Prem Ratan Dhan Payo - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 11






कोकिला बाई उठते ही बोली ' सारी दुनिया बस औरत पर बस इलज़ाम लगाती हैं । मर्द के खर्चे भी कुछ कम नही । चांद जैसी बीवी को छोड़कर कांटों से भरे गुलाब की ख्वाहिश लिए बैठे हैं । वाह रे दुनिया बनाने वाले चुन चुनकर नमूने भेजे हैं इस धरती पर । " कोकिला बाई मूंह बनाते हुए अपने कमरे की ओर बढ गई ।

गिरिराज रागिनी के कमरे में चला आया । उसे इस वक्त कमरे में कोई नज़र नहीं आया । दरवाजा बंद करने की आवाज जब उसके कानों में पडी तो उसने पलटकर देखा । रागिनी दरवाजा बंद कर उससे टिककर खडी थी । उसने इस वक्त वही लिवाज और गहने पहने थे जो नाचते वक्त उसने पहन रखा था ‌। चेहरे पर घूंघट अभी भी कायम था ।

" अब हमारे बीच ई पर्दा काहे रखी हो । कोई पहली मुलाकात तो नही हैं हमारी । " गिरिराज ने कहा ।

रागिनी धीरे धीरे कर उसकी ओर कदम बढाने लगी । गिरिराज के सामने आकर वो रूकी और दोनों हाथ उसके सीने पर रख उसे बिस्तर की ओर धकेल दिया । गिरिराज सीधा पीठ के बल पर गिरा । रागिनी भी उसके ऊपर चली आई और अपना घूंघट हटाकर उसके चेहरे की ओर झुककर बोली " कल काहे नही आए थे आप ? "

" कल अपनी बीवी के साथ थे । " गिरिराज उसकी आंखों में देखते हुए बोला । रागिनी अपनी आंखें छोटी करते हुए बोली " फिर आज काहे चले आए । बैठे रहते बीवी के आर्लिगन मे । " उसके ये कहते ही गिरिराज ने उसे बिस्तर पर पलटा और उसके ऊपर आकर बोला " इतना काहे जल रही है । तुम्हारे हैं और देखे आ गए फिर से तुम्हारे पास । "

रागिनी उसके कुर्ते के बटन खोलते हुए बोली " ठाकुर साहब जितने घंटे आपने अपनी बीवी के साथ नही बिताए होंगे उससे कही ज्यादा वक्त हमारे साथ गुजारा हैं आपने । हमसे ज्यादा प्यार आप उससे करते हैं । कल मंदिर में देखे थे हम उसको । गले मे पहना नौलखा हार चमचम कर रहा था । "

गिरिराज उसके होंठों को हल्के होंठो से छूते हुए बोला " तूमको पसंद हैं ऊं । "

रागिनी ने हां में अपना सिर हिलाया । गिरिराज उसके बालों को सहलाते हुए बोला " ठीक हैं कल ऊं तुम्हरे गले में होगा । " ये सुनते ही रागिनी का चेहरा खुशी से खिल उठा और वो गिरिराज के गले लग गई ।

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रात का वक्त , ठाकुर भवन




सब लोग रात का खाना खाकर अपने अपने कमरे में सोने चले गए थे । गायत्री दरवाजे पर खडी गिरिराज के लौटने का इंतजार कर रही थी । दिशा पानी लेने के लिए सीढ़ियों से नीचे आ रही थी । वो किचन की ओर बढ ही रही थी कि तभी उसकी नज़र दरवाजे पर खडी गायत्री पर पडी । दिशा खुद से बोली " भाभी इस वक्त वहां क्या कर रही है ? "'

दिशा गायत्री के पास चली आई ' भाभी ' ।

दिशा की आवाज सुन गायत्री पीछे की ओर पलटी । " भाभी रात के दो बज रहे हैं । इस वक्त आप यहां क्या कर रही है ? "

" वो .... वो हम .....

" बडे भैया का इंतजार कर रही है । ' गायत्री की बात पूरी होने से पहले ही दिशा बोली । गायत्री ने हां में अपना सिर हिला दिया । दिशा परेशान होकर बोली " भाभी आपको लगता हैं भैया इस वक्त आएंगे और अगर आ भी गए तो अपने कमरे में खुद चले जाएंगे । आपको हाथ पकड़कर उन्हें कमरे तक लेकर जाने की जरूरत नहीं है । अपनी सेहत का भी ख्याल रखिए भाभी । जाइए जाकर सो जाइए । " गायत्री ने इन्कार करना चाहा लेकिन दिशा जिद कर उसे उसके कमरे में ले गयी । उसे उसके कमरे तक छोड़ने के बाद दिशा वापस किचन में चली आई । उसने पानी का बोटल भरा और जैसे ही जाने के लिए पलटी खिडकी से उसै कोई नज़र आया । दिशा ने ध्यान से देखा तो वहां कोई नहीं था लेकिन एक हलचल उसने महसूस की थी । दिशा ने अपने ख्यालों को झटका और लाइट ऑफ कर अपने कमरे में चली गई ।

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सुबह का वक्त , रघुवंशी मेंशन




आज राघव की इंम्पोरटेंट मीटिंग थी इसलिए वो सुबह जल्दी ऑफिस के लिए निकल गया । करूणा अपने कमरे से बाहर निकली तो उसे संध्या दिखाई दी जो बहुत ज्यादा घबराई हुई थी ।

" क्या बात हैं संध्या तुम इतनी परेशान क्यों हो ? "

" वो ... वो क्या हैं न भाभी हमारे घर से फ़ोन आया था । मां ने बताया हमारे पाताजी की तबियत खराब है ‌‌। हमे जल्द से जल्द घर बुलाया हैं । "

" ओह फिर तो तुम्हें जल्दी निकलना होगा । "

" हां भाभी आज शाम की ही ट्रेन हैं । " संध्या ने कहा ।

करूणा उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली " तुम जाकर अपनी पैकिंग करो मैं ड्राइवर से कह देती हूं वो वक्त पर तुम्हें स्टेशन छोड देगा । " संध्या हां में सिर हिलाकर वहां से चली गई । करूणा नीचे चली आई । कुछ लड़कियां इंटरव्यू देने के लिए आई हुई थी और करूणा उन्हीं का इंटरव्यू लेने के लिए रूम में चली गई ।

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सुबह का वक्त , ठाकुर भवन




नारायण जी इस वक्त हॉल में बैठे हुए थे । एक नौकर चाय की ट्रे टेबल पर रखकर जाने लगा । नारायण जी टोकते हुए बोले " सुनो गिरिराज कहा हैं ? '

" बडे साहब तो कल शाम को ही हवेली से निकले थे । उसके बाद से घर नही लौटे । " नौकर ने जैसे ही ये कहा नारायण जी ने अपनी नजरें ऊपर की । वो अखबार मोड़कर टेबल पर रखते हुए बोले " बहु .... बडी बहु । '

आवाज सुनकर गायत्री दौडी चली आई " जी .... जी बाबुजी । " गायत्री अपना घूंघट संभालते ही बोली ।

" कहां हैं तुम्हारा पती ? रात भर गायब रहता है कोई खोज खबर रखती हो को नही । एक पती नही संभाला जा रहा तुमसे । ई घर की जिम्मेदारी का खाक संभालोगी । "

" का हुआ बाबुजी काहे अपना बी पी बढा रहे हैं । ' कुंदन अपनी बाजु फोल्ड करता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था ।

" जितने भी नकारा लोग थे सबको राम जी हमरे ही घर में भेज दिए । फोन लगाओ अपने बडे भाई को और घर आने को कहो । " ये बोल नारायण जी ने अपना कप उठाया और चाय पीने लगे ।

कुंदन गायत्री से बोला " भाभी जल्दी से हमरे लिए नाश्ता लगवाइए हमको कॉलेज जाना है । " गायत्री हां में सिर हिलाकर वहां से चली गई । कुंदन गिरिराज को फ़ोन लगाते हुए वही सोफे पर बैठ गया । दूसरी तरफ फ़ोन की घंटी जा रही थी और गिरिराज अभी भी बेड पर सो रहा था । फोन की बेल बजी तो रागिनी की नींद खुल गयी । उसने उठकर दुपटा खुद पर डाला और टेबल से उसका फ़ोन उठाकर गिरिराज से बोली " ठाकुर साहब आपका फोन । "

गिरिराज की नींद टूट गयी । अलसाई आंखों से उसने फोन रिसीव कर कान से लगा लिया " हल्लो "

" कहां हैं भैया आप , बाबुजी आपके लिए परेशान हो रहे हैं । " कुंदन कह ही रहा था कि तभी नारायण जी ने उससे फ़ोन छीन लिया । गिरिराज उनींदी आवाज में बोला " छोड़ो बुढ़ऊ को उनके पास और कोई काम नही हैं । जब देखे तब लेक्चर बाजी । उनकी उमर हो गयी , खुद से कुछ होता नही हम सबकी जवानी बर्बाद करने पर तुले हैं । '

गिरिराज को मालूम नही था इस वक्त फ़ोन किसके हाथ में हैं । उधर दूसरी तरफ नारायण जी आग बबूला हो रहे थे । उन्होंने गुस्से भरी सख्त आवाज में कहा " हां हम बुढऊ हैं और तुम पर तो जवानी अभी अभी चढी हैं । ससुर के नाती पहले घर आओ फिर तुमहरी जवानी उतारते हैं । "

" आवाज सुनकर गिरिराज के होश उड़ गए । वो तुरंत बिस्तर पर उठ बैठा ' बाबुजी '

' बाबुजी नही बेटा बुढऊ कहों , ऊहे तुमहरी ज़ुबान से अच्छा लगता हैं । समझ नही आ रहा हम तुम्हारे बाप हैं या तुम हमरे । " इतना बोलकर उन्होंने फ़ोन काट दिया । " ईहे सुनना बाकी रह गया था । "

" का हुआ बाबुजी ? ' कुन्दन ने पूछा तो नारायण जी कुढ़ते हुए बोले " सब इज्जत उतारने पर तुले हैं तो तुम काहे इज्जत का चोला पहना रहे हैं । तुम भी कहो बुढऊ ..... नारायण जी ये बोल वहां से उठकर चले गए ।

कुंदन अपने आप से बोला " अब इनको का हो गया ? सचमुच उमर बढ़ने के साथ सठिया गए हैं ‌‌। "

उधर दूसरी तरफ गिरिराज की नींद पूरी तरह खुल चुकी थी । रागिनी उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली " आप इतना काहे घबरा रहे हैं ठाकुर साहब कोनों परेशानी तो नही हैं न । "

' परेशानी तो बहुत हैं तुम जानकर का करोगी ? " ये बोलते हुए गिरिराज अपने कुर्ते के बटन बंद करने लगा । रागिनी उसके करीब आकर उसका हाथ हटाकर खुद बटन बंद करते हुए बोली " क्यों ठाकुर साहब आपको हमपर शक हैं ‌‌। आपकी थकान दूर करने में हम कोई कसर नही छोडते । ज्यादा न सही थोडी बहुत परेशानी तो दूर कर ही सकते हैं , जरा कहकर तो देखिए । "

गिरिराज कुछ पल सोचने के बाद बोला " इस शहर में हमारा एक ही दुश्मन हैं रागिनी और तुम उसको अच्छे से जानती हो । हम उसको बर्बाद होते हुए देखना चाहते हैं । "

" आप राघव सिंह रघुवंशी की बात कर रहे हैं न । "

" हमममम "

" ठाकुर साहब औरत चाहे तो किसी को आबाद भी कर सकती हैं और बर्बाद भी । एक बार कोशिश करके देखिए । फिर आपके दुश्मन भी पिघल जाए । " रागिनी के ये कहते ही गिरिराज उसके चेहरे की ओर देखने लगा । गिरिराज ने झुककर उसके होंठों को छू लिया । रागिनी की पकड भी उसके बालों पर कस गई । गिरिराज कुछ पल बाद उससे दूर होकर बोला " काम अच्छा कर लेती हो , साथ ही साथ शातीर दिमाग भी रखती हो । ई काम तुम काहे नही कर लेती । "

गिरिराज के ये कहते ही रागिनी हंसने लगी । " क्यों साहब आप मज़ाक कर रहे हैं ? " गिरिराज उसकी बांह पकड़ सख्ती से बोला ' हम मज़ाक नही कर रहे हैं । "

" बदले में हमको का मिलेगा साहब । " रागिनी ने अपनी एक आइब्रो उचकाकर पूछा ।

" मंदिर के पीछे वाली हमारी कोठी हम तुम्हरे नाम कर देंगे । " गिरिराज ने कहा ।

रागिनी के होंठों पर तिरछी मुस्कुराहट तैर गयी । वो बड़े प्यार से अपनी दोनों बाहें गिरिराज के गले में डालकर बोली " हम आपके लिए जान दे दे फिर ई कौन सी बडी बात हैं । " गिरिराज अपने गले से उसकी बांहें निकाल बिस्तर से उठते हुए बोला " आज रात नही आएंगे ।‌" ये बोल वो वहां से चला गया ।

रागिनी बेड पर लेटकर अपना हाथ उसपर फेरते हुए बोली " भला हम कैसे भूल सकते हैं उनसे वो मुलाकात जब उन्होंने हमे बाहों में थामा था । " ये कहते हुए रागिनी ने अपनी आंखें बंद कर ली ।

( फ़्लैश बैक )


पॉच महिने पूर्व महाकाली की पूजा के वक्त राघव अपने पूरे परिवार के साथ मंदिर आया था । स्नान करने के लिए वो घाट के पानी में चला आया ‌‌। वो डुबकी लगाकर पानी के अंदर गया । एक पुष्प माला पानी में तैर रही थी । राघव जब बाहर आया तो वो माला उसके गले में थी । उसकी आंखें बंद थी , इसलिए उसका ध्यान इस बात पर बिल्कुल नही गया । उसने फिर से डुबकी लगाई । इस बार उसके साथ एक लडकी भी बाहर आई और पुष्प माला उन दोनों के गले में थी । वो लडकी कोई और नही रागिनी थी । राघव की आंखें अभी भी बंद थी , लेकिन रागिनी की आंखें खुली हुई थी । राघव को देखे उसके होंठों पर बडी सी मुस्कुराहट थी । यूं कहिए वो राघव के चेहरे में खो सी गई थी । राघव ने दोबारा डुबकी लगाई और उसके साथ रागिनी भी पानी के अंदर गयी । दोनों ही एक साथ बाहर आए । इस वक्त भी वो पुष्प माला उन दोनों के गले में थी । राघव ने अपनी आंखें खोली ।

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क्या गिरिराज अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हैं ? क्या होगा जब वो इस सच को जानेगी ? क्या हैं रागिनी के दिल में राघव के लिए ? क्या वो गिरिराज की बात मानकर कोई खेल खेलने वाली है ? क्या राघव इन परेशानियो को वक्त रहते जान पाएगा ? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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