकी इच्छानुसार ही तो हो रहा है ।

बचपन में आप ही तो चाहते थे कि मैं घूमने न जाऊं क्योंकि आपको डर था कि मैं कहीं आवारागर्दी न करने लगूं।  जब मैं तीन या चार साल का था तो आप हमेशा दोस्त बनाने के लिए प्रोत्साहित करते थे और कहा करते थे कि  अच्छे दोस्तों के होने से किसी को इमोशनल सपोर्ट मिल सकता है। पर जब हम स्कूल जाने लगे तो आप की यह सोच न जाने कहां गायब हो गई थी। आपने मेरी सारी दोस्ती छुड़ा दी थी। आपके ऊपर तो एक ही भूत सवार था कि मैं कक्षा में टॉप करूं और मेरा दाखिला इंजीनियरिंग में हो जाए

इस प्रकार मैंने नितांत अकेला हो गया था। यह सच है कि आप मेरे लिए जी जान से मेहनत करते थे, हमेशा स्कूल ले जाते थे  और फिर कोचिंग छोड़ आते थे। कभी कभी तो वहीं बैठे रहते थे और मुझे अपने साथ ही वापस लाते  थे।आप कभी अपनी साइकिल पर तो कभी स्कूटर या कार में घुमाते। उसी में बैठ कर मैं दोस्तों को हेलो करके काम चला लेता। मुझे पता ही नहीं चला कि बचपन किस प्रकार बीत गया। वैसे भी आपने मुझे सब तरह के सुख देने का प्रयास किया था। मेरे कमरे में ऐ ०सी०, टी ०वी०,  रेडियो आदि सब कुछ तो लगवा रखा था। मगर मैं अकेला ही तो था। अगर कोई दोस्त आते तो आप उन्हें जल्दी बिदा कर देते क्योंकि मुझे पढ़ना होता था। हमें बाजार,  पिक्चर और होटल भी आप खूब ले जाते थे मगर केवल मम्मी साथ में होती थी।

मेरे दादा दादी भी साथ रहते थे।  उनका  कमरा तीसरी मंजिल पर  था । मैंने कभी देखा ही नहीं कि उनको नीचे आने की जरूरत पड़ी हो। उनका खाना ऊपर ही पहुंच जाता था। यदि मैं उनके पास जाता तो आप हमेशा मुझे याद दिला देते कि अभी होमवर्क बाकी है। इसी चक्कर में दादी से कभी भी कोई कहानी नहीं सुन सका।

भारत में पैदा होने के बावजूद आप चाहते थे की मैं अंग्रेज बन जाऊं इसलिए अंग्रेजी की पोएट्री  मुझे याद कराई पर भारतीयता की कोई झलक मुझे नहीं स्पर्श कर पाई। हिंदी पढ़ाई नहीं गई। तो इतनी शक्ति हमें देना दाता वाले प्रार्थना करने का मौका नहीं मिला।

पापा! आप अपने घर के अकेले लाडले थे । आपका कोई बहन नहीं थी भाई भी नहीं था। मम्मी एक बड़े अमीर घर  की इकलौती लड़की थी। उनका सब कुछ आपका ही था। हम काफी अमीर हो गए थे पर वास्तव में कंगाल थे क्योंकि मेरे न कोई बुआ, न चाचा, न मामा और न मौसी थी फिर फूफा, चाची, मामी और मौसी कहां से आतीं। रिश्तेदारों की कमी से मैं तो जानता ही नहीं कि उनका क्या महत्व होता है। आज रिश्तेदार होते तो आप भी अकेले न होते। हमारे पूर्वजों ने बिना समझे जो संयुक्त परिवार तोड़ना शुरू किया तो अब एकल परिवार भी नहीं बच पा रहा है।

मेरे घर कोई नहीं आता था, मैं नितांत अकेला कैसे समझ पाता कि उनका प्यार हमें किस प्रकार सामाजिक सूत्र में पिरो कर जीवन को यथार्थ बनाता है। कहीं उनका नियंत्रण होता है तो कहीं पारस्परिक सहयोग, जिससे जीना सुखद और मतलब वाला हो जाता है। जब अपने दोस्तों के यहां मामा मामी, मौसी मौसी या फूफा बुआ आते थे तो सभी एक दूसरे को खुशी बांटा करते थे। इस प्रकार सभी सीख जाते थे कि प्राकृतिक रूप से कैसे सबके साथ खुश रहा जा सकता है।

अब न जाने क्यों आप हमको दोषी ठहराते हैं। आपने जैसा बनाया वैसा बन गया हूं।  पापा आपने सिर्फ एक ही रास्ता दिखाया था कि इंजीनियर कैसे बन कर विदेश नौकरी करने जाया जाय। इसमें आप पूरी तरह सफल भी रहे हैं। मैं तो यहां आने वाला ही नहीं था मगर आपकी इज्जत का सवाल था। मैं न घर का रह गया हूं न अपने देश का।  अब तो यहां के सामाजिक तौर तरीके से ही जीना पड़ेगा। हमारी परिस्थिति शायद लोग नहीं समझ पाते हैं।

लेकिन पापा! मैंने और रुची ने इस विषय पर बहुत विचार किया है। हम चाहते हैं कि मेरा बेटा रोबिन अपनी जिंदगी भारतीय संस्कृति के अनुसार रिश्तेदारों के साथ बिताए और भौतिक वस्तुओं की अपेक्षा सार्वभौमिक मानव मूल्यों पर ज्यादा महत्त्व दे। इसके लिए हम चाहते हैं कि रॉबिन की बहन भी हो और एक भाई भी, ताकि आगे चलकर उसके बच्चे जान सके कि बुआ, मामा, चाचा और फूफा से कैसे हर तरह की सुरक्षा और अपनत्व की भावना जागृत होती है। मेरा सोचना है कि बच्चों को सुरक्षा और प्यार के अलावा, उनके दोस्तों और रिश्तेदारों के माध्यम से एक अनुशासनीय और सहयोगपूर्ण माहौल देना चाहिए।

उसने पापा को याद दिलाया कि भाई-बहन के अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक रक्षाबन्धन का पर्व आने वाला है। उस दिन राबिन की कानूनी बहन यहां राखी बांधने आयेगी। मैंने यहां रह रहे भारतीयों के बीच अपने कई  रिश्तेदार ढूंढ कर उन्हें अपना लिया है।जरूरी होने पर लीगल अनुबंध भी करने को तैयार हूँ । उन्हीं के जरिए हम भारतीय संस्कृति को विस्तारित करने का इरादा किया है ।

 

यह सुनकर  बाबूजी ने अपनी गलतियों को माना और बच्चों को व्यवहार कुशल बनाने में रिश्तेदारों की भूमिका समझी। उन्होंने सुनील की सोच के लिए उन्हें बधाई और आशीर्वाद भी दिया।

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