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मेरी जिन्दगी की एक सच्ची कड़वी हकीकत


शाम का समय था, मैं अपने गार्डन में बैठा ठंडी-ठंडी हवाओ का आनंद ले रहा था. आकाश में पंक्षी मंडरा रहे थे, सूरज ढलने को चल दिया था. मैं भी काफी देर से अकेला बैठा-बैठा बस यु ही अब बोर हो रहा था. अचानक मेरी पड़ोसी घर के तरफ गई. उनके घर में मिस्टर गुप्ता और उनकी पत्नी रहते थे, एक उनका लड़का भी था जो किसी दुसरे शहर में पढाई करता था. फिर ये लड़की, कौन है? शायद कोई रिश्तेदार होगी, ऐसा सोचकर मैंने अपने मन को मना लिया, पर जब मैंने दुबारा उस तरफ देखा तो वो लड़की वहाँ से जा चुकी थी. पता नहीं मेरे अंदर अजीब सी हलचल होने लगी, इन्ही सब बातो में अभी उलझा ही था की अचानक से माँ ने अंदर से आवाज दी – “बेटा विजय चाय तैयार है, मैं अंदर गया और गर्म-गर्म चाय का आनंद लिया, पर वो लड़की मेरी नजरो से जा ही नहीं रही थी. वो मेरे मन को भा गई थी. किसी भी तरह मैंने रात बिताई. फिर सुबह उठते ही गुप्ता जी के घर की तरफ चल दिया. ज्यो ही घर की बेल बजाई, त्यों ही दरवाजा खुला, मैं भौच्का सा रहा गया. सामने वही लड़की, बड़ी-बड़ी आँखे, लम्बे-लम्बे रेशम से बाल, गोरा रंग ऐसा लगता था. जैसे देखने वाले देखते रह जायेंगे.
वो दरवाजा खोली और चुपचाप अंदर चली गई. फिर गुप्ता जी आये. उनसे बातो ही बातो में पता चला की वो लड़की उनके बहन की बेटी थी. मैंने उनसे बोला – “वो इतना उदास क्यों रहती है.” मेरी बात को टालते हुए गुप्ता जी ने बात को बदल दिया. फिर मैंने भी ज्यादा पूछताछ नही किया और बाद में घर आ गया. मैं और मेरी माँ अकेले रहते थे. मैं जब 10 वर्ष का था तब पिताजी का देहांत हो गया था. माँ ने मुझे पढाया-लिखाया. आज मैं एक छोटे सी कंपनी में काम करता हूँ. मैंने उदास मन से माँ से कहा – “माँ जल्दी नाश्ता तैयार करो. माँ ने पूछा, इतना उदास क्यों है? मैंने यु ही कहकर टाल दिया.
पता नहीं क्यों उस लड़की का चेहरा मेरी नजरो से जा ही नहीं रहा था. हर वक्त उसी का ख्याल आ रहा था. शाम ढली, मैं घर आया और फिर गार्डन में बैठ था. गुप्ता जी के घर को एकटक से नजर टिकाये हुए था. एक बार उस लड़की का गुलाबी चेहरा दिख जाये, जिस पर मैं इतना आकर्षित होता चला जा रहा था. मैं अपने आप को बहुत बेचैन सा महसूस कर रहा था. बहुत सोचने के बाद मैंने तय किया की मैं गुप्ता जी के घर कल जाऊंगा और अपने मन की बात प्रकट करूँगा. अगले सुबह मैं जल्दी उठा. फ्रेश हो कर उनके घर की तरफ कदम बढाया. न जाने क्यों मेरा दिल तेजी से धडक रहा था. कदम आगे बढ़ नहीं पा रहे थे, मानो कोई पीछे खीच रहा हो, फिर भी मैं हिम्मत जुटा कर साहस के साथ उनके घर गया. उनके घर जाकर बैठा था तब तक वो लड़की चाय लेकर आई. गुप्ता जी ने उसका परिचय मुझसे करवाया. विजय जी ये मेरी भांजी किरण है और किरण ये मेरे पडोसी विजय जी है. मैं उसे के खयालो में डूबा हुआ था की गुप्ता ने मुझे कहा की जहाँ खो गये चाय पीजिये. मैंने कहा हां-हां. बहुत हिम्मत जूटा कर मैंने गुप्ता जी कहा की मैं आपकी भांजी किरण से शादी करना चाहता हूँ. आपको कोई आप्पति न हो तो मैं तैयार हूँ. यदि आपकी आज्ञा हो तो. गुप्ता जी जैसे सन्न से रहा गये. अचानक से पता नहीं क्या हुआ मेरी बातो से जैसे उनको झटका सा लगा और आँखों में आसू भरके मेरी तरफ एकटक से देखते रह गये. मैंने कहा “गुप्ता जी अगर कोई आपको परेशानी हो तो कोई बात नहीं, आप पहले सोच लीजिये. वे बिना कुछ जवाब दिए बस मेरे को निहारते रहे.
मैं भी कुछ बोल नहीं पा रहा था, फिर मैंने कहा की ठिक है तब मैं चलता हूँ, तभी अचानक से गुप्ता जी ने मुझे कहा ठहरिये-ठहरिये. मैं दुखी मन से रुक गया. बहुत देर बाद उन्होंने कहा की “क्या आप उस लड़की का सच्चाई जानने के बाद भी उसके साथ जिन्दगी बिताना चाहेंगे. मैं सहम सा गया और गुप्ता जी के मुहावरे का अर्थ समझने का प्रयास करने लगा. फिर मैं हिम्मत जुटा के पूछ लिया की कैसी सच्चाई.
“किरण कोई लड़की नहीं बल्कि एक विधवा है.” उन्होंने मेरे तरफ देखते हुए बोले. मैं सन्न सा रहा गया उन्होंने आगे बोलना जारी रखा “किरण की शादी कुछ साल पहले एक आर्मी मैन से हुई थी. अभी तो एक साल भी न हुए थे की देश की लड़ाई में उनकी जान चली गई. किरण की जिन्दगी से जैसे मानो उजाले की किरण चली गई. अब वो अकेले रह गई थी. बहुत दिक्कतों के बाद वो इतना सम्भल पाई है और जैसे-तैसे उन बातो को भूल पाई है. फिर से मैं उन यादों को ताज़ा नहीं करना चाहता” भरे हुए गले से बोल रहे थे. मैं उनकी आँखो में देख सकता था, और समझ सकता था उनलोग के दर्द को.
मैं उदास मन से घर लौट आया और लेट गया. मैं समझ नहीं पा रहा था की क्यां करू, माँ से कहूँगा तो वो तैयार नहीं होगी. आखिर मैं भी तो उसका एक ही बेटा था. उसकी भी कुछ सपने थे अपने बेटे से. मगर मैं सोच लिया था माँ को सब कुछ बता दूंगा. कोई गलत काम नहीं कर रहा था मैं. जैसे-तैसे दबे पावं मैं माँ के कमरे में गया. माँ मेरा ही इतंजार कर रही थी. जाते ही पूछी “कहा चले गये थे? कब से नास्ता लगा कर wait कर रही हूँ.”

“गुप्ता जी के यहाँ गया था,” मैं उनके पास जाकर बैठते हुए बोला – “माँ एक बात बोलू?”

“हां बोलो क्या बात है.” वो नास्ता मेरे पास लाती हुए बोली. फिर मैं माँ से सारी बाते बता दी.

पहले तो माँ बहुत ही गुस्से से मेरे तरफ देखी. पर मैं माँ को बहुत समझाया. किसी का घर बसाना गलत नहीं है और जो हुआ उसमे उसकी क्या गलती है. यह किसी के साथ हो सकता है. उसे भी अपनी जिन्दगी जीने का हक़ है. समाज तो बस अपने बारे में सोचता है. किसी से दुःख से किसी को क्या मतलब है और किरण उस समाज का बोझ अपने ऊपर लिए जिन्दगी गुजार रही है. जब लड़के की पत्नी मर जाये तो उसके कुछ महीने बाद ही वो शादी कर लेता है, तो एक लड़की क्यों नहीं कर सकती? फिर माँ मेरी बात सुनकर मान गई.
मैं अपनी माँ को लेकर गुप्ता जी के घर पंहुचा और अपनी सारी बाते उनके सामने रख की. माँ, गुप्ता जी से बाते करने लगी. वो भी उन्हें समझाने का प्रयास करने लगी –“ क्या हुआ अगर वो विधवा है उसमें उसका तो दोष नहीं या अवगुण नहीं है. क्या उसको अपनी जिंदगी दुबारा जीने का अधिकार नहीं है.? माँ की मुख से ऐसा सुनकर मैं दंग रह गया और मन-ही-मन माँ को धन्यवाद दे रहा था. गुप्ता जी भला कैसे तैयार नहीं होते जिसमे उनकी भांजी किरण की उजड़ी हुई जिन्दगी को नई राह मिल जाये.
आज मैं धूमधाम से किरण के साथ अपनी पांचवी सालगिरह मना रहा था. मैं बहुत भाग्यसाली था जो मुझे किरण जैसी पत्नी मिली. मेरे दो बच्चे भी है. मैं आज गुप्ता जी का बहुत आभारी हूँ. हमलोग बहुत खुश है एक-दुसरे के साथ.

यही मेरी जिन्दगी की एक सच्ची कडवी हकीकत है।

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