हिंदी सतसई परंपरा - 2 शैलेंद्र् बुधौलिया द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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हिंदी सतसई परंपरा - 2

 

हिंदी की सूक्ति सतसैया -

हिंदी में सूक्ति सतसैयों के अंतर्गत तीन सतसैयों की गणना की जा सकती है- तुलसी सतसई, रहीम सतसई और वृंद सतसई ।

1.तुलसी सतसई –

तुलसी सतसई में गोस्वामी तुलसीदास के भक्ति एवं नीति विषयक दोहे संकलित हैं. यह  सात वर्गों में विभक्त है, जिनमें क्रमश: भक्ति, उपासना,  और परा भक्ति, राम भजन, आत्मबोध, कर्म सिद्धांत, ज्ञान सिद्धांत और राजनीति का स्वतंत्र विवेचन मिलता है-

नीच चंग सम जानिवो सुनि  लख तुलसीदास !

 ढील देत महि गिरि  परत खेंचत चढात अकास !

2.रहीम सतसई -

रहीम सतसई का अभी तक खंडित रूप ही उपलब्ध है ,इसमें लौकिक जीवन के विविध पक्षों पर कवि की मार्मिक और विदग्ध पूर्ण सूक्तियां हमें मिलती हैं,  सामान्य रूप से इसमें जीवन अनुभूतियों की मार्मिक व्यंजना हुई है ।।

3. वृंद  सतसई-

' सच्ची कहने वाला कविराज' के नाम से विख्यात और औरंगजेब के दरबारी कवि वृंद की सतसई कवि की विशिष्ट विद्वत्ता  पूर्ण सूक्तियों का संग्रह है । इसके दोहों  में कवि के व्यापक जीवन अनुभव,सूक्ष्म दृष्टि और पांडित्य के साथ-साथ चमत्कार का पूरा समावेश है !

वृंद सतसई का एक दोहा दृष्टव्य  है-

 फेर ना ह्वे  है कपट सों जो कीजे व्यापार !

जैसे हंडी काठ  की चढे न दूजी बार!!

 हिंदी की श्रृंगार सतसईयां  -

हिंदी की श्रृंगार सतसईयों  में बिहारी सतसई, मतिराम सतसई,निधि सतसई, राम सतसई और विक्रम सतसई की गणना होती है।

 डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने हिंदी साहित्य में बिहारी सतसई से ही हिंदी की श्रृंगार  परंपरा का प्रारंभ माना है कुछ विद्वानों का कहना है कि भले ही मतिराम सतसई के ग्रंथ का आकार बाद में किंतु बिहारी सतसई के आरंभ होने और समाप्त होने से पूर्व ही मतिराम  अपनी सतसई के अधिकांश दोहों की रचना कर चुके थे ।मति राम के दोहों को सतसई का रूप बाद में प्राप्त होने से बिहारी सतसई को ही श्रृंगार सतसई परंपरा की पहली रचना माना जाता है।

 मतिराम सतसई -

मतिराम सतसई के दोहों में उक्ति वैचित्र्य ,चमत्कार और कलात्मकता के स्थान पर स्वाभाविक भाव व्यंजना और रसोद्रेक को अधिक महत्वपूर्ण स्थान मिला है। प्रेम की सुकुमार व्यंजना , नारी सौंदर्य, वर्णन तथा संयोग और वियोग की नाना अवस्थाओं का मार्मिक चित्रण मतिराम सतसई की विशेषता है –

लिखही अवनितल चरण सों विहसत कमल कपोल !

अध निकरे मुख इन्दु तैं अमृत बिन्दु से बोल !!

रसनिधि सतसई-

रसनिधि सतसई  कवि पृथ्वी सिंह रसनिधि के रतन हजारा नामक एक हजार दोहों  का संक्षिप्त संस्करण है , इसका प्रधान विषय श्रृंगार  है ।इनके दोनों से प्रेम की अनुभूति मिलती है, कला की दृष्टि से इस में अलंकार और चमत्कार की प्रवृत्ति देखने को मिलती है।

 राम सतसईं  -

 काल क्रमानुसार रसनिधि सतसई   के पश्चात कवि रामसहाय दास रचित राम सतसई का नाम आता है , इसमें श्रृंगार के विविध पक्षों का सरल और प्रसाद पूर्ण शैली में वर्णन किया गया है ।जो शैली और भाव की दृष्टि से मतिराम सतसई के वर्णन के समान हैं यदि वर्णन उतना मार्मिक नहीं हो सका है ।

विक्रम सतसई -

कवि विक्रम सिंह की विक्रम सतसई, बिहारी सतसई को आदर्श मानकर लिखी  गई एक साधारण कोटि की रचना है। इसका प्रधान विषय शृंगार  है।