रामरति ने ये बात मोहल्ले के कोने कोने तक फैला और अब ये खबर उड़ती उड़ती मिसराइन तक भी पहुँच गई थीं और उसने मन में सोचा....
"अच्छा! तो अब "सौ चूहे खाके बिल्ली हज़ को चली",खुद कुकर्मिन होकर दूसरों को ज्ञान देती फिरती, अब मैं उसे ऐसा मज़ा चखाऊँगी कि जिन्दगी भर याद रखेगीं,बड़ी शरीफजादी बनी फिरती है,अब इसकी अकड़ तो मैं निकालूँगी"
और मिसराइन तो मौके की ताक में थी और फिर दूसरे दिन शाम को सरगम को देखने गिरिजेश तिवारी अपने बड़े बेटे,बड़ी बहू,पत्नी और छोटे बेटे सर्वेश के साथ शास्त्री जी के घर आए तो शास्त्री जी और राधेश्याम ने उनका स्वागत किया,सरगम ने अच्छा सा चाय नाश्ता तैयार करके उनके सामने परोसा तो उन सभी को नाश्ता बड़ा पसंद आया और जब सरगम उनके सभी के सामने राधेश्याम की माँ शीलवती जी की सुआपंखी रंग की साड़ी पहनकर पहुँची तो उसकी खूबसूरती ने सर्वेश और उसके घरवालों का मन मोह लिया,सरगम को भी सर्वेश पसंद आ गया था,इसलिए शास्त्री जी ने देर ना करते हुए रिश्ता पक्का कर दिया तब लड़के के पिता शास्त्री जी से बोले...
"शास्त्री जी! अब आप सगाई की तारीख जल्दी से पक्की कर लीजिए,क्योंकि हम अब और इन्तज़ार नहीं कर पाऐगें,सरगम जितनी जल्दी बहू बनकर हमारे घर आ जाएं तो ही अच्छा",
"मैं भी यही चाहता हूँ तिवारी जी! अब इस शुभ कार्य में देर नहीं होनी चाहिए",शास्त्री जी बोलें...
"तो फिर कोई अच्छा सा मूहूर्त देखकर सगाई की रस्म कर देते हैं",लड़के की माँ बोली....
"हाँ! बहनजी! बस जल्द ही अच्छा सा मुहूर्त देखकर आपको बताता हूँ",शास्त्री जी बोलें...
"जी! तो फिर अब हम चलते हैं,मूहूर्त निकलते ही हमारे पास खबर पहुँचवा दीजिएगा",गिरिजेश तिवारी जी बोले...
"तिवारी जी!मैं आपसे कुछ कहना चाहता था लेकिन संकोचवश कह नहीं पा रहा हूँ",शास्त्री जी बोलें...
"जी! कहिए शास्त्री जी! इसमें संकोच की क्या बात है?,गिरिजेश तिवारी जी बोलें...
"वो क्या है ना कि मेरे पास देने के लिए बहुत कुछ तो नहीं है लेकिन अगर आपलोगों की कोई खास फरमाइश हो तो मैं उसे पूरी करने की जरूर कोशिश करूँगा",शास्त्री जी बोलें..
"कहीं आपका मतलब दहेज से तो नहीं है",गिरिजेश तिवारी जी ने पूछा...
"जी! मेरा यही मतलब था",शास्त्री जी बोलें....
तब गिरिजेश तिवारी बोलें....
"अरे! नहीं शास्त्री जी! ऐसा कहकर आप हमें पाप का भागीदार मत बनाइए,भगवान का दिया हमारे पास बहुत कुछ है,दोनों बेटे भी कमाते हैं,बड़ी बहू भी सुशील और सुघड़ निकली ,बस हम यही चाहते हैं कि छोटी बहू भी हमारे घर आकर अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से सम्भाल लें और हमें इसके सिवाय कुछ नहीं चाहिए"
"तो फिर मैं ये रिश्ता पक्का समझूँ",शास्त्री जी ने पूछा...
"और क्या? अब और कोई गुन्जाइश बची ही नहीं है", गिरिजेश तिवारी बोलें....
और तिवारी जी शास्त्री जी के गले लगे फिर मिसेज तिवारी ने सरगम के हाथ पर शगुन रखा ,फिर वें सभी विदा लेकर घर से बाहर आएं ,उन सभी को बाहर तक छोड़ने राधेश्याम और शास्त्री जी भी बाहर आएं और तभी मिसराइन अपने घर से बाहर निकली और तिवारी जी की कार को देखकर शास्त्री जी से बोली....
"शास्त्री जी! लगता है आपके घर में मेहमान आएं हैं",
"हाँ!काकी!",राधेश्याम ने जवाब दिया...
"कहीं सरगम को देखने लड़के वाले तो नहीं आए",मिसराइन बोली....
"काकी!आप भीतर जाइए ना! आपको मैं बाद में सब बताता हूँ",राधेश्याम बोला...
"तुम क्या बताओगे राधेश्याम? पूरे मोहल्ले को उस सरगम की करतूतें पता हैं",मिसराइन बोली...
"ये क्या कहती हो काकी! मेहमानों के सामने ये सब क्या बोल रही हो",?,राधेश्याम बोला....
"मेहमान हैं सामने तभी तो बोल रही हूँ"मिसराइन बोली...
"मिसराइन! क्यों गजब ढ़ा रही हो,मेहमानों के सामने तमाशा मत करो",शास्त्री जी बोलें...
"तमाशा तो आप कर रहे हैं शास्त्री जी!,जो एक बदचलन लड़की को घर में रख रखा है", मिसराइन बोली...
"क्या बकवास कर रही हो मिसराइन"? बहुत हो गया,अब मेरे सबर का और इम्तिहान मत लो", शास्त्री जी गुस्से से बोलें...
"मैनें कुछ गलत तो नहीं कहा शास्त्री जी! क्या वो लड़की बिनब्याही माँ नहीं बन चुकी है,ये अलग बात है कि वो बच्चा नहीं रहा",मिसराइन बोली...
"काकी! अब बस बहुत हो गया,अब एक भी अशब्द बोला सरगम जी के खिलाफ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा",राधेश्याम मिसराइन से बोला...
"अरे...जा..जा...तू उसकी ज्यादा तरफदारी मत कर,क्या पता उसने तुझे भी फँसा रखा हो"?,मिसराइन बोली...
"काकी! अब बस भी करो बहुत हो गया",राधेश्याम बोला...
"ना तू दूध का धुला है और ना वो दूध की धुली है,भीतर घुसकर ना जाने तुम दोनों क्या क्या रंगरलियाँ मनाते होगे?," मिसराइन बोली....
"ये सब झूठ है मिसराइन! ये बात तुम्हारे दिमाग में किसने डाली",शास्त्री जी ने पूछा...
"और कौन बताएगा शास्त्री जी! रामरति ने ये सब कल शाम खुद अपने कानों से सुना है",मिसराइन बोली...
"अच्छा!तो ये आग रामरति ने लगाई है,आने दो उसे ,मैं आज उसकी अच्छे से खबर लूँगा",शास्त्री जी बोले....
"रामरति को क्यों कहते हो शास्त्री जी!,खोट तो उस लड़की में है,जिसे आपने अपने घर में पनाह दे रखी है", मिसराइन बोली...
"बस !बहुत हो चुका काकी! मैं बहुत देर से आपकी बकबक सुन रहा हूँ",राधेश्याम गुस्से से बोला...
"तू क्यों अपना जी जला रहा है उस पराई लड़की के लिए?,कहीं ऐसा तो नहीं कि तेरा दिल भी उस पर आ गया हो,वो लड़की है ही ऐसी,कलमुँही कहीं की,यहाँ वहाँ मुँह मारती फिरती है,क्या पता तेरे सिवाय और ना जाने किस किस को फँसा रखा हो उसने",मिसराइन बोली....
"काकी!बस अब बहुत हो चुका,चुप हो जाओ नहीं तो मैं कुछ कर बैठूँगा",राधेश्याम गुस्से से बोला...
ये सब बातें सरगम भी भीतर से सुन रही थी और अब उससे ये सब सुना नहीं जा रहा था ,इसलिए उसने अपने हाथ अपने कानों पर रख लिए और फूट फूटकर रो पड़ी ....
"क्या कर लेगा तू"?,मिसराइन ने पूछा...
और तभी उस झिकझिक को देखकर गिरिजेश तिवारी बोलें...
"शास्त्री जी! माँफ कीजिए,हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं,जिस लड़की के लक्षण ऐसे हो तो हम वहाँ अपने लड़के का रिश्ता कैसें कर सकते हैं",?
और फिर गिरिजेश तिवारी सपरिवार अपनी कार में बैठकर अपने घर चले गए और मिसराइन चाहती भी यही थी,इसलिए उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई और उसकी मुस्कान देखकर राधेश्याम के तन बदन में आग लग गई और वो मिसराइन से बोला...
"काकी! लो अब पड़ गई ना तुम्हारे कलेजे में ठण्डक,तुम यही चाहती थी ना!",
"हाँ! मैं यही चाहती थी ,मैं भी देखती हूँ कि शास्त्री जी सरगम की शादी कैसें कर पाते हैं?,मैं उस लड़की की सारी हेकड़ी निकाल दूँगीं" मिसराइन बोली...
"तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगी काकी"?,राधेश्याम बोला...
"तो क्या तू करेगा उस कुलच्छनी से शादी"?,मिसराइन ने पूछा...
"ये क्या कह रही हो काकी?",राधेश्याम चीखा...
"बस इतने में ही हालत खस्ता हो गई,मुझे मालूम है कि ऐसी लड़की से तू क्या ,कोई भी शादी नहीं करना चाहेगा",मिसराइन बोली...
"अगर ऐसी बात है तो मैं ही शादी करूँगा सरगम जी से,अब देखता हूंँ कि कौन मुझे सरगम जी से शादी करने से रोकता है",राधेश्याम गुस्से से बोला...
"राधेश्याम! ये क्या बक रहा है तू",? शास्त्री जी बोले....
"अपने बेटे की बात आई तो चीख पड़े शास्त्री जी! और अभी कुछ देर पहले तुम किसी और के लड़के से उस कुलच्छनी सरगम की शादी कराने चले थे ना!"मिसराइन बोली...
"अगर ऐसी ही बात है तो अब सरगम की शादी राधेश्याम से ही होगी",
और ऐसा कहकर शास्त्री जी राधेश्याम का हाथ पकड़कर घर के भीतर चले गए और दरवाजे पर खड़ी भीड़ के मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....