ओ..बेदर्दया--भाग(१५)(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ओ..बेदर्दया--भाग(१५)(अन्तिम भाग)

पारूल शास्त्री जी और शैलजा को पसंद आ गई थी इसलिए शास्त्री जी विधायक जी से बोलें....
"अब सगाई और शादी में ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए,लड़की अपने घर को छोड़ चुकी है और जितनी जल्दी बहू बनकर वो हमारे घर आ जाएं तो उतना ही अच्छा रहेगा.."
तब विधायक जी बोलें...
"जी!बिल्कुल सही,मैं भी यही चाहता हूँ,लड़की अपने परिवार के विरूद्ध चली गई ये उसने ठीक नहीं किया लेकिन दिल से मजबूर इन्सान और कर भी क्या सकता है उसे अभ्युदय पसंद आ गया था तो बेचारी क्या करती"?
"अब ये सब बातें छोड़िए,अब तो वो हमारे घर की इज्जत है और उसका सम्मान करना हमारा फर्ज है"शास्त्री जी बोलें...
"जी!बिलकुल सही",विधायक जी बोलें....
"मैं इतने सालों से अभ्युदय को ब्याह के लिए मना रही थी लेकिन वो नहीं माना,शायद हमारी किस्मत में पारूल जैसी अच्छी लड़की का बहू बनना लिखा था इसलिए अभी तक अभ्युदय की शादी टल रही थी",शैलजा बोली...
"शायद आप सही कह रहीं हैं बहनजी!",विधायक जी बोले...
और फिर अभ्युदय और पारूल की सगाई भी हो गई ,सगाई के पन्द्रह दिन बाद शादी का मुहूर्त भी निकल आया,फिर शादी का दिन भी नजदीक आ पहुँचा,इस बीच दुर्गा भी पारूल से मिल आई थी और पारूल उसे भी बहुत अच्छी लगी थी,शैलजा और दुर्गा दोनों ने ही बड़े मन से पारूल की शादी की खरीदारी की,अब दुर्गा और पारूल अच्छी सहेलियाँ बन गए थे,चूँकि दुर्गा पारूल से उम्र में बड़ी थी इसलिए पारूल उसे जीजी ही कहती थीं और दुर्गा पारूल को जेठानी जी कहकर पूकारती थी,शादी के एक दिन पहले दुर्गा ने ही पारूल की हथेलियों में मेंहदी रचाई और शादी वाले दिन दुर्गा ने ही पारूल को सजाया था,पारूल को देखकर दुर्गा फूली नहीं समा रही थी और उसने अभ्युदय से जाकर कहा...
"ना जाने आप जैसे खड़ूस को इतनी प्यारी पत्नी कैसे मिल गई"?
"अच्छा!क्या बोली?दुर्गा की बच्ची",अभ्युदय बोला...
"कुछ नहीं!बस दोनों को किसी की नजर ना लगे,आपकी जोड़ी यूँ ही बनी रहे" दुर्गा बोली...
और फिर पारूल विदा होकर शास्त्री जी के घर आ गई,शैलजा के तो मारे खुशी के धरती पर पग ही नहीं पड़ रहे थे,फौरन ही बहू और बेटे को ले करके कुलदेवी के दर्शन करवाने गाँव ले गई और वहाँ से लौटकर दूसरे दिन ही सत्यनारायण की कथा करवाई और फिर घर में दिन भर ढ़ोलक बजी,दुर्गा के साथ शैलजा भी खूब नाची और आस पड़ोस की औरतों को भी खूब नचवाया,खूब लोकगीत गाए गए और रात को अभ्युदय और पारूल का मिलन हुआ,दोनों बहुत खुश थे एकदूसरे को पाकर,आखिर बड़े जतन के बाद दोनों ने एक दूसरे को पाया था....
और फिर दूसरे दिन पारूल ने रसोई की पूजा करके रसोई में जाने का अधिकार पा लिया और दोनों देवरानी-जेठानी गप्पे मार मारकर घर के काम करतीं रहतीं,शैलजा के घर में तो जैसे चमन बरस रहा था ,उसके मन की मुराद जो पूरी हो गई थीं,जिस घड़ी का उसे सालों से इन्तजार था वो इन्तज़ार अब खतम जो हो गया था,सौरभ भी पारूल से खूब हिल-मिल गया था और ताई जी....ताई जी करके उसके आगे पीछे घूमता रहता था....
लेकिन ये सब शक्ति को फूटी आँख नहीं सुहा रहा था,उसे अभ्युदय की किस्मत से बहुत रश्क होता था,उसने सोचा था कि पारूल के घर से भाग जाने पर बहुत बवाल होगा और शास्त्री जी के परिवार को अभ्युदय के इस काम से काफी जिल्लत उठानी पड़ेगी लेकिन अब ये सब तो उसकी सोच के विपरीत ही हो गया था और इन सबका उसे बड़ा मलाल था इसलिए वो एक दिन शिवराज चौहान से उसके कार्यालय मिलने पहुँचा लेकिन शक्ति को अपने कार्यालय में देखकर शिवराज चौहान का खून खौल उठा और वो उससे बोला....
"सारी बिरादरी में मेरी नाक कटवाकर तुझे चैन नहीं मिला,जो अपनी मनहूस शकल लेकर यहाँ आ पहुँचा,निकल जा यहाँ से"
तब शक्ति बोला...
"यार!ऐसा मत बोल,तू तो मेरा दोस्त है"
"दोस्त ऐसे होते हैं,अगर तू मुझे अपना दोस्त मानता तो पारूल को समझाता,तूने तो उलटा अभ्युदय को उकसाया और उसके प्यार में पड़कर पारूल खानदान की नाक कटवाकर घर से भाग गई",शिवराज बोला...
"मैं ऐसा कभी नहीं चाहता था कि तुम्हारी बहन घर से भाग जाए,अब इसमें मेरा क्या कुसूर है यार!तुम्हारी बहन ही तुम्हारे खिलाफ हो गई तो फिर मैं क्या करता?"शक्ति बोला...
"बस..बस...रहने दे,मैं तेरा सब नाटक देख चुका हूँ"शिवराज बोला...
"मेरी हालत तो धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है भाई!,उस घर में मेरी कोई भी इज्जत नहीं है और इधर तू धुत्कार रहा है,उस अभ्युदय को देखकर मेरे सीने में साँप लोटते हैं,उसे तो सबकुछ मनचाहा मिल गया और एक मैं हूँ जो दूसरों के टुकड़ों पर पल रहा है,शक्ति बोला...
"तो तू चाहता क्या है?",शिवराज ने पूछा...
"बस उसकी बर्बादी और कुछ नहीं",शक्ति बोला...
"मैं भी तो बस अभ्युदय की बर्बादी चाहता हूँ"शिवराज बोला...
"तो क्या तुम्हारे पास इसका कोई रास्ता है"?,शक्ति ने पूछा...
"नहीं!अभी तक तो नहीं",शिवराज बोला...
"तो तुम मुझे एक मौका और दो, मैं अभ्युदय को बर्बाद करने का कोई ना कोई उपाय ढ़ूढ़ ही लूँगा",शक्ति बोला...
"सच कहते हो ना!अब की बार धोखा तो नहीं दोगे"शिवराज ने पूछा...
"यकीन करो भाई!अबकी बार ऐसा नहीं होगा",शक्ति बोला...
"चल फिर दिया तुझे एक और मौका लेकिन याद रहें काम हो जाना चाहिए वरना फिर तेरी खैर नहीं", शिवराज बोला...
"तुम फिक्र मत करो,इस बार निशाना नहीं चूकेगा",शक्ति बोला....
"चल फिर तो लग जा काम पर "शिवराज बोला...
"चल अब मैं चलता हूँ,कुछ दिनों के बाद मिलूँगा"
और फिर ऐसा कहकर शक्ति वहाँ से चला आया...
ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि एक दिन बिरजू किसी काम से घर आया,दोपहर का समय था और सभी खाना खाने बैठे थे,तो अभ्युदय ने बिरजू से भी खाना खाने के लिए कहा और बिरजू भी सबके संग खाने बैठ गया और बातों ही बातों में अभ्युदय ने पारूल से कहा....
"पारूल!तुम्हारी तरह बिरजू ने भी दिल्ली से ही पढ़ाई की है"
ये सुनकर पारूल बोली...
"सच!बिरजू भइया!
"हाँ!भाभी!,बिरजू बोला...
"किस सब्जेक्ट से आपने पोस्टग्रेजुएशन किया है"पारूल ने पूछा...
"जी !अंग्रेजी साहित्य से "बिरजू बोला...
"आपके पास अब भी किताबें हैं या कहीं बेच दीं",पारूल ने पूछा...
"किताबें भी कोई बेचता है भला",बिरजू बोला...
"तो आप मुझे अंग्रेजी साहित्य पढ़ाऐगें,मुझे अंग्रेजी साहित्य पढ़ने का बहुत शौक है" पारूल बोली...
"अगर अभि भइया इजाजत दे तो जरूर पढ़ा दूँगा",बिरजू बोला...
"इसमें मेरी इजाजत की क्या जरूरत है?बिरजू अगर पढ़ा दे तो जरूर पढ़ लो",अभ्युदय बोला...
और फिर क्या था उस दिन के बाद बिरजू पारूल को पढ़ाने आने लगा,बिरजू स्वाभाव का बहुत हँसमुख था इसलिए जब भी पारूल उससे पढ़ती तो कमरें से हँसने खिलखिलाने की आवाज़े आतीं रहतीं,जो भी पारूल बिरजू से पढ़ती थी तो वो सब अभ्युदय को भी दिखाती थी,पारूल को खुश देखकर अभ्युदय भी खुश होता और अब ये सिलसिला चलने लगा,हफ्ते में एक बार तो बिरजू पारूल को पढ़ाने आ ही जाता था,ऐसे ही पारूल को बिरजू से पढ़ते दो महीने बीत गए और ये बात शक्ति ने पकड़ ली और उसके दिमाग में एक अजब ही षणयन्त्र चलने लगा,वो तो इस बात के लिए कब से मौका ढूढ़ रहा था और अब उसे वो मौका मिल गया था,इधर बिरजू के कई लड़कियों के साथ आन्तरिक सम्बन्ध थे और ये बात अभ्युदय भी अच्छी तरह जानता था लेकिन वो उससे कुछ कहता नहीं था,क्योंकि बिरजू ही अभ्युदय के कार्यालय का पूरा काम सम्भालता था,बिरजू ना तो दारू पीता था और ना ही किसी से अकड़ता था,बस लड़कियाँ ही उसकी कमजोरी थीं और इस ऐब के अलावा और कोई भी ऐब उसमें नहीं था और सबसे बड़ी बात ये थी कि वो अभ्युदय की बहुत इज्ज़त करता था....
और बिरजू की इसी कमजोरी का फायदा शक्ति ने उठाया,उसने अभ्युदय के कान में ये बात डाल दी कि.....
" पारूल भाभी बिरजू से पढ़ते वक्त बहुत खुश रहतीं हैं और बिरजू है भी रसिया आदमी,औरतों को तो वो यूँ अपनी मुट्ठी में दबोच लेता है उनसे मीठी मीठी बातें करके"
"तेरे कहने का मतलब क्या है,साफ साफ बोल ना!"?,अभ्युदय बोला....
"कुछ नहीं भइया !मैं तो बिरजू की तारीफ कर रहा था,वो भी दिल्ली से पढ़ा है और पारूल भाभी भी दिल्ली से पढ़ी है,इसलिए दोनों के विचार मिलते हैं और इसके अलावा कुछ नहीं, ",शक्ति बोला...
"हाँ!ये तो सही है",अभ्युदय बोला...
"आप तो यहाँ पढ़े हैं ,यहाँ पढ़ने वाले लड़के और दिल्ली में पढ़े लड़के में जमीन आसमान का अन्तर होता है,बिरजू को देखो कितना सलीकेदार है,अच्छे से कपड़े पहनता है और ठाट से रहता है",शक्ति बोला...
"तो क्या मैं बिरजू से कमतर दिखता हूँ ?",अभ्युदय ने पूछा...
"नहीं!लेकिन पारूल भाभी आपसे उम्र में कितनी छोटी हैं और बिरजू लगभग उन्हीं की उम्र का है बस साल दो साल ही बड़ा होगा",शक्ति बोला....
"हाँ!,ये बात तो है,बिरजू है बड़ा स्टाइलिश",अभ्युदय बोला...
"और आप हमेशा कुरता पायजामा और गमछे में रहते हैं"शक्ति बोला....
"अब मुझे यही पसंद है तो क्या करूँ?,मैं बिरजू की तरह चुस्त जींस और बुशर्ट में नहीं रह सकता,ऐसे कपड़ो में तो मेरा दम ही घुट जाए",अभ्युदय बोला...
"सही कहते हैं आप,इसलिए उस नालायक बिरजू की इतनी सारी लड़कियांँ दोस्त हैं,कुछ तो उसके पहनावे पर फिदा हो जातीं हैं तो कुछ उसके बोलने के अन्दाज पर,जब वो हमारे घर आता है ना तो भाभी भी तो उससे ना जाने कितनी बातें करतीं हैं,कमरें के बाहर तक हँसने की आवाज़ आती है उनकी"
और ऐसा कहकर शक्ति अभ्युदय के पास से उठकर चला आया और उसे जो आग लगानी थी अभ्युदय के मन में वो आग वो लगाकर चला आया था और इधर अभ्युदय के मन में शक्ति की बातों से खलबली मच गई, अब जब भी पारूल अभ्युदय से बिरजू की बात करती तो अभ्युदय को अच्छा ना लगता,उसके मन में तो अब शक़ का कीड़ा कुलबुलाने लगा था,अभ्युदय जब भी पारूल के करीब जाने की कोशिश करता तो ना जाने कौन सी बात उसे उसके करीब जाने से रोक देती,अभ्युदय का ऐसा रवैया देखकर पारूल भी परेशान हो उठी और इसी तरह वो एक दिन उदास बैठी थी,उसकी उदासी देखकर दुर्गा ने पारूल से पूछा तो पारूल बोली....
"कुछ नहीं जीजी!आज इनसे झगड़ा हो गया था इसलिए मन नहीं लग रहा"
फिर पारूल की बात सुनकर दुर्गा कुछ ना बोली,पारूल ने सही बात दुर्गा से ना बताई इसलिए दुर्गा ने भी उस बात पर ज्यादा जोर ना दिया,इसी दौरान जब बिरजू अभ्युदय के घर ज्यादा आने लगा तो वो दुर्गा से भी बहुत बातें करने लगा और उसे वो जीजी कहकर पुकारने लगा,जब वो दुर्गा को जीजी कहने लगा तो फिर सौरभ बिरजू को मामा कहने लगा,बिरजू के घर आने से सब खुश रहते थे सिवाय अभ्युदय के ,उसके मन में अब बिरजू खटकने लगा था,
दिन बीत रहे थे और फिर एक दिन सौरभ का जन्मदिन आया,घर में कार्यालय के सभी सदस्य आएं तो शैलजा,दुर्गा और पारूल तीनों ने मिलकर सभी के लिए रात का खाना बनाया और इस बात का फायदा फिर से शक्ति ने उठाया और किसी लड़के को बिरजू संग उलझा दिया जिससे उस लड़के और बिरजू के बीच काफी झगड़ा हो गया और बिरजू ने उस लड़के को इतना मारा कि उसका सिर फट गया और उसे फौरन अस्पताल ले जाना पड़ा,ऐसा काम बिरजू से पहली बार हुआ था वो कभी भी किसी से नहीं उलझता था,जब सब अस्पताल से वापस लौटे तो अभ्युदय बहुत गुस्से में था और वो बिरजू से बोला....
"जब तक मेरा गुस्सा ठण्डा नहीं हो जाता तो तब तक तू मेरे आस पास मत फटकना और अगर तू मुझे मेरे आस पास दिख गया तो मार मारकर हुलिया खराब कर दूँगा"
फिर बिरजू अभ्युदय की बातें सुनकर कुछ ना बोला,उसने सोचा कि अभि भइया अभी गुस्से में हैं और अगर मैनें अभी कुछ बोला तो कहीं बात ना बिगड़ जाए,जब उनका गुस्सा ठण्डा हो जाएगा तो खुद ही मुझसे बात करने लगेगे और ये सब सोचकर वो वहाँ से चला गया,लेकिन वो हफ्ते में एक बार अभ्युदय के घर जाना ना भूलता,लेकिन तभी घर में कदम रखता जब उसे पता चल जाता कि अभि भइया घर पर नहीं हैं,फिर एक दिन जब वो पारूल को पढ़ाने घर आया लेकिन इससे पहले दुर्गा ही उससे बातें करने लगी और उससे पूछा....
"बिरजू!घर क्यों नहीं आता अब,पहले तो हफ्ते में एक दो बार आ जाता था,अब तो पन्द्रह पन्द्रह दिन हो जाते हैं तुझे घर आए हुए"
"जीजी!अभि भइया!मुझसे नाराज हैं ना!तो हिम्मत नहीं होती घर आने की",बिरजू बोला...
"अरे!उनके गुस्से का क्या है,वें तो पल में रूठते हैं और पल में मान जाते हैं",दुर्गा बोली...
"नहीं!जीजी!इस बार तो इतने दिनों से उनका गुस्सा उतरा ही नहीं"बिरजू बोला....
"कोई बात नहीं,मैं उनसे कह दूँगी कि अब बिरजू को माँफ कर दें,",दुर्गा बोली...
"नहीं!जीजी!आपको सिफारिश लगाने की कोई जरूरत नहीं है,मैं खुद ही ये मामला निपटा लूँगा",बिरजू बोला...
"ठीक है जैसी तेरी मर्जी" और फिर इतना कहकर दुर्गा जाने लगी तो तभी घर के दरवाजे पर अभ्युदय की जीप आकर रूकी तो दुर्गा बिरजू से बोली....
"लगता है अभि भइया आ गए हैं,तुम ऐसा करो,पीछे के दरवाजे से निकल जाओ"
और बिरजू घर के पीछे वाले दरवाजे से बाहर चला गया लेकिन ये तो शक्ति की साजिश थी वो तो अभ्युदय को ये दिखाना चाहता था कि आपके मना करने पर भी बिरजू चुपके से पारूल भाभी से मिलने आया था,इस बात से अभ्युदय के मन में फफोले से पड़ गए,लेकिन वो बोला कुछ और सीधा पारूल के कमरें में जाकर बोला....
"बिरजू यहाँ क्यों आया था?"
"बिरजू...वो कब यहाँ आया?मुझसे तो मिला ही नहीं",पारूल बोली...
पारूल तो सच बोल रही थी लेकिन अभ्युदय को ये झूठ लगा ,उसने सोचा कि पारूल जरूर मुझसे कुछ छुपा रही है और जब इन्सान के दिमाग में एक बार शक़ घर जाता है तो उसके सोचने समझने की क्षमता चली जाती है और यही अभ्युदय के साथ हो रहा था.....
और अब शक्ति के मन में सुकून था वो यही तो चाहता था इसलिए वो एक दिन शिवराज से मिला और उससे बोला...
"भाई!आग तो लगा दी है,बस सबकुछ स्वाहा होना बाकी रह गया है"
"सच! अब मैं अभ्युदय को बर्बाद होता देख पाऊँगा",शिवराज बोला...
"हाँ!भाई!और मैं भी ,अब मेरे कलेजे की आग ठण्डी होगी",शक्ति बोला...
और फिर शक्ति ने शिवराज को सबकुछ विस्तार से बता दिया और शिवराज ने मुस्कुराते हुए शक्ति की पीठ ठोकते हुए कहा...
"शाबास!मुझे तुम से यही उम्मीद थी"
और फिर शक्ति घर लौट आया...
इसी दौरान शास्त्री जी का रिटायरमेंट हो गया था और वें अब अपने काम से स्वतन्त्र थे इसलिए उन्होंने तीर्थयात्रा का सोचा,इसलिए दोनों पति-पत्नी घर की जिम्मेदारी दोनों बहुओं को सौंपकर तीर्थयात्रा पर चले गए,अब इस दौरान अभ्युदय और पारूल के बीच दूरियाँ बढ़तीं ही जा रहीं थीं,इधर पारूल उदास रहती और उधर अभ्युदय उदास रहता,दुर्गा ने पारूल से पूछा तो वो दुर्गा के गले लगकर रो पड़ी और उससे बोली....
"जीजी!ना जाने क्या हो गया है इनको?,ना जाने कौन सी बात कचोट रही है इन्हें,मुझसे तो सीधे मुँह बात ही नहीं करते और अगर मैं इनके करीब जाने की कोशिश करती हूँ तो नींद आने का बहाना करके करवट बदलकर सो जाते हैं"
"किसी बात से परेशान होगें शायद इसलिए ऐसा कर रहे हैं",दुर्गा बोली...
"नहीं!जीजी!जरूर कोई तो बात है जो वें मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं",पारूल बोली...
"तुम चिन्ता मत करो,मैं आज ही उनसे बात करती हूँ"दुर्गा बोली....
और फिर रात का खाना अभ्युदय को दुर्गा ने ही परोसा ,खाने के बाद उसने अभ्युदय से पूछा....
"भइया!आजकल आप बड़े उदास से दिखते हैं क्या बात है?"
"कुछ नहीं दुर्गा!ऐसी तो कोई बात नहीं है"अभ्युदय बोला...
"तो फिर आपके चेहरे पर हरदम बारह क्यों बजे रहते हैं",दुर्गा बोली....
तब अभ्युदय बोला...
"दुर्गा !मेरे मन को एक बात बहुत कचोट रही है"
"वो क्या?आप मुझसे बता दीजिए,शायद मैं कुछ कर पाऊँ,बात बता देने से मन हल्का हो जाता है "दुर्गा बोली...
"वो ये कि उस दिन शिवराज ने मुझसे कहा था कि जो लड़की अपने परिवार को धोखा दे सकती है वो तेरी सगी क्या होगी?उसने मुझे बददुआ दी थी कि मैं कभी खुश नहीं रहूँगा",अभ्युदय बोला....
अभ्युदय की बात सुनकर दुर्गा बोली....
"ओह तो ये बात है,पता है भइया!आप पुरूष जाति होती ही ऐसी है,एक औरत कुछ भी कर ले अपने पिता के लिए,अपने पति के लिए,अपने भाई के लिए और अपने बेटे के लिए लेकिन अगर उसने कोई कदम केवल अपनी खुशी के लिए उठा लिया तो वो दुनिया की सबसे खराब औरत बन जाती है,एक लड़की अपना सबकुछ छोड़कर,बिना कुछ सोचे समझे आपके पीछे पीछे चली आई और आप उस पर शक़ कर रहे हैं,किसी ने कुछ कह दिया उसके खिलाफ तो आपने मान भी लिया"
"दुर्गा !मैं बहुत उलझन में हूँ",अभ्युदय बोला...
"आपकी उलझनों का कारण आप खुद ही हैं और कोई नहीं",
और इतना कहकर दुर्गा वहाँ से चली गई,अभ्युदय उस रात अपने कमरें में ना जाकर अपने कार्यालय चला गया और ये सब तमाशा देखकर शक्ति बहुत खुश था ,उसके मन की मुराद पूरी हो गई थी,क्योंकि अभ्युदय के जीवन को निराशाओं ने घेर लिया था और यही वो चाहता था....
दिन यूँ ही बीत रहे थे दोनों पति पत्नी अब भी उलझनों के दौर से गुजर रहे थे,इसी बीच शक्ति ने दो तीन बार षणयन्त्र और रचा उसने बिरजू से घर जाने को कहा बोला भइया अभी घर पर नहीं हैं,सौरभ तुम्हें बहुत याद करता है कह रहा था कि बिरजू मामा कब आऐगें और भोला बिरजू शक्ति की बातों में आ गया ,जब भी वो घर पहुँचता तो शक्ति अभ्युदय को जीप में लेकर घर पहुँच जाता और बिरजू को पीछे वाले दरवाजे से भागना पड़ता,जिससे अभ्युदय का शक़ अब यकीन में बदल चुका था कि हो ना हो कि कोई बात तो जरूर है तभी तो बिरजू पारूल से मिलने आता है,ऊपर से बिरजू रसिया किस्म का इन्सान है,जब उसके सम्बन्ध इतने लड़कियों से हो सकते हैं तो कहीं पारूल भी तो ....
अभ्युदय को इन्हीं उलझनों से गुजरते तीन महीने बीत चुके थे लेकिन अभी भी वो किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा था और अब शक्ति ने अपना आखिरी दाँव फेंका,इसी बीच पारूल का जन्मदिन आया तो दुर्गा पारूल से बोली...
"चलो आज अच्छा सा खाना बनाकर भइया को खिलाते हैं जिससे वें खुश हो जाएं"
"जीजी!वें खुश नहीं होगें"पारूल बोली...
"कैसें खुश नहीं होगें,आज तो मैं तुम्हें दुल्हन की तरह सजाऊँगी,देखना भइया आज तुम्हारे जादू से बच नहीं पाऐगें",दुर्गा बोली...
"धत्त!जीजी!कैसीं बातें करती हो"?,पारूल बोली....
"अरे!तुम्हारे मन की ही बातें तो कर रही हूँ",दुर्गा बोली...
और दुर्गा की बात सुनकर पारूल शरमा गई...
और फिर उस दिन दोपहर के समय शक्ति और शिवराज ने एक खूबसूरत सी लड़की को कुछ पैसे देकर अभ्युदय से मिलने को कहा और उसे अभ्युदय से क्या क्या कहना था ये भी बता दिया और फिर वो लड़की अभ्युदय के पास पहुँची ,पहले तो उसके सामने खूब रोई फिर हाथ जोड़कर अभ्युदय से बोली....
"नेताजी!उस बृजनाथ पटेल ने मेरी जिन्दगी खराब कर दी,मैं उसके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ और अब वो मुझसे शादी करने से इनकार कर रहा है,वो कह रहा था कि अब तो उसे कोई और भा गई है,वो चुपके चुपके उससे मिलने भी जाता है,बातों बातों में उसने मुझे उसका नाम पारूल बताया था"
उस लड़की की बात सुनकर अभ्युदय ने उसे उस वक्त तो कार्यालय के बाहर भेज दिया क्योंकि वो अब अपने आपे में नहीं था,ये बात किसी और ने नहीं सुनी थी,क्योंकि वहाँ उस वक्त कार्यालय का कोई भी सदस्य मौजूद नहीं था,लेकिन कार्यालय के बूढ़े चपरासी भोलाराम ने ये सब दरवाजों के पीछे खड़े होकर सुन लिया था और वो उसी वक्त वहाँ से भागकर बिरजू के कमरें गया लेकिन बिरजू अपने कमरें में मौजूद नहीं था,तब चपरासी भोलाराम को याद आया कि बिरजू तो अपने माता पिता से मिलने घर गया हुआ है और आज रात लौटने को कहा था उसने,चूँकि भोलाराम बुजुर्ग था इसलिए बिरजू उसकी बहुत इज्जत करता था,इसलिए भोलाराम भी बिरजू से स्नेह रखता था इसलिए वो उसे ये बात बताने भागा चला आया था और रात तक बिरजू का इन्तजार करने के सिवाय उसके पास और कोई चारा भी नहीं था...
अभ्युदय का मन खराब था इसलिए वो दिनभर ठेके पर बैठकर दारू पीता रहा,साँझ होने को आई लेकिन वो घर ना लौटा,फिर रात होने पर वो घर लौटा,इधर पारूल सँज-धजकर अभ्युदय का इन्तजार कर रही थी उसने सोचा था कि अभ्युदय उसके जन्मदिन पर कोई अच्छा सा उपहार लाएगा,लेकिन जब वो घर लौटा तो उसकी हालत ठीक नहीं थीं,लेकिन उसने खुद को सम्भाला और पारूल से बोला....
"थाली परोसकर कमरें में चलो,आज वहीं साथ में बैठकर एक थाली में ही खाना खाऐगें"
ये सुनकर पारूल खुश हो गई उसने सोचा शायद अब उसके पति का गुस्सा उतर चुका है,दुर्गा भी पारूल से बोलीं...
"जल्दी जाओ,देर मत करो,अपने रूठे पिया को अच्छे से मनाना"
और फिर पारूल थाली परोसकर अपने कमरें में ले गई,दोनों ने साथ मिलकर खाना खाया और फिर अभ्युदय ने पारूल को पान खिलाया,पारूल ने खुश होकर पान खा लिया और शरमाते हुए मुस्कुराती रहीं,लेकिन ये क्या पान खाने के पाँच मिनट बाद ना जाने क्यों पारूल के गले में कुछ होने लगा,उसे लगा कि उसे साँस नहीं आ रही है तब अभ्युदय उससे बोला....
"पान में जहर था"
ये सुनकर उसने एक बार जोर से पुकारा....
"जीजी!"और धम्म से धरती पर गिर पड़ी और उसके मुँह से झाग सा निकलने लगा..
दुर्गा को लगा ना जाने क्या बात है पारूल ने उसे क्यों पुकारा और वो भागते हुए उन दोनों के कमरें में पहुँची तो उसने देखा कि सँजी धँजी पारूल धरती पर पड़ी है और उसके मुँह से झाग निकल रहा है और बिस्तर पर अभ्युदय उकड़ूँ बैठा परेशान सा उसे देख रहा है,दुर्गा ने देखा तो बोली...
"भइया!ये क्या है?पारूल को जल्दी से अस्पताल ले चलो"
"नहीं!वो अब जिन्दा नहीं है,जहर बहुत खतरनाक था",अभ्युदय बोला....
और तभी बाहर से बिरजू ने आवाज दी ,शक्ति भी अभी तक घर ना लौटा था और सौरभ भी अभी जाग रहा था और उसी ने बिरजू के लिए दरवाजा खोला....
बिरजू भरभराते हुए भीतर आया साथ में भोलाराम भी था फिर बिरजू जोर से चिल्लाया...
"अभि भइया....अभि भइया....कुछ गलत मत कीजिएगा"
फिर सौरभ के बताने पर वो दोनों अभ्युदय के कमरें में पहुँचे और वहाँ का नजारा देखकर बिरजू के होश उड़ गए फिर उसने और भोलाराम ने सारी सच्चाई अभ्युदय और दुर्गा के सामने रख दी,भोलाराम ने ये भी बताया कि शक्ति और शिवराज की तो ना जाने कितने सालों से दोस्ती है,मैने खुद शक्ति को कई बार शिवराज से मिलते देखा है,शक्ति आपका भला कभी नहीं चाहता था इसलिए उसने आपकी जिन्दगी में ये आग लगाई और आप उसकी बातों में आकर ऐसा अनर्थ कर बैठें,जो लड़की आज कार्यालय आई थी उसे भी मैं जानता हूँ वो तो एक बाजारू लड़की है और ऐसे ही काम करके अपना पेट पालती है,मेरे मुहल्ले में ही तो रहती है वो, भोलाराम की बात खतम हुई ही थी कि तभी घर के भीतर शक्ति आया और बोला....
"दुर्गा...दुर्गा..कहाँ हो तुम?भाई जल्दी से खाना परोसो बहुत जोर की भूख लगी है और दुर्गा अपने आँसू पोछते हुए अभ्युदय के कमरें से बाहर आई ,दुर्गा को आता देखकर शक्ति ने पूछा...
"कहाँ थी अब तक?और दरवाजे क्यों खुले पड़े हैं,अच्छा!अब जल्दी से खाना परोसो,जोरों की भूख लगी है"
"अभी लाई"
और ऐसा कहकर दुर्गा रसोई में चली गई और जब शक्ति आँगन में हाथ मुँह धो रहा था तो दुर्गा ने शक्ति की पीठ पर हँसिए से वार किया,शक्ति चीखा और पलटा तो दुर्गा ने हँसिए से सीधा उसकी गरदन पर वार किया और शक्ति धरती पर गिरकर थोड़ी देर तड़पा और फिर उसकी जान चली गई,ये नजारा वहाँ मौजूद सौरभ ने भी देखा,शक्ति की चीख सुनकर भोलाराम और बिरजू बाहर आएं तो देखा अब शक्ति जिन्दा ना था फिर बिरजू से ये बताने कि शक्ति भइया को दुर्गा जीजी ने मार दिया है अभ्युदय के कमरें में पहुँचा तो अभ्युदय भी धरती पर पड़ा छटपटा रहा था उसकी हालत देखकर बिरजू चीखकर बोला....
"भइया!ये क्या किया आपने,चलिए मैं आपको जल्दी से अस्पताल ले चलता हूँ"
बिरजू के इतना कहते ही अभ्युदय के मुँह से भी झाग निकलने लगा उसने भी शायद वैसा ही पान खा लिया था जो उसने पारूल को खिलाया था और फिर तड़पते तड़पते अभ्युदय ने अपने प्राण भी त्याग दिए और फिर बिरजू अभ्युदय का सिर अपनी गोद में रखकर बोला....
"भइया!काश आपने मुझसे सब कुछ पूछ लिया होता तो आज ये सब ना होता"
तब तक भोलाराम भी वहाँ आ पहुँचा और उसने अभ्युदय को ऐसी हालत में देखा तो बोल पड़ा...
"ओ...बेदर्दया! कुछ तो आगें पीछे सोचा होता,खुद ही सवाल खड़े किए और खुद ही जवाब बन गया"
फिर इसके बाद शक्ति के खून के जुर्म में दुर्गा को सजा सुनाई गई,जब अभ्युदय के माता पिता तीर्थ यात्रा से लौटे तो वो ये सब सुनकर अपने होश खो बैठें, शैलजा तो अपने बेटे के ग़म में महीने भर से ज्यादा ना जी सकी और जब जवान बेटा और बहू चले गए ,साथ में पत्नी भी चली गई तो शास्त्री जी भी और जीकर क्या करते भला,उन्हें भी दिल का दौरा पड़ा और वें भी स्वर्ग सिधार गए,दुर्गा के जेल जाने पर सौरभ अकेला पड़ गया और अब तो परिवार का कोई भी सदस्य सौरभ के पास ना था इसलिए सौरभ के परवरिश की जिम्मेदारी बिरजू ने अपने ऊपर लेली और वो सौरभ तुम हो और वो बिरजू मतलब बृजनाथ मैं हूँ और ये कहते कहते बृजनाथ जी रूआँसे से हो उठे....
बृजनाथ जी की बात सुनकर सौरभ बोला....
"मामाजी!अब मुझे पूरी बात पता चल गई है और मुझे लगता है कि उस समय मेरी माँ ने कोई गलती नहीं की थी,मेरे पिता ऐसी ही सजा के हक़दार थे,जिस घर के सदस्यों ने उन्हें दिल से अपनाया ,उनके साथ ही उन्होंने धोखा किया"
"तो अब तो तू अपनी माँ से नाराज नहीं है ना!",बृजनाथ जी ने पूछा....
"नहीं!,मैं अब खुशी खुशी उन्हें जेल से लेने जाऊँगा"सौरभ बोला....
फिर दूसरे दिन सौरभ बृजनाथ जी के साथ अपनी माँ दुर्गा को वापस घर ले आया और माँ बेटे फिर से एक बार मिल गए.....

समाप्त....🙏🙏😊😊
सरोज वर्मा.....