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बहेलिया

बहेलिया –मानवीयता का दस्तावेज़

                      यशवंत कोठारी

संवाद-हीनता व संवेदन शून्यता के इस संक्रमण काल में मानवीयता की चर्चा करना या मानवीयता को आधार बना कर कुछ लिखना आसान काम नहीं है.रोबो व कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण सब कुछ गड्ड-मड्ड हो गया है .ऐसे कलिकाल में प्रभाशंकर उपाध्याय का उपन्यास बहेलिया एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह है जिसे महसूस किया जाना चाहिए.

कहानी सौरभ नाम के एक युवा की है जो बैंक में नौकरी शुरू करता है ,उसके साथ कई प्रकार की घटनाएँ घटित होती है .बीच बीच में व्यंग्य व हास्य के छीटें भी हैं.

एक यूनियन बाज़  बीच बीच में कई किस्से सुनाता है .पूरी किताब में बैंक  की कार्य प्रणाली  का बड़ा ही रोचक वर्णन है.नए आये बाबू का  खैर - मकदम कैसे होता है? यह भी बताया गया है .बैंकों में  लोन की रिकवरी और उससे जुड़े प्रभावशाली नेताओं का भी विस्तृत वर्णन है.बेंक में ऑडिट पार्टी के आने से जो हडकंप मचता है उसकी भी विषद जानकारी यहाँ मौजूद है .उपन्यास में सांप पकड़ने के फर्जी बिलों को कैसे समायोजित किया जाता है इसे भी रोचक ढंग  से बताया गया है .प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रभाशंकर उपाध्याय ने इस रचना के जरिये उपन्यास के क्षेत्र में डेबू किया है .

यूनियन बाज़ भाई जी भी साथ साथ अपना ज्ञान बघारतें रहते हैं  वास्तव में यह उपन्यास यूनियन बाज़ व सौरभ को मिला कर बना है .

बैंकों  के अफसरों व मातहतों के बीच काम की कैसी रस्सा कशी चलती है इसे लेखक ने देखा और भोगा  है . ओवर टाइम की गाज़र भी उपलब्ध है.उपन्यास का पूरा परिवेश राजस्थान के कस्बों शहरों का है इसलिए भी सुन्दर बन पड़ा है .

जब बैंकों   में कंप्यूटर आये तो पुरानी पीढ़ी के कर्मचारियों पर क्या बीती ,कैसे उन्होंने सीखा ,कैसे गलतियाँ हुईं और कैसे उन गलतियों का परिमार्जन हुआ .दफ्तरों  में प्रमोशन ,स्थानान्तरण ,विभागीय राज नीति का भी अच्छा वर्णन है .

 

यूनियन बाज़ हरिहर जानी बेंक के बदलते मौहोल में फिट नहीं हो पाते उन की कार्यक्षमता भी कम हो जाती है अफसर बनने  के बाद वे काम को नहीं संभाल पाते और इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं .यही है इस रचना की विशेषता जिसे लेखक ने अपनी विशिष्ट शैली में उकेरा है.

उपन्यास यह भी बताता है की जेब से पैसे जमा करने के बाद भी बैंक  कर्मचारी पर विभागीय कार्यवाही की तलवार लटकती रहती है.

उपन्यास में महिला कर्मचारी के साथ अफसर के ख़राब व्यवहार का भी समावेश है जिस से लगभग हर महिला कर्मचारी झून्झ्ना  पड़ता है.

उपन्यास कई भागों में बंटा हुआ है इन भागों के शीर्षक भी काफी सूझ बूझ से दिए गए हैं उदाहरण देखिये --

1-साहब की मेज पर रेंगता बिच्छू

2-बदलता है रोज़ शबे मंज़र मिरे आगे

3-एक कौवा मार कर  टांग तो..

४-अटेची करती ब्रांच मैनेजरी

5-सारे सांप तो मैंने  ही पकडवा दिए थे

6-आर्डर ..इज आर्डर ..

7-तरक्की का लड्डू

8-न राज न काज फिर भी राजा बाबू

लेखक ने केवल बैंक में काम ही नहीं किया बल्कि पूरी  बेंकिंग प्रणाली का गहरा अध्ययन किया है और उसे उपन्यास के रूप में प्रस्तुत किया है .पेपर लेस सिस्टम की कल्पना की है  लोकर व लोन को भी समझा है यह उपन्यास बैंकिंग क्षेत्र पर लिखे गए उपन्यासों में अग्रिम कतार में रखा जायगा .लेखक ने जनजीवन का भी चित्रण किया है ,आदिवासी ,गरीब जनता और बेंकों में उनके साथ हो रहे व्यव्हार को भी जगह दी है .

 

कुल मिला उपन्यास पठनीय है बेंकों में काम करने वाली नयी  पीढ़ी इस से बहुत कुछ सीख सकती हैं लेखक को  बधाई. हाँ एक कमी है अशुद्धियाँ जिसे अगले संस्करण में सही कर दिया जाना चाहिए ,पुस्तक का मूल्य२५०रुपये  प्रकाशक इंक पब्लिकेशन प्रयाग राज संस्करण प्रथम २०२३
यशवंत कोठारी ,701,SB- 5,भवानी सिंह रोड  बापूनगर ,जयपुर-302015  मो-9414461207

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