इस वक्त राघव की आंखें आग उगल रही थी । वो उसपर गुस्से से बरसते हुए बोला " तुम्हारा दिमाग खराब है । कहां हैं गार्डस ..... ? किसने कहा था बिना गार्डस के बाहर निकलने के लिए । अभी जो कुछ हुआ उसका जिम्मेदार कौन हैं ? अगर मेरी बच्ची को जरा सी भी खरोंच लगती , तो मैं तुम्हारी जान निकाल लेता । "
राघव के इस तरह चिल्लाने से जानकी अंदर तक कांप गई । एक तो ये खून खराबा देखकर वो पहले से ही हैरान थी और ऊपर से अब राघव का गुस्सा ।
परी राघव के गले लगे हुए अभी भी रो रही थी । सच तो ये था राघव के इस तरह चिल्लाने से वो और ज्यादा डर गयी थी । राघव अमित की ओर देखकर बोला " इन सबको ठिकाने लगाओ । "
राघव के ये कहते ही जानकी ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा " कैसा इंसान हैं ये ? सामने इतनी सारी लाशे पडी हैं और ये ऐसे रियेक्ट कर रहा है जैसे सामने कीडे मकोड़े पडे हो । " राघव ने जब जानकी को देखा तो फिर से बरसते हुए बोला " मुझे घूर क्या रही हो जाओ जाकर गाडी में बैठो । " जानकी उसके चिल्लाने पर अपने ख्यालों से बाहर आई । वो धीमे कदमों से आगे बढ गयी । ड्राइवर उसके लिए गाडी के पिछले सीट का दरवाजा खोले खडा था । जानकी चुपचाप अंदर जाकर बैठ गयी । राघव दीपक से बोला " अपने आदमियों को कहो इन सबके बारे में पता लगाऐ । "
" जी सर " दीपक ने जवाब दिया ।
राघव पडी को लेकर गाडी के पास चला आया । ड्राइवर पहले से ही उनके लिए पिछली सीट का दरवाजा खोले खडा था । उनके अंदर बैठते ही ड्राइवर भी अपनी सीट पर आकर बैठ गया ।
" सरकार हवेली चलना हैं या कही और ? " ड्राइवर ने पूछा तो राघव बोला " हवेली चलो । " वही जानकी तो हैरानी से ड्राइवर के कहो शब्द को सोच रही थी । " इसका मतलब सरकार यही आदमी हैं । इन्होंने ने ही उस आदमी को घायल किया था और आज इतने लोगों को मारते वक्त इनके हाथ नही कांपे । " ये सब सोचते हुए जानकी की पलके नम हो गई थी । अफसोस वो रो भी नही पा रही थी क्योंकि राघव ठीक उसके बगल में बैठा था । जानकी ने अपना चेहरा खिडकी की ओर कर लिया और दुपट्टा मूंह पर रख लिया , ताकी गलती से भी रोने की कोई आवाज आए तो वो राघव तक न पहुंचे । कुछ ही देर बाद उनकी गाडी हवेली के आगे आकर रुकीं ।
राघव परी को लेकर आगे चल रहा था और जानकी उसके पीछे । जानकी के कदम उसका साथ नही दे रहे थे । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इतने वक्त से एक हत्यारे के साथ रह रही थी । उन्हें अंदर आता देख सब लोग हैरानी से उन्हें देखने लगे । करूणा आश्चर्य से बोली ' देवर जी आप इस वक्त यहां आप तो ऑफिस गए थे न ? "
" मम्मा ..... " परी ने रोते हुए पुकारा और अपने दोनों हाथ उसकी ओर कर दिए जैसे उसकी गोद में जाना चाहती हो । राघव उसे करूणा के पास ही लेकर आ रहा था । करूणा ने उसे गोद में ले लिया और राघव से बोली " परी आपको कहां से मिली और ये रो क्यों रही है ? "
" अभी कुछ देर पहले परी पर हमला हुआ था । हम ठीक वक्त पर पहुंच गए ।" राघव ने कहा ।
करूणा ने परी को कसकर गले लगा लिया । संध्या की नज़र जानकी पर गयी तो वो भागकर उसके पास पहुंची । वो उसका हाथ पकडते हुए बोली " जानू तेरे हाथों से तो खून बह रहा हैं । तुझे चोट भी लगी हैं । " ये बोलते हुए उसने जानकी का हाथ सीधा किया तो वो दर्द से कराह उठी । हाथ में कुछ जगह छोटे छोटे कांच के टुकड़े धंसे हुए थे जिनका जानकी को अब तक कोई होश नही था । करूणा आगे आकर बोली " संध्या तुम जल्दी से मैडिसन बाक्स लेकर आओ । "
" जी भाभी " ये बोल संध्या भागते हुए वहां से चली गई । करूणा ने परी को वापस से राघव की गोद में दिया और जानकी का हाथ पकड़ उसे सोफे पर बिठाया । " भाभी मां आप बेकार में चिंता कर रही हैं । ज्यादा चोट नही हैं । मैं खुद से दवा लगा लूगी । "
" जानू आप शांत रहिए । आपका हाथ इतना जख्मी है और आप कह रही है ये एक छोटी सी बात है । बिल्कुल नही ..... आप बस चुपचाप बैठे रहिए । " करूणा ने एक प्यार भरी फटकार लगाई । संध्या भी दवा का बाक्श ले आई थी । करूणा ने पहले उन कॉच के टुकड़ों को अलग किया । दर्द से कितनी ही बार जानकी ने अपने होंठों को दांतों तले दवा लिया था । परी ने अपने दोनों हाथ चेहरे पर रख लिए । राघव ने उसकी इस हरकत पर उसे देखा और फिर जानकी को । राघव का गुस्सा थोडा कम हुआ , तो उसे अब अपनी गलतियां नज़र आई । जानकी पर इतनी बडी जिम्मेदारी है , फिर भी उसका नंबर अपने पास नही रखा । ऐसी सिचुएशन में जानकी ने जो समझदारी दिखाई उसके बदले में उसने उसे डांट दी ,उसपर चिल्लाया । " राघव यही सब सोच रहा था । जानकी के हाथों में बैडज लगाने के बाद करूणा ने संध्या से कहा " संध्या जानू को उसके कमरे में ले जाओ । ...... सुरेश जानकी के लिए हल्दी वाला दूध तैयार करो । "
संध्या जानकी को लेकर उसके रूम की ओर बढ गयी । राघव ने परी को करूणा की गोद में देते हुए कहा " आप इसे संभालिए भाभी मां , हमे कुछ काम है । " राघव ये बोल बाहर चला गया । इधर सभी सिक्योरिटी गार्ड्स एक लाइन से खडे थे । कैलाश जी वही थोडी दूरी पर खडे थे । राघव के चेहरे पर जो गुस्सा पहले था वो फिर से लौट आया । वो लगभग अपने गार्डस पर बरसते हुए इस " मैंने तुम सबको परी की जिम्मेदारी सौंपी थी फिर आज वो अकेले कैसे गयी । दोबारा ऐसी लापरवाही हुई तो तुम सबको मेरी गोलियों का निशाना बनना पडेगा । परी कही भी कभी भी किसी के साथ भी जाए । हमेशा तुम सब उसके साथ रहोगे और प्रोटेकक्ट करोगे । इज देट क्लियर ! "
' येस सर ' सबने एकसाथ कहा । राघव अपनी गाडी में बैठकर ऑफिस के लिए निकल गया ।
वही दूसरी तरफ संध्या जानकी को उसके कमरे में लेकर आई । उसने उसे बिस्तर पर बिठाया ही था की तभी दरवाजे पर किसी ने नोंक किया । दरवाजा खुला हुआ था । संध्या ने मुड़कर देखा तो सुरेश दरवाज़े पर हल्दी वाला दूध लिए खडा था । संध्या ने जाकर उसके हाथों से गिलास ले लिया । सुरेश वहां से चला गया । संध्या दरवाजा बंद कर जानकी के पास चली आई ।
" जानू जल्दी से ये दूध खत्म कर । " संध्या ने कहा ।
जानकी ने कुछ नहीं कहा वो तो बस आंसू बहा रही थी । संध्या ने उसे रोते देखा तो दूध का गिलास टेबल पर रख उसके बगल में बैठ गई । संध्या उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली " क्या हुआ जानू तूं रो क्यों रही है ? "
जानकी रोते हुए बोली " मुझे यहां नही रहना । मुझे घर जाना हैं । मुझसे यहां नहीं रूका जाएगा । "
संध्या उसे इस तरह रोता देख परेशान होकर बोली " लेकिन क्यों जानू आखिर क्या बात हो गयी ? आज जो हुआ तूं उसे लेकर परेशान हैं । "
" संध्या तूं जानती हैं सरकार कौन हैं , राघव जी ' " जानकी के मूंह से ये सुनकर संध्या की आंखें हैरानी से बडी हो गयी । जानकी रोते हुए आगे बोली " पता हैं उस दिन उस घायल आदमी पर गोली किसने चलाई थी राघव जी ने । संध्या वो सब तो मैंने अपनी आंखों से नही देखा , लेकिन आज जो देखा उसके बाद मुझे पूरा विश्वास हो गया । आज उन्होंने मेरे सामने लोगों पर गोलियां चलाई । मेरे आस पास लाशे बिखरी पडी थी । संध्या में एक हत्यारे के साथ नही रह सकती । मुझे घर वापस जाना हैं । "
संध्या" जानकी का हाथ अपने हाथों मे लेकर बोली " शांत हो जा जानू माना की ये सब आज तूने पहली बार देखा हैं इसलिए तू घबरा रही हैं , लेकिन एक बार ये भी तो सोच राघव भैया ने किसी बेकसूर को नही मारा । उन्हें मारा हैं जो तुझपर और परी पर हमला करने आए थे । अपनो के बचाव के लिए बुरे लोगों को मारना गलत तो नही । "'
" इस तरह सरेआम किसी को गोली से मारना कहा से उचित हैं गलत को सज़ा देने के लिए कोर्ट हैं पुलिस हैं , फिर इन्हें ये हक किसने दिया । " जानकी ने पूछा तो संध्या बोली " यहां की जनता ने । " जानकी नासमझी से संध्या की ओर देखकर बोली " मतलब '
' मतलब ये जानू राघव भैया को यहां की जनता बहुत मानती हैं । उन्हें सरकार शब्द से नवाजा हैं और सरकार हर गरीब मजलूम की आवाज हैं । वो उन सबको इन्साफ दिलाते हैं । तू जो कोर्ट पुलिस की बात कर रही हैं वो सीमाओं में बंधे हुए हैं , जिसका बहुत लोग फायदा उठाते हैं । इस शहर में बहुत से ऐसे रावण हैं जो उन्हें अपनी जेब में रखते हैं । ऐसे में राघव भैया ही हैं जो जरूरत पडने पर कानून के माध्यम से भी इंसाफ करते हैं और कानून तोड़कर भी । तू राम को रावण समझ रही हैं जानू । एक बार ठंडे दिमाग से सोच । भैया को जब समझेगी तब तू उनके बारे में जान पाएगी । भूल मत जानू तूं यहां मीठी के लिए आई हैं । इस वक्त तेरे लिए ये नौकरी बेहद जरूरी हैं । इन सबके बाद भी यहां रहना या न रहना तेरा खुद का फैसला हैं मैं आगे कुछ नहीं बोलूंगी । " संध्या अपनी बात खत्म कर जाने के लिए उठी , तो जानकी ने उसकी कलाई पकड ली । संध्या ने पलटकर उसकी ओर देखा तो जानकी बोली " मुझे कुछ समझ नही आ रहा संध्या में क्या करू ? यहां रूकना मेरी मजबूरी हैं लेकिन दहशत भरे माहौल में मै जी पाऊगी या नही मुझे नही पता । "
संध्या ने उसके हाथ पर अपना दूसरा हाथ रखकर कहा " खुद को शांत कर , कमजोर नही हैं तूं । हम सब हैं न तेरे साथ । प्रोब्लम सिर्फ राघव भैया से हैं न तुझे, तो उनके सामने मत जाना । तुझे जो काम मिला है बस उसे कर । जल्दी से दूध का गिलास खत्म कर वरना ठंडा हो जाएगा । " संध्या इतना कहकर कमरे से बाहर चली गई । जानकी बस बैठी अपनी बातों को सोचती रही । दिन ब दिन उसके सामने बस राघव का डरावना रूप ही आ रहा था ।
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शाम का वक्त , ठाकुर भवन गायत्री इस वक्त किचन में खाना बना रही थी । दिशा पीछे से उसे हग करते हुए बोली " वाओ भाभी खुशबू तो बाहर तक आ रही हैं । आज कुछ स्पेशल बनाया हैं क्या ? "
" सामने ही तो रखा हैं फिर भी सवाल कर रही हो । " गायत्री ने कहा तो दिशा ने सामने की ओर देखा । उसकी आंखें खुशी से चमक उठी । वो चहकते हुए बोली " खोए वाली गुजिया .... वाओ .... ये बोल उसने झट से एक गुजिया उठाई और खाने लगी । गायत्री उसे देखते ही बोली " बडी हो गयी हो लेकिन हरकतें अभी भी बच्चों वाली । ये कौन सा तरीका हुआ खाने का । प्लेट में लेकर खाओ । "
दिशा खाते हुए बोली " भाभी दो हाथ दिए हैं न भगवान ने थोडा उसका भी स्तेमाल कर लेना चाहिए । अब प्लेट क्यों गंदा करना ? इससे पानी तो वेस्ट नही होगा । "
गायत्री गर्म तेल में गुजिया डालते हुए बोली " अच्छी बात हैं फिर तो दाल चावल, रोटी सब्जी सब हाथ में लेकर ही खाना । " उसकी बातों पर दिशा हंसने लगी । इसी बीच उसके फ़ोन की बेल बजी । नंबर देखकर दिशा की आंखें बडी हो गयी ।
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कैसे बनेगा जानकी और राघव का रिश्ता ? दोनों के बीच बहुत बडी खाई हैं । जानकी क्या अयोद्धया छोड़कर चली जाएगी ? क्या वो यहां नही रहेगी ? ये जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करे । ।
प्रेम रतन धन पायो
( अंजलि झा )************