Prem Ratan Dhan Payo - 10 Anjali Jha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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Prem Ratan Dhan Payo - 10






जानकी इस वक्त सीढ़ियों पर बैठी बस नदी मे उमड़ रही लहरों को देख रही थी । आस पास का मौसम काफी सुहाना था । पानी का रंग नीले आसमान की तरह था । जानकी अपने ही ख्यालों में गुम एक टक उन आती जाती लहरो को देख रही थी । इसी बीच किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा । जानकी ने मुड़कर देखा । पीछे खडे शख्श को देखकर वो थोडा हैरान होते हुए बोली " तुम यहां ....... ? "

" हां मैं यहां " ये बोलते हुए वो आदमी वही उसके बगल में बैठ गया । वो और कोई नहीं बल्कि महेश था । जानकी ने वापस से नजरें पानी की ओर कर ली ।

" इस वक्त तो तुम्हें क्लिनिक में होना चाहिए था तो फिर यहां क्या कर रही हो ? "

" बस दिल किया पानी की गहराई नाप लू इसलिए चली आई । " जानकी के ये कहते ही महेश बोला " मज़ाक कर रही हो , सो फनी , मुझे तो हंसी ही नही है । रहने दो तुमपर कामेडी सूट नही करती । मैं अच्छे से जानता हूं जब भी तुम परेशान होती वो यहां चली आती हो । बताओं क्या बात हैं ? "

जानकी ने एक नज़र महेश को देखा और बोली " तुम मुझे इतना समझने लगे हैं । "

" हां समझता हु तुमसे भी बेहतर तरीके से , बताओ क्या बात है ? " महेश ने पूछा ।

जानकी वापस से नदी की ओर देखने लगी । उसने अपना सिर महेश के कंधे पर टिका लिया । " मेरी जॉब चली गई महेश । आहुजा सर को अपने बेटे बहु के साथ लंदन जाना होगा । अब से वो क्लिनिक हमेशा के लिए बंद हो गया । "

" अच्छा तो इसलिए तूं यहां बैठी है । जानू परेशान मत हो तुझे दूसरी जॉब मिल जाएगी । "

" हमममम ..... दो जगह वैकेंसी निकली हैं मैं कल वही इंटरव्यू देने जाउगी । " जानकी ने कहा । दोनों काफी देर तक वही सीढ़ियों पर बैठे बातें करते रहे । जानकी अब काफी हल्का मुहसूस कर रही थी । उसे संभालने के लिए इस वक्त उसका दोस्त जो साथ था ।

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शाम का वक्त , रघुवंशी मेंशन




करूणा इस वक्त लॉन में सोफे पर बैठी थी । उसके सामने कुछ फाइलें रखी थी । वही सामने वाले सोफे पर परी अपनी डॉल के साथ बैठकर खेल रही थी । कैलाश जी वही पास में ही खडे थे । वो करूणा की ओर फाइल बढ़ाते हुए बोले " बडी बहुरानी जरा एक बार इनपर भी नज़र मार लीजिए । पढी लिखी हैं सब और केअर टेकर के जॉब के लिए ये ठीक भी हो । "

" कैलाश जी आज आप जिन्हें लेकर आए थे वो सब अच्छी पढी लिखी थी , लेकिन परी को संभालने के लिए कोई भी सुटेबल नहीं थी । " करूणा कह ही रही थी की तभी संध्या ने आगे एक ट्रे रखी । " भाभी आपकी दवा का वक्त हो गया हैं खा लीजिए । "

करूणा ने दवा खाई और पानी पीकर ग्लास वापस ट्रे में रख दिया । संध्या ट्रे लेकर वहां से चली गई । करूणा आगे बोली " कैलाश जी हमे कोई ज्यादा पढी लिखी लड़की नही चाहिए । बस समझदार होनी चाहिए ताकी वो इस बच्ची की पूरी जिम्मेदारी संभाल सके । अगर ऐसी लड़कियां नज़र मे हो तो उनके बारे में भी बताइए ।‌‌'

" ऐसी लड़कियां भी हैं । आप कहे तो कल हम उन्हें भी बुला ले । " कैलाश जी ने पूछा तो करूणा बोली " जी बुला लीजिए । " कैलाश जी फाइले समेटकर वहां से चले गए ।‌। करूणा परी को गोद मे लेकर हवेली के अंदर चली आई ।

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शाम का वक्त , गिरिराज का कमरा




गायत्री इस वक्त बेड पर रखे कपड़ों को सहेजकर कबर्ड में रख रही थी और गिरिराज आइने के सामने गुनगुनाते हुए तैयार हो रहा था । उसने परफ्यूम की बोटल उठाई और अपनी कलाई पर हल्का छिड़ककर उसकी खुशबू लेने लगा । उसे जब वो खुशबू पसंद आई तो परफ्यूम अपने बदन पर छिडकने लगा । गायत्री चुपचाप ये सब तमाशा देख रही थी । मन में थो बहुत कुछ था कहने को लेकिन उसे कहने के लिए तो हिम्मत चाहिए , वो नही था उसके पास । गिरिराज ने अपना फ़ोन उठाया और एक नंबर मिलाया । सामने वाले सख्श ने जैसे ही फ़ोन रिसीव किया गिरिराज बोला " लाखन हमरी गाडी निकालो , हम अभी आ रहे हैं ।‌‌" इतना बोल गिरिराज ने फ़ोन काट दिया । उसने ड्रेसिंग टेबल का ड्रोल खोला । पर्स जेब में डाला और गन पीछे कमर से टिकाया ।‌‌ वो जाने के लिए दरवाजे की ओर बढ ही रहा था की तभी गायत्री बोली " आप कही जा रहे हैं ? "

गिरिराज का चेहरा गुस्से से भर गया । वो पलटकर बोला " फिर से पीछे से टोक दी । तुमहरी अम्मा के श्राद्ध में जा रहे हैं तुमको भी चलना हैं । हज़ार बार समझाए हैं पीछे से मत टोका करो लेकिन भेजे में बात घुसती नही हैं ‌। बिगाड दिया न सारा काम । दो पैसे की अकल नही हैं । " इतना सब कहकर गिरिराज गुस्से से भनभनाते हुए निकल गया । गायत्री चुपचाप बेड के किनारे शॉल पकड़कर चुपचाप खडी थी । उसकी पलकें नम हो चुकी थी । उसने चेहरा उठाया तो आंसू की लकीर गालों पर खिंच गयी ।

" ऐसा भी क्या गलत पूछ लिया जो जीते जी हमारी मां के मरने की बात कर डाली ‌‌ । सुना हैं जिसके पास मां नही होती वो उसके दर्द को बहुत अच्छे से पहचानता हैं , लेकिन इन्हें देखकर तो ये बात भी झूठी लगने लगी हैं । "

गिरिराज अपने बाजु की आस्तीन ऊपर करते हुए हवेली से बाहर चलना है । लाखन उसके लिए गाडी के पिछले सीट का दरवाजा खोले खडा था । गिरिराज के अंदर बैठते ही लाखन भी ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया ‌‌। कहां चलतना हैं बडे साहब ? "

" बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे पहली बार हमरी गाडी में बैठे हो , तुमको मालूम नही क्या ? " गिरिराज ने थोडा सख्ती से कहा तो लाखन गाडी स्टार्ट करते हुए बोला " समझ गया साहब । "

कुछ ही देर बाद गिरिराज की गाडी एक जगह आकर रूकी । आस पास काफी जगमगाहट थी । संगीत का शोर दूर दूर तक था । अतरंगी लिवाज कितनी ही लड़कियों ने धारण कर रखा था । देखकर साफ पता चल रहा था वो शरीफों का इलाका नही था , लेकिन आना जाना तो ऊची नाक वाले शरीफों का ही होता था । भला किसी गरीब की क्या मजाल जो खाली जेब लेकर यहां चला आए । गिरिराज गाडी से बाहर निकला तो दो लड़कियां उसके पास चली आई । कोई अदाओ से रिझाने की कोशिश कर रही थी तो कोई बातों से । "

" ठाकुर साहब पिछली बार आए थे तो हमे सपने दिखाकर गए थे आज तो आपको हमारा हाथ थामना ही पडेगा । " उस लडकी के ये कहने पर गिरिराज बोला " रहने दो अगर हमने थाम लिया तो तुमहरी कलाइयों में बल पड जाएगा । " इतना कहकर गिरिराज उन सबकी अंदेखी करता हुआ सामने वाली कोठी के अंदर चला गया । ..….......

लाख इस दिल को हमने समझाया
दिल यहाँ फिर भी हमको ले आया

सलाम, सलाम

( गिरिराज अंदर आया तो देखा महफ़िल जमी हुई थी । कुछ लड़कियां गाते हुए नृत्य कर रही थी तो कुछ आदमी ज़मीन पर बिछे गद्दों पर बैठकर उनका नृत्य देख रहे थे । ऐसा कोई नही था जिसका हाथ जाम से खाली हो । कोई बैठा हुक्का पी रहा था , तो कोई अपने हाथे में बंधे गजरे को होंठों से चूम रहा था । )

तुम्हारी महफ़िल में आ गए है
तुम्हारी महफ़िल में आ गए है
तो क्यों ना हम यह भी काम कर ले
सलाम करने की आरज़ू है
सलाम करने की आरज़ू है
इधर जो देखो सलाम करले


( गिरिराज का यहां रोज का आना जाना था । शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता जब वो यहां न आता हो । वो अपनी जगह पर आकर बैठ गया । किनारज खडी एक मोटी सी औरत मुस्कुराई और अपने बगल में खडी लडकी से बोली " जाओ जाकर ठाकुर साहब की खिदमत में उनका पसंदीदा जाम पेश करो । "

इतना सुनकर वो लडकी वहां से चली गई । कुछ ही पलो में गिरिराज के आगे शराब से भरी बोतल रखी हुई थी । )

यह दिल है जो आ गया है तुमपर
वह अगर ना सच यह है बंदापरवर

जिसे भी हम देखले पलटकर
जिसे भी हम देखले पलटकर
उसी को अप्पना गुलाम कर ले
सलाम करने की आरज़ू है
सलाम करने की आरज़ू है
इधर जो देखो सलाम करले


( कुछ ही पलो में गिरिराज के आगे शराब से भरी हुई बोतल रखी हुई थी । वो गिलास में शराब डालने ही वाला था की तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया । गिरिराज ने नजरें उठाई तो सामने वही लड़की थी , जो थोडी देर पहले सबके साथ डांस कर रही थी । इस वक्त उसके चेहरे पर घूंघट था लेकिन ये घूंघट पूरी तरह पारदर्शी था , जिससे उसका चेहरा साफ नज़र आ रहा था । कजरारे नैन जो बडी बडी पलको के नीचे छुपे थे । होंठों पर गहरा लाल रंग । उसने गिरिराज के गिलास में शराब उडेला । गिरिराज ने उसे छूने के लिए अपना हाथ बढाया , लेकिन इससे पहले वो उसे छू पाता वो लडकी उठकर फिर से सबके बीच जाकर नाचने लगी ।

बहुत से बातें है तुमको केहनी
बहुत से बातें है हमको केहनी

कभी जो तनहा मिलो कहीं तुम
कभी जो तनहा मिलो कहीं तुम
तो बातें हम यह तनमन कर ले

सलाम करने की आरज़ू है
सलाम करने की आरज़ू है
इधर जो देखो सलाम करले


( कोई नोट बरसा रहा था तो कोई तारीफों के पुल बांध रहा था । नजरें तो किसी की भी उनसे ओझल नही हो रही थी । होती भी कैसे यहां नजरें एक बार जय जाए तो आसानी से नहीं हटती साहब । )

वो लैला मजनू की हो मोहबत्त
के सीरी फरहाद की हो उल्फ़त
ज़रा सी तुमजो देखो जुर्रत
ज़रा सी तुमजो देखो जुर्रत
तो हमभी उन जैसा काम करले

तुम्हारी महफ़िल में आ गए है
तो क्यों ना हम यह भी कम कर ले
सलाम करने की आरज़ू है
सलाम करने की आरज़ू है
इधर जो देखो सलाम करले


गाना खत्म होते ही वो लड़कियां भी रूक गयी । दो चार डग पीछे की ओर लेते हुए वो सब वहां से चली गई । महफ़िल भी उठ चुकी थी और शमा भी बुझ चुकी थी । सब जा चुके थे केवल गिरिराज को छोड़कर । वो मोटी सी औरत कमर मटकाते हुए गिरिराज के सामने आकर बैठ गयी । ठाकुर साहब जाम का नशा तो आपने बहुत कर लिया । असली नशा करना ही हैं तो अंदर जाइए । रागिनी कब से आपका इंतजार कर रही है । "

गिरिराज ने शराब का गिलास खली कर उसे नीचे रखते हुए बोला " जानता हूं कोकिला बाई । तुम्हारा पिलाया शराब पानी से भी बद्तर हैं । हम लोगों से इतना वसूलती हो करती क्या हो उसका ? "

कोकिला अपने बालों पर हाथ फेरते हुए बोली " हजार खर्चे हैं ठाकुर साहब अब कितना गिनवाए आपको । अकेली तो हूं नही । दस दस नखरे वालीयो को संभालना पडता हैं । जगह जगह घूमकर , बडी मुश्किल से आप लोगों की पसंद ढूंढकर लाते हैं । अब आप ही बताइए क्या ये सब खर्चे का काम नही हैं । "

गिरिराज उठते ही बोला " तुम रात भर बैठकर अपने खर्चे गिनो । हमारा पास इतना वक्त नही हैं जो बही खाता लेकर बैठै रहेंगे । हम बहुत थक गए हैं । " ये बोल गिरिराज वहां से चला गया । कोकिला बाई उठते ही बोली ' सारी दुनिया बस औरत पर बस इलज़ाम लगाती हैं । मर्द के खर्चे भी कुछ कम नही । चांद जैसी बीवी को छोड़कर कांटों से भरे गुलाब की ख्वाहिश लिए बैठे हैं । वाह रे दुनिया बनाने वाले चुन चुनकर नमूने भेजे हैं इस धरती पर । " कोकिला बाई मूंह बनाते हुए अपने कमरे की ओर बढ गई ।

एक झपकी एक पल की मिलती होगी ,

बाजार की दुनिया में नींद भी बिकती होगी !

मैं लिखती हूँ जिस रात में इस पंक्ति को ,

लगता है इसकी भी एक दिन नीलामी होगी !!


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क्या जानकी को नयी नौकरी जल्दी मिलेगी ? ये जानने के लिए आगे का चेप्टर पढना पडेगा । कटाक्ष के स्वर हैं बुरा मत मानिएगा । बस सच के कुए से कुछ बूंदें निकालकर दिखाई हैं । दिल पर लग जाए तो माफ़ कर दीजियेगा ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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