उड़ान दिनेश कुमार कीर द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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उड़ान

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बेटियाँ हैं इनको रोकिये मत कुछ करने दीजिये ...।
पढ़ कर विचार जरूर करियेगा ...।

ममता हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आती जिसे देखकर उसके माता - पिता खुशी से फूले नहीं समाते ...।

उसके पिता तो पूरे मौहल्ले में मिठाई बँटवाते उनका सपना उसे ऊँचे पद पर देखना था ... ।

और ममता उनकी चाहतों पर खरी उतरी भी लेकिन दिनेश के घरवालों को उसका कार्य करना पसंद नहीं था ... ।

अत: - उन्होंने यह कहकर कि उनके घर की बहुएं नौकरी नहीं करतीं उसके पंख काट दिये ।

वह विरोध करना चाहती थी पर उसे तो पता ही नहीं चला कि कब उसके पिता ने दिनेश के पिता को यह वचन दे दिया कि ममता नौकरी नहीं करेगी ...

इस शर्त के साथ विवाह संपन्न हो गया और उस वेदी में उसके उन्मुक्त आकाश में पंख पसार कर उड़ने के सपने भी खाक हो गये ।

उसके ससुराल वाले हमेशा उसे जली - कटी सुनाते रहते ।

सास तो रात - दिन यही कहती तुम्हारे बस का कुछ नहीं है तुमसे कोई काम ढंग से होता ही नहीं ।

न जाने क्या करती रहीं मायके में ... अरे ... कोई लखन तो सीखा होता ।

अब वह कैसे बताये कि उसकी योग्यता को तो उनके पति के वचन निगल गये और पिता ने अपनी बेटी को ऊँचे घर की बहू बनाने के सपने की भेंट चढ़ा दिया पर हर चीज़ की लिमिट होती है ।

वह यह सुन - सुन कर थक गई तो अपने आपको उनके सामने प्रूव करने की चाह मन में उपजने लगी और उसने एक स्कूल में संपर्क किया जहाँ उसके प्रमाण पत्र देखकर ही तुरंत ही उसको कार्य मिल गई ।

जब ममता ने घर आकर यह बताया तो सभी उसका मजाक बनाने लगे... शक्ल देखी है अपनी... पढ़ाने के लिए बहुत योग्यता की जरूरत होती है खेल नहीं है टीचर बनना ।

अरे जाने दो न मांजी... चार दिन बाद ही स्कूल वाले घर का रास्ता दिखा देंगे तब अपनी औकात अपने आप समझ में आ जायेगी ।

ममता पढ़ाने लगी और पढ़ाने का तरीका बहुत अच्छा था वह दिनोंदिन बच्चों की पहली पसंद बनती जा रही थी...

जिसे देखो वही ममता मैम के गुण गाता ।

उसकी यह प्रसिद्धि उसके घरवालों के कानों तक भी पहुँचने लगी थी ।

आज उसे " बेस्ट टीचर " का अवार्ड मिलने जा रहा था...

जिसके लिए स्कूल की तरफ से उसके पूरे परिवार को आमंत्रित किया गया था जब उसकी सास ने यह देखा तो उनकी छाती पर सांप लोटने लगे उन्होंने क्या समझा था उसे और उनकी इसी जलन ने उसे कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया ।





2

बेटियाँ...
बाबुल के घर से चली जाती है...
ये बेटियाँ बहुत सताती हैं...
फिर कहाँ लौट करके आती है...
ये बेटियाँ बहुत सताती है...

लोरियां गा के मां सुलाती थी...
रोने लगती तो वो हंसाती थीं...
उंगलियां थाम कर चली जब भी...
रूठजाती कभी मनाती थी...
दिल मे आती है मुस्करातीं है...
ये बेटियां बहुत सताती है...

सिर्फ खाली मकान दिखता है...
और उजाला यहां सिसकता है...
देख कर आने वाले कहते हैं...
वही मासूम जहां दिखता है....
याद उनकी बहुत रुलाती हैं...
ये बेटियां बहलुत सतातीर है...

बाबुल के घर से चली जाती हैं...
ये बेटियां बहुत सताती हैं...