Prem Ratan Dhan Payo - 12 Anjali Jha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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Prem Ratan Dhan Payo - 12






राघव ने दोबारा डुबकी लगाई और उसके साथ रागिनी भी पानी के अंदर गयी । दोनों ही एक साथ बाहर आए । इस वक्त भी वो पुष्प माला उन दोनों के गले में थी । राघव ने अपनी आंखें खोली । आंखें खोलते ही उसे अपने सामने एक लडकी दिखाई दी जो उसके लिए अंजान थी । रागिनी खोए हुए अपने हाथों को उसकी ओर बढा रही थी । राघव की आंखें छोटी हो गई । उसने गले से उस हार को निकाला जिस कारण रागिनी के हाथों में धक्का लगा । उसकी तंद्रा टूटी और वो गिरने लगी ‌‌। उसे गिरता देख राघव ने उसे संभाल लिया । रागिनी की मुस्कुराहट और बढ गयी । वो बिना पलके झपकाए उसे एकटक निहारती रही । राघव ने उसे सीधा खडा किया और बिना कुछ बोले वहां से चला गया । रागिनी बस उसे जाते हुए देखती रही , तब तक जब तक वो उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गया ।

( फ़्लैश बैक एंड )

रागिनी अभी भी आंखें बंद किए बेड पर लेटी हुई थी । उसने आंखें खोली और उठकर बैठ गई । " हाय ..... आप कुछ न कहकर भी हमसे हमारा चैन ले गए राघव जी । वो पहली बार था उसके बाद से तो ये नजरें हर पल आप ही को तलाशती है । "

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शाम का वक्त , जानकी का घर


संगीत कि गूंज बाहर तक सुनाई पड़ रही थी । मैथिली अंदर चली आई । इस वक्त आंगन में कुछ लड़कियां नृत्य कर रही थी और जानकी उन सबको नृत्य सिखा रही थी । वैसे तो वो हफ्ते में सिर्फ एक दिन ही बच्चियों को नृत्य सिखया करती थी, लेकिन अभी जॉब पर न जाने के कारण वो रोज उन्हें नृत्य सिखाने लगी थी । मैथिली कुछ देर यूं ही दूर खडी देखती रही और फिर वही चबूतरे के किनारे बैठ गई । नाचते वक्त जानकी की नज़र उसपर पड़ी तो वो मुस्कुरा दी । तकरीबन आधे घंटे बाद बच्चों की क्लास खत्म हुई ।

सबने आगे बढ़कर जानकी के पैर छुए । " अच्छा बाबा ठीक हैं , घर पर सब रियाज़ करना । " सारे बच्चों के जाने के बाद जानकी मैथिली के पास आकर बैठ गई और पैरों मे बंधे घुघरू को खोलने लगी ।

" क्या हुआ जानू आज तूं इंटरव्यू के लिए गयी थी ? क्या कहा उन लोगों ने ? "

" एक जगह मेरे पहुंचने से पहले ही वेकेंसी फुल हो गयी । दूसरी जगह इंटरव्यू शुरू होने से पहले ही रिश्वत की बदौलत सीट किसी और को दे दी गई । " जानकी के ये कहने पर मैथिली कुछ देर के लिए शांत हो गयी । उसने जानकी की ओर देखकर कहा " दिल छोटा मत कर सब अच्छा होगा । मैं ये बताने आई थी परसों महाशिवरात्रि हैं । अकेली मंदिर मत भाग जाना मेरे साथ ही जाना । "

" आज तक ऐसा हुआ हैं तेरे बिना शिवरात्रि का जल मैंने चढाया हो । " जानकी ने कहा ।

" सो तो हैं अब यहां बैठी क्यों हैं ? जा जाकर मेरे लिए चाय बना । तेरे हाथों की चाय पीने के लिए मैं घर की चाय छोड़कर आई हूं । " मैथिली ने कहा ।

जानकी मुस्कुराते हुए उठी और अंदर जाते हुए बोली " अच्छा ठीक हैं मैं बनाकर लाती हूं । नाश्ते में कुछ खाएगी । "

" नही तूं बस चाय बनाकर ले आए । "' मैथिली ने कहा ।

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रात का वक्त, रघुवंशी मेंशन




आज राज और अमित दोनों रघुवंशी मेंशन आए हुए थे । अमित और राघव स्टडी रूम में बाते कर रहे थे । राज नीचे परी के साथ खेल रहा था । खेल कम रहा था और उसे चिढा ज्यादा रहा था । परी बार बार करूणा का आंचल पकड़कर शिकायत करती । " मां राज चाचु गंदे हैं । मुझे परेशान कर रहे है इनकी पिटाई करो । "

राज उसकी नकल उतारते हुए बोली " मां ये परी बहुत गंदी हैं इसकी पिटाई करो । "

परी गुस्से से पैर पटकते हुए बोली " मैं चाचू से आपकी कंप्लेंट कर दूंगी ‌‌। "

" आप दोनों का लडना झगडना हो गया हो तो खाने के लिए चले आईए । ...... सुरेश जाओ जाकर स्टडी रूम से देवर जी और अमित को खाने के लिए बुला लाओ । " करूणा ने कहा ।

सुरेश हां में सिर हिलाकर वहां से चला गया । कुछ देर बाद राघव और अमित दोनों नीचे चले आए । परी भागकर राघव के पैरों से लिपट गयी । " चाचू राज चाचु की पिटाई करो ये मुझे परेशान कर रहे हैं । "

अमित परी का हाथ पकड़ उसे डाइनिंग टेबल के पास ले आया और उसे चेयर पर बिठाते हुए बोला " आप कहे तो आज आपके राज चाचू को खाना नही देते फिर कैसा रहेगा ? " परी ने मुस्कुराते हुए कहा " हां आज हम इनको खाना नही देंगे । "

" अच्छा जी जब चॉकलेट चाहिए तब ये राज चाचू याद आते हैं और अब अमित चाचु के साथ मिलकर मेरा ही खाना बंद करवाना हैं । मैं अभी बताता हु । " ये बोल राज ने जल्दी से दो तीन चावल चम्मच में भरकर मूंह मे डाल लिया । ये देख करूणा हंसने लगी । परी और अमित दोनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगे । करूणा सबको खाना परोस रही थी ।

राघव पूछ्ते हुए बोला " भाभी मां कोई केअर टेकर मिली । '

" नही देवरजी कोई इसे दस मिनट से ज्यादा नही झेल पाई । कल कैलाश जी ने कुछ और लड़कियों को बुलाया हैं देखते हैं । " करूणा ने कहा । राज खाते हुए बोला " बाप रे मतलब ये इतनी शैतान है ।" राज के ये कहते ही परी उसे घूरकर देखने लगी ।

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अगला दिन , जनकपुर




जानकी मैथिली के घर आई हुई थी । उसने दरवाज़ा नोंक किया तो पूनम जी ने आकर दरवाज़ा खोला । वो अपने आंचल से आंसू पोंछते हुए बोली " जानकी आहा ...... आऊ बेटा बाहर किया ठार छी , अंदर आऊ । "' ये बोल वो दरवाजे से साइड हट गई । उन्हें रोता देख जानकी आश्चर्य से बोली " चाची आहा कानई किया छी , सब ठीक छय न । " ये बोलते हुए जानकी अंदर आ गयी । कमरे से बाहर आती हुई मैथिली बोली " अरे यार मैं बताती हु क्या बात हैं । दर असल मां मूवी देख रही थी । हिरोईन मर गयी न इसलिए मां को रोना आ रहा है । "

" जानकी अंदर बैइसु हम चाय बनवई ले जाए छेलेऊ है , आहु ले बना दयी छी । " ये बोलते हुए पूनम जी किचन में चली गई ।

मैथिली जानकी को अपने कमरे में ले जाने लगी । " ऐसी कौन सी मूवी देख ली चाची ने कि उन्हें रोना आ गया । " जानकी ने पूछा तो मैथिली मुस्कुराते हुए बोली " वही मैथिली मूवी ' आऊ पिया हमर नगरी ' । कमाल हैं यार पचासों बार देख चुकी हु फिर भी जी नही भरता । उदित नारायण और अनुराधा पौडवाल के गाए गीत क्या कहना उनका । जुबांन पर अभी भी उसक जायका हैं । ' अपन बना क हमर दिल चुरा लेलऊ आहा , प्रेम को के स्वर्ग हमरा देखा देलऊं आहा ....... मैथिली गीत गुनगुनाने लगी । जानकी उसे देख मुस्कुरा रही थी ।

पूनम जी उनकी चाय कमरे में ही लेकर चली आई ‌‌। जानकी उनकी ओर एक टिफिन बाक्श बढाते हुए बोली " चाची इसमें मखाने की खीर हैं । चाचाजी को पसंद हैं न उनके लिए लाई हूं । "

पूनम जी मुस्कुराकर वहां से चली गई । जानकी और मैथिली वही बैठकर बाते करने लगी ।

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महाराजा इंटर कॉलेज , अयोध्या




दिशा अपनी दोस्तों के साथ क्लास रूम से बाहर निकली । वो सब बातें करते हुए आगे बढ़ रही थी । दिशा की दोस्त उसे कोहनी मारते हुए बोली "' यार दिशा वो कब से तेरा पीछे कर रहा हैं , तूं एक बार बात क्यूं नहीं करती उससे ? "

" दिशा अपनी दोस्त की बात सुनकर पीछे की ओर पलटी । एक लडका दूर खडा उसे ही देख रहा था । दिशा अपनी दोस्त का हाथ पकड़ते हुए बोली " तू चल मेरे साथ । " दिशा को जाते देख वो लडका भागकर उसके आगे चला आया और रास्ता रोकते हुए बोला " अरे यार दिशा एक मिनट रूको तो सही । मुझे कुछ बात करनी हैं तुमसे । "

" देखो राकेश मुझे तुमसे कोइ बात नही करना । मेरा रास्ता छोड दो ‌‌। "

" दिशा क्या बात है दो मिनट के लिए बस मेरी बात सुन लो ‌‌। प्यार करता हु मैं तुमसे दिशा । " राकेश के इतना कहते ही दिशा आस पास देखने लगी । उसने धीरे से कहा " देखो राकेश सब देख रहे हैं , मेरा तमाशा मत बनाओ । चुपचाप से मेरे रास्ते से हट जाओ वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा । "

" आखिर किस बात का डर हैं दिशा जो तुम मुझे ऐसे इग्नोर कर रही हूं । " राकेश ने कहा ।

दिशा थोडा गुस्से से बोली " शुक्र मनाओ तुम इस वक्त अंदर हो । बाहर मेरे आदमियों के सामने कुछ कहा होता न तब वो तुम्हे बताते । अपनी खैर चाहते हो तो मेरे प्यार का भूत अपने दिमाग से उतार दो । " दिशा ने इतना कहा और अपनी दोस्त का हाथ पकड़ जाने लगी । राकेश उसे पीछे से टोकते हुए बोला " दिशा ठाकुर ने तो मुझे तुम्हारे आदमियों का डर हैं न ही तुम्हारे परिवार का डर । मुझे सिर्फ तुमसे फर्क पडता हैं । अगले दो दिन के अंदर तुम सबके सामने मुझे एक्सेप्ट करोगी ये मेरा वादा हैं तुमसे क्योंकि अगर ऐसा नही हुआ तो उसके बाद से मैं कभी तुम्हे अपनी शक्ल नही दिखाउंगा । "

दिशा बिल्कुल नही रूकी और न ही उसने पलटकर देखा । राकेश बस उसे जाते हुए देख रहा था ।

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रात का वक्त , ठाकुर भवन




इस वक्त सब लोग डाइनिंग टेबल के पास बैठकर खाना खा रहे थे । सबका ध्यान खाने पर था लेकिन दिशा वो बस प्लेट में चम्मच घुमाए जा रही थी । कुंदन उसे देखते ही बोला " का हुआ भूख नही हैं तुमको ? "

कुंदन की आवाज सुनकर दिशा का ध्यान टूटा । वो अपना सिर झुकाकर खाने लगी । गायत्री दिशा के पास चली आई । उसने गिलास में पानी डालते हुए धीरे से कहा " दिशा आराम से खाना खाओ । " दिशा समझ गयी वो क्या कहने की कोशिश कर रही है , क्योंकि दिशा घबराहट की वजह से कांप रही थी ।

नारायण जी गिरिराज से बोले " ऑफिस तुम जाते हैं या तुम्हारे बदले दूसरे लोग । "

" का मतलब ? " गिरिराज ने रूककर कहा ।

नारायण जी आगे बोले " परसों सरकारी टेंडर भरने का आखिरी दिन है । तुमको पता हैं ऊं के बारे में । " गिरिराज ने नजरें नीची कर ली , क्योंकि उसे इस बारे में कुछ भी पता नही था । " नारायण जी उसे देखते हुए बोले " काम पर ध्यान नहीं दोगे तो जो दो वक्त का खाना मूंह में जा रहा हैं न ऊं भी नही जाएगा । कल के कल ऊं टेंडर भरो । ई बार भी ऊं रघुवंशी टेंडर ले गए न तो मुसीबत हो जाएगी हमरे लिए ‌। "

' जी बाबुजी " गिरिराज ने धीरे से कहा ।

खाना खाने के बाद सब लोग अपने अपने कमरे की ओर बढ गये । दिशा अपने कमरे में आई और दरवाजा बंद कर बालकनी में चली आई । उसने अपना फ़ोन निकाला और राकेश की तस्वीर निकालकर उसे देखने लगी । दिशा की पलके इस वक्त नम थी और वो आसु बहा रही थी । " तुम क्यों नही समझना चाह रहे हों राकेश । मेरे किस्मत में प्यार नही लिखा । अगर मेरे घरवालों को हमारे बारे में पता चल गया तो वो हमे जान से मार डालेंगे । इससे बेहतर हैं की हम कोई ख्वाब न सजाएं । हमे अब डर लग रहा हैं । तुम कोई गलत कदम मत उठा लेना जिससे हम मजबूर हो जाए । कोई खुशी नही दे पाएंगे हम । हां बस जिंदगी का सबसे गहरा ज़ख्म बनकर रह जाएंगे । " दिशा ये कहते हुए सिसकने लगी थी , तभी उसी कमरें से कुछ आवाजें आई । दिशा अपने कमरे में चली आई । कोई दरवाजा नोंक कर रहा था । दिशा दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ गयी ।

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दिशा का डर बिल्कुल सही हैं । परिवार में सब अपनी मर्जी चलाने वाले हैं । जानकी और अयोध्या का संबंध किस प्रकार हैं आप सभी के जहन में ये सवाल होगा । चिंता मत कीजिए बहुत जल्दी इस सवाल का जवाब मिलने वाला है

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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