kuchh to kaho gandhari - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

पुस्तक समीक्षा -18 - कुछ तो कहो गांधारी

कुछ तो कहो गांधारी -लोकेन्द्र सिंह कोट प्रकाशक-कलमकार ,जयपुर - मूल्य-१५० रु ,पृष्ठ ९४

डॉक्टर लोकेन्द्र मेडिकल कालेज रतलाम में काम करते हैं,वित्त मंत्रालय ,पंचायती राज विभाग भारत सरकार से पुरस्कृत है भील संस्कृति का गहरा अध्ययन किया है महिलाओं पर भी काफी लिखा है याने काफी काम किया है और लगातार कर रहे हैं ,उनका पहला उपन्यास आया है –कुछ तो कहो गांधारी

नाम ये यह लगता है की यह रचना शायद पौराणिक कथानक है लेकिन ऐसा नहीं है है.

लेखक ने कहा है—समाज की दो प्रमुख जीवन रेखाओं में नदी और स्त्री को रखा जाना चाहिए.लेकिन ऐसा होता नहीं है .

मांडू के रजा बाज़ बहादुर व् रानी रूप मति के किस्से से शुरू यह उपन्यास प्रेम, घ्रणा,वासना ,किशोर आकर्षण के इर्द गिर्द घूमता है.देहिक प्रेम व् प्लेटोनिक प्रेम की असफल व्याख्या का प्रयास है ,कलेवर में बहुत छोटा है और आजकल के ट्रेंड सेल्फ पब्लिशिंग से उपजा यथार्थ है.लेखक कहता है –मैं स्वयं समय हूँ.

उपन्यास में गाँव,लोक संगीत ,कविता ,लोक गीतों का भी अच्छा प्रयोग किया गया है.

वास्तव में उपन्यास में गांधारी वह नदी है जिस के सहारे कथा का ताना बना बुना गया है.इस नदी और स्त्री की चीख किसी को सुनाइ नहीं देती है , यही आज का सच है गंगा यमुना सरस्वती बनास चम्बल किसी की चीख किसी को सुनाई नहीं देती ठाकुर की हवेली की ठसक समय के साथ चली गयी.हवेली बाद में होटल बन जाती है. . रामदीन बुलावे पर अपनी गांधारी को नींद की दवा देकर हवेली में भेजता है.यह सब कब तक?ठाकुर व् मित्र सब बहती गंगा में हाथ दो बैठे.रामदीन व् परिवार शहर आ गया.शहर से फिर गाँव आगया.गाँव में दो गांधारी हो गयी एक नदी और एक रामदीन की पत्नी दोनों की नियति एक जैसी.फिर होती है बेटी भवानी कुछ और पात्र है संदीप ,मदालसा,हंसली ,विजय आदि .जो कहानी को आगे बढ़ाते हैं ,कहानी प्रेम वासना,गांवों की राजनीती शहर ,विकास और विकास के नाम पर विनाश के सहारे चलती है. उपन्यास के कुछ बिंदु इस प्रकार है -

१-सपने सबके होते है.

२-समय साक्षी होता है

.3-तेरी बात पर कम्पनियां चले तो बर्बाद हो जाएँ

४-समय के सर पर पंख लगे होते हैं.

5-जिन्दगी सहज नहीं होती.

६-गांधारी पर बड़े बांध बन गए गाँव डूब गए

७-संदीप को मेगसेसे अवार्ड नहीं मिला.

८-नदी सूख गयी है और स्त्री भी

9-कुछ तो कहो गांधारी

बेचारी गांधारी क्या बोले.और क्यों बोले ,बोलने से भी क्या हो जायगा ?गांधारी,हंसली,मदालसा , संदीप,रामदीन सब की व्यथा एक जैसी है सब मिल कर भी समाज या परिस्थिति से लड़ नहीं पा रहे हैं यही मानव की नियति है प्रकृति धीरे धीरे सब से बदला लेती है मानव हो या नदी .

उपन्यास को विस्तार व् संपादन की बेहद आवश्यकता है .कुल मिलाकर मेरी नजरों में यह रचना एक अच्छा प्लाट है जिस पर एक बड़े आकार का उपन्यास लिखा जा सकता है.लेखक को वापस प्रयास करना चाहिए ,सेल्फ पब्लिशिंग करने वालों को भी केवल प्रिंटर का नहीं एक प्रकाशक का धर्म निभाना चाहिए . किताब का कवर व् कागज अच्छा है ,छपाई भी ठीक है .लेखक ने किताब भेजी आभार, शुभकामनायें .

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यशवंत कोठारी ८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी जयपुर-२ फोन -९४१४४६१२०७

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