शास्त्री जी मिसराइन वाली बात को लेकर काफी परेशान थे,रात को जब उन्होंने ठीक से खाना नहीं खाया तो सरगम को महसूस हुआ कि बाबा को उसका यूँ सुनन्दा भाभी को उकसाना अच्छा नहीं लगा ,इसलिए जब शास्त्री जी खाना खाकर अपने कमरें में चले गए तो राधेश्याम को खाना खिलाने के बाद सरगम ने भी खाना खाया और फिर सरगम ने राधेश्याम से कहा...
"लगता है बाबा को मिसराइन काकी के परिवार के बीच में मेरा पड़ना अच्छा नहीं लगा,तभी वें इतने परेशान हैं",
"मुझे भी ऐसा ही लगता है",राधेश्याम बोला...
"तो अब मैं क्या करूँ? मैं बाबा को यूँ मेरी वजह से परेशान नहीं देख सकती",सरगम बोली...
"लेकिन वहाँ मोहल्ले का कोई भी इन्सान मिसराइन काकी को कुछ भी नहीं बोल रहा था,सुनन्दा भाभी को हिम्मत दिलाना जरूरी था,नहीं तो वें लोग हमेशा उन पर जुल्म करते रहते,आपने बीच में बोलकर गलत नहीं किया",राधेश्याम बोला....
"लेकिन बाबा तो गुस्सा हो गए ना!",सरगम बोली...
"हाँ! ये बात तो है",राधेश्याम बोला...
"अब डर के मारे मुझे उनके कमरें में उनको दूध देने जाने की हिम्मत नहीं हो रही है",सरगम बोली...
"लाइए!बाबा को दूध आज मैं दे आता हूँ",राधेश्याम बोला...
"हाँ! यही ठीक रहेगा",सरगम बोली...
"हाँ!और मैं उनको समझा भी दूँगा",राधेश्याम बोला...
"आप क्या समझाऐगें उन्हें,वें बहुत नाराज हैं मुझसे ,कहीं आपसे भी नाराज हो गए तो"?,सरगम बोली...
"मुझे तो उनकी डाँट खाने की आदत है,आपकी खातिर एक डाँट और सही",राधेश्याम बोला....
"ठीक है! ये रहा दूध! आप उनके कमरें में इसे लेकर चले जाइए",,
सरगम ने राधेश्याम को दूध का गिलास थमाते हुए कहा और फिर राधेश्याम ,शास्त्री जी के कमरें में दूध लेकर पहुँचा और उनसे बोला....
"बाबा! ये लीजिए!दूध पी लीजिए"
"आज तू दूध लेकर आया है,सरगम बिटिया क्यों नहीं आई"?,शास्त्री जी ने पूछा...
"बाबा!वें आपसे डर रहीं थीं",राधेश्याम बोला...
"मुझसे क्यों डर रही थी पगली"!,शास्त्री जी ने पूछा...
"वो आज मिसराइन काकी के परिवार के झगड़े में पड़ गईं इसलिए ",राधेश्याम बोला....
तब शास्त्री जी बोलें....
"बेटा! वो मिसराइन अच्छी औरत नहीं है,लोग कहते हैं कि उनके पति गिर्वाणदत्त मिश्रा जी अच्छे इन्सान थे और वें मिसराइन को गलत बात कहने के लिए और गलत काम करने के लिए टोकते थे इसलिए मिसराइन ने मिश्रा जी को जहर देकर मार दिया था और सबसे कह दिया था कि वें हैजे से मर गए,ये तेरे बचपन की बात है,तब तेरी माँ भी जिन्दा थी,मिसराइन के पास जमीन की कमी नहीं है,मिश्रा जी के पास सैंकडों बीघा जमीन थी,जो उन्हें विरासत में मिली थी,अब वो सैकड़ों बीघा जमीन मिसराइन की है,उसे ही बटिया पर दे रखा है,सो खूब गेहूँ-गल्ला आता है जिसे बेचकर उसका गुजारा चलता है,लड़के को भी निखट्टू की तरह घर में बैठा रखा है,कोई मोहल्ला वाला अगर उसे कुछ बोलता है तो फिर वो उसकी सातों पुश्तें याद दिलवा देती है,ऐसी है वो औरत ,इसलिए सरगम का उससे उलझना ठीक नहीं है,जवान लड़की है सरगम ,कहीं वो उस पर कोई लान्छन लगा दे तो भी फिर मैं क्या करूँगा,ऊपर से लड़की पराई है और अनाथ भी है,इसलिए सोचता हूँ कहीं कोई अच्छा सा लड़का मिल जाए तो फौरन ही उसके हाथ पीले करके अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाऊँ",
"आप इतना सोचते हैं सरगम जी के बारें में",राधेश्याम ने पूछा...
"हाँ! बेटा! सयानी बिटिया माँ बाप के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है",शास्त्री जी बोलें...
"ओह...इसलिए आप इतने परेशान रहते हैं उनके बारें में सोचकर",राधेश्याम बोला...
"हाँ! मैनें दो तीन लोगों से कह रखा है,अगर कोई ढंग का लड़का मिल जाता है तो फौरन रिश्ते की बात चलाता हूँ",शास्त्री जी बोलें...
"ये सही किया आपने",राधेश्याम बोला....
और फिर इसी तरह पिता बेटे के बीच बातें होतीं रहीं और फिर राधेश्याम शास्त्री जी के कमरे से बाहर आकर सरगम से बोला...
"सरगम जी! बाबा आपसे नाराज नहीं है,वें तो इसलिए परेशान हो रहे थे कि मिसराइन काकी कल को कहीं आपसे इस बात का बदला ना लेने लग जाए,क्योंकि बाबा कह रहे थे कि वें ठीक औरत नहीं हैं और भी बहुत कुछ बताया उन्होंने ने मिसराइन काकी के बारें में",
"ओह...तब तो ठीक है कि बाबा मुझसे नाराज नहीं हैं,अब मैं चैन से सो पाऊँगी",
और ऐसा कहकर सरगम अपने कमरें में चली गई....
और इसी तरह एक शाम शास्त्री जी एक खुशखबरी लेकर घर पहुँचे फिर राधेश्याम और सरगम से बोलें....
"एक खुशखबरी लाया हूँ,",
"वो क्या"?,सरगम ने पूछा...
"बेटी! मेरी जान पहचान के जज है गिरिजेश तिवारी और उनका बेटा सर्वेश तिवारी भी वकील है,मैनें उनसे तेरे रिश्ते की बात चलाई थी और वें राजी भी हो गए और पूरा परिवार कल ही तुम्हें देखने आ रहा है",शास्त्री जी बोलें....
रिश्ते की बात से सरगम सन्न सी रह गई और शास्त्री जी से बोली...
"बाबा!आपको मुझसे एक बार पूछना तो चाहिए था कि मैं शादी करना भी चाहती हूँ या नहीं"
"क्यों बिटिया? तू क्या मुझे अपना बाबा नहीं समझती जो ऐसा कह रही है या तेरे मन में कोई और है",शास्त्री जी बोले...
"नहीं! बाबा! ऐसी कोई बात नहीं है,मेरे मन में भी कोई और नहीं है,आपने तो हमेशा मुझे सगे पिता की तरह प्यार और सम्मान दिया है,अब आप ही मेरे सबकुछ हैं, सरगम बोली...
"तो फिर तू ऐसा क्यों कहती है बिटिया"?,शास्त्री जी ने पूछा...
"वो इसलिए कि आप मेरे अतीत के बारें में कुछ भी नहीं जानते",सरगम बोली...
"मुझे और नहीं जानना तेरे अतीत के बारें में,तूने सबकुछ तो बता दिया था",शास्त्री जी बोलें...
"लेकिन बाबा! एक बात नहीं बता पाई",सरगम बोली...
"वो बात क्या है बिटिया",? शास्त्री जी ने पूछा....
"हाँ! आज मैं भी आपसे वो बात बताना चाहती हूँ,अब मैं आपको और अँधेरे में नहीं रखना चाहती,अगर आज मैं आपसे वो बात नहीं कह पाई तो फिर कभी नहीं कह पाऊँगी", सरगम बोली....
"बोलो बिटिया! बताओ कि क्या बात है",? शास्त्री जी बोलें....
"मुझे मालूम है कि आप वो बात सुनकर मुझे घर से निकाल देगें और मेरा मुँह भी देखना पसंद नहीं करेगें", सरगम बोली...
"कहिए ना! सरगम जी कि क्या बात है",? राधेश्याम भी बोला...
और फिर तब सरगम ने आदेश के साथ उसके रिश्ते वाली बात राधेश्याम और शास्त्री जी को बता दी और ये भी बताया कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई थी और जिसकी वो सजा भी भुगत चुकी है,उसकी बात सुनकर शास्त्री जी बोले....
"बिटिया! तू ने कोई पाप नहीं किया,तू तो अब भी मेरी नजरों में गंगा की तरह पवित्र है,पापी तो वो था जिसने तुझ मासूम के साथ छल किया ,धोखा किया और वो अब बीती बातें हो चुकीं हैं,क्यों अपने अतीत की काली परछाई को सामने लाकर अपना वर्तमान और भविष्य खराब करना चाहती है,सर्वेश अच्छा लड़का है,मैनें उसे खुद अपनी आँखों से देखा है,सज्जन,मृदुभाषी और खूबसूरत", बेटी अतीत की काली परछाई को अब अपने सामने मत लाने दें,अभी तेरी सारी जिन्दगी तेरे सामने पड़ी है,मैं कब तक तेरी देखभाल के लिए जिन्दा रहूँगा ?,आगें भविष्य में तुझे सहारे की जरूरत पड़ेगी तो फिर किसका मुँह ताकती रहेगी,किसकी बाट जोहती रहेगी,तेरा घर बस जाएगा तो मैं भी निश्चिन्त हो जाऊँगा और चैन से मर सकूँगा",
तब सरगम बोली...
"बाबा! मरने की बात मत बोलो,मैं दोबारा अपने पिता को नहीं खोना चाहती"
"तो मानेगी ना! मेरा कहा,करेगी ना शादी",शास्त्री जी बोलें...
"जैसा आपको ठीक लगें",सरगम बोली...
"तो ठीक है कल शाम को सुन्दर सी साड़ी पहनकर तैयार रहना",शास्त्री जी बोलें...
"लेकिन मेरे पास तो कोई भी साड़ी नहीं है",सरगम बोली...
"अरे! शीलवती की बहुत सुन्दर सुन्दर बनारसी साड़ियाँ रखीं हैं उनमे से कोई पहन लेना,कुछ गहने भी रखें होगें उसके, वो भी पहन लेना,मेरे कमरें में जो लोहे का सन्दूक रखा है,उसमें रखा है सबकुछ,ये रही चाबी जो पसंद आए सो निकाल लेना",शास्त्री जी सरगम को चाबी देते हुए बोलें....
फिर यूँ ही सभी बात करते रहे...
और उसी समय रामरती भी शास्त्री जी के घर पहुँची,दिनभर के जूठे बर्तन माँजने और जब शास्त्री जी और सरगम के बीच ये सब बातें चल रहीं थीं तो वो घर के भीतर ना गई और उन की बातें दरवाजे के पीछे खड़ी होकर सुनने लगी और जो उसने सुना वो मुहल्ले भर में सरगम के खिलाफ आग लगाने के लिए काफी था,उस शाम वो शास्त्री जी के घर बर्तन माँजने घर के भीत ना गई लेकिन और दूसरे घरों में बर्तन माँजने जरूर पहुँची क्योंकि उसे वो बात सबके घरों तक जो फैलानी थी......
क्रमशः....
सरोज वर्मा....