मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 10 राज कुमार कांदु द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 10


लघुकथा क्रमांक 27

श्रीमती मोरारजी देसाई
******************

हम सातवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। हमारे मुख्याध्यापक जिन्हें हम बड़े गुरुजी कहते थे, हमें हिंदी पढ़ाने के साथ ही सामान्य ज्ञान भी बताते रहते थे।

काल के भेद समझाने के बाद उन्होंने प्रश्न किया, ”अच्छा बच्चों ! हमारे देश के भुतपूर्व प्रधानमंत्री का क्या नाम है ?"


चूँकि उस समय भी आज की ही तरह राजनीती की चर्चा चरम पर थी सो सभी बच्चों को इसका जवाब पता था। सभी बच्चों ने अपने अपने हाथ खड़े कर लिए।


एक लड़की जिसका नाम मीनाक्षी था, उससे बड़े गुरूजी ने पूछा, ”मीनाक्षी, तुम बताओ !"


उसने खड़े होते हुए चट से जवाब दिया, ”इंदिरा गाँधी !"


उसके मुँह से जैसे ही 'इंदिरा गाँधी' निकला बड़े गुरूजी की तेज डपट से कक्षा में सन्नाटा पसर गया। अब तो मीनाक्षी का सही जवाब बताने का सारा जोश ठंडा पड़ चुका था। वह सिर झुकाए खड़ी रही।


बड़े गुरूजी ने बड़ी आत्मीयता से समझाया, "इंदिरा गाँधी एक सम्मानित नेता हैं और ऐसे मान्यवर व्यक्तित्व के नाम के आगे उसके सम्मान में ‘श्रीमतीजी ‘ लगाना चाहिए। ठीक है ? सभी बच्चे समझ गए ?"


सभी बच्चों का समवेत स्वर गूँजा ”जी गुरूजी !"


बड़े गुरूजी खुश होते हुए पुनः मीनाक्षी से ही बोले, "अच्छा बताओ, हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री का क्या नाम है ?"


मीनाक्षी के पास जवाब तो जैसे हाजिर ही था। चट से बोली, ”श्रीमती मोरारजी देसाई !”


पूरी कक्षा ठहाका लगाकर हँस पड़ी। गंभीर व्यक्तित्व वाले बड़े गुरूजी के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई और बेचारी मीनाक्षी तो समझ ही नहीं पाई कि असल में हुआ क्या था ? सब क्यूँ ठहाका लगा रहे थे। बस झेंप कर रह गई।

*******************************************************


लघुकथा क्रमांक 28

दौलताबाद से दिल्ली
*****************


"अजी, सुन रही हो भागवान ? सरकार ने दो हजार के सभी नोटों को वापस लेने की घोषणा कर दी है।" अखबार से नजरें हटाकर चाय की चुस्कियाँ लेते हुए नरेश तनिक जोर से बोला।
दरअसल रिटायर हो चुके नरेश रोज सुबह चाय पीते हुए इसी तरह अपनी धर्मपत्नी नलिनी को प्रमुख खबरें सुनाते थे और फिर उसे लेकर दोनों के बीच एक स्वस्थ बहस होती।
एक कप में चाय का कप थामे नरेश के नजदीक रखी कुर्सी पर बैठते हुए नलिनी बोली, "यह तो सरकार का बहुत अच्छा कदम है। सरकार को यह फैसला पहले ही कर लेना चाहिए था।"

चाय की चुस्कियाँ लेते हुए स्मित हास्य के साथ नरेश बोला, "कह तो तुम ठीक रही हो। मैं भी सहमत हूँ तुम्हारी इस बात से, लेकिन मैं इतिहास की उस घटना के बारे में सोच रहा हूँ जो बाद में मुहावरा बन गया।"

"कौन सा मुहावरा ?" नलिनी उत्सुकता से बोली।

"वो मुहावरा नहीं सुना तुमने ? 'दिल्ली से दौलताबाद, दौलताबाद से ...."
एक शरारती मुस्कान के साथ नरेश बोला, "क्या तुम जानती हो कि मोहम्मद बिन तुगलक से जुड़ी इसी घटना को लेकर एक और मुहावरा प्रचलित है 'तुगलकी फरमान' ?"

"ये तो बड़ी अच्छी जानकारी दी तुमने। इन दोनों मुहावरों का उपयोग तो लोग खूब करते हैं, लेकिन इससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्य बहुत कम लोग जानते होंगे।" नलिनी नरेश के सामने तिपाई पर रखा चाय का कप उठाते हुए बोली।

"सवाल इस बात का नहीं है नलू ! सवाल ये है कि क्या इतिहास एक बार फिर खुद को दुहरा रहा है?"

**************************************************


लघुकथा क्रमांक 29

जमीर
*****



"ये कैसी रिपोर्ट तैयार की है तुमने यादव जी ? विपक्ष से कोई सवाल नहीं, उल्टे सरकार को ही घेर लिया है। तुम्हारी यह रिपोर्ट दिखाकर हम मंत्री जी से पंगा नहीं ले सकते। जाओ, और इसे और सुधार कर ले आओ।" लैपटॉप बंद करते हुए चैनल के एडिटर ने रिपोर्टर को डाँट पिलाई।

"तस्वीरों को कैसे झुठलाया जा सकता है सर ? लोग नासमझ नहीं, सब समझते हैं,.. और फिर आम लोगों के मुद्दे उठाना ही तो असल पत्रकारिता है सर !" रिपोर्टर ने विनम्रता से अपनी बात कही।

"अच्छा,.. तो अब हमें पत्रकारिता भी तुमसे सीखनी होगी ?" एडिटर ने आँखें तरेरीं।

"सरकारी योजनाओं के बारीकियों की विस्तार से चर्चा करके उसके फायदों को हाईलाइट करो। जनता को यह समझाने का प्रयास करो कि होहल्ला मचाना तो विपक्ष का काम ही है। हमारा चैनल विज्ञापनों की कमाई से चलता है, जनता के रहमोकरम पर नहीं कि हम उनकी परवाह करें।" एडिटर ने बात साफ की।

"शुक्रिया सर, आपने बात साफ कर दी, लेकिन मैं अपने जमीर को मारकर जनता के भविष्य से खिलवाड़ नहीं कर सकता। विज्ञापनों से मिलनेवाली काली कमाई आप रख लीजिए और अपना जिंदा जमीर मैं रख लेता हूँ। ये रहा मेरा इस्तीफा।"

"लेकिन ..!"

अपने जमीर को मारकर अगर मैंने पूरे दुनिया की दौलत कमा भी ली, तो कभी खुद को दर्पण में नहीं देख सकूँगा, कभी खुद से नजरें नहीं मिला पाउँगा।" कहते हुए उसके निर्भीक कदम दफ्तर से बाहर की तरफ बढ़ गए।
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं सर।