ghost story books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेत कथा

एक शाम मैं कुछ लोगों के साथ बैठा था जो एक कार्यक्रम के बाद रुक गए थे। मुझे याद आता है कि वह कोई ध्यान का सत्र था। वे सब लोग मेरे इस कार्यक्रम में दूसरी या तीसरी बार आए थे और भारत के बारे में, मेरे विचारों के बारे में जानने या मेरे साथ सिर्फ कुछ वक्त बिताने के लिए बहुत उत्सुक थे। इसलिए मैंने ही उन्हें कुछ देर बातचीत करने के लिए रोक लिया था।
जिस केंद्र में यह सत्र आयोजित किया गया था वह मेरे आयोजक के घर, जहां मैं रुका हुआ था, से लगा हुआ ही था इसलिए वापस जाने की कोई जल्दी नहीं थी। आयोजक स्वयं घर जा चुकी थी मगर घर अधिक दूर नहीं था इसलिए हम वहाँ बैठकर गप्पें मारते हुए जब तक चाहें शाम गुज़ार सकते थे। ध्यान के समय जो धीमा संगीत चल रहा था उसके स्वर अभी भी जारी थे और हम सब दुनिया भर के दर्शनों पर चर्चा का आनंद ले रहे थे। तभी अचानक बिजली और संगीत बंद हो गए। और अगले ही क्षण दोनों फिर चालू हो गए। हम सब आश्चर्य से एक दूसरे को देखते रह गए।
भारत में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होती-बिजली की कटौती वहाँ आम बात है। मगर यहाँ, जर्मनी में मैंने आज तक पल भर के लिए भी बिजली जाते नहीं देखी, पूरे समय व्यवधान रहित बिजली मुहैया की जाती है। मेरे मित्रों ने कहा कि, खैर कभी कोई बहुत बड़ी समस्या आने पर ऐसा हो भी सकता है, मगर अपवाद स्वरूप ही ऐसा होता है। कुछ टूट गया होगा और उसे दूसरी लाइन से जोड़ने के लिए बिजली बंद करनी पड़ी होगी। कुछ पल के लिए इस कैफियत से हम सब संतुष्ट हो गए। हम फिर बातों मे मशगूल हो गए लेकिन दो मिनट बाद फिर फिर वही हुआ! हम फिर एक-दूसरे की तरफ ताकते हुए इंतज़ार करने लगे। ऐसा तीन बार हुआ तो यह सामान्य बात नहीं थी। क्या मामला है, देखने के लिए हम उठ खड़े हुए और सोचा अपने आयोजक से बात की जाए कि पहले भी कभी ऐसा हुआ है क्या?
जब हम ध्यान वाले कमरे से बाहर निकले हमें सामने वाला दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनाई दी और जब मैंने खिड़की से बाहर झाँककर देखा तो एक काला साया भागता दिखाई दिया। मैंने ध्यान से देखा तो उसका चलने का ढंग वगैरह देखकर मुझे लगा मैं उस आकृति को पहचान रहा हूँ- और लो, वह तो मेरी आयोजक ही लान पार करके अपने घर की तरफ जा रही थी! सामने पहुँचकर उसने दरवाजा खोला तो कमरे का प्रकाश उस पर पड़ा और मेरा शक दूर हो गया। निश्चय ही, मैं अकेला नहीं था जिसने उसे खिड़की से लान में दौड़ लगाते देखा था। कमरे में अजीब सा सन्नाटा छा गया।
सभी ने खिड़की के बाहर, दरवाजे से फ्यूज़-बॉक्स तक गौर से नज़र दौड़ाई; फ्यूज़-बॉक्स का दरवाजा जल्दबाज़ी में थोड़ा सा खुला रह गया था। मेहमानों से क्या कहा जाए, समझ में नहीं आ रहा था, मगर हमने अपनी बातचीत को वहीं विराम दिया और आपस में गुड-नाइट कहकर बिदा हो गए। जब सब चले गए मैं घर आया और देखा कि मेरी आयोजक शांति से बैठकर कोई किताब पढ़ रही है। उसने मुझे हेलो कहा और कुछ आश्चर्यचकित दिखाई देने की कोशिश करने लगी। मैंने सीधे सीधे पूछा, आपने मेन-स्विच से कमरे की बिजली क्यों बंद कर दी थी?
उसने फिर वही झूठा आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, नहीं, वह मैं नहीं थी! मैं तो पूरे समय यहीं थी! लेकिन मैं जानती हूँ… अब उसकी आवाज़ ज़रा धीमी हो गई- कभी-कभी ऐसा होता है यहाँ। मुझे लगता है कि कोई अतृप्त आत्मा है जो प्रकाश के लिए इधर-उधर भटकती रहती है! मुझे लगता है कि निश्चय ही मैं उस वक़्त भौचक रह गया होऊंगा और उसे अविश्वास और आश्चर्य से घूरता हुआ सोच रहा होऊंगा कि इस बात पर बहस करना मौजू होगा या नहीं। मैंने कोई बात न करना ही उचित समझा। अगर वह इतना बड़ा नाटक कर सकती थी तो अब अपनी बात से पीछे हटने वाली नहीं थी। इसलिए बहस में क्यों उलझा जाए?
मैंने विषय बदल दिया लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि मैं इन फिजूल की बातों पर बिल्कुल विश्वास नहीं करता। एक अनोखी अनुभूति मुझे हुई, एक मज़ेदार वाकया मेरे साथ हुआ था। एक और सीख मुझे मिली: सिर्फ अंधविश्वासी लोग ही दुनिया में नहीं बसते बल्कि अंधविश्वास को विश्वसनीय बनाने के लिए और उसे और आगे ले जाने के लिए कुछ लोग स्टंट भी कर सकते हैं!

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED