ओ...बेदर्दया--भाग(९) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ओ...बेदर्दया--भाग(९)

सभी अभ्युदय का इन्तज़ार कर करके थक गए लेकिन अभ्युदय घर ना लौटा,तब लड़की के पिता बोले...
"तो शास्त्री जी!अब हम चलते हैं,मुझे नहीं लगता कि अब आपका बेटा लौटेगा,शायद उसका ब्याह करने का इरादा नहीं है"
इस पर शास्त्री जी बोलें....
"मुझे माँफ कर दीजिए तिवारी जी! मैं अपने बेटे की हरकत पर बहुत शर्मिन्दा हूँ"
तब तिवारी जी बोले...
"ऐसा मत कहिए शास्त्री जी! अब आपके बेटे के कारण आपको शर्मिन्दा होने की जरूरत नहीं है,आप या मैं हम दोनों अब किसी से ब्याह के लिए जबर्दस्ती तो कर नहीं सकते,मैं ने सोचा था कि इतना अच्छा घर है,इतने शरीफ लोंग हैं,मेरी बेटी यहाँ आकर बहुत खुश रहेगी,लेकिन अब मुझे लगता है कि भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर है"
"ऐसा ना कहें तिवारी जी! मैं आपसे वादा करता हूँ कि आपकी बेटी की शादी इसी घर में होगी",शास्त्री जी बोले...
"ना!शास्त्री जी!आप ऐसा कोई वादा ना करें,जो पूरा ना हो सकें,मैं नहीं चाहता कि मेरी नजरों में आपकी प्रतिष्ठा कम हो,मेरे लिए रिश्तेदारी इतनी जरूरी नहीं है,मैं तो ये चाहता हूँ कि आपकी और मेरी मित्रता सदैव यूँ ही कायम रहे",तिवारी जी बोलें...
"ये तो आपका बड़प्पन है तिवारी जी!नहीं तो मेरे बेटे की इस हरकत पर किसी भी बेटी का बाप सौ बातें सुनाए बिना ना रहता"शास्त्री जी बोले...
"ऐसी कोई बात नहीं है,मैं किसी से खफ़ा नहीं हूँ,लेकिन मन में हमेशा यही मलाल रहेगा कि काश मेरी बेटी इस घर की बहू बनती"तिवारी जी बोले...
"मुझे अफसोस है तिवारी जी कि आपकी ये इच्छा अधूरी रह गई",शास्त्री जी बोले...
"आप अफसोस ना जताएं शास्त्री जी!शायद मेरी बेटी के भाग्य में इस घर की बहू बनना नहीं लिखा था",तिवारी जी बोले...
शास्त्री जी और तिवारी जी के मध्य वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी शैलजा बोली...
"अगर आप दोनों बुरा ना माने तो एक बात कहूँ"
"जी!बहनजी!कहिए",तिवारी जी बोले...
"मैं सोच रही थी कि अगर आपको एतराज़ ना हो तो आप अपनी बेटी का ब्याह हमारे गोद लिए बेटे शक्तिमोहन से कर दीजिए,इससे आपकी इच्छा भी पूरी हो जाएगी और दोनों परिवारों का सम्मान भी बना रहेगा"
"बहनजी!आपका सुझाव तो अच्छा है लेकिन यदि आप बुरा ना माने तो पहले मैं अपनी पत्नी और परिवार वालों से इस विषय में पूछ लूँ फिर कहीं जाकर आपको कोई जवाब दूँगा",तिवारी जी बोले...
"हमें कोई एतराज़ नहीं!आखिर आपकी बेटी की जिन्दगी का सवाल है और आपको ये फैसला सबकी रजामंदी के बाद ही लेना चाहिए",शास्त्री जी बोले...
"जी!बहुत बढ़िया तो मैं आपको अपने परिवार से पूछकर बताता हूँ कि उन सभी का क्या जवाब है?",तिवारी जी बोलें...
"जी!इत्मीनान से सोच समझकर ही फैसला लीजिएगा और यदि आपको इस रिश्ते से इनकार भी होगा तो हम बुरा नहीं मानेगे,जब सब राजी हो जाएँ तभी बात आगें बढ़ाइएगा",शास्त्री जी बोलें...
"बहुत बहुत आभार आपका!तो फिर अब हम सभी को जाने की इजाज़त दीजिए"
और फिर इतना कहकर तिवारी जी अपने रिश्तेदारों के साथ वापस लौट गए,शास्त्री जी ने उन सभी को दुखी मन से विदा किया...
और इधर ना शास्त्री जी ने रात का खाना खाया और ना ही शैलजा ने,आज तो शैलजा भी अभ्युदय के आचरण से दुखी थी,उसने सोचा आज लौटने दो अभ्युदय को ऐसी खबर लूँगी कि जिन्दगी भर याद रखेगा और आधी रात गए जब अभ्युदय लौटा तो शैलजा ने दरवाजा खोला और सामने उसने जो देखा तो वो देखकर वो दंग रह गई क्योंकि अभ्युदय को लेकर उसके दोस्त आएं थे साथ में शक्तिमोहन भी था,अभ्युदय के माथे पर पट्टी बँधी थी और बाए़ हाथ में प्लास्टर था,अभ्युदय को शैलजा ने ऐसी हालत में देखा तो उसने शक्तिमोहन से पूछा...
"शक्ति!क्या हुआ अभ्युदय को"?
तब शक्ति बोला...
"ताई जी!पहले अभि भइया को भीतर ले जाने दीजिए,इन्हें आराम की सख्त जरूरत है,फिर मैं आपको सब बताता हूँ कि अभि भइया के साथ क्या हुआ है"?
"हाँ...हाँ...चलो...चलो...इसे भीतर लेकर चलो",शैलजा बोली...
शास्त्री जी भी ये सब देख रहे थे और अभ्युदय की ऐसी हालत देखकर वें भी मौन थे,वें भी उन सबके संग अभ्युदय के कमरें में गए,उन्हें भी जानना था कि उनके बेटे के साथ क्या हुआ है और फिर अभ्युदय के सभी दोस्त उसे उसके कमरें में लिटाकर चलें गए और तब शक्ति बोला....
"ताई जी!जो अभि भइया के विरोधी पार्टी का नेता है शिवराज चौहान उसने ही भइया का ऐसा हाल बनाया है"
"क्यों?मेरे बेटे ने उसका क्या बिगाड़ा था?"शैलजा ने पूछा...
"भइया ने कुछ नहीं किया था,गलती शिवराज की थी",शक्ति बोला...
"तेरे कहने का मतलब क्या है"?,शैलजा ने पूछा...
तब शक्ति बोला...
"कुछ नहीं ताई जी! एक दिन शिवराज ने काँलेज में किसी लड़की के साथ बतमीजी कर दी थी और उस लड़की ने जाकर अभि भइया से शिकायत कर दी तो अभि भइया ने शिवराज से इस विषय पर बात करनी चाही, लेकिन शिवराज अभि भइया से अकड़कर बोला....
"क्यों बे!वो लडकी तेरी बहन लगती है क्या ?जो तू उसकी सिफारिश लेकर मेरे पास आया है"
शिवराज के ऐसा कहने पर भी भइया तब भी शांत तरीके से शिवराज से बोले....
"वो मेरी बहन हो या और किसी की लेकिन तुम्हें किसने अधिकार दिया उससे छेड़छाड़ करने का"
"तू कौन होता है मुझे ज्ञान देने वाला,तू जाकर अपना काम कर,मेरी जिन्दगी में दखल मत दें", शिवराज बोला...
फिर क्या था,भइया को उसकी इस बात पर गुस्सा आ गया और उस दिन उन्होंने उसे अच्छे से ठोक दिया और आज भइया को अकेला देखकर शिवराज ने दो तीन लड़को के साथ उस दिन की मार का बदला ले लिया...

क्रमशः....
सरोज वर्मा...