आत्म सन्तुष्टि दिनेश कुमार कीर द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आत्म सन्तुष्टि

"आत्मसन्तुष्टि...

दो दिनों से उसके पेट में अन्न का एक दाना भी नही गया था... जिस भी हलवाई की दूकान के सामने जाता सब उसे दुत्कार देते...
जब ज्यादा भूख सताती तो म्यूनिसपैलिटी के नल से अधिक से अधिक पानी पीकर अपनी भूख शान्त कर लेता था रात होते ही खुले आसमान के नीचे पेट से पैर सटा धरती माँ की गोद में दुबक कर सो जाता
दूसरे दिन सुबह होते ही सूरज की सुनहरी किरणें जब उसकी पलकों को चूमने लगीं तब धीरे से उसने अपनी अलसाई नजरों को इधर-उधर घुमा कर देखा अचानक पास पड़ी दो रोटियों पर उसकी नजर पड़ी...
पता नही किस भले आदमी ने या फिर स्वयं भगवान ने ही इन दो रोटियों को देकर उसके भूखे पेट को सहला दिया था....
रोटियों को देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गई उसने सूखे पपड़िया गये होंठ पर जीभ फिराया तो लगा पपड़ियां पिघल रही हो...
वह झट उठ बैठा...रोटियों को हांथ में कुछ क्षण ले निहारता रहा फिर दोनों हांथों से जल्दी - जल्दी कौर तोड़ अभी अपने मुंह में डालने ही जा रहा था कि सामने खड़े सात- आठ साल के बालक पर उसकी निगाहें थम गई
बालक कातर निगाहों से अपलक उन रोटियों को देख रहा था...
वह रह- रह कर अपने पेट पर हांथ फिराता और होंठो पर जीभ ....बालक को देखते ही उसे अपने छोटे भाई की याद हो आई जिसने भूख से तड़पते हुए उसकी बाहों में दम तोड़ा था।
उसके हांथ एकदम से रूक गये...
तोड़ी गई रोटियों को दोनों हांथों में समटते हुए लगभग दौड़ता हुआ सा उस बालक के पास पहुंचा उसकी पेशानी को प्यार से चूमा,फिर धीरे-धीरे एक-एक टुकड़े को बालक के मुंह में डालता गया...
बालक बिना कुछ बोले शान्त भाव से रोटियां खाता रहा। आखिरी टुकड़ा खत्म होते ही उसे महसूस हुआ मानो उसका अपना पेट भर गया है आत्मसन्तुष्टि से पूर्ण हो ,फिर से बालक को चूम वह अपने पीछे वाले नल से पानी पीने के लिए घूम गया...




मानवता

कहानी एक गुरुउनकी पढ़ाई हुई शिष्यों की वह मल्लापुरम केरल में एक अच्छी मैथ्स टीचर थी.....

एक दिन उनकी एक स्टूडेंट ने रेलवे स्टेशन के पास उन्हें भीख मांगते हुए देखा .... लेकिन वह ठीक से पहचान नहीं पाई ... लेकिन जैसे ही स्टूडेंट ने पास जाकर देखा तो वो दंग रह गई कि वह उसकी क्लास टीचर हैं

जब उसने अपनी टीचर से उनकी इस हालत के बारे में पूछा तो टीचर ने कहा कि मेरे सेवानिवृत्त होने के बाद मेरे बच्चों ने मुझे छोड़ दिया और उनके जीवन के बारे में वह नहीं जानते .... इसलिए वह रेलवे स्टेशन के सामने भीख मांगने लगी

उनकी दर्दभरी कहानी सुनकर छात्रा रो पड़ी और उन्हें अपने घर ले गई और अच्छी पोशाक और खाने-पीने को दिया और उसके भविष्य की योजना के लिए हर दोस्त से संपर्क किया जिन छात्रों को उस टीचर ने पढ़ाया था...

और उन्हें रहने के लिए एक बेहतर जगह पर ले गई ताकि वो सम्मान और शान्ति से अपना जीवन बिता सकें, अपने खुद के बच्चों ने उन्हें छोड़ दिया .. .लेकिन जिन बच्चों को उसने पढ़ाया था, उन्होंने अपने टीचर को नहीं छोड़ा और आखिर में वही उसका सम्बल बने।

यही गुरु-शिष्य परम्परा की महानता है और उनके बीच का वो भावनात्मक रिश्ता है जिसकी बदौलत #मानवता आज भी ज़िंदा है