शास्त्री जी राधेश्याम के संग घर के भीतर पहुँचे तो सरगम उनसे रोते हुए बोली...
"आखिर मेरी बदनामी जगजाहिर हो ही गई बाबा! इसलिए मैं शादी नहीं करना चाहती,मेरी वजह से आज आपकी भी इतनी बेइज्जती हुई,मैं पापन हूँ बाबा! और आपके इस पवित्र घर में रहने का मुझे कोई अधिकार नहीं",
"नहीं!बिटिया!ऐसा ना बोल,तू पापन नहीं हैं,पापी तो वें हैं जो तुझे समझ नहीं पाए और तेरे बारें में पूरे मोहल्ले में अफवाह फैला दी",शास्त्री जी बोलें...
"बाबा!ये अफवाह नहीं! ये तो सच है,उन लोगों ने सच ही तो कहा है मेरे बारें में,मैं बिनब्याही माँ बनी तो थी,कुछ गलत नहीं कहा किसी ने,मुझसे पाप हुआ तो था",सरगम बोली...
"सरगम जी! आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं?,मैनें उन लोगों का मुँह बंद करा दिया है,अब वें आपसे कुछ भी नहीं कहेगें",राधेश्याम बोला...
"तो क्या आप सच में मुझसे शादी करेगें",?,सरगम ने राधेश्याम से पूछा...
"जी! हाँ! बाबा ने सबके सामने तो यही कहा है",राधेश्याम बोला...
"बाबा के कहने से क्या होता है राधेश्याम जी! आप अपने दिल से पूछकर मुझे जवाब दें कि क्या आप मुझ जैसी लड़की से शादी करना चाहेगें",सरगम ने पूछा...
"सरगम जी इसमें अपने दिल से पूछने वाली बात कौन सी है? अगर ये शादी आपकी बदनामी होने से रोक सकती है तो फिर हो जाने दीजिए इस शादी को",राधेश्याम बोला...
"मेरी बदनामी वाली बात नहीं है राधेश्याम जी! आप समाज के दबाव में आकर मुझसे शादी ना करें,मैं आपके लायक नहीं हूँ,मैं जूठी थाली हो चुकी हूँ जो किसी के भी खाने के लायक नहीं है",सरगम बोली...
"ऐसी बात नहीं सरगम जी! मुझ पर किसी का दबाव नहीं है, मैं ये शादी अपनी मर्जी से कर रहा हूँ",राधेश्याम बोला...
"लेकिन मैं आपसे शादी करके आपका जीवन बर्बाद नहीं कर सकती",सरगम बोली...
"आप ऐसा क्यों सोचतीं हैं सरगम जी?",राधेश्याम बोला...
तब सरगम बोली...
"मैं ऐसा ना सोचूँ तो क्या करूँ राधेश्याम जी! क्योंकि मेरी लाख कोशिशों के बाद भी मेरी बदनामी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी,कहीं ना कहीं से आकर वो मुझे ढ़ूढ़ ही लेगी,जैसे अभी ढूढ़ लिया,शादी कोई मजाक नहीं है,ना तो गुड्डे गुड़ियों का खेल है,ये जीवन भर का नाता है और कभी भविष्य में हमारे आपके बीच ये बात आ गई और इस बात को लेकर कभी हम दोनों के बीच कोई कहा सुनी हो गई तो तब तो मैं जीते जी ही मर जाऊँगी",
"ऐसा कभी नहीं होगा सरगम जी! मैं आपसे वादा करता हूँ",राधेश्याम बोला...
"आप जिद मत कीजिए राधेश्याम जी! मैं आपसे शादी नहीं कर सकती",सरगम बोली...
अब जब राधेश्याम और सरगम के बीच बहस खतम ना हुई तो मजबूर होकर शास्त्री जी को बीच में बोलना ही पड़ा और वें बोलें...
" बेटी! इस शादी के लिए कोई जल्दबाजी नहीं है,तू पहले ठण्डे दिमाग से खूब सोच ले,फिर फैसला कर,क्योंकि ये जल्दबाजी में लेने वाला फैसला नहीं है",
"लेकिन बाबा! आप राधेश्याम जी की शादी किसी और से भी तो करा सकते हैं,मैं अभागन उनके लायक नहीं हूँ",सरगम बोली...
"बिटिया! मैं कौन होता हूँ,ऐसा कोई भी फैसला लेने वाला, शायद ये भगवान का फैसला हो और उन्होंने तुम्हारे भाग्य में यही लिख रखा हो",शास्त्री जी बोलें...
"बाबा!मैं क्या करूँ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा",सरगम बोली...
"अभी तुझे कुछ समझने की जरुरत भी नहीं है,अभी तू आराम कर,ये सब बातें बाद में होगीं,अभी सबके दिमाग उलझन से भरे हुए हैं,इसलिए अभी इस मामले को सुलझाना किसी के भी वश की बात नहीं है,सभी अपने अपने कमरें में जाकर आराम करो,इस मसले को बाद में हल किया जाएगा",शास्त्री जी बोलें...
और फिर उस रात सभी उस बहस के बाद अपने अपने कमरों में सोने चले गए,सुबह सरगम देर तक बिस्तर पर लेटी रही,क्योंकि उसका मन ही नहीं था उठने का,वैसे भी उस दिन इतवार था और उसके स्कूल की छुट्टी थी,इतने बवाल के बाद राधेश्याम का मन भी नहीं था काम पर जाने का इसलिए उस दिन वो भी नहीं गया,लेकिन शास्त्री जी को तो मंदिर के कपाट खोलकर पूजा अर्चना करनी ही थी इसलिए वें मजबूरी में स्नान करके मंदिर गए और वहाँ की आरती के बाद मंदिर में भी वही चर्चा हो रही थी,जिसे सुनकर शास्त्री जी का मन खराब हो गया,एक दो ने तो उनसे सरगम के बारें में उनसे पूछा भी,लेकिन शास्त्री जी उन लोगों के सवालों का जवाब दिए बिना ही घर लौट आएँ और चूल्हा सुलगाकर उस पर चाय चढ़ा दी...
जब चाय बन गई तो उन्होंने राधेश्याम को आवाज दी,राधेश्याम उनके पास आकर बोला....
"जी!बाबा!"
तब शास्त्री जी राधेश्याम से बोले...
"बेटा ! जा जरा सरगम को यहीं बुला ला,रातभर बेचारी चिन्ता से सो ना पाई होगी,हम लोगों के साथ बैठकर चाय पिऐगी तो उसे अच्छा लगेगा"
और फिर शास्त्री जी के कहने पर राधेश्याम सरगम को बुलाने उसके कमरें के पास पहुँचा,कमरें के पास जाकर उसने कमरे के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा....
"सरगम जी! आपको बाबा बुला रहे हैं",
तब सरगम भीतर से बोली...
"मेरा बाहर आने को मन नहीं कर रहा",
"ठीक है कोई बात नहीं", और ऐसा कहकर राधेश्याम वहाँ से चला आया...
फिर शास्त्री जी ने भी सरगम को दोबारा बुलाने की कोशिश नहीं की,कुछ देर में बाप बेटे ने चाय पीकर खाना भी चढ़ा दिया फिर कुछ देर बाद सरगम अपने कमरें से निकली और कुछ देर में वो नहाकर रसोईघर में आई और रसोईघर की हालत देखकर उसका सिर चकरा गया,क्योंकि दोनों बाप बेटे रसोईघर को बहुत बुरी तरह से फैला दिया था,तब सरगम बोली...
"आपलोगों ने केवल थोड़ी ही देर में रसोईघर का क्या हाल बना दिया",?
"अब तू हमारी चिन्ता मत कर बिटिया! अब हम बाप बेटे तो इसी तरह रहने वाले हैं", शास्त्री जी बोले...
"वो क्यों भला"?,सरगम ने पूछा...
"वो इसलिए कि तू अब ये घर छोड़ जो रही है",शास्त्री जी बोले...
"ये मैनें कब कहा कि मैं ये घर छोड़कर जा रही हूँ",सरगम बोली...
"तो इसका मतलब है कि तू राधेश्याम से शादी करेगी",शास्त्री जी बोले...
"बाबा! फिर वही जिद",सरगम बोली....
"ठीक है जा नहीं करता जिद! रोटी बनाकर खिलाएगी या हम बाप बेटे खुद ही रोटी सेंककर खा लें", शास्त्री जी बोले...
"चलिए!आप दोनों रसोई से बाहर जाइए,मैं सेकती हूँ रोटी,क्या हाल बना दिया हैरसोई का ,ये रसोई कम कबाड़खाना ज्यादा लग रही है",सरगम बोली....
"हाँ!रसोई थोड़ी फैल गई है,वो हमलोगों ने दाल और आलू बैंगन की भुजिया बना दी है,तू रोटी सेंक दे",शास्त्री जी बोले...
"हाँ! पहले मैं रसोई समेट दूँ,तब रोटी सेकूँगी,मुझसे ऐसे में रोटी ना बनाई जाएगी",सरगम बोली...
और फिर दोनों बाप बेटे मुस्कुराते हुए रसोई से बाहर निकल गए और सरगम ने रसोई समेटकर रोटी सेकी और दोनों को खाने के लिए बुला लिया,दोनों जनो ने रसोई में बैठकर खाना खाया फिर सरगम ने भी अनमने मन से जैसे तैसे दो रोटी निगली और फिर वो सारे बर्तन आँगन में लेकर माँजने बैठी क्योंकि शास्त्री ने सुबह रामरति को घर में घुसने नहीं दिया था और वें किसी और कामवाली को ढ़ूढ़ रहे थे....
जब सरगम आँगन में ढ़ेर सारे बर्तन माँजने बैठी तो राधेश्याम भी वहाँ आकर सरगम की मदद करवाने लगा,उसने आँगन में लगे हैंडपम्प से बरतन धोने के लिए दो बाल्टियांँ भरकर सरगम के पास रख दीं और खुद भी सरगम के साथ बर्तन धुलवाने लगा,तब सरगम उससे बोली...
"राधेश्याम जी! आप रहने दीजिए,मैं कर लूँगी",
"आपको बरतन माँजने की आदत नहीं है,मैं धुलवा देता हूँ बर्तन,आपकी थोड़ी मदद हो जाएगी" राधेश्याम बोला...
"नहीं ! रहने दीजिए ना!,मेरे रहते आप काम करें,ये मुझे अच्छा नहीं लगेगा",सरगम बोली....
"कोई बात नहीं सरगम जी! आप कहाँ इतने सारे बरतन धोतीं रहेगीं",राधेश्याम बोला...
"जैसी आपकी मर्जी",सरगम बोली...
और वें दोनों यूँ ही काम करते रहे,उन्हें साथ में देखकर शास्त्री जी को भी अच्छा लग रहा था और वें मन में सोचने लगे,ये बात उन्हें पहले क्यों नहीं सूझी,वें पहले ही राधेश्याम से सरगम की शादी करा देते तो इतना झमेला ही खड़ा नहीं होता...
क्रमशः.....
सरोज वर्मा....