Aahuti ek Jwala - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

आहुति एक ज्वाला! - 1


स्त्रियाँ जहा एक ओर करुणा की मूरत होती है तो अपनो पर आई विपदा को दूर करने के लिए चन्डी और काली का भी रूप धारण कर लेती है.....!!

एक लडकी श्मशान घाट में जलती हुई चिताओ को देख रही थी उसकी आँखें लाल पडी हुई चाहे वो रोने से या गुस्से से जलती हुई नजर आ रही थी...वो बस एक टक चिताओ को देखे हि जा रही थी उन चिताओ में उसे वो विभस्त दृश्य नजर आ रहे थे जो उसके साथ घटित हुई है............!! उन विभस्त दृश्य याद आते हि उसका शरीर कापने लगा मुह सूखने लगा वो बार बार अपनी जीभ फ़ेर रही थी थरथराहट इस कदर बढ़ गई एक वक़्त बाद वो बेहोश हि हो गई.....!!

जब उसकी आँखें खुली खुद को पाया एक छोटा और व्यवस्थित कमरे में जहा पर सब सामान एकदम कायदे से रखा हुआ था वो समझ गई इस वक़्त वो कहा है खुद को पहले से बेहतर महसूस कर रही थी धीरे धीरे वो बिस्तर से उठकर कमरे में बनी खिडकी से बाहर देखने लगी जहा से ठन्डी ठन्डी हवाय चल रही थी घने बादल छाय हुये देखने से लग रहा था कुछ वक़्त बाद बारिश होने वाली है वो ये सब सोच हि रही थी उसके कन्धे पर किसी ने हाथ रखा वो स्पर्श आहुति बहुत ही अच्छे से पहचान ती थी l

आहु अब बस कर कितना सोचोगी चल देख मैने गर्मा गर्मा भजिये बनाय है l मौसम भी बहुत सुहाना हो गया उसकी आवाज सुनकर वो पलटी कर्तव्य हमारा मन नहीं है आप खा लो......
कर्तव्य मैने तुमसे पूछा नहीं है चुपचाप खाओ चलकर नहीं तो तुम मुझे अच्छे से जानती नहीं चली तो तुम्हे गोद में उठाकर ले चलुगा समझी या मेरी गोद में आने का बहाने ढूढती हो जब देखो कही पर भी बेहोश हो जाती बता कर भी नहीं जाना होता है है ना.....

उसे झँझोड़ते हुये कहता है!

आहुति जोर से कर्तव्यययय हमने कितनी बार कहा हमसे ऐसे बात मत किया किजिये आप नही तो हमारे हाथों से आपका कत्ल हो जाना शुरुआत तो वैसे भी हो चुकी है........

कर्तव्य : हम तो मरने के लिये तैयार हि बैठे कब तुम आओ मुझे अपने इन खूबसूरत हाथों से हमारा कल्त कर दो!
आहुति कर्तव्य को अपने हाथों से धीरे धीरे उसके सीने पर मारते हुये रोती जा रही थी कर्तव्य प्लीज़!

कर्तव्य उसे अपने सीने से लगा लेता है उसके सिर पर हाथ फ़ेरने लगता है आहुति उसके गले पडते हि जोर जोर से रोने लगती है कर्तव्य भी उसे नहीं रोकता उसको जी भर को रोने देता है !
एक दिन ऐसा जरुर आयेगा जब तुम वो हक़िक़्त बया करोगी जो तुम्हे इस कदर तडपा जाती उस दिन प्रतीक्षा है जब आप हमे बतायेगी आहु!

जब उसका रोना हिचकिचियो मे बदल जाता है तब वो उसे अपने सीने से चिपकी हुई आहुति को दूर करता है पर वो उससे दूर नहीं होती है उसके गले लगी रहती है !

कर्तव्य मजाक में हि आहु कुछ ज्यादा हि पसंद हूँ क्या जो चिपकी को बन्दरिया जैसी...... बंदरिया शब्द सुनते हि आहुति कर्तव्य को उसके हाथ पर जोर से काट लेती है !

कर्तव्य जोर से चीख पडता है जंगली कही की इतनी जोर से कोई काटता है भला मै तो मजाक कर रहा था अब देखो तुम्हारे दान्तो के निशान बन गये है !

आहुति देखती है सच मे निशान पड जाता है तो और रुआसी हो जाती है उसके आन्खे आन्सुओ से भर जाती है कर्तव्य उसे देखकर अरे पगलु मत रो जरा सा ठीक हो जायगा अभी दवा लगा लुगा अपने इन आसुओ को बेफ़िजूल मत बहाओ अपने नाम कि तरह खुद को इतना मजबूत बनाना है सभी पापियो को अपने हाथों से ऐसी सजा मुकर्रर करना उनकी रुह काप उठे समझी !

आहुति.... हम्म....!!

कर्तव्य अब चलो भजिया नहीं तो ठन्डी हो जाएगी और मै दूबारा नहीं बनाउगा समझी उसे अपने साथ घसीटते हुये टेबल पर बैठा देता है और खुद भी परोसकर एक हि थाली से कर्तव्य आहुति को खिलाने लगता है और आहुति भी चुपचाप खाने लगती है.........!! बाहर मौसम बारिश कि धीरे धीरे बून्दे पडने लगती है जो वातावरण को सुहाबना बना रही है और वो दोनों भजिये का लुफ़्त उठा रहे होते जहा कर्तव्य कुछ ना कुछ बात किये जा रहा होता है उसका मन बदलने के लिये!

वही आहुति बस हूँ हा जवाब दे रही होती है....!!


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वही दूसरी तरफ कुछ लोगों की आंखों में हैवानियत भरा गुस्सा था जो किसे पर उतार रहे थे! तुम लोग उस दो टके की नाजुक सी लडकी को ढून्ढ नहीं पा रहे हो!

भाई भाई हमे माफ़ कर दो हमने बहुत कोशिश पर वो नहीं मिली पता नहीं कहा चली गई जमीन खा गई या आसमा !
यहा मेरी अदालत में माफ़ी कि कोई गुन्जाईश नहीं होती सीधा मौत वो ये कहते हुये वो उन लोगों के माथे पत गोली चला देता है वो लोग इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा हो जाते है!

ये देखकर वहा पर खडे कुछ लोगों के चेहरे पर पसीने कि बूँदे चुचचुहाने लगती है !वो आदमी जिसने गोली चलाई थी उन लोगों के देखते ,"हुए तुम लोग अपना ऐसा हाल नहीं करना हो तो जल्द से जल्द उस लडकी को ढून्ढ कर कही से भी लाओ समझे अब दफ़ा हो यहा से "l

अरे भाऊ परेशान काहे होते हो मिल तो जाने दो साली को फिर बताते उस #####कि औलाद को
वही हाल करेगे जो उसके अपनो का किया था वो अतीत कि बातो को याद कर बेशर्मी से हसने लगता हैं!

हा तू सही कहता है छोटे फिर वो दोनों हि जोर जोर से हसने लगते हैं वो हसी इतनी भयानक लगती कोई मासूम दिल वाला हो तो उसका दिल दहल जाय....!!

वही ये सबसुनकर उन घर कि औरते आपस में कहने लगती है कहा इन जल्लादो कि बीच कर फ़स गये जरा भी इंसानियत नहीं......!!
वो अभी बाते कर रही थी पीछे से किसी ने उसके गले को दबाना शुरू कर दिया कामिनी कही कि मेरे पीठ पीछे ये बाते करती हो तुम बहुत हि बेहरमी से गरदन दबाता है !

यही सब देख रहा उसका भाई जल्दी से अपने भाई को रोकने को कहता है..... नहीं छोटे आज तो इसकी जान ले हि लेता हूँ जब देखो तब इसका यही रहता है हमारा हि दिया खाती और हमी को हि कोसती है!

वो औरत (धैरवी) तू चाहे कितनी जल्लाद पना दिखा दे एक दिन कोई आयगी अपनी हि हाथों से संहार करेगी तुम्हारी हि झूठी मिल्कियत को धराशाही कर देगी याद रखना किसी दि हुई बदुआये कभी खाली नहीं जाती समझे रमन सिंह
कभी नहीं कभी नहीं......!!

ये सब सुनकर रमन जोरो से चीखता हुआ अपने घर के नौकरो से कहता है इसको कमरे में बन्द कर दो!
बिना मेरे इजाजत इसको खाना पीना नहीं देना नहीं तो तुम सब कि खैर नही समझे!

इतना सब कहता हुआ रमन अपने छोटे भाई करम और अपने आदमियो के साथ घर से निकल जाता है!

.वही वो औरत को उसके घर के नौकर दिदि जी आप ये काहे करती हो उस रमन जल्लाद आपके पति होते हुये जल्लादो जैसा बर्ताव करते है!

वही धैरवी पति शब्द सुनकर... आंखों कि निर्मल धारा बहने लगती है कितने हि अरमान लेकर आई थी उसे क्या पता इस घर के लोग इंसान नहीं जल्लाद है जल्लाद है !

नहीं भैय्या अब तो आदत पड गई है माँ बाबू को दिये वादे कि वजह से हूँ यहाँ पर नहीं तो कबका छोडकर चली जाती!

इतना कहकर अपने आसुओ को पोछती हुई कमरे में खुद को बन्द कर लेती !

नहीं ऐसा करती तो नौकरो को सजा मिलती!

 

जारी है....!

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