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गुलाबो - भाग 12

भाग 12


गुलाबो प्रसन्नता से विजय का लाया सामान देख रही थी। कभी वो अपने हाथ हिला कर चूड़ियां खनकाती तो कभी विजय की लाई हुई लिपिस्टिक होठों पर लगाती। उसने सुरमा भी अपनी आंखो में सजा लिया। विजय गुलाबो को देख कर प्रेम से सराबोर हो रहा था। गुलाबो ने देखा विजय मुग्ध है उसे देख कर। यही सही वक्त है अपनी बात रखने का। विजय कभी नही टालेगा उसकी बात। तभी गुलाबो इठलाते हुए उलाहना देते हुए बोली,

"देखो जी.! मुझसे अम्मा का चिक चिक नही सहा जाता। वो हर बात में मुझे सुनाती रहती है। अब तुम बताओ...क्या मैं बहाना करती हूं..? जब तकलीफ होती है तभी तो कहती हूं। उन्हें तो मेरी हर बात ही झूठी लगती है। आज तुमने खुद ही सब कुछ देख सुन लिया।"

गुलाबो ने बेहद ताव से विजय से कहा।

वो विजय की प्रतिक्रिया देखने के लिए कुछ देर को रुकी। फिर उधर से अपनी बात का कोई समर्थन नहीं पाने से विजय से खफा हो गई। पर गुस्सा विजय को उससे दूर कर सकता था। इस लिए गुलाबो ने गुस्से को काबू किया और थोड़ा नाराजगी और थोड़ा प्यार जताते हुए विजय के कंधे पर अपना सर रख कर बोली,

"देखो जी..! मैं कहे देती हूं। मैं इनके साथ नही रह सकती। जैसे ही ये बच्चा हो जाए मुझे अपने साथ शहर ले चलो।"

गुलाबो के अपने कंधे से टिके सर को विजय प्यार से सहलाते हुए उसके बालों में अपनी उंगलियां फिराने लगा। स्त्री के प्यार और नखरे ने ना जाने क्या क्या करवा डाला है मर्दों से। ये बस साथ शहर ले जाने की बात थी। और विजय भी तो गुलाबो से दूर नहीं रह पाता था।

कई महीने बाद आज विजय को गुलाबो की नजदीकी नसीब हुई थी। अब इस खूबसूरत पल को वो बहस या लड़ाई झगडे में बर्बाद नही करना चाहता था। इस वक्त उसकी आंखों पर गुलाबो के प्यार की पट्टी बंधी थी। वो कहां सुन रहा था की गुलाबो क्या कह रही है ..? गुलाबो का सानिध्य पाना था तो उसकी हां में हां मिलाना होगा। उसकी हर बात में बिना सोचे समझे विजय ने "हां" कर दी।

इतनी सुंदर सजी धजी पत्नी सामने हो तो उसकी मांग को शायद ही कोई पति होगा जो पूरा नहीं करेगा। विजय के लाए इत्र से महकती गुलाबो की सांसे विजय को मदहोश कर रही थीं। उसने ने गुलाबो को दिलासा दिया। वो बोला, "तू फिकर ना कर गुलाबो..! मैं हूं ना..! सब ठीक कर दूंगा। ले चलूंगा ना तुझे अपने साथ।"

अपनी बाहों का घेरा मजबूत करते हुए गुलाबो के कान में फुसफुसाते हुए धीरे से बोला, "मैं भी तो नहीं रह पता तेरे बिना। कैसे बताऊं तुझे तेरे बिना मेरा बिलकुल भी मन नहीं लगता था।"

गुलाबो यही तो चाहती थी। एक आश्वाशन पति से साथ ले चलने का। वो उसे मिल गया था। अब उसे विजय से कोई शिकायत नहीं थी। वो भी अब विजय के सानिध्य से दूर नहीं रह पा रही थी। मन में जो गिरह थी वो खुल गई थी। अब दोनों के दिल एक थे।

इन सब बातों में ही रात बीत गई और ना तो गुलाबो सो पाई, ना ही विजय। भोर चिरैया अपनी चह चहाहट चारों ओर बिखेरने लगी। हर झाड़ी, हर पौधे पर बैठ कर वो भोर होने का संदेशा दे रही थी। जैसे सब से कह रही हो जागो भोर हो गई। जागो भोर हो गई।

जगत रानी की यही अलार्म घड़ी थी। जैसे ही कान में चिड़ियों की आवाज गई। वो सीता राम, सीता राम का सुमिरन करते हुए उठ बैठी। ओर आंगन में आकर जोर से आवाज लगाई।

"अरे..! गुलाबो उठेगी या सोती ही रहेगी..?"

"चल जल्दी उठ"

"तुझे और बच्चे को सुबह की ताजी हवा बहुत फायदा करेगी। चल सैर भी कर लेना और हल्की भी हो लेना।"

मां आवाज सुन उठने का मन तो विजय का भी नही था। पर शर्म और लिहाज की वजह से मजबूर हो गया। गुलाबो जो सास की आवाज सुन कर उससे और चिपकना चाह रही थी। विजय ने खुद से परे कर उसे बिठा दिया और खुद भी उठ कर बाहर आ गया। मरती क्या ना करती..? गुलाबो नींद से बोझिल अपनी आंखो को मिजते हुए बाहर आ गई। विजय तो बाहर आ कर अम्मा के बिस्तर में घुस गया। वो अब यहां सो कर अपनी बाकी नींद पूरी करने लग गया। और गुलाबो सास के साथ बाहर चली गई। वो अम्मा के पीछे पीछे चल रही थी। अम्मा का उपदेश चालू था। पर गुलाबो का ध्यान उनकी बातों पर बिलकुल भी नहीं था। जैसे तैसे कर के गुलाबो आधे रास्ते गई थी। तभी उसके दिमाग में एक तरकीब सूझी। वो अपने बड़े हुए पेट को हाथ में थाम कर कराहने का नाटक करते हुए बोली,

"अम्मा..! अम्मा सुनो ना..! मुझसे अब नही चला जाता। मेरा पेट दुखने लगा। आपको जाना हो तो जाओ। मैं तो अब और आगे तक नही जा पाऊंगी।"

घबरा कर राज रानी पलटी और गुलाबो पास आकर के पेट को सहलाते हुए बोली,

"कहां दर्द हो रहा है..? यहां..? यहां ..?"

राज रानी अनुभवी थी। वो जानना चाहती थी की आखिर आखिरी वक्त का ये दर्द कैसा है..? कहीं प्रसव वाला दर्द तो नहीं।

पर गुलाबो अम्मा के हाथों को परे हटाते हुए बोली,

"अम्मा पूरे पेट में ही हल्का हल्का दर्द हो रहा है।"

राज रानी ने अनुमान लगाया की बच्चा रात भर के बाद घूमता होगा,उसे ही ये नादान दर्द समझ रही है। फिर उसे समझाते हुए बोली,

"सुन गुलाबो जब पेट नीचे की ओर दर्द करे तो मुझे बताना, देर मत करना। तब चिंता वाली बात है। अभी तो ऐसे ही हो रहा। तू घबरा मत। नही चलना तुझे तो चल वापस चलते है।"

राज रानी उसे पुचकारते हुए बोली।

गुलाबो की जान में जान आई की उसे वापस आकर फिर से सोने को मिलेगा। वो वापसी में सोच रही थी।

’काश..! ये गर्भावस्था का समय खत्म ही न हो। अम्मा मेरा कितना ख्याल रखती है..? सब कुछ मेरे इच्छा अनुसार ही करती है। पर..! क्या बच्चा हो जाने के बाद भी उनका बर्ताव मेरे साथ ऐसा ही मीठा होगा..? क्या वो मेरा बाद में भी इतना ही ध्यान रखेंगी..?"

फिर मुंह बनाते हुए खुद से ही बोली, ’शर्तिया नहीं। मैं अच्छे से अम्मा को जानती हूं। चलो..! कल की चिंता में अपना आज क्यों खराब करें..? जो होगा देखूंगी।"

जगत रानी देखती ही रह गई। गुलाबो घर पहुंच कर झट से अपने कमरे में जा कर बिस्तर में लेट गई। और जल्दी ही मीठे सपनो की दुनिया में खो गई।

धीरे धीरे विजय को आए दस दिन होने को आए। गुलाबो के प्रसव का समय नजदीक आ गया था। कभी भी दर्द उठ सकता था। अब राज रानी ने बिलकुल भी रोक टोक बंद कर दी। वो नही चाहती थी की गुलाबो को इस आखिरी समय में कोई तनाव हो। गुलाबो तो गुलाबो ही रहेगी। वो कहां बाज वाली अपनी शरारतों से। उनकी अच्छी बात भी गुलाबो को बुरी लगेगी। ये वो जानती थी। इस लिए बच्चे का सोच कर सब कुछ बर्दाश्त कर लेती थीं।

आज सुबह से ही गुलाबो की तबियत कुछ ढीली सी लगी राज रानी को उनकी अनुभवी आंखे समझ गई की आज गुलाबो कोई नाटक नही कर रही। जिस घड़ी का इंतजार था वो अब आने वाली थी। आज या बहुत हुआ तो कल। इससे ज्यादा उन्हें अपने इंतजार नही करना होगा अपने पोते का मुंह देखने के लिए।

जैसे ही गुलाबो बाहर जाने को हुई उसे रोक दिया और बोली,

"गुलाबो आज दूर जाने की जरूरत नहीं। जा घर के पिछवाड़े ही बैठ ले।"

धीरे धीरे कदम बढ़ाती हुई, पेट को दोनों हाथों में थामें गुलाबो ,"जी अम्मा" कहती हुई पिछवाड़े चली गई।

राज रानी को सब्र कहां..? वो बार बार जाती पिछवाड़े झांक कर आती की गुलाबो ठीक ठाक तो है। उसे ठीक देख थोड़ी राहत मिलती उन्हें।

जैसे ही गुलाबो वापस आई। उसे सहारा दे कर हाथ मुंह धुलवाया और जगत रानी बोली,

"गुलाबो तू जा आराम कर अपने कमरे में मैं तेरे खाने पीने को कमरे में ही ले आती हूं।"

काम बढ़ता देख कर विजय को भेज कर नाउन की बहू को बुला लिया। वैसे भी उसे रोज ही घर के काम काज के लिए बुला लेती थीं राज रानी।

चाय के साथ चने की घुघुरी गुलाबो को खाने को दे कर राज रानी बाहर आई।

बाहर बैठ कर दातुन करते विजय के पसबाकर धीरे से उसके कान में बोली,

"सुन विजू..! लगता है मुझे आज ही दाई की जरूरत पड़ जायेगी। दातुन करके तू चला जा दाई अम्मा को बुला ला। वो देख कर बता देंगी की कब तक बच्चा इस दुनिया में आएगा। जा ..! चला जा।"

अम्मा की वाणी ने विजय के चेहरे पर खुशी के भाव ला दिए। पर इस खुशी में थोड़ी घबराहट भी थी। वो जल्दी से दातुन फेक कुल्ला कर दाई अम्मा के घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में वो सोचता जा रहा था। सुना है..! बहुत दर्द होता है..! गुलाबो को भी ये दर्द सहना पड़ेगा।

गुलाबो ठीक तो हो जायेगी ना। उसे कुछ होगा तो नही बच्चा सही सलामत तो आ जायेगा ना इस दुनिया में।

ज्यादा दूर नहीं था दाई अम्मा का घर। वो आवाज देकर उन्हें बुलाया और पूरी बात बता कर साथ ले कर चला आया।

अगले भाग मे पढ़े क्या सब कुछ ठीक ठाक हो गया..? दाई अम्मा ने गुलाबो को देख कर क्या बताया..? क्या गुलाबो ने सही सलामत बच्चे को जन्म दिया..? पढ़े अगले भाग में।


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