मायका दिनेश कुमार कीर द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मायका

"मायका....

"अरे वाह..... रीना आज तो बड़ी प्यारी लग रही हो...
रक्षाबंधन वाले दिन सुधा अपने मायके से वापस आयी ही थी कि उसे रीना बाहर ही मिल गयी...
चटक हरे रंग के लहंगा चोली और मांग टीका लगाए सजीधजी आज तो वो बिल्कुल अलग और बहुत सुंदर दिख रही थी...
'हां ... जी आंटी मैं भी अभी आयी हूँ अपने मायके से राखी करके... वह बोली

मायके से...
रीना ... सुधा के घर के साथ वाले घर में किराए का कमरा लेकर रह रही थी वो किसी बड़ी कोठी में पूरे दिन के लिए खाना बनाने का काम करती थी और उसका घर वाला कहीं ड्राइवर का काम करता था...
लेकिन उनके रहन सहन से कहीं भी नही लगता था कि रीना इस तरह कोठी में काम करती होगी...

सुबह जब घर से निकलती तो खूब बढ़िया से तैयार टिप टॉप होकर जाती... आते जाते जब भी सुधा को दिखती या मिलती खूब अच्छे से मुस्कुराते हुए बात करती...

मायके से आई हूं... उसका जवाब सुनकर उस समय तो सुधा अंदर चली गयी लेकिन उसकी ये बात उसके दिमाग से निकल ही नही रही थी कि वो मायके गयी हुई थी राखी का त्योहार मनाने...
क्योंकि कुछ दिन पहले ही तो उसने बताया था कि उसके माँ - बाप तो बचपन मे ही किसी दुर्घटना में चल बसे थे...

परिवार में और कोई था नही तो बस वो एक बार किसी दूर के रिश्तेदार के साथ गांव से शहर आ गयी तो दोबारा कभी गांव गयी ही नही...
तो फिर आज अचानक से इसने ये क्यों बोला कि वो मायके गयी थी भाईयों को राखी बांधने...

अब सवाल तो सुधा को बहुत उलझा रहे थे लेकिन उनके जवाब तो तभी मिलते जब रीना बताती...
लेकिन सुधा को ज्यादा समय उलझन में नही रहना पड़ा क्योंकि इत्तफाक से अगले दिन रीना फिर से उसे फिर से मिल गयी...
और सुधा के बिना पूछे ही उसने बताना शुरू कर दिया क्योंकि शायद वो अंदर से जान गई होंगी के उसकी उसदिन वाली बात ने सुधा आंटी के मन मे कई सवाल उठा दिए होंगे...

वह कहने लगी... आंटी आपको तो पता ही है मेरा तो मायका ही नही है बचपन से बस कोठियों में काम करते करते ही बड़ी हुई हूँ...
लेकिन मेरे पति रंजीत की मैं दूसरी पत्नी हूँ...
उसकी पहली पत्नी का जब बच्चा हुआ तो वो चल बसी।फिर रंजीत की शादी मेरे साथ हुई...

रंजीत ने क्योंकि बच्चे की देखभाल के लिए जल्दी शादी की थी तो तब तक उसका बेटा उसकी पहली पत्नी के मायके वालों के पास था... रंजीत ने उन्हें शादी में बच्चे के साथ बुलाया था...

उन्होंने वहां आकर बच्चा तो मुझे सौंपा ही साथ ही जब उन्होंने देखा कि मेरा मायके का कोई भी नही है तो उन्होंने मुझे अपनी बेटी मानकर मेरा कन्यादान भी किया... इस तरह बच्चे को माँ मिल गयी...
मुझे मायका मिल गया और उनको बेटी मिल गयी और अब वो मुझे अपनी बेटी की तरह ही मान देते हैं और हर तीज त्योहार पर मुझे मायके का हर नेग वहीं से आता है...

सुधा उसकी बातें सुनकर सोच में पड़ी थी कि आज ऐसे वक्त में जब अपने ही अपनो को नही पूछते तब भी इस दुनिया मे ऐसे बड़े दिल वाले लोग मौजूद हैं जो सही मायनों में जानते हैं कि रिश्ते बनाना और उन्हें दिल से निभाना क्या होता है...