सच्ची भक्ति दिनेश कुमार कीर द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सच्ची भक्ति

सच्ची भक्ति

एक बहुत बड़े देश का राजा था उस के देश में एक गरीब सा आदमी रहता था। वो राजा को जब भी किसी बड़े आदमी से हाथ मिलाते देखता तो मन ये विचार लाता कि काश मैं भी राजा से हाथ मिला सकता।

धीरे - धीरे उस की ये तम्मना बढ़ती गई। फिर एक दिन उसने ठान लिया कि चाहे कुछ हो जाये मैं राजा से हाथ मिला कर रहूँगा।

एक दिन वह आदमी किसी संत के पास गया और अपनी इच्छा बताई। तब संत जी ने कहा कि इस के लिए तुझे सब्र और मेहनत करनी पड़ेगी, क्रोध, लालच का त्याग करना पड़ेगा समय भी लगेगा।

उसने कहा मैं इसके लिए तैयार हूँ। तब संत जी ने बताया कि राजा एक महल तैयार करवा रहा है तुम वहा जाकर बिना किसी लालच के सेवाभाव के ईमानदारी से काम करो।

वो आदमी महल में काम करने लगा जब भी शाम को राजा का मंत्री मजदूरी देता तो वो ये कह देता कि अपना ही काम है अपने काम की मजदूरी कैसी और वह दिन रात लगा रहता खाली नहीं बैठता था।

वक्त बीतता गया महल तैयार हो गया। उसने महल के चारो और सुंदर सुंदर फूल तथा पेड़ लगा कर महल को इतना खुबसुरत बना दिया कि जो भी देखता, देखता ही रह जाता।

एक दिन राजा महल देखने के लिए आया तो महल देखकर बहुत खुश हुआ। तब मंत्री से बोला कि इतनी सजावट किसने की है। तब मंत्री बोला जी हूजूर ये कोई आप का ही रिश्तेदार है।

राजा हैरानी से बोला हमारा रिश्तेदार...

मंत्री जी हूजूर आपका ही रिश्तेदार है, उसने ना तो 12 साल से मजदूरी ली है और दूसरे मजदूरो से अधिक काम किया है दिन - रात लगा रहता है।

जब भी मजदूरी देने की बात होती है तब यही कहता है कि अपना ही काम है अपने काम की मजदूरी कैसी।

राजा सोच में पड़ गया कि ऐसा कोन सा रिश्तेदार है। फिर राजा ने कहा उसे बुलाओ।

उसे बुलाया गया तब राजा ने उसका खड़े होकर स्वागत किया और हाथ मिलाया। फिर राजा ने उससे उसका परिचय लिया।

परिचय के बाद राजा को हैरानी हुई कि ये रिश्तेदार भी नहीं है और मजदूरी भी नहीं ली और सेवाभाव से काम भी किया,

राजा बहुत खुश हुआ और कहा माँगो क्या माँगते हो।

तब उसने कहा जी कुछ नहीं, जो चाहता था आपसे मिल गया तब उसने सारी बात बताई।

तब राजा ने कहा कि अब तेरा मुझ से हाथ मिल गया है अब तू बेपरवाह है, सब सुख तेरे अधीन है अब तू भी बादशाह है। जो कुछ मेरा है, वह तेरा है।

मतलब ये है कि हमें उस मालिक बादशाह की भक्ति जी जान से दिल लगा कर पूरी ईमानदारी से सिर्फ उस को प्राप्त करने के लिए करनी चाहिए, जब उससे अपना हाथ मिल गया तो कोई कमी नहीं ।

अगर एक दुनिया का राजा खुश हो कर इतना कुछ दे सकता है। तो खुद मालिक परमात्मा से हाथ मिलाने पर क्या कमी होगी।

सो अर्ज है कि अपने परमात्मा को खुश करो चाहे जैसे भी करो। यही सच्ची भक्ति है। उससे हाथ मिलाकर उस जैसे हो जाओ वह बादशाह है तुम्हे भी बादशाह बना देगा।

तेरे ना होने से ज़िन्दगी की तस्वीर बदल जायेगी ...
तू साथ है तो बिगड़ी तक़दीर बदल जायेगी ...
अपना बना कर कभी दूर मत जाना ...
तेरी जुदाई से " सांवरे " ज़िन्दगी बिखर जायेगी ...