बायोग्राफी ऑफ मैना कुमारी नीतू रिछारिया द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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बायोग्राफी ऑफ मैना कुमारी

13 वर्ष की उम्र में भारत की भूमि के लिए जिंदा जल गयी पर अंग्रेजो को कोई राज नहीं बताया था। 🇮🇳

आज हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, कुमारी मैना की जीवनी और उनके जीवन के संघर्ष की कहानी। दोस्तों जो व्यक्ति हंसते-हंसते अपने देश की आजादी के लिए शहीद होता है। उसका नाम इतिहास में अमर हो जाता है। और लोग श्रद्धा और आदर से उसका नाम लेते हुए उसे याद करते हैं। संसार में उसी पुरुष या स्त्री का जन्म सार्थक होता है। जो अपने देश या संपूर्ण मानवता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देता है। भारतीय इतिहास में जहां एक और आंभिक कुमार, जयचंद तथा मीर जाफर जैसे देशद्रोही विश्वासघाती हुए, जिन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दुश्मनों से मित्रता कर भारत मां को बेच डाला था। और उनके कारण ये भारत माँ गुलामी की जंजीरों में जकड़ गई। वहीं आजादी के कुछ ऐसे दीवाने भी हुए हैं। जिन्होंने इस देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। ऐसे सपूतो में महाराणा प्रताप सिंह, छत्रपति शिवाजी महाराज, मंगल पांडे, अजीजन, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, चंद्रशेखर आजाद, शहीद ए आजम भगत सिंह, खुदीराम बोस आदी के नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। जहां मानसिंह ने सत्ता प्राप्त करने के लिए मुगल सम्राट अकबर से बेटी-रोटी रिस्ता स्थापित किया। तो उसी राजस्थान के महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाकर भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।

दोस्तों कुमारी मैना नाना साहब की दत्तक पुत्री थी। कुमारी मैना में बचपन से ही राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूट भरी हुई थी इनका उत्साह तथा त्याग देखते ही बनता था। प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अपनी अवस्था के अनुकूल भाग लिया। नाना साहब उनकी दृढ़ता और देशभक्ति से भली भाती परिचित थे।

जब 1857 किसी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ तो नाना साहब का बिठूर के राज महल में अपनी पुत्री को छोड़ते हुए दिल भर आया। अंग्रेजों की जित क्रम प्रारंभ हो चुका था। और सेना को एकत्रित करके मोर्चा लेने की दृष्टि से नाना साहब का बिठूर छोड़ना आवश्यक हो गया था। तब उन्होंने अपनी पुत्री मैना से कहा बेटी तुम्हें इस महल में अकेली छोड़ते हुए मेरी आत्मा नहीं मान रही है। मैं तो फिर कहता हूं कि तुम मेरे साथ चलो यह महल किसी सेवक की देखरेख में हम छोड़ सकते हैं।

तब मैना कुमारी ने बोला “पिताजी हम महल को किसी और की देखरेख में छोड़ दे या सुना छोड़ दे इसमें क्या फर्क पड़ता है। सवाल तो इस बात का है कि यहाँ रह कर अगर क्रांतिकारियों को जो सूचना समय-समय पर मैं दे सकती हूं। वह सूचनाएं सेवक तो नहीं दे सकता इसलिए मैं स्वय यहाँ रहना चाहती हूं।

अपनी बेटी मैना कुमारी से विदा लेकर नाना साहब बिठूर से प्रस्थान कर गए। बिठूर के राजमहल पर अंग्रेजों ने छापा मारकर सेवकों को बंदी बना लिया। परंतु मैना बच निकली, इस पर सेनापति ने राजमहल को तोपों के गोलों से महल उड़ाने का आदेश दिया। उस समय मैना महल के अंदर से प्रकट हुई और कड़कती आवाज में कहा ठहरो गोले मत दागना। सेनापति बोला मैना हमें ऊपर से आदेश आया है।

अंग्रेजी सेनापति को मैना पहचान गयी थी। क्योंकी मैना और अंग्रेज सेनापति की बेटी “मेरी” एक साथ स्कूल में पढ़ी थी और दोनों घनिस्ट मित्र थी। साथ ही मैना ने अंग्रेज सेनापति को उसके पिता जी नाना साहब के दरबार में भी देखा था। “हां में तुम को पहचान गया हु मैना,” यह कहकर बिठूर के राज महल की तरफ छोड़ी जानी वाली टोपे रोक दी गयी थी।

लेकिन कुछ ही देर में वहां पर अंग्रेज सेना का दूसरा अधिकारी आउट्रम आ पहुंचा और राज महल को नहीं गिराने का कारण पूछा। तब अंग्रेज जनरल ने कहाँ, “सर क्या हम राज महल को न तोड़ नाना साहब को पकड़े,” इस पर आउट्रम जोर की आवाज़ में बोले और बिठूर के राज महल को तोड़ने के आदेश दे दिए। महल कुछ ही देर में जमीन दो‌ज हो गया था। और राजकुमारी मैना को कैद कर लिया गया।

क्रन्तिकारियो को गुप्त सुचना देने के लिए कुमारी मैना को अनेक यातनाए दी गई पर उन्होंने मुँह नहीं खोला। अंग्रेजो ने उनको पुरुस्कार और प्रलोभन देकर अपनी तरफ मिलाना चाहा। पर कुमारी मैना टस से मस नहीं हुई। अंत में अंग्रेजो ने नाना की इस दत्तक पुत्री को जिन्दा जलाने का आदेश दिया।

उसने आदेश दिया “इस लड़की को पेड़ पर बांधकर मिट्टी का तेल छिड़ककर जिंदा जला दिया जाए” सैनिकों ने तुरंत अपने जनरल की आज्ञा का पालन किया।

जब आग की लपेटे उठकर मैना के मुखमंडल को चूमने लगी। तब आउट्रम ने कहा अब भी यदि तुम अपने पिता तथा अन्य क्रांतिकारियों के पते बता दो तो हम तुम्हें मुक्त कर देंगे और उपहार देंगे।

कुमारी मैना अविचलित खड़ी रही, आग की लपेटे उठती रही। वह स्वय भी किसी ज्वाला से कम नहीं थी। वह जीते जी अग्नि में झुलस कर मर गई। परंतु उसने क्रांतिकारियों के गुप्त रहस्य के बारे में कुछ नहीं बताया।

कुमारी मैना की बहादुरी देखकर तब अंग्रेजी महिलाएं भी रो उठी।
धन्य है मैना, जिसने इस देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान तक कुर्बान कर दी। अंग्रेज महिलाएं उसकी बहादुरी को देखकर दंग रह गई थी। उनकी आंखों में आंसू की धारा बह रही थी, पर वे सिपाहियों को रोकने का साहस नहीं कर सकी। निसंदेह कुमारी मैना के त्याग और बलिदान से उनका नाम इतिहास में अमर हो गया। उनके बलिदान से हमे हमेसा प्रेरणा मिलती रहेगी।

ऐसी महान क्रन्तिकारी शहीद राजकुमारी को हमारी तरफ से शत-शत नमन 🙇