सुंदरता दिनेश कुमार कीर द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सुंदरता


सुंदरता

एक कौआ सोचने लगा कि पंछियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूँ । न तो मेरी आवाज ही अच्छी है , न ही मेरे पंख सुंदर हैं । मैं काला - कलूटा हूँ । ऐसा सोचने से उसके अंदर हीन भावना भरने लगी और वह दुखी रहने लगा । एक दिन एक बगुले ने उसे उदास देखा तो उसकी उदासी का कारण पूछा । कौवे ने कहा – तुम कितने सुंदर हो, गोरे - चिट्टे हो, मैं तो बिल्कुल स्याह वर्ण का हूँ। मेरा तो जीना ही बेकार है । बगुला बोला – दोस्त मैं कहाँ सुंदर हूँ । मैं जब तोते को देखता हूँ , तो यही सोचता हूँ कि मेरे पास हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है । अब कौए में सुन्दरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी ।
वह तोते के पास गया । बोला – तुम इतने सुन्दर हो , तुम तो बहुत खुश होते होगे ? तोता बोला - खुश तो था लेकिन जब मैंने मोर को देखा , तब से बहुत दुखी हूँ , क्योंकि वह बहुत सुन्दर होता है । कौआ मोर को ढूंढने लगा , लेकिन जंगल में कहीं मोर नहीं मिला । जंगल के पक्षियों ने बताया कि सारे मोर चिड़ियाघर वाले पकड़ कर ले गये हैं । कौआ चिड़ियाघर गया , वहाँ एक पिंजरे में बंद मोर से जब उसकी सुंदरता की बात की , तो मोर रोने लगा । और बोला – शुक्र मनाओ कि तुम सुंदर नहीं हो , तभी आजादी से घूम रहे हो वरना मेरी तरह किसी पिंजरे में बंद होते ।

कहानी का सारांश :- दूसरों से तूलना करके दुखी होना बुद्धिमानी नहीं है । असली सुन्दरता हमारे अच्छे कार्यों से आती है ।





मानवता

कहानी एक गुरुउनकी पढ़ाई हुई शिष्यों की वह मल्लापुरम केरल में एक अच्छी मैथ्स टीचर थी.....

एक दिन उनकी एक स्टूडेंट ने रेलवे स्टेशन के पास उन्हें भीख मांगते हुए देखा .... लेकिन वह ठीक से पहचान नहीं पाई ... लेकिन जैसे ही स्टूडेंट ने पास जाकर देखा तो वो दंग रह गई कि वह उसकी क्लास टीचर हैं

जब उसने अपनी टीचर से उनकी इस हालत के बारे में पूछा तो टीचर ने कहा कि मेरे सेवानिवृत्त होने के बाद मेरे बच्चों ने मुझे छोड़ दिया और उनके जीवन के बारे में वह नहीं जानते .... इसलिए वह रेलवे स्टेशन के सामने भीख मांगने लगी

उनकी दर्दभरी कहानी सुनकर छात्रा रो पड़ी और उन्हें अपने घर ले गई और अच्छी पोशाक और खाने-पीने को दिया और उसके भविष्य की योजना के लिए हर दोस्त से संपर्क किया जिन छात्रों को उस टीचर ने पढ़ाया था...

और उन्हें रहने के लिए एक बेहतर जगह पर ले गई ताकि वो सम्मान और शान्ति से अपना जीवन बिता सकें, अपने खुद के बच्चों ने उन्हें छोड़ दिया .. .लेकिन जिन बच्चों को उसने पढ़ाया था, उन्होंने अपने टीचर को नहीं छोड़ा और आखिर में वही उसका सम्बल बने।

यही गुरु-शिष्य परम्परा की महानता है और उनके बीच का वो भावनात्मक रिश्ता है जिसकी बदौलत #मानवता आज भी ज़िंदा है