दिल का दरवाजा DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दिल का दरवाजा

"दिल का दरवाजा....

लगभग तीन साल बाद अपने मायके आना हुआ था रानी का .....स्टेशन से टैक्सी लिए वह अपने मायके उस घर जल्द से जल्द पहुंचना चाहती थी जहां उसका जन्म हुआ जहां वह खेलते कूदते अपने सुनहरे बचपन को जीते हुए बडी हुई थी .....मां बाबूजी के स्वर्ग वास के बाद लगभग तीन साल तक वो यहां आ ही नहीं पाई ....
पहले पति का नये शहर में ट्रांसफर ....और फिर वहां घर गृहस्थी रमाने के लिए व्यस्त रही तो अगले साल उसकी बेटी के जन्म के चलते वह पूरा साल नहीं आ पाई ....
असल मे मन भी नहीं था मां बाबूजी के बाद दो भाई और दो भाभियां थी मगर मन मे डर था दोनों में बनती नहीं होगी तो वो कया मुंह लेकर लौटेगी वापस ससुराल में ....इसलिए टालमटोल करती रही लेकिन इसबार बडे भैया मोहन और बडी भाभी सुधा ने सामने से न्यौता दिया था गृहप्रवेश पूजन का .....
नया घर जो बनवाया था उनहोने ....तो फिर छोटा भाई भाभी ....वो कहा रहेंगे मोहन भैया ....
वो साथ वाले घरमे .....
साथ वाले घरमे ....तो कया आप लोग अलग अलग रहोगे ....बंटवारा कर लिया आपने मां बाबूजी के उस घर उस मंदिर का .....
मंदिर का बंटवारा ....वो ना कभी हुआ है और ना कोई कर सकता है ....तू एकबार आकर देख तो सही ....
अच्छा..... मन मे अनेकों शंकाएं समेटे रानी आज छोटी सी बेटी को गोद मे लिए अपने मायके चली थी ...
मेमसाब .....यही जाना था ना आपको ....टैक्सी वाले की आवाज से रानी सपनों की दुनिया से वर्तमान में लौटी....
हे.....हां......नीचे उतरी तो टैक्सी वाले ने समान उतार दिया ....और चला गया .....
सामने घरपर नजर पड़ते ही उसकी आँखें भीग गई ....
ये .....ये आप लोगों ने कया किया ....मेरे भाइयों ....मां बाबूजी के घर का.....
दो दो दरवाजे ......मतलब सचमुच अलग अलग रहने लगे हो और कहते थे कि .....मन भी आँखों का साथ दे रहा था दिल तो किया तुरंत लौट जाए वो यहां से ....
कया इसीदिन के लिए मां बाबूजी ने इन्हें .....मां बाबूजी ने हमेशा साथ रहने की सीख दी थी और ये उनके जाने के बाद .....उनके रहते तो राम लक्ष्मण बनते थे और अब कया हुआ ....अभी मन मे कयी उलझने चल रही थी कि मोहन ने बाहर आते हुए कहा.... आ गई मेरी बहना.... अले अले मेरी प्यारी सी भांजी ....आ मामाजी की गोदी में आ ....कहकर मोहन ने छोटीसी बच्ची को रानी से ले लिया.....
मोहन भैया ये.....
अरे तुम अंदर तो चलो पहले कहकर रानी का सूटकेस दूसरे हाथों से उठा लिया तभी लगभग दौड़ते हुए सुधा भी आ गई.... अरे रुकिए तो ....लाइए बिटिया मुझे दीजिए ....इसे प्यार करने का हक मामी का भी है ....कहकर बच्ची को चूम लिया....
रानी कुछ कहती इससे पहले छोटा भाई सोहन और उसकी पत्नी गीता भी दौडकर वहां तक आ गए.... भाभी....प्यार तो छोटे मामा मामी भी करेंगे अपनी बिटिया को कहकर सुधा से विनती करने के अंदाज में बच्ची को लेने के लिए दोनों पति पत्नी मनुहार करने लगे...
हां ...हां....बिल्कुल... लो ....आओ गीता ....मां के बाद आज दीदी पहलीबार घर आई है तो हमें अपनी दोनों बेटियों की आवभगत भी करनी है कहते हुए दोनों मुस्कुराने लगी और रानी को पकड़कर अपने साथ अंदर की ओर ले जाने लगी....रानी समझ नहीं पा रही थी आखिर ये सब मजारा कया है ....वो किस दरवाजे से अंदर जाएगी ....दांये वाले से या बांये वाले से.....
आखिर दांये दरवाजे से सभी एकसाथ अंदर आ गए ....रानी अबभी हैरान थी ....
अंदर पहुंचकर जैसे ही वो सोफे पर बैठी तो उसकी नजरें बीचोंबीच बने एक दरवाजे पर गई...... यहां भी दरवाजा... आखिर ये दरवाजों का चक्कर कया है....
ऐसे परेशान मत हो रानी ....जानता हूं तुम मकान के बाहर दो दो दरवाजों को देखकर परेशान हो ....
रानी ने हैरानी से मोहन की ओर देखा ....हां भैया वहां तो वहां यहां भी दरवाजा देखकर परेशानी में तो हूं....
समझाता हूं ....देखो .....यहां सुधा के घरवाले तो वहां गीता के घरवाले ....और ये समाज ....
रानी ....दूसरों के घरों में आग लगाने की भरसक कोशिश करते हैं इनका मकसद होता ही है दो भाइयों को अलग अलग करने का दो बहनों जैसी जेठानी देवरानी को अलग अलग करने का .....कुछ ना होने पर भी ये हमेशा गलतियां बताते हुए एकदूसरे के लिए मन मे जहर घोलने का काम करते है ....ताकि एक और परिवार में बिखराव हो और तमाशा देखने को मिले.... बहुत समय से हम दोनों भाइयों को यही सब देखने सुनने को मिल रहा था और कमोबेश सुधा और गीता को भी ....तो हमने इसका हल निकाला ताकि दूसरों को लगे हम अलग अलग रहते है मगर इस बीच में बने दरवाजे की तरह हम एकदूसरे के दिलों में हमेशा आते जाते रहते है ....जब कभी कोई मेहमान या दुनिया समाज के लोग घर मे आते है तो हम ये दरवाजा बंद करके रखते है मगर दिल के दरवाजे हमेशा खुले रखते है ये घर मां बाबूजी का मंदिर है वो हमें हमेशा राम लक्ष्मण की तरह साथ रहने की सीख देते रहे उनकी वो सीख आज भी हम दोनों भाइयों को याद है और यही सीख हम अपने बच्चों को भी देते है ताकि वह भी हमेशा एकसाथ रहे ....भले बाहर से दरवाजा बंद रखे ....मगर दिलो के लिए ये बीचोंबीच का दिल का दरवाजा हमेशा खुला रखें.....
कयुं सोहन.....
जी भैया.... कहकर मोहन के गले लगकर सोहन मुस्कुराते हुए बोला.....
वहीं दूसरी ओर रसोईघर में सुधा और गीता को एकसाथ मुस्कुराते हुए देखकर रानी भीगी हुई आँखों और होठों पर हंसी लाते हुए दुआएं देते कह रही थी ऐसा दिल का दरवाजा हर भाईयों के और हर भाभियो के बीच भगवान बनाए रखे.....
"जिस घर की स्त्री बिना झिझक मुस्कुराए समझो उस घर के पुरुषो में स्वयं ईश्वर वास करते है"