Gulabo - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

गुलाबो - भाग 13

भाग 13

पिछले भाग में आपने पढ़ा की मां की मदद के लिए विजय शहर से गांव आता है। जिससे गुलाबो के प्रसव के समय अम्मा को कोई परेशानी ना हो। विजय के आने के कुछ दिन बाद ही वो दिन भी आ गया जिसकी सभी को प्रतीक्षा थी। अम्मा विजय से दाई अम्मा को बुला कर लाने को कहती है। अब आगे पढ़े।

विजय दाई अम्मा को ले कर घर पहुंचता है। जगत रानी उसी की प्रतीक्षा दरवाजे पर खड़ी कर रही थी। जैसे ही दाई अम्मा आई जगत रानी बोली, "दाई अम्मा मुझे गुलाबो के अंदर परिवर्तन दिख रहा है। जैसे समय आ गया है। आप जरा देख लो तो इत्मीनान हो जाए। मेरा अंदाजा सही है या गलत।"
दाई अम्मा बोली, "हां..! हां..! चलो देखती हूं। तुम परेशान ना हो मैं सब संभाल लूंगी।"
दाई अम्मा को लेकर जगत रानी अंदर आई और "गुलाबो.. ! गुलाबो ..! देख तो कौन आया है…?" कहते हुए जगत रानी दाई अम्मा को ले कर गुलाबो के कमरे में जाती हैं।
लेटी हुई गुलाबो सास की आवाज सुन कर सर पे पल्लू लेते हुए उठ कर बैठ जाती है। दाई अम्मा जगत रानी से एक चटाई मांग कर जमीन पर बिछाती है और उस पर गुलाबो को लेटने को बोलती है।
थोड़ी देर बाद दाई अम्मा कमरे से बाहर आती हैं और बाहर बैठी जगत रानी से मुस्कुराते हुए बताती है की उनका अनुमान ठीक था। आज ही वो शुभ घड़ी आ जायेगी जब वो दादी बनेंगी।
जगत रानी, दाई अम्मा को चाय,पानी पिलाती है। कुछ देर बाद दाई अम्मा अपने घर का काम निपटाने और जरूरत का कुछ सामान लाने के लिए घर जाने को उठती है। साथ ही दाई अम्मा कुछ हिदायत जगत रानी को गुलाबो की देख रेख के लिए देकर चली जाती है।
विजय अनमना सा बाहर बैठा रहा। कुछ घबराहट, कुछ उत्सुकता, कुछ खुशी, सभी के मिले जुले भाव उसके दिल में उमड़ घुमड़ रहे थे।
दाई अम्मा के बताए अनुसार थोड़ी थोड़ी देर पर घी डाल कर काली चाय जगत रानी गुलाबो को पिलाती रही। जब दर्द का हल्का असर था, गुलाबो सहती रही। पर समय बिताने के साथ जैसे जैसे दर्द बढ़ रहा था। उसका रोना चिल्लाना भी बढ़ता जा रहा था। गुलाबो की तेज आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी। विजय गुलाबो का रोना सुन कर विचलित होने लगता है। तभी दाई अम्मा वापस आती दिखती है विजय को। विजय व्याकुलता से दाई अम्मा के पास जा कर उनके हाथो को पकड़ कर पूछता है,
"दाई अम्मा..! गुलाबो को कुछ होगा तो नही..? वो ठीक तो हो जायेगी ना..? उसे ज्यादा तकलीफ तो नही होगी.?"
दाई अम्मा हंस कर विजय के गालों को अपने एक हाथ से थपथपाती है और समझाती हुए कहती है,
"क्या गुलाबो दुनिया की पहली स्त्री है जो मां बन रही है.? अरे.! औरत का तो जन्म ही होता है दर्द सहने के लिए। तुम अधीर मत हो बेटा। मैं हूं ना..! सब ठीक हो जायेगा। अब मुझे जाने दे।"
इतना कह कर दाई अम्मा अंदर चली आई।
उनके कुशल, अनुभवी हाथों, शाम को गुलाबो ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। गुलाबो निढाल हो गई। जगत रानी ने थाली बजा कर पुत्र प्राप्ति का संदेश आस पास के घरों में दिया। बच्चे को नहला कर दाई अम्मा ने जगत रानी की गोदी में डाल दिया। और अपने इनाम के लिए हाथ फैला दिया।
जगत रानी ने बड़े ही उल्लास से पोते होने की खुशी में अपनी उंगली में पहनी सोने की अंगूठी निकाल कर दाई अम्मा को भेंट कर दी। दाई अम्मा भी खुश होकर फलने फूलने का आशीष देकर अपनी बख्शीश ले कर चली गई।
नन्हे शिशु को लेकर जब जगत रानी ने गौर से देख तो उन्हे बच्चे का रंग कुछ ज्यादा ही दबा हुआ लगा। विजय और गुलाबो दोनो ही गोरे चिट्टे थे। वही क्या उनके पूरे परिवार में सभी का रंग साफ था। पर ये बच्चा..? एक कुछ था जो उनकी खुशी को थोड़ा सा कम कर रहा था। फिर जगत रानी ने सोचा ही सकता है दाई अम्मा ने ठीक से नहलाया ना हो इसलिए इसका रंग दबा हुआ लग रहा है। जब मैं साबुन लगा कर अच्छे ले नहलाऊंगी तो जरूर साफ हो जाएगा। भला गुलाबो और विजय का बेटा सांवला कैसे हो सकता है..? जगत रानी ने अपने मन को समझाया।
विश्वनाथ जी को जगत रानी ने विजय से टेलीग्राम करवाया। उसमे लिखवाया की पोता हुआ है ।
वो सब को लेकर गांव चले आएं बरही का कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।
विश्वनाथ जी तो इसी खबर की प्रतीक्षा कर रहे थे। टेलीग्राम मिलते ही वो जय और रज्जो के साथ आने की तैयारी करने लगे। और बरही के चार दिन पहले ही आ गए। ये सोच कर की जगत रानी बिचारी अकेले क्या क्या करेगी..? और विजय भी तो अभी छोटा ही है। आखिर कार्यक्रम की तैयारी भी तो करनी थी। सभी रिश्तेदारों,मित्रो, पड़ोसियों को न्योता भी तो देना था।
खूब रुपए खर्च कर विश्वनाथ जी ने शानदार भोज की व्यवस्था की। तरह तरह के पकवान बनवाए गए। मेहमानों के मनोरंजन के लिए। बदलू पासी का नाच भी रक्खा।

घर आते ही रज्जो ने अपने कुशल हाथों में घर की बाग डोर ले ली। रज्जो बहुत खुश थी बड़ी मां की पदवी पा कर। जैसे ही काम निपटता वो बच्चे की देख रेख में लग जाती। रज्जो गुलाबो की भी बहुत सेवा करती। वो जेठानी की तरह नही बल्कि एक बड़ी बहन की तरह गुलाबो की सेवा करती। गुलाबो भी अपनी प्यारी दीदी के आने से खुश थी। सबसे ज्यादा खुशी तो उसे इस बात की थी की अब दीदी नही बल्कि वो शहर जायेगी। अभी तक तो बच्चे की बात थी इस लिए अम्मा ने नही जाने दिया था। पर अब तो कोई रुकावट नहीं है।
रज्जो और जय की निगरानी में अच्छे से कार्यक्रम निपट गया। आयोजन बहुत ही अच्छा हुआ था। धीरे धीरे सारे मेहमान चले गए। पर सब की निगाह में एक ही सवाल था की गुलाबो तो छोटी होते हुए भी मां बन गई। रज्जो कब मां बनेगी..?
जगत रानी तो खुद ही परेशान थी इस बात की लेकर। मेहमानों के इस सवाल से वो और भी ज्यादा रज्जो से चिढ़ गई। रज्जो दिन रात शांत भाव से चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए काम में जुटी रहती। पर सास जगत रानी की माथे पर चढ़ी त्योरियां कम होने का नाम नहीं लेती थी। जब भी वो बच्चे को गोद में उठाती जगत रानी उससे वापस ले लेती। और कोई न कोई कटाक्ष रज्जो पर कर देती। रज्जो सास की बातों से आहत तो होती पर उसकी कोई झलक उसके चेहरे पर नही दिखाई देती। ना ही वो जय से कुछ कहती ना ही खुद सास को पलट कर जवाब देती। अब उसके दिल की छटपटाहट कौन समझ सकता था..? उसे सास जगत रानी की नाराजगी वाजिब लगती। आखिर उससे बच्चे की उम्मीद करना कोई गलत अपेक्षा तो नही थी। हर पता पिता की ख्वाहिश होती है। अपने नाती पोते को गोदी में खेलाने की। अब वो उनकी इच्छा पूरी नहीं कर पा रही तो उसी की तो गलती है। रज्जो की समझदारी उसे खुद को ही कसूरवार समझ रही थी।

अगले भाग मे पढ़े। क्या गुलाबो शहर गई..? क्या रज्जो अपनी सास जगत रानी के तानों को चुपचाप सहती रही।

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