मुझसे शादी कर लो - 3 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मुझसे शादी कर लो - 3

लेकिन माया सब से कटी हुई थी। वह किसी से नही बोलती थी।उसने एक कामवाली रख रखी थी।जो सुबह आती थी।माया दस बजे से पहले निकलती और शाम को 7 बजे तक वापस लौटती।उसके बाद वह अपने घर मे ही बन्द रहती।सन्डे को उसके ऑफिस का ऑफ रहता।छुट्टी वाले दिन वह प्राय घर से बाहर कम ही जाती थी।शुरू में जब वह इस फ्लेट में आई तब सोसायटी की औरतों ने उससे सम्पर्क जोड़ने का प्रयास किया पर उसने इसमें कोई रुचि नही दिखाई थी।सोसायटी में होने वाले। आयोजन और औरतों की किटी पार्टी में तो जाने का सवाल ही नही था।
राघव को न जाने क्यो उसकी यही अदा पसन्द आ गयी।एक दिन वह सामान लेकर आई।सोसायटी के लोग लाते ही रहते थे।जब सामान ज्यादा होता तो उसे आवाज दे देते।वह हेल्प कर देता।एक दिन माया सामान लायी।काफी सामान देखकर वह बोला,"मैं हेल्प करू।"
"कोई जरूरत नही।अपने काम से काम रखो।और वह उसे फटकारते हुए चली गई।
और ऐसे कई अवसर आये जब माया की राघव ने मदद करनी चाही और माया ने उसे फटकार दिया।एक बार तो नीरज उसका साथी गार्ड उसके पास खड़ा था।तब माया आयी और कार में सामान लायी थी।किराने का।राघव उसके पास ज्यादा सामान देखकर मदद के लिए चला गया और उसने उसे फटकार दिया तब नीरज बोला,"बड़ी नकचढ़ी है।इससे तो दूर ही रहा करो।"
नीरज ने उसे समझाया था लेकिन राघव न जाने क्यो उसके प्रति लगाव महसूस करता।राघव यह भी जानता था कि उसका माया से कोई मुकाबला नही था।कहा उच्च शिक्षित और अच्छे पद पर कार्यरत माया और कहाँ जैसे तैसे बी ए पास करने वाला मामूली सी गार्ड की नौकरी कर रहा राघव।
सब कुछ जानते हुए भी राघव सपना देखने लगा।हर युवक की तरह उसके सपने की रानी थी,माया।माया को अपनी जीवन संगनी बनाने का सपना।सपने जो नींद में देखे जाए उनके पूरे होने की उम्मीद कम ही होती है।लेकिन जो सपने जगते हुए देखे जाए उनके पूरे होने की उम्मीद ज्यादा होती है।और शायद पूरे भी होते है।
और शायद इसी आशा में वह सपने देख रहा था।जब वह ड्यूटी पर होता तब वह ििनतज़ार करता रहता कि कब माया आये या जाए।वह जब जाती तब राघव उसे तब तक देखता रहता जब तक वह कार में बैठकर निकल जाती।घर पर दिन व रात में वह उसी के सपने देखता।
एक दिन वह ऑफिस से लौटी तब तेज बारिश हो रही थी।वह कार पार्क करके बाहर आई उसी में भीग गयी।राघव के पास छाता था।वह दौड़कर गया और छाता आगे करते हुए बोला,"छाता ले लीजिए।"
माया ने उसे घूरकर देखा और भीगते हुए ऊपर चली गयी।राघव जब भी मौका मिलता माया के पास किसी ने किसी बहाने स जाने की कोशिश करता।कभी उसे उसकी घूरती हुई नजरो का सामना करना पड़ता।कभी फटकार मिलती पर न जाने क्यो वह अपने आपको रोक नही पाता था।
प्यार एक खूबसूरत शब्द है।प्यार ऊंच नीच नही देखता।न ही प्यार बराबरी या हैसियत देखता है और न ही उम्र।जंहा तक उम्र का सम्बन्ध था।राघव,माया का हमउम्र ही था।पर हैसियत में किसी भी तरह उसके समकक्ष नही था।लेकिन फिर भी उसे उससे प्यार हो गया था