फिर शैलजा सुकन्या बहू के साथ बाजार जाकर कुछ साड़ियाँ और श्रृंगार का सामान दिलवा लाई और उस रात शैलजा ने सुकन्या को अपने घर ही रोक लिया,दूसरे दिन ही उसे जाने दिया,अब लल्लन की भी गृहस्थी बस गई थी इसलिए लल्लन की शराब पीने की आदत छूटती जा रही थी,सुकन्या बहुत ही अच्छी पत्नी साबित हुई उसने आते ही लल्लन को और गृहस्थी को सम्भाल लिया,सुकन्या अपनी जेठानी शैलजा का भी बहुत मान करती थी लेकिन सुकन्या का बेटा शक्तिमोहन वैसा ना सोचता था जैसा कि सुकन्या शैलजा के परिवार के बारे में सोचती थी,शक्तिमोहन जब भी शास्त्री जी के घर आता तो उसे बहुत ईर्ष्या होती,वो भी कम समय में ही अभ्युदय ही तरह सबकुछ हासिल करना चाहता था,वो भी अभ्युदय की तरह सबकुछ पाना चाहता था,लेकिन अभ्युदय के मन में शक्ति के लिए कोई बैर नहीं था,उसे वो अपना भाई ही समझता था,ऐसे ही दिन बीत रहे थे और दोनों की उम्र अब शादी के लायक हो आई थी,अभ्युदय इस बार फिर से छात्रसंघ का चुनाव जीत गया था और शक्ति भी हमेशा उसके साथ साथ ही लगा रहता क्योंकि सुकन्या का ऐसा आदेश था कि तुझे अपने बड़े भाई का साया बनकर हमेशा उसके साथ रहना है और शक्ति को मजबूरन सुकन्या की बात माननी पड़ती,वो शक्ति से हमेशा कहती कि.....
"बेटा!जो कुछ भी हो अब वें सब ही हमारा परिवार हैं,तुम्हारी ताई अभ्युदय और तुझमें कोई भेदभाव नहीं रखती इसलिए मैं चाहती हूँ कि तू भी ऐसा ही करें,तू अभ्युदय को अपने सगे भाई की तरह आदर दे"
चूँकि शास्त्री जी यदा कदा लल्लन की रूपयों से सहायता भी कर देते थे इसलिए लल्लन को भी अपने भाई का मान रखना पड़ता था,दिन ऐसे ही गुजर रहे थे कि एक हादसा हो गया,लल्लन और सुकन्या वैष्णो देवी की यात्रा पर जा रहे थे और उनकी बस का एक्सीडेंट हो गया और वें दोनों स्वर्गसिधार गए,इस बात से शास्त्री जी का मन बहुत ही आहत हुआ,शैलजा भी सुकन्या के जाने से बहुत दुखी हुई क्योंकि सुकन्या शैलजा को अपनी बड़ी बहन की तरह ही चाहती थी,अब क्या था शैलजा को शक्ति पर बहुत दया आई और उसने शक्ति को अपने घर में आसरा दे दिया.....
और इस बात का फायदा शक्ति ने उठाना शुरू कर दिया क्योंकि अब तो उस पर रोक लगाने वाली सुकन्या भी जिन्दा नहीं थी,उसे शैलजा मनमाना पैसा देती थी इसलिए वो बिगड़ता जा रहा था,इधर अभ्युदय को अपनी नेतागीरी से फुरसत नहीं थी,वो भी शक्ति की हरकतों पर ध्यान नहीं दे पाता था,शक्ति को बिगड़ता देख शैलजा को बहुत चिन्ता हुई और उसने मन में सोचा अगर शक्ति की जिन्दगी बर्बाद हो गई तो मैं ऊपर जाकर सुकन्या को क्या जवाब दूँगी ?लोग तो यही कहेगें ना कि बिन माँ बाप का लड़का था,ताई के सिर पर बोझ था इसलिए ताई से सम्भाला ना गया और ताई के कारण लड़के का जीवन बर्बाद हो गया,इसलिए उसने शक्ति का ब्याह करने का सोचा,लेकिन इसके लिए पहले अभ्युदय का ब्याह होना जरूरी था तभी तो वो शक्ति का ब्याह कर पाएगी,शायद पत्नी आने से शक्ति सही रास्ते पर आ जाए जैसे सुकन्या के आने पर लल्लन सही रास्ते पर आ गया था और उसने इस विषय पर शास्त्री जी से बात की तो शास्त्री जी बोलें...
"शास्त्रिन!अब दोनों लड़कों की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है,तुम दोनों की माँ हो ,तुम्हें जो भी सही लगता है वो करो"
और फिर शास्त्री जी के जवाब के बाद शैलजा ने अभ्युदय से ब्याह के लिए कहा तो अभ्युदय बोला....
"माँ!इन सब झमेलों में पड़ने का मेरे पास वक्त नहीं है,अभी मुझे अपनी नेतागीरी देखने दो"
तब शैलजा बोली...
"शक्ति की आदते ठीक नहीं है,उसकी पत्नी आ जाएगी तो शायद वो सुधर जाएं"
"तो तुम उसका ब्याह कर दो",अभ्युदय बोला...
"कैसा अन्धेर मचा रहा है तू!,बड़े के क्वाँरे होते छोटे का ब्याह कैसें कर दूँ",शैलजा बोली...
"तो क्या हो गया?",अभ्युदय बोला...
"ऐसा नहीं होता,ये समाज है सबको जवाब देना पड़ता है ,कल को लोग पूछेगें कि बड़े का ब्याह ना हो के छोटे का ब्याह काहें हो रहा तो किसे किसे जवाब देते फिरेगें"शैलजा बोली...
"कह देना बड़े ने राजनीति के चलते वैराग्य ले लिया है",अभ्युदय बोला..
"वैराग्य ले तेरे दुश्मन!मैं तो बिना परपोता खिलाए ना मरने वाली",शैलजा बोली...
"माँ!तुम शक्ति के बच्चों को खिलाकर अपना मन खुश कर लेना",अभ्युदय बोला....
"नहीं!परसों एकादशी है मैनें तिवारी जी को बुलाया है वें अपने रिश्तेदारों के साथ तुझे देखने आ रहे हैं",शैलजा बोली...
"माँ!ये तुमने क्या किया,मुझसे बिना पूछे ही उन्हें क्यों बुला लिया "अभ्युदय बोला....
"अब तेरी मनमानी नहीं चलेगी परसों तू घर पर ही रहेगा ,कहीं नहीं जाएगा,साफ सुथरे कपड़े पहनकर नहा धोकर ही उन सबके सामने जाएगा",शैलजा बोली...
"माँ!अब तुम जिद कर रही हो",अभ्युदय बोला...
"ये जिद नहीं है बेटा!मेरे भी तो कुछ अरमान है वो तो पूरे कर लेने दे,तूने डाक्टरी नहीं पढ़ी तो मैनें कुछ नहीं कहा,लेकिन ये इच्छा तो पूरी कर दें अपने बूढ़े माँ बाप की",शैलजा बोली...
"माँ!जैसा तुम ठीक समझो",अभ्युदय बोला...
"मेरा अच्छा बेटा!,मेरा प्यारा बेटा और हाँ ये रीछ जैसे बाल और दाढ़ी बनवा लिओं,वें लोंग अपनी बेटी के लिए दूल्हा देखने आ रहे हैंं मदारी का भालू नहीं",शैलजा बोली...
"तुम भी ना माँ!"अभ्युदय बोला...
और शैलजा मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई...
फिर क्या था एकादशी का दिन भी आ पहुँचा,शैलजा ने एक ही दिन में दर्जी से अभ्युदय के लिए नए कुरता पायजामा सिलवा दिए,सुबह से दोपहर तक तो अभ्युदय घर पर था लेकिन शाम होते ही वो घर से गायब हो गया...
क्रमशः....
सरोज वर्मा....