क्रांतिकारी - राव तुलाराम दिनेश कुमार कीर द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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क्रांतिकारी - राव तुलाराम


क्रांतिकारी - राव तुलाराम...
राजा राव तुलाराम , जिसकी 1857 की जंग देखकर दंग रह गए अंग्रेज
सीबपुर के मैदान में हुई इस जंग में अंग्रेज जीत तो गए , लेकिन राव तुलाराम को नहीं पकड़ सके , राव तुलाराम वो बहादुर राजा थे , जिन्होंने अपने युद्ध कौशल से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए । और ईरान से लेकर काबुल तक भारत की आजादी के लिए यात्रा कर डाली । फिर क्या हुआ जानिए ?


जब राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने काबुल में बनाई सरकार

इंदिरा गांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट से जब नई दिल्ली की तरफ आओ तो राव तुलाराम मार्ग से गुजरना पड़ता है । इस मार्ग पर कई हाइर एजुकेशन के इंस्टीट्यूट हैं । राव तुलाराम के नाम पर दिल्ली में सिर्फ सड़क का नाम ही नहीं , फ्लाईओवर , अस्पताल , कॉलेज और कई इमारतें हैं । लेकिन कभी ख्याल किया है कि ये राव तुलाराम हैं कौन ? इस सवाल का जवाब जानने के लिए जब इतिहास के पन्ने पलटते हैं , तो हमें मिलता है एक ऐसा क्रांतिकारी हीरो , जिसने देश की आज़ादी के पहले संग्राम में अहम रोल अदा किया ।

राव तुला राम 1857 की क्रांति के वो योद्धा हैं , जिन्होंने अंग्रेजों से तकरीबन एक महीने तक लोहा लिया । और अंग्रेजों को अपने गढ़ में उलझाए रखा । राव तुलाराम का जन्म रेवाड़ी के रामपुरा में हुआ था । तारीख थी 9 दिसंबर 1825 , उस वक़्त रेवाड़ी को अहिरवाल का लंदन भी कहा जाता था , जहां पर राव तुलाराम के पिता राव पूर्ण सिंह का राज था । उनकी रियासत आज के दक्षिण हरियाणा में फैली थी , जिसमें क़रीब 87 गांव थे ।

राव तुलाराम की शिक्षा तब शुरू हुई जब वो पांच साल के थे । तभी से उन्हें शस्त्र चलाने और घुड़सवारी की शिक्षा भी दी जा रही थी । राव तुलाराम महज 14 साल के थे , जब उनके पिता की मौत हुई । इस वजह से 14 साल में ही उन्हें सिंहासन संभालना पड़ा । लेकिन अंग्रेजों की नजर उस गद्दी पर थी । अंग्रेज़ों ने उनकी आधे से अधिक रियासत पर धीरे - धीरे कब्जा जमा लिया था । उनसे अपनी जागीर छुड़ाने के लिए राव तुला राम ने अपनी एक सेना तैयार करनी शुरू कर दी ।

राव तुलाराम का राज कनीना , बवाल , फरुखनगर , गुड़गांव , फरीदाबाद , होडल और फिरोजपुर झिरका तक था। लेकिन तभी 1857 की क्रांति भड़क गई । जिसकी आग हरियाणा तक फ़ैल गई और दिल्ली से सटे अहिरवाल के इलाके में ये विद्रोह और भयानक रूप से भड़क गया । अहिरवाल का नेतृत्व राव तुलाराम और उनके चचेरे भाई गोपाल देव ने संभाला । तब राव तुलाराम को दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर का साथ मिला । मेरठ से दिल्ली तक विद्रोह भड़क चुका था । दूसरी तरफ हरियाणा में राव तुला राम ने अंग्रेजों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी । अंग्रेजों को इस बात इलहाम हो चुका था कि अगर दिल्ली पर कब्जा करना है तो पहले राव तुलाराम पर कंट्रोल करना होगा ।