परी कहां इन आवाजों को सुनने वाली थी । बेड के एक तरफ डोरेमोन , दूसरी तरफ बार्बी् और पैरों के पास मंकी पडा था । वो तो टैडीस से घिरी हुई थी । करूणा उसके पास बैठकर उसका सिर सहलाते हुए बोली " परी बेट उठो आपको स्कूल भी जाना हैं । "
" नयी आज छुट्टी है ।। " परी बिना आंखें खोले बोली ।
" हां आपके लिए तो हर दिन छुट्टी होती हैं । " ये बोलते हुए करूणा ने उसे जबरदस्ती उठा दिया । फिर क्या था शुरू हो गया रोना धोना । करूणा ने बडी मुश्किल से उसे तैयार किया और नीचे ले आई । वो अभी भी सुबक रही थी । वही राघव ने जब उसे रोते देखा तो उसे अपनी गोद में ले लिया ।
" क्या हुआ किसीने रूलाया हमारी परी को । नाम बताइए हम उसे अभी पनिशमेंट देंगे । "
परी ने आंखें मीचते हुए अपने एक हाथ से करूणा की ओर इशारा को । " ओह तो मां ने आपको रूलाया लेकिन क्यों ? "
" आपकी लाडली की अभी तक नींद पूरी नहीं हुई है । उसके लिए आज भी स्कूल की छुट्टी है । " करूणा ये कहते हुए नाश्ते की टेबल की ओर बढ गयी ।
राघव उसे लेकर डायनिंग टेबल के पास चला आया । उसने टेबल पर उसे बिठाया और खुद चेयर पर बैठ गया । करूणा ने नाश्ते की प्लेट उसके आगे कर दी । राघव परी के आंसू पोंछते हुए बोला " हमारी परी जो कहती हैं वो ठीक कहती हैं । आपको स्कूल नही जाना तो ठीक हैं आपका स्कूल यही चलकर आ जाएगा । अब जल्दी से नाश्ता कर लो । " परी के होंठों पर बडी सी स्माइल तैर गयी । वो चुपचाप बैठकर नाश्ता करने लगी ।
कैलाश जी अंदर आए और राघव से बोले " सरकार आपने बच्चे की देखभाल के लिए एक केअर टेकर ढूंढने को कहा था । काफी सारी लड़कियां आई हैं । "
राघव करूणा की ओर देखकर बोला " भाभी मां आप उन सबका इंटरव्यू ले लीजिए । जो उचित लगे रख लीजिएगा । '
" बाप रे फिर से इंटरव्यू । " करूणा के बगल में खडी संध्या ने धीरे से कहा ।
" छः महीने पहले भी इंटरव्यू लिया था । पूरे बीस दिन तक इंटरव्यू चलता रहा तब कही जाकर हमे एक ठीक ठाक केअर टेकर मिली । पता नही अब कोई ढंग की मिल पाएगी या नहीं । " करूणा ये सब बैठी मन में सोचे जा रही थी । कैलाश जी वहां से जा चुके थे । राघव भी अपना नाश्ता खत्म कर चुका था । साथ में परी का नाश्ता भी हो चुका था । राघव उठते हुए बोला " भाभी मां हम आफिस के लिए निकल रहे हैं । परी को स्कूल हम ड्रोप कर देंगे । " ये बोल राघव ने परी को गोद में उठा लिया ।
" हम इसका स्कूल बैग लेकर आते हैं । " ये बोल संध्या भागते हुए परी के कमरे में चली गई । राघव परी को लेकर बाहर जाने लगा ।
" चाचू आपने तो कहा था हम सकूल नही जाएंगे फिर आप हमे स्कूल लेकर क्यों जा रहे हैं ? " परी के ये पूछने पर राघव बोला " हमने ते कहा था आपके लिए स्कूल यही ले आएंगे , लेकिन उसे लाने में वक्त लगेगा तब तक हम ही स्कूल चलते हैं । " चाचू और भतीजी बाते करते हुए बाहर चले आए ।
दीपक राघव की गाडी के पास खडा उसी का इंतजार कर रहा था । राघव दीपक की ओर देखकर बोला " स्टडी रूम में टेबल पर रेड कलर की फाइल होगी वो ले आए । "
" ओके सर " ये बोल दीपक आगे बढ गया । वो जैसे ही दरवाजे के पास पहुंचा वैसे ही संध्या से टकरा गया । इससे पहले वो गिरती दीपक ने उसे संभाल लिया । संध्या हाथों में परी क बैग लिए डर के मारे आंखें बंद कर उसकी बाहों में खडी थी । जब उसे महसूस हुआ वो नही गिरी तब उसने धीरे धीरे अपनी आंखें खोली । नजरें दीपक के चेहरे पर जा टिकी । इस वक्त दोनों ही एक दूसरे के चेहरे में खोए हुए थे । कुछ देर पहले संध्या के चेहरे पर जो डर के भाव थे लो न जाने कहा गायब हो गए । अब उसकी जगह मुस्कुराहट ने ले ली थी । दोनों के ही कानों में कुछ गिरने की आवाज आई तब कही जाकर दोनों का ध्यान टूटा । संध्या बिना कुछ बोले वहां से भाग गई । अमित भी मुस्कुराता हुआ घर के अंदर चला आया । संध्या ने परी का स्कूल बैग राघव की गाडी में रखा । थोडी ही देर में अमित भी फाइल लेकर बाहर चला आया ।
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सुबह का वक्त , ठाकुर भवन इस वक्त ठाकुर भवन में सभी घरवाले डायनिंग टेबल के पास बैठकर नाशता कर रहे थे । नारायण ठाकुर और उनके दोनों बेटे गिरिराज और कुंदन मौजूद थे । दिशा भी वही बैठी थी । गायत्री जिसने चेहरे पर आधा घूंघट किया हुआ था । वो सबको खाना परोस रही थी । उसने एक हाथ से अपने घूंघट का एक सिरा पकड रखा था और दूसरे हाथ से खाना परोस रही थी । कुंदन के चेहरे पर घाव के निशान अभी भी थे ।
नारायण जी खाते हुए बोले " गिरिराज आज से इसको भी अपने साथ आफिस ले जाओ । पढाई में तो मन लगता नही हैं । कम से कम कुछ काम तो सीखेगा । "
" हमारा कॉलेज चल रहा है अब ऐसे में फैक्ट्री जाएंगे क्या ? " कुंदन ने कहा ।
नारायण जी उसे घूरते हुए बोले " कॉलेज में तो तुम हाजरी लगाने भी नही जाते , पढाई तो बहुत दूर की बात है । पांच साल में तुम्हारा बी ए कंप्लीट नही हैं । आगे क्या करोगे ? अब अपने बाप को ज्यादा मत सिखाओ । इम्तिहान दो या न दो हम पास करवा देंगे । आज से ही गिरिराज के साथ ऑफिस जाओ । " नारायण जी का फैसला सुन कुंदन का मूंह बन गया अब तो एक निवाला भी गले से नीचे नही उतरने वाला था । गिरिराज कुंदन के कंधे पर हाथ रखकर बोला " बाबुजी ठीक कह रहे हैं । तुम्हें भी सीखना चाहिए कंपनी कैसे चलाई जाती हैं । " कुंदन उसका हाथ झटककर उठते ही बोला " जब सीखना होगा तब सीख लेंगे । अभी आप लोग हमपर दवाब मत डालिए हम जा रहे हैं कॉलेज । " ये बोल कुंदन अपने कमरे की ओर बढ गया । उसकी आदतों से सब वाकिफ थे । वो हमेशा अपनी मन मर्जी ही करता था ।
दिशा चुपचाप बैठी नाश्ता कर रही थी । नारायण जी ने उससे पूछा । " पढाई कैसी चल रही हैं तुम्हरी ? "
" अच्छी चल रही है पापा । " दिशा ने सिर झुकाए ही जवाब दिया । नारायण जी आगे बोले " कल घर आधा घंटा लेट काहे आई । "
दिशा की हालत उनके सामने होने से ही खराब हो जाया करती थी । अब ये सवालों का टार्चर । जब उसका कोई जवाब नहीं आया तो नारायण जी थोडा सख्ती से बोले " हमने कुछ पूछा तुमसे । "
" हां .... वो .... वो .... बाबुजी एक्स्ट्रा क्लास थी इसलिए देर हो गयी । " दिशा ने डरते हुए जवाब दिया ।
" आगे से ध्यान रहे अगर ऐसी कोई बात हो तो हमे फोन करोगी या फिर अपने भाई लोग को । पढ़ने की इजाजत दिए हैं इसका गलत फायदा मत उठाना । हर चीज हम बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन हमारे इज्जत पर कोई दाग लगाए ये हमसे बर्दाश्त नहीं होगा इसलिए ध्यान रखना । ...... बहु पानी लाओ । " गायत्री तुरंत उनके पास चली आई और जग में से पानी उनकी गिलास में उडेला । दिशा सिर झुकाकर चुपचाप बैठी थी । नारायण जी की बाते किसी धमकी से कम नही थी और दिशा बचपन से इन धमकियों को सुनती आ रही थी । कुछ देर बाद वो उठते हुए गायत्री से बोली " भाभी हम चलते हैं हमे कॉलेज के लिए देर हो रही हैं । " ये बोल दिशा वहां से चली गई ।
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जानकी आज क्लिनिक आई तो उसे माहौल बडा अजीब लगा । सबके चेहरे पर अजीब सी मायूसी छाई हुई थी । जानकी को ये सब बेहद अजीब लगा । गंगा आहुजा सर के कैबिन से बाहर निकल ही रही थी की तभी जानकी ठहर गयी । उसने गंगा के कंधे पर हाथ रखकर कहा " क्या हुआ गंगा हमेशा मेरे सामने जो चेहरा मुस्कुराता रहता था वो आज ऐसे बुझा बुझा सा क्यों है ? "
गंगा चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कुराहट लाकर बोली " ऐसी बात नहीं है दीदी वो साहब आपको ही पूछ रहे थे । अंदर आपक इंतजार कर रहे हैं ।"
" ठीक हैं मैं सर से बात करके आती हूं ।" ये बोल जानकी आहुज जी के कैबिन की ओर बढ गयी । " गुड मॉर्निंग सर "
" गुड मॉर्निंग जानकी बेटा । " आहुजा जी ने कहा । जानकी को ये आवाज़ और दिन जैसी बिल्कुल नहीं लगी । वो आगे बढ़ते हुए बोली " सर ऑर यूं ऑल राइट । "
आहुजा जी ने हां में अपना सिर हिला दिया और ड्रोल से एक लिफाफा निकाला । उन्होंने वो लिफाफा जानकी को दिया तो वो लेते हुए बोली ' इसमें क्या है सर ? " ये पूछ्ते हुए जानकी ने वो लिफाफा खोला तो उसमें कुछ रूपए थे ।
अहुजा जी चेयर से उठते हुए बोले " ये तुम्हारी इस महीने की सैलरी हैं बेटा । "
" पर सर अभी तो महीना पूरा भी नही हुआ और आप मुझे सैलरी दे रहे हैं । " जानकी ने कहा ।
अहुजा जी एक गहरी सांस लेकर बोले " इसलिए बेटा क्योंकि कल से तुम्हें काम पर आने की जरूरत नहीं है । "
ये सुनते ही जानकी हैरान रह गई । वो थोडा रूद्ध गले से बोली " पर क्यों सर ? "
आहुजा जी खिडकी की ओर बढते हुए बोले " बेटा तुम पूछ रही थी न की मैं कुछ दिनों से परेशान क्यों हूं ? बहुत दिन से मन में एक बात थी । तुम्हें बताना भी चाहता था लेकिन बता नही पाया । तीन महिने पहले ही मेरे बेटे ने कह दिया था की मैं नेपाल छोड़कर उसके साथ लंदन शिफ्ट हो जाऊ । मैंने इनकार कर दिया और बार बार उसे टालता रहा । वो अपने परिवार के साथ लंदन शिफ्ट हो चुका हैं । वो मुझे यहां अकेला नही छोड़ना चाहता । उसने मुझे अपनी कसम दे दी और मैं इनकार नहीं कर पाया । आज से ये आहूजा क्लिनिक बंद हो रहा है । "
जानकी ने खुद को नोर्मल किया और आहुजा जी के पास चली आई । " इसमें परेशान होने वाली कौन सी बात हैं सर । आपको खुश होना चाहिए की अब आप अपने परिवार के साथ रहेंगे । हम सबकी टेंशन मत लीजिए । हमे कही दूसरी जगह जॉब मिल ही जाएगी वैसे भी आपसे बहुत कुछ सीखा हैं और वो तजुर्बा जीवन में जरूर काम आएगा । "
आहुजा जी पीछे की ओर पलटे । जानकी के चेहरे पर इस वक्त मुस्कुराहट थी । आहुजा जी उसे देखते ही बोले " तुम्हारी हिम्मत , तुम्हारी साकारात्मक सोच तुम्हारी ताकत हैं । इसे कभी मत खोना बेटा । इसके सहारे तुम जिंदगी की बडी से बडी जंग जीत सकती हो । " जानकी कुछ वक्त वहां ठहरकर बाहर चली आई । उसने घर जाने की वजाय रिक्शा पकड़कर गंगा सागर चली आई ।
जानकी इस वक्त सीढ़ियों पर बैठी बस नदी मे उमड़ रही लहरों को देख रही थी । आस पास का मौसम काफी सुहाना था । पानी का रंग नीले आसमान की तरह था । जानकी अपने ही ख्यालों में गुम एक टक उन आती जाती लहरो को देख रही थी । इसी बीच किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा । जानकी ने मुड़कर देखा । पीछे खडे शख्श को देखकर वो थोडा हैरान होते हुए बोली " तुम यहां ....... ? "
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करूणा परी के लिए सही केअर टेकर ढूंढ पाएगी ? आखिर कितना आसान होगा उसके लिए ये सब । ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा
आहुजा जी ने आज जानकी को अपने दिल की बात बता दी ? क्या नयी नौकरी जानकी जल्दी ढूंढ पाएगी । क्या सचमुच जानकी नोर्मल है या नौकरी जाने का दुख उसै अंदर ही अंदर सता रहा है । इस वक्त कौन आया हैं उससे मिलने ? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल तब तक के लिए गुड नाईट
प्रेम रत्न धन पायो
( अंजलि झा )***********