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गुलाबो - भाग 14

भाग 14

गुलाबो मन ही मन रोज सपने संजोती की अब वो यहां से चली जायेगी। बच्चे का गहरा रंग उसे भी अच्छा नहीं लगता था। पर अपनी औलाद थी इस लिए स्वीकार करना ही था। पर वो मन ही मन सोचती शहर जाऊंगी तो खूब अच्छी अच्छी क्रीम खरीद कर मुन्ने को लगाऊंगी तो जरूर इसका रंग साफ हो जाएगा। ये सोच कर गाढ़े रंग का मलाल थोड़ा कम हो जाता।
विश्वनाथ जी जितनी छुट्टियां ले कर आए थे उससे ज्यादा रुक गए थे। अब बस जल्दी से जल्दी जाने की तैयारी थी।
जाने की तैयारियों में गुलाबो का ध्यान लगा हुआ था। उसके कान सदैव खड़े रहते ये सुनने के लिए की अम्मा कही ये न कह दे की, गुलाबो .. तू अपनी जाने तैयारी क्यों नही कर रही..?
और कही वो सुन ही न पाए। यही शब्द सुनने की आशा में वो अम्मा के आस पास ही डोलती रहती। पर अम्मा ऐसा कुछ नही कह रही थीं।
सुबह सब को जाना था। रज्जो रोज की भांति सास का सर पे तेल डाल कर कंघी कर रही थी। तभी अम्मा बोली, "रज्जो तेरी तैयारी हुई या नहीं अभी। अपना सब सामान रक्खा या नही..?"
गुलाबो के कान तो ये सुनते ही सन्न रह गए। अब इस बार भी दीदी ही जायेगी। ये सोच कर ही उसे चक्कर आने लगा। खुद को संयत कर वो कमरे में गई और विजय पर बिफर पड़ी। वो बोली, "तुमने कहा था की इस बार मैं जाऊंगी शहर तुम्हारे साथ। पर अम्मा तो अभी दीदी को सामान रखने को बोल रही हैं। तुम जाओ और अभी तुरंत बात करो अम्मा से। मेरी बात ध्यान से सुन लो, क्योंकि अब मैं अकेली यहां नही रहने वाली। मैं नहीं जाऊंगी तो तुम्हें भी नही जाने दूंगी।"
गुलाबो का गुस्सा देख विजय ने चुप चाप अम्मा से बात करने में ही भलाई समझी। भलाई क्या थी.? उसके लिए तो दोनो ही स्थिति विकट थी। एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई थी। बात करे तो अम्मा नाराज की जोरू के कहे में चल रहा है। और ना करे तो गुलाबो नाराज हो जायेगी। युवा मन पत्नी से नाराजगी नही सह सकता। और सब सह सकता है। हिम्मत करके विजय बाहर आया। अम्मा के बिस्तर पर बैठ गया। भाभी रज्जो तेल लगा कर जा रही थी। उसे कुछ नही सूझा तो अम्मा के पांव दबाने लगा।
अम्मा ने मीठी सी झिड़की दी और बोली, "इतने दिन आए हो गया कभी अम्मा के पांव को हाथ नहीं लगाया। और जब अब सुबह जाना है तो मोह बढ़ा रहा है। अम्मा के पांव दबा रहा है।"
विजय ने देखा अम्मा चुपचाप लेटी पैर दबवा रही हैं। कुछ पूछ नही रही। उनिंदी अम्मा को धीरे से पैरो से हिला कर विजय बोला, "अम्मा सुनो ना..! सो गई क्या..?"
जगत रानी बोली, "हां..! नींद आ रही सुबह जाना है तुम सबको। जा तू भी सो जा।"
विजय फिर डरते डरते बोला, "वो .. अम्मा.. गुलाबो भी तो जा रही है ना साथ में। उसका भी समान मैने रखवा दिया है।"
अब अम्मा की नींद उड़ गई। विजय के पैर दबाने का राज उनकी समझ में आ गया। उन्हें गुस्सा तो बहुत आया पर बेटा सुबह चला जायेगा ये सोच कर खुद पर काबू किया और बोली, "पगला गया है क्या..? गुलाबो जायेगी..? उसका अभी दो महीने का भी बच्चा नहीं है। वो संभाल लेगी उसे अकेले..?"
विजय तुरंत बोला, "मैं रहूंगा ना अम्मा। मैने मदद करूंगा बच्चे को संभालने में।"
लेटी जगत रानी उठ कर बैठ गई और घूरते हुए गुस्से से बोली, "इतने सालों बाद घर में एक बच्चा आया है। उसे मैं ऐसे ही भेज दूं शहर में..? जहां ना खालिस दूध मिले न हवा। तू काम करने थोड़ी ना जा रहा है। तू तो बच्चा सम्हालने जा रहा है। तो ऐसा कर बेटा …! यही रुक जा छोड़ दे काम। संभाल बच्चा।"
गुस्से से विजय को डांट कर मुंह दीवार की ओर कर के लेट गई। थोड़ी देर बाद विजय भी उठ कर अपने कमरे में चला गया। वो जान गया की अम्मा इस बार नही पिघलने वाली। तो गुलाबो की दूसरी बात ही सही। रहने देता है वो भी नही जाता। फिर जब उसने सोचा इस बात को तो तनाव के बाद भी मन ही मन मुसकाया। अभी अभी अम्मा ने भी तो यही कहा है। रहने दे बच्चा संभाल। अब चाहे गुस्से में ही कही हो ये बात। अब अम्मा की बात को थोड़े ही ना टाल सकता है..?
गुलाबो जो बेचैनी से विजय का इंतजार कर रही थी। परेशानी में वो हमेशा की तरह इस बार भी पूरे कमरे में तेजी से चक्कर काट रही थी। उसे इंतजार था की आखिर अम्मा ने क्या कहा जाने के लिए..?
गुलाबो की बेचैनी देख वो बोला, "शांत.. शांत… शांत…वो क्या है गुलाबो अम्मा ने कहा है मैं यहीं रहूं । घर और खेतो की देख भाल के लिए। अब उनकी भी उम्र हो गई है। वो खेत खलिहान की देख भाल नहीं कर पातीं। अब जब मैं नही जा रहा तो तुम कहां जाओगी..? अच्छा है…। हम घर रहेंगे तो मुन्ने को भी अच्छी देख भाल मिलेगी।" विजय बड़ी ही सफाई से सारी बीच की बातें गोल मोल कर दी। जो उसके और अम्मा के बीच हुई थी और अम्मा ने गुलाबो को शहर जाने से मना कर दिया था।
विजय इतना कह कर लेट गया। बगल में सोए मुन्ने का सर प्यार से सहलाने लगा। गुलाबो को विजय की बात सुन कर बड़ी मायूसी हुई। पर वो कुछ नही कर सकती थी। अब जब विजय भी नही जा रहा, वो ये जान कर उसे थोड़ा सा सुकून मिला। पर मन में कुछ चुभ सा रहा था। दीदी फिर से परदेश चली जायेगी। और वो यहीं गांव में ही सड़ती रहेगी। शहर में काम ही कितना होता है….? चार जने का खाना बना कर दिन भर आराम… से सोते रहो t फिर वहां नई नई जगह घूमने को भी मिलता था। पर… अब ये सब सुख उसे नही मिलेगा। अब ये सब दीदी के नसीब में है। और उसे…? उसे तो यहां रह कर, अम्मा का हुकुम बजाती रहेगी। पर क्या कर सकती थी..? गुलाबो के मन की टीस अब और भी बढ़ गई। शहर जाने की शुरूआत उसने की। अब वही गांव में रहेगी। और दीदी शहर के मजे लूटेगी। गुलाबो के दिल में रज्जो के प्रति एक ईर्ष्या के सर्प ने अपना विष बोना शुरू कर दिया।
दूसरे ही सुबह जाने की तैयारी थी। गुलाबो देर रात तक जागी थी। इस कारण सुबह उसकी आंख नही खुली। साथ ही विजय भी सोता ही रहा। जगत रानी को तो जरा भी अनुमान नही था की विजय उसके मुंह से निकले एक बात को पकड़ लेगा। तड़के उठ कर रज्जो ने रास्ते में सभी के खाने के लिए पूड़ी - सब्जी बना ली थी। कोई नही जान रहा था की विजय नही जा रहा। देर होते देख राज रानी विजय के कमरे के बाहर आई और तेज स्वर में चिल्लाई, "अरे… ! विजय अब उठ जा…। रेल गाड़ी का समय हो गया है। बाकी की नींद तू गाड़ी में ही सो कर पूरी कर लेना।"
अम्मा की तेज आवाज से विजय और गुलाबो दोनो ही हड़बड़ा के उठ बैठे। गुलाबो हड़बड़ा गई की अम्मा का उपदेश डांट के साथ फिर चालू हो जायेगा। और विजय घबराया की अभी तो अम्मा को पता नहीं की मैं नही जा रहा हूं। वो तो यही जान रही हैं की मैं जा रहा हूं। मेरे ना जाने की खबर सुन कर घर में सब की ना जाने क्या प्रतिक्रिया होगी..? विजय इन्ही ख्यालों में घिरा हुआ बाहर आया। साथ ही साथ गुलाबो भी सर का पल्ला संभालती हुई आंगन में आई।
उन्हे देखते ही जगत रानी ने झिड़की दी। "वाह..! भाई वाह..! क्या नींद है..? इतना भी फिकर नही की रेल का टाइम हो गया गया तो वो चली जायेगी। घोड़ा बेच कर सुख की नींद खींची जा रही है। अब रेल तेरी अम्मा तो है ना..? जो तेरा राह देखते खड़ी रहेगी।"
गुलाबो जल्दी से हाथ मुंह धोकर बाहर से ही रज्जो की मदद करने लगी। क्योंकि बिना नहाए रसोई में जाने की इजाजत नहीं थी।
विजय बाहर आया तो पर अम्मा की बात का जवाब देते नहीं बन रहा था। वो उलझन में था की अम्मा से कैसे बताए..?
तभी उसे शांत खड़ा देख अम्मा ने फिर झिड़की लगाई। वो बोली, "तू सुनता क्यों नही रे..! एक तो देर से सो कर उठा है, और अब खड़ा खड़ा समय बर्बाद कर रहा है। तेरे बाबूजी और जय दोनो तैयार हो गए है। जा जल्दी हाथ मुंह दो कर तैयार हो जा। अब नहाने का समय नहीं बचा है।"
विजय को आखिर जवाब तो देना ही था। चुप रहने से काम नहीं चलने वाला था। उस ने सर झुकाए हुए अम्मा की ओर चोर नज़रों से देखा। वो उसे ही देख रही थीं।
विजय सर खुजाते हुए अम्मा से बोला, "अम्मा मैं तो इस कारण देर से उठा की मुझे नहीं जाना है। आपने ही तो कहा था, रात में की तू यहीं रह …जा…।"
अम्मा विजय की बात सुनते ही बिगड़ गई। उन्हे रत्ती भर भी ये आभास नहीं था की, उनके व्यंग को विजय सच मान लेगा। उन्होंने तो तंज किया था कि "रुक जा.. बच्चा संभाल।" पर विजय उसे अपनी सुविधा अनुसार उनकी बात को घुमा लेगा। ये अनुमान उन्हे नहीं था।

क्या विजय बाबूजी और जय भईया के साथ शहर गया..? क्या जगत रानी विजय की इस हरकत से नाराज हुई या माफ़ कर दिया। पढ़ें अगले भाग में।

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