प्रेम डोर - भाग 2 Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम डोर - भाग 2

अरूणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर के पास एक गांव में किसान के बेटे को सेना में नौकरी प्राप्त हो गई । जब वह अपने नियुक्ति स्थल पर जा रहा था तो उसकी माँ ने उसे आशीर्वाद देते हुये कहा- युद्ध के समय कभी पीठ मत दिखाना, इससे अच्छा है वीरतापूर्वक लडते हुये शहीद हो जाना। उसने यह बात गाँठ बाँधकर अपने मस्तिष्क में बैठा ली। कुछ महीनों के बाद ही भारत चीन युद्ध छिड गया। उसे तवांग शहर के पास एक चौकी पर तैनात किया गया। चीनी सेना ने उस चौकी पर हमला कर दिया। भारतीय सेना ने भी उसका भरपूर जवाब दिया किंतु परिस्थितियाँ विपरीत थी, हार निश्चित दिख रही थी। इस परिस्थिति को देखकर कमांडर ने सभी सैनिकों को चौकी छोडकर पीछे हट जाने का निर्देश दिया। इस चौकी पर तैनात सभी सैनिकों ने आज्ञा का पालन किया लेकिन जसवंत सिंह को अपनी माँ की बात याद आ गई। उसने चौकी छोडने से इनकार कर दिया। वह अकेला वीरतापूर्वक चीनी सैनिकों से लडता रहा। अंत में वह शहीद हो गया। उसका पार्थिव शरीर उसके गांव लाया गया और पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया गया। गांव एवं आसपास के सभी लोग उसे श्रद्धांजलि देने के लिए उसके अंतिम संस्कार में सम्मिलित हुये। सेना के कमांडर ने उसकी माँ को एक चिट दी जिसमें जसवंत सिंह ने लिखा था, “माँ, मैं अपना वचन निभा रहा हूँ।” यह पढकर उसकी माँ ने गर्व से कहा-”मेरा दूसरा बेटा भी सेना में जाने के लिए तैयार है। “ उस माँ के साहस और उसके बेटे के बलिदान को आज भी याद रखा जाता है। उस वीर सैनिक जसवंत सिंह की स्मृति में यह स्मारक बना हुआ है, जो आज भी भारतीय सेना की वीरता का अहसास दिलाते हुये राष्ट्र प्रथम की भावना की प्रेरणा देता है।

जीप का ड्राइवर बताता है कि पिछले सप्ताह यहाँ पर दो विदेशी पर्यटकों की ऑक्सीजन की कमी के कारण मृत्यु हो गई थी। यहाँ पर बर्फीले तूफान अक्सर आते रहते है जिस कारण हमें अपने वाहन को मौसम को देखते हुए बहुत संभल कर चलाना पडता है एवं कई बार यातायात भी लंबे समय तक अवरूद्ध हो जाता है। इस प्रकार रास्ते भर रमणीक दृश्यों को देखते एवं बातचीत करते हुए शाम तक वे सभी होटल अशोका पहुँच जाते है। रास्ते की थकान के कारण कुछ देर विश्राम एवं तरोताजा होने के बाद वे सभी आनंद के रूम की बालकनी में बैठ जाते है। आनंद अंदर जाकर स्कॉच की बोतल लेकर आता है और गौरव एवं अपने लिये ड्रिंक बनाने के बाद मानसी और पल्लवी से भी ड्रिंक के लिये पूछता है। मानसी आनंद को कहती है कि मैं शराब नही पीती हूँ परंतु पल्लवी को इसका बहुत शौक है ये आपका साथ देगी। आनंद पल्लवी के लिये एक पैग बनाता है और साथ ही साथ मानसी को कहता है कि कितना हसीन मौसम है और आप जैसी संुदर लड़कियों का साथ है। ऐसे मनमोहक वातावरण में आज आप एक पैग लेकर तो देखिये रास्ते की सब थकान खत्म हो जायेगी और वह मानसी के लिये भी एक ड्रिंक बना देता है। थोडा ना नुकुर करने के बाद मानसी भी उनका साथ देने के लिये पैग ले लेती है।

आपस में चर्चा के दौरान वे स्कूल एवं कॉलेज में बिताये हुये दिनों की याद करते हुए अपने संस्मरणों को एक दूसरे को बताते है। मानसी कहती है कि बचपन की दो मार्मिक घटनायें मुझे आज भी याद हैं। जब मैं छोटी थी तब मेरे पापा मेरे लिए ढेर सारे खिलौने खरीदकर लाया करते थे। जब मैं थोडी बडी हो गयी तो ये सारे खिलौने हमारे लिये अनुपयोगी हो गये थे। हमारी सोच थी कि इन्हें गरीब बच्चों के बीच बांट दिया जाए ताकि वे इससे खेलकर अपना मन बहला सके। हम लोगों ने सारे खिलौनों को बोरी में भरकर एक गरीब बस्ती में जाकर उन्हें बांटने का प्रयास किया। एक बच्चा हम लोगों के पास आया उसने खिलौने उठाकर देखे और वापिस वही पर रख दिये। हमारे पूछने पर कि उसने ऐसा क्यों किया तो वह बोला कि मेरे घरवाले यदि यह खिलौना देख लेंगे तो समझेंगे की मैंने भीख से प्राप्त रूपयों से यह खिलौना खरीद लिया है तो मुझे बहुत मार पडेगी। वह बच्चा यह कहकर चुपचाप चला गया। तभी एक दूसरा गरीब बच्चा खिलौने देखकर बिना लिये ही आगे बढ जाता है। उससे पूछने पर उसने बताया कि मैं बिडी बनाने का काम करता हूँ और मेरे पास इन खिलौनों से खेलने का वक्त ही नही है। इतना कहकर वह लडका चला जाता है। हम लोग खिलौने बांटने के लिये कुछ और दूर तक जाते है तो तीसरा बच्चा मिलता है जो कि सहर्ष ही सभी खिलौने लेकर उन्हें धन्यवाद देकर चला जाता है। मेरे पिताजी ड्राइवर को उस बच्चे का पीछा करने को कहते है। वे यह देखते है उस बच्चे ने एक दुकान पर जाकर सारे खिलौनों को बेच दिया और एक दवा दुकान से दवा खरीदकर ले जाने लगता है। हम लोग उसके पास पहुँचकर उसे रोककर उसे पूछा कि तुमने खिलौनों को बेचकर दवा क्यों खरीदी है ? वह बताता है कि उसकी माँ बहुत बीमार है और उसे यदि जल्दी दवा नही दी गयी तो उनकी हालत और गंभीर हो सकती है। इस करूण दृश्य को देखकर मेरे पापा बोल पडे कि जिस देश का बचपन ऐसा होगा उस देश की जवानी क्या होगी ? मैंने पापा से उस बच्चे की और मदद करने के लिये कहा जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर उसकी माँ का पूरा इलाज अपने खर्च से करवाया और मुझे यह शिक्षा दी कि दीन दुखियों मदद करना हमारा धर्म है और हमें कभी भी अपने इस कर्तव्य से पीछे नही हटना चाहिए।

इतना कहकर मानसी कुछ देर के लिए शांत हो गयी। इस शांति को तोडते हुए गौरव ने मानसी से कहा कि यह हमारे देशी की वास्तविकता है। अब मानसी ने दूसरी घटना के विषय में बताते हुए कहा कि यह घटना लगभग तीन वर्ष पुरानी है हमारे बंगले में जो बगीचा है उसमें एक बंदर ना जाने कहां से आकर रोज बैठ जाता था। कुछ दिनों में हमारी और उसकी इशारों इशारों में मानो जैसे बातचीत सी होने लगी थी। वह प्रतिदिन आकर याचना पूर्वक मुझसे बिस्किट खाने की अपेक्षा रखता था। मैं भी उसे प्रतिदिन उसकी इच्छानुसार बिस्किट दे दिया करती थी। एक दिन मुझे बुखार आ गया था तो मैं बगीचे नही जा सकी। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब वह मुझे ढूंढता हुआ मेरे कमरे के बाहर की खिडकी तक आ गया। मैंने उसे खिडकी से ही बिस्किट दिया परंतु उसने बिस्किट नही लिया। उसका यह व्यवहार देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गयी कि उसके मन में यह कैसे विचार आ गया कि मैं बीमार हूं। मुझे पहली बार अनुभव हुआ कि जानवरों में भी संवेदनायें होती है। मेरी तबीयत ठीक होने पश्चात मैं प्रतिदिन की तरह बगीचे जाने लगी और हमारी दिनचर्या पुनः प्रारंभ हो गयी। एक दिन मैं जब बिस्किट लेकर उसका इंतजार कर रही थी तभी वह बहुत तडपता हुआ लंगडाकर किसी तरह मेरे पास तक आया उसे देखकर मुझे लग रहा था कि किसी ने इसे पत्थर फेंक कर मारा है जिससे उसकी यह दुर्दशा हो गयी है और इसके पहले कि मैं उसके लिए कुछ कर पाती उसकी मृत्यु हो गयी। इस घटना ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया कि पशु तो सवंदेनशील हो सकता है परंतु मानव के मन में कितनी पाश्विकता हो सकती है यह इसका ज्वलंत उदाहरण है।

गौरव भी अपने अनुभव बताता हुआ कहता है मेरे बचपन में भी ऐसी ही एक घटना घटी थी जिसने मेरे जीवन को झकझोर कर रख दिया था। गौरव बताता है कि हम लोग पहले जमशेदपुर में रहते थे। उस समय हम लोग सामान्य मध्यम परिवार की श्रेणी में रहते थे और हमारे मोहल्ले में कुछ शैतानी प्रवृत्ति के लडके भी रहते थे जिनका काम सायंकाल के समय आते जाते लोगों को किसी ना किसी बहाने से परेशान करना होता था और उनको परेशान होता देखना उन्हें बहुत खुशी देता था। एक दिन एक वृद्ध अंधी महिला जो कि भीख मांगकर गुजारा करती थी। वह हाथ में अपना कटोरा लेकर वहाँ से अपने घर की ओर की जा रही थी। तभी एक शरारती लडके ने जो कि शराब के नशे में धुत्त था वह उस भिखारिन के भिक्षा पात्र से 500 रू. का एक नोट जो कि उसे किसी भले मानस ने उसकी गंभीर बीमारी के इलाज के लिये भिक्षा में दिया था निकाल लेता है। भिखारिन को अहसास तो हो जाता है परंतु वह कुछ नही कहती है और चुपचाप अपने घर की ओर चली जाती है। दूसरे दिन सुबह जब उन शरारती लड़को को होश आता है तो वे उसके 500 रू. उसे वापस करने के लिये उसे ढंूढते हुये राहगीरों से उसका पता पूछते हुये उसकी झोपडी तक पहुँचते हैं। वहाँ बहुत सारे लोगों की भीड जमा थी और वे आपस में चर्चा कर रहे थे कि यदि इस बुढ़िया को कल दवाई मिल जाती तो इसका जीवन बच सकता था परंतु रूपयों के अभाव इसकी जीवनलीला समाप्त हो गयी। यह सुनकर उन लडकों के पैरों तले जमीन खिसक गई और उनका मन अंतगर््लानि एवं अपराधबोध से भर गया कि एक शरारत की वजह से किसी की जान चली गयी। उसी दिन उन लडकों ने शराब का सेवन बंद कर दिया एवं लोगों को परेशान करना छोडकर लोगों की सहायता करने लगे। चंूकि यह घटना मेरे सामने घटित हुयी थी इसलिये इसका प्रभाव मेरे मन मस्तिष्क में आज भी है।

पल्लवी, गौरव से कहती है कि तुम मुझे एकटक क्यों घूरे जा रहे हों ? गौरव कहता है कि मैं तुम्हें इसलिये घूर रहा था कि तुम्हारे चेहरे को देखकर मुझे मेरा पहला प्यार याद आ गया। उसका भी चेहरा तुमसे बहुत मिलता जुलता था। यह सुनकर पल्लवी मुस्कुरा कहती है कि जनाब आपके ऐसे और कितने अफेयर हैं ? गौरव कहता है कि बचपन का प्यार तो महज आकर्षण था बस तुम्हें देखा और अचानक उसकी याद आ गयी। आनंद, गौरव के उपर व्यंग्य करते हुए करते कहता है कि तुम तो बहुत शर्मीले किस्म के हो तो तुम्हें प्यार किससे और कैसे हो गया तुमने आज तक कभी इस बारे में चर्चा नही की। गौरव कहता है कि इसी शर्मीले स्वभाव के कारण ही तो मेरा पहला प्यार एक तरफा रह गया वरना अब तक मेरा भी विवाह हो चुका होता।

 यह बात उस समय की है जब मैं बी.काम के प्रथम वर्ष में था। हमारे परिवार की एक जैन परिवार से साथ बहुत घनिष्टता थी। वे एक व्यापारी थे और समय समय पर मेरे पिताजी से मार्गदर्शन लेते रहते थे। हम दोनो परिवारों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बना रहता था। उनकी एक बेटी श्रेया एवं एक बेटा रवि था। श्रेया बहुत ही आकर्षक व सुंदर लड़की थी। हमारी मुलाकात के दौरान वह अक्सर मेरे से बहुत बातचीत करती थी। उसकी मीठी और विनम्र वाणी से मैं बहुत खुश होता था और मन ही मन उसके प्रति आकर्षित हो गया था। श्रेया के पिताजी पुरातनपंथी विचारधाराओं के कारण अंतर्जातीय विवाह के बहुत खिलाफ थे।

एक दिन ठंड के मौसम में मैं किसी काम से उसके पास गया था। वह रजाई ओढ़े किताब पढ़ रही थी। मुझे देखकर वह बोली कि गौरव बहुत ठंड है रजाई में अंदर आ जाओ। यह सुनकर मैं उसके पास बैठ गया और उसने अपनी आधी रजार्इ्र मुझे ओढा दी और वो मेरे एकदम नजदीक आ गयी। उसने मेरी आँख से आँख मिलाकर मुझसे पूछा कि अब ठंड गायब हो गयी या नही। इसी समय उसका भाई आ गया तो उसने उसे पान लाने के लिए बाहर भिजवा दिया। इसी बीच अचानक ही उसका पैर मेरे पैर से छू गया। मेरे सारे शरीर में एक झुनझुनी सी आ गयी। यह मेरा उसके प्रति पहला आकर्षण था जिसे मैं शब्दों में बयां नही कर सकता। इसी दौरान मेरे घर से कुछ जरूरी काम के लिए मुझे बुलावा आ गया और मुझे ना चाहते हुए भी घर वापस जाना पड़ा। मैं रातभर श्रेया के विषय में सोचता रहा और यह मेरे जीवन में प्रेम की पहली अनुभूति थी। मैं इस बारे में श्रेया से बात करना चाहता था परंतु एक अजीब से डर के कारण मैं कभी उसे बात नही कह पाया और एक दिन उसकी शादी किसी दूसरे शहर में पक्की होने की खबर मेरे पास आ गयी। यह खबर सुनकर मैं बहुत विचलित होकर काफी दुखी हो गया। मैंने यह बात अपने एक परिचित वकील साहब को जो कि हम दोनो के परिवारों को जानते थे उन्हें बताई। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या तुम वाकई श्रेया केा चाहते हो और विरोध के बावजजूद भी अंतर्जातीय बावजूद विवाह करने की हिम्मत रखते हो। मेरे हाँ कहने पर उन्होंने कहा कि मै आज रात ही उससे बात करता हूँ और तुम्हंे फोन पर बता दूँगा। वे श्रेया के पास गये और उसे मेरी भावनाओं से अवगत कराया, श्रेया ने कहा कि मै तो गौरव को बहुत चाहती हूँ, मैने पता नही कितनी बार इशारों में उसे यह बात बताने की कोशिश की परंतु उसने मुझे कोई तवज्जो नही दी। मैं समझ गई कि उसको मुझमें कोई रूचि नही है। इसी बीच मेरे जीवन में एक दूसरा लड़का श्रेयस धीरे धीरे मेरे नजदीक आता गया हम लोगों में आपस में प्यार होकर हम एक दूसरे के प्रति समर्पित हो गये। गौरव ने बहुत देर कर दी उससे कहना कि मै उसकी अच्छी दोस्त थी और आगे भी अच्छी देास्त रहूँगी। वकील साहब ने यह बात फोन पर बता कर गौरव को कहा कि यह बात तुम्हें मुझे पहले बतानी चाहिए थी अब कुछ भी संभव नही है। गौरव आगे बताता है कि श्रेया ने लव मैरिज की थी जिससे उसके परिवारजन बहुत नाराज एवं अचंभित थे परंतु वह अपने निर्णय पर दृढ़ रही और आज वह सुखी जीवन व्यतीत करते हुए अपने पति के साथ अमेरिका में है। आज भी उसकी यादें कभी कभी मेरे दिल और दिमाग में टीस पैदा कर देती हैं और मैं उसे भूल नही पाता हूँ। यह सुनकर पल्लवी एवं मानसी ने उससे कहा कि गौरव इसमें पूरी लापरवाही एवं गलती तुमसे हुई है। किसी भी व्यक्ति को उसकी उम्र के अनुसार अपने में गंभीरता एवं विचारों में परिपक्वता होना चाहिए। तुम्हें अपरिपक्वता के कारण यह सब झेलना पडा। अब भविष्य के लिए सतर्क हो जाओ।

आपस में चर्चा के दौरान आनंद कहता है कि इतने अच्छे पर्यटन स्थल में जहाँ पर्यटन की अनेक संभावनाये है परंतु इसका विकास उतना नही हुआ है। इस प्रदेश में बिजली का उत्पादन आवश्यकता से अधिक है इस कारण दूसरे प्रदेशांे को यहाँ से बिजली दी जाती है परंतु शासकीय उदासीनता के कारण यहाँ के गावों में बिजली की उपलब्धता कम है। शहरों में भी समय असमय बिजली कटौती होती रहती है। यहाँ की जनता इसके खिलाफ आवाज क्यों नही उठाती है ? पल्लवी कहती है कि शासकीय नीतियों की गलतियों के कारण ऐसा है। सन् 1962 के युद्ध के पहले तक तो यहाँ कोई देखने भी नही आता था कि आम नागरिक किन परिस्थितियांे में जीवन यापन कर रहा है। 1962 के युद्ध में हार के बाद शासन को हमारी याद आयी कि हम भी भारत के नागरिक है और विकास में हम लोग भी अभिरूचि रखते है। यहाँ पर पहले पूरे प्रदेश में अंग्रेजी माध्यम का एक भी स्कूल नही था परंतु अब स्थिति बदल रही है। अब गांव गांव में शिक्षा के केंद्र खुल रहे हैं, सड़कों का विस्तारीकरण एवं नवीनीकरण तथा आवागमन को सुलभ बनाने के लिये पहाड़ों को काटकर नयी सड़कों का निर्माण हो रहा है। यह पर्वतों से आच्छादित प्रदेश है जहाँ प्रायः साल भर बर्फ जमी रहती है इस कारण खेती करना संभव नही है। अब यहाँ पर उद्योगपतियों को आमंत्रित करके औद्योगिकीकरण को बढावा दिया जा रहा है। यहाँ उद्योगों को विभिन्न प्रकार की सुविधायें जैसे आयकर, सीमाकर आदि से पूर्णतः मुक्त रखा गया है। मानसी कहती है कि वर्तमान समय में राजनीति की दिशा बदलती जा रही है और अधिकतर राजनीतिज्ञ केवल स्वयं के स्वार्थ की राजनीति तक ही सीमित है। वर्तमान में नीति को नेपथ्य में रखकर केवल राज करना ही राजनीति की परिभाषा हो गई है।

आनंद कहता है कि आज राजनीति और राजनीतिज्ञों का विश्लेषण बहुत कठिन है। आजादी से पहले हमारे देश में राजतंत्र था आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हुई। हमारा देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ और सभी देशवासियों के मन में अत्यंत उत्साह, आनंद, नई दिशा की नई उडान, सुखद एवं संपन्न भारत की अभिलाषा मन में हिलोरे मार रही थी। राजतंत्र से लोकतंत्र में कदम रखता हमारा देश अनेक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा था। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू जैसे सशक्त व्यक्तित्व एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी उस समय की राजनीति के आधार स्तंभ थे। परिवर्तनों के इस दौर में राजनीति भी कब तक अछूती रहती। जैसे जैसे समय बदलता गया, लोग बदलते गये और राजनीति में भी परिवर्तनों का सिलसिला शुरू हुआ। सामान्य परिप्रेक्ष्य में पुराने समय में राजनीति का उद्देश्य जनसेवा और जन कल्याण था परंतु आज के परिप्रेक्ष्य में किसी भी तरह से सत्ता प्राप्त कर शासन करने की नीति ही राजनीति है। राजसत्ता का उपभोग, ऐसा कोई भी राजनीतिज्ञ नही होगा जो इसकी लालसा ना रखता हो। राजनीति के नैतिक मूल्यों पर चिंतन पुरातन समय से चला आ रहा है और निष्कर्ष अभी तक स्पष्ट नही है। इसी तारताम्य में आनंद एक कविता सुनाता है -

पहले था राजतंत्र

अब है लोकतंत्र।

पहले राजा शोषण कर रहा था

अब नेता शोषण कर रहा है।

जनता पहले भी गरीब थी

आज भी गरीब है।

कोई ईमान बेचकर,

कोई खून बेचकर

और कोई बेचकर तन

कमा रहा है धन।

तब कर पा रहा है

परिवार का भरण पोषण।

कोई नहीं है

गरीब के साथ,

गरीबी करवा रही है

प्रतिदिन नए-नए अपराध।

खोजना पड़ेगा कोई ऐसा मंत्र

जिससे आ पाये सच्चा लोकतंत्र।

मिटे गरीब और अमीर की खाई।

क्या तुम्हारे पास है कोई

ऐसा इलाज मेरे भाई।

 

समय के साथ साथ राजनीति का उद्देश्य एवं कार्यप्रणाली भी बदल रही है। आज राजनीति में अपराधियों का वर्चस्व बढता जा रहा है जो कि लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है और लोकतांत्रिक मूल्यांे एवं सिद्धांतों के सर्वथा विपरीत है। हमारे पूर्ववर्ती नेताओं द्वारा बनाये गये संविधान का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। जनमानस के मन में ऐसी धारणा बनती जा रही है कि -

 

सरकार तेजी से चल रही है।

जनता नाहक डर रही है।

सर के ऊपर से कार निकल रही है।

सर को कार का पता नही

कार को सर का पता नही

पर सरकार चल रही है।

हर पाँच साल में जनता

सर को बदल देती है।

कार जैसी थी

वैसी ही रहती है।

सर बदल गया है

कार भी बदल गई है

आ गई है नई मुसीबत

सर और कार में

नही हो पा रहा है ताल मेल

लेकिन सरकार

फिर भी चल रही है।

जनता जहाँ थी वही है

परिवर्तन की चाहत में

सर धुन रही है।

 

आज ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, समर्पण का भाव कम होता जा रहा है और इसका स्थान स्वार्थ, भाई भतीजावाद व धन लोलुपता ने ले लिया है। गरीबी और अशिक्षा की वजह से बहुत से लोगों के लिए दो वक्त का भोजन जुटाना ही अत्यंत कठिन कार्य है, उनके लिए राजनीति और राजनेता जैसी बातें कोई मायने नही रखती है। उनके लिए दो वक्त की रोटी और तन ढकने के लिये कपड़ा ही महत्वपूर्ण है। जब नेताओं से यह प्रश्न किया जाता है कि देश की प्रगति अन्य विकसित देशों की तुलना में उनके समकक्ष क्यों नहीं नजर आती है तो वे इसका स्पष्ट जवाब देते है कि जनसंख्या वृद्धि इसका प्रमुख कारण है जो हमारे सारे विकास की दर को धीमा कर देता है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति का आधार स्तंभ उसकी शिक्षा प्रणाली है। हमारे यहाँ शासकीय स्कूलों की स्थिति आज भी बहुत अच्छी नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाकर सबके लिए निशुल्क आधारभूत शिक्षा जैसी कार्य योजना लागू करनी चाहिए परंतु जब तक राजनेता ही शिक्षित नहीं होंगे तब तक यह कार्य कैसे होगा ?

आनंद कहता है कि हमें राजनीति के सिर्फ नकारात्मक पक्ष को नही देखना चाहिए बल्कि इसके सकारात्मक पक्ष की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए। हमने बीते हुए कल और आज में जो भी प्रगति की है उसे नजरअंदाज नही किया जा सकता है। कृषि के क्षेत्र जो हरित क्रांति हुई उस पर हमें गर्व होना चाहिये, कभी हम अनाज आयात करते थे आज हम अनाज निर्यात कर रहे हैं। अनेक क्षेत्रों में हम स्वावलंबी हो चुके हैं। विश्व के मानचित्र में आज हमारा बहुत विशेष स्थान है और हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं। रक्षा के क्षेत्र में भी हम काफी आगे है। आधुनिक हथियारों एवं अनेक उपकरणों के माध्यम से अपनी सीमाओं की रक्षा हेतु सक्षम है। हमें भारत का यह उन्नत स्वरूप लोकतंत्र एवं सकारात्मक राजनीति के माध्यम से ही प्राप्त हुआ है। क्रीड़ा के क्षेत्र में भी हमारी प्रगति उल्लेखनीय है। ओलंपिक खेलों में हमारे देश के खिलाड़ियों ने बहुत ही शानदार प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल हासिल कर कीर्तिमान स्थापित किया है। देश ने महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी काफी प्रगति की है। महिलाओं को पुरूषों के समकक्ष या कई क्षेत्रों में वे पुरूषों से भी आगे बढकर देशसेवा एवं विकास में अपना योगदान दे रही है। वर्तमान में हमारी वित्तमंत्री भी एक महिला माननीया श्रीमती निर्मला सीतारमण है। राजनीतिक विचाराधारा में सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष सदैव से रहे हैं और शायद आगे भी रहेंगे परंतु प्रगति एवं स्थायित्व केवल सकारात्मक दृष्टिकोण से ही प्राप्त होता है।

इसी समय गौरव कहता है कि यह राजनीति की बातें छोडों, हम यहाँ के सुरम्य वातावरण में घूमने के लिये आये हैं ना कि राजनीति पर चर्चा करने के लिये। ऐसी बातों से सारा नशा उतर गया है। मैं कई घंटों से अपने दिल की बात नही कह पा रहा हूँ। पल्लवी कहती है कि ऐसी क्या बात है ? दिल की बात को हमेशा जुबान पर ले आना चाहिये नही तो दिल दुखी हो जाता है। गौरव कहता है पल्लवी मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ। पल्लवी कहती है कि मुझे सोचने का वक्त दो क्योंकि मेेरे हम उम्र एक लडके से मेरी प्रगाढ मित्रता है जिसे तोड़ना पड़ेगा। क्या फिर भी मैं तुम्हें स्वीकार हूँ तो मुझे सोच समझकर बताना।

उन चारों को अब तक शराब का सुरूर चढ़ चुका था। रात्रि भोज के उपरांत गौरव पल्लवी से कहता है कि मुझे तुमसे कुछ और भी बातें करनी है। मेरे कमरे में चलो वही बैठ कर बातें करेंगें। आनंद भी मानसी से कहता है कि तुम अकेली क्या करोगी, चलो तुम्हारे कमरे में बैठते है। कमरे में जाकर आनंद कहता है कि कहाँ खोयी हुयी हो और क्या सोच रही हो। मानसी कहती है कि प्रेम भरी रात है ऐसी मदहोशी में आपका साथ है। यह सुनकर आनंद उसे बाहों में कसकर जकड़ लेता है और वे दोनो एक दूसरे की सासों को महसूस करते हुए दो बदन एक जान कब हो जाते हैं उन्हें इसका आभास ही नही होता है और आनंद उसके होंठों का चुंबन लेते हुए कहता है -

 

काम वासना नही

कामुकता वासना हो सकती है।

काम है प्यार के पौधे के लिये

उर्वरा मृदा।

काम है सृष्टि में

सृजन का आधार।

इससे प्राप्त होता है

हमारे अस्तित्व का विस्तार।

काम के प्रति समर्पित रहो

यह भौतिक सुख और

जीवन का सत्य है।

कामुकता से दूर रहो,

यह बनता है विध्वंस का आधार

और व्यक्तित्व को

करता है दिग्भ्रमित

और अवरूद्ध होता है

हमारा विकास।

 

  मानसी कहती है कि तुम कवि भी हो क्या ? इतनी ठंड में भी दोनों गर्मी महसूस कर रहे थे। वे दोनो प्रेम के आगोश में इस कदर महहोश थे कि उनके बीच की सारी मर्यादा भी टूट गयी थी। कुछ समय बाद जब वे होश में आये तो दोनो को अपनी गलती महसूस हो रही थी और वे शर्मिंदा होकर एक दूसरे से नजरंे चुरा रहे थे। मानसी ने घड़ी देखी तो रात का 1 बज रहा था उसने आनंद से कहा कि पल्लवी कमरे में अकेली सो रही होगी वह मेरे विषय में क्या सोचेगी ? आनंद ने कहा कि मेरी जान गौरव भी उसी कमरे है और हो सकता है वे दोनो अभी तक बातें ही कर रहें होंगे। यह कहकर आनंद ने पुनः मानसी को अपनी बाहों में भर लिया। उधर गौरव और पल्लवी गंभीर मुद्रा में कमरे में बैठ हुये थे। गौरव पल्लवी से कहता है कि मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ और सिर्फ तुमसे ही शादी करना चाहता हूँ। मुझे तुम्हारे किसी मित्र के साथ संबंध से कोई आपत्ति नही है। मुझे तुम्हारे अतीत से भी कोई लेना देना नही है। यह सुनकर पल्लवी के चेहरे पर तनाव की लकीरें समाप्त हो जाती है और वह मुस्कुरा कर गौरव से कहती है कि तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गई।

     मेरे अतीत में हुई घटनाओं के कारण मैंने सेाचा भी नही था कि मुझे तुम्हारे जैसा इतना अच्छा पति मिल जायेगा। मैं भी तुम्हारे साथ विवाह के लिये तैयार हूँ। इतना कहकर पल्लवी अपना सिर गौरव के कंधे पर रख देती है। पल्लवी के स्पर्श मात्र से ही गौरव के शरीर में अजीब सी फुरफुराहट आ जाती है। धीरे से गौरव पल्लवी को कसकर अपनी बाहों में जकड़ लेता है। पल्लवी भी इसका विरोध ना करते हुए उसकी बाहों में समाने लगती है। गौरव धीरे धीरे पल्लवी का चुंबन लेने लगता है। काम की इस मदहोशी में दोनो ही अपने आप को नही रोक पाते है धीरे धीरे एक दूसरे में समाकर नये जीवन की कल्पनाओं में खो जाते है। अगले दिन प्रातः जब वे सभी नाश्ते पर मिलते है तो मन ही मन उनके चेहरों पर अजीब सी संतुष्टि और चमक छाई हुयी थी। नज़रों ही नज़रों में रात का खुमार हिलोंरे मार कर बीती रात की दास्तान खुद बयाँ कर रहा था।

      प्रातः तैयार होकर वे सभी भारत चीन सीमा देखने के लिये रवाना होते है। ड्राइवर एक बार पुनः सभी वैध दस्तावेजों की जाँच कर लेता है। तवांग से सीमा की दूरी लगभग 40 किमी. है परंतु रास्ते की विसंगतियों, सुरक्षा चौकियों एवं मौसम के कारण लगभग 3 से 4 घंटे पहुँचने में लग जाते है। यहाँ पहाडों को काटकर, सेना द्वारा रास्ता तैयार किया गया है ताकि आवागमन सुलभता से हो सके। वहाँ पहुँचकर वे सभी देश की रक्षा हेतु तैनात सेना को देखकर अभिभूत हो जाते है। कुछ समय वहाँ बिताने के पश्चात वे वापिस लौट जाते है। तवांग पहुँचते पहुँचते उन्हें शाम हो जाती है और वे सभी पास में स्थित स्थानीय बाजार में घूमने के लिये चले जाते है।

रात्रि भोजन के पश्चात थकान होने के कारण सभी लोग जल्दी सो जाते है। अगले दिन वे सभी पुनः बोमडिला लौटने के लिये नाश्ता करने के पश्चात निकल पडते है। रास्ते में वे सभी सेना द्वारा बनाये गये स्मारक को देखने के लिये रूकते हैं। उन सभी को वॉर मेमोरियल पहुँचकर बडा आश्चर्य होता है क्योंकि पल्लवी ने जो भी उस समय के युद्ध के बारे में बताया था वे सभी बातें वहाँ पर शिलालेख पर अंकित थी। सन् 1962 के युद्ध में जितने भी सैनिक शहीद हुये उन सभी के नाम उस स्मारक में अंकित है। वे सभी उन वीर सैनिकों को स्मरण करते हुए अपनी श्रद्धांजली अर्पण कर स्मारक घूमने के पश्चात बाहर निकलकर वहाँ स्थित स्थानीय बाजार में खरीददारी के लिये निकल जाते है। थोडी बहुत खरीददारी के पश्चात वे सभी बोमडिला के लिए रवाना हो जाते है। जीप धीरे धीरे हिचकोले खाती हुयी चल रही थी। रास्ते में गौरव बताता है कि बचपन में कुछ बातें जो कि उसकी स्कूल के प्राचार्य ने सभी छात्रों को समझायी थी वह अभी भी मेरे मानस पटल पर अंकित है। उन्होंने हमें कहानी के माध्यम से समझाया था कि एक दिन विभिन्न रंगों के फूलों से लदी हुई झाडी पर एक चिडिया आकर बैठी और फूलों से बोली तुम लोग कैसे मूर्ख हो जो अपना मकरंद भंवरों को खिला देते हो। वह अपना पेट भरके तुम्हें बिना कुछ दिए ही उड़ जाते हैं। फूलों ने मुस्कुराकर कहा कुछ देकर उसके बदले में कुछ लेना तो व्यापारियों का काम है। निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य ही सच्ची सेवा एवं त्याग है। यही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए और दूसरों के लिए काम आने में ही जीवन की सार्थकता है। गौरव की बात सुनकर सभी लोगों ने कहानी के माध्यम से कही गई इतनी बडी बात की सराहना की। गौरव ने आगे कहा कि एक और कहानी भी इसी प्रकार है कि एक शिक्षक से विद्यार्थी ने प्रश्न किया कि जब तेज आंधी तूफान एवं नदियों में बाढ आती है तो मजबूत से मजबूत वृ़क्ष गिर जाते है परंतु इतनी विपरीत एवं संकटपूर्ण परिस्थितियों में भी तिनके को कोई नुकसान नही पहुँचता है जबकि वह बहुत नाजुक एवं कमजोर होता है। शिक्षक महोदय ने उससे कहा कि जो अड़ियल होते हैं और झुकना नही जानते हैं वे विपरीत परिस्थितियों में टूट कर नष्ट हो जाते है। तिनके में विनम्रतापूर्वक झुकने का गुण होता है इसी कारण वह अपने आप को बचा लेता है। हमें भी अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ आने पर विनम्रतापूर्वक झुककर उचित समय का इंतजार करना चाहिए।

इस प्रकार वे लोग हंसी मजाक करते हुए बोमडिला पहुँच जाते है। गौरव रास्ते में सुझाव देता है कि आज के आधुनिक आयुर्विज्ञान के कारण वैवाहिक संबंधों में कुंडलीयों का मिलान कम और ब्लड गु्रप का मिलान अधिक प्रचलित हो रहा है इसी को देखते हुए हम चारों को भी अपना अपना ब्लड गु्रप मिलान करवाना चाहिए ताकि विवाह के बाद कोई विसंगति ना हो। अभी हमारे पास समय है क्यों ना हम इस औपचारिकता को अभी पूरा कर लें। सभी इस बात से सहमत हो जाते है। रास्ते में पल्लवी और मानसी बोमडिला पहुँचने के पूर्व आनंद और गौरव से आग्रह करती है कि अब आपका होटल में रूकना अनुचित प्रतीत होता है। हमारा घर भी तो आपका ही घर है, आप हमारे साथ हमारे घर पर ही रूकिये। वे दोनो उनकी बातें मान लेते है। मानसी आनंद से कहती है कि मैं आप का इंतजाम अपने फार्महाऊस में कराती हूँ। गौरव यह सुनकर कहता है कि मुझे तुम्हारे घर में रूककर क्या कबड्डी खेलना है ? मैं भी आनंद के साथ फार्महाऊस में ही रूकूंगा। मानसी तुरंत फार्महाऊस के कर्मचारी को फोन करके सब बताती है। फार्महाऊस पहुँचने पर उन लोगों को सब व्यवस्थाएँ तैयार मिलती है। खाना खाने के उपरांत आनंद और गौरव सोने के लिये चले जाते है एवं मानसी और पल्लवी अपने घर लौट जाती है। मानसी के पिता आनंद और गौरव को अगले दिन दोपहर में भोज के लिये आमंत्रित करते हैं।

मानसी और पल्लवी ने विशेष तौर पर अपने हाथों से भोजन बनाया था। मानसी कहती है कि गौरव जी अपने दिल की बात यहाँ सबके सामने बताइये। यह सुनकर गौरव झेंप जाता है और शर्माते हुये पल्लवी के पिता से कहता है कि मैं पल्ल्वी से बहुत प्रेम करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ। यह सुनकर पल्लवी के पिता कहते है कि मुझे कल रात इन दोनो ने बता दिया था परंतु मैं स्वयं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता था। मुझे इस विवाह से कोई ऐतराज नही है बस मेरी एक ही शर्त है कि आपको यही रहकर मेरे व्यापार हाथ बँटाना होगा। यह सुनकर गौरव चुपचाप हामी भर देता है। इस बात को सुनकर सभी बहुत प्रसन्न हो जाते है। भोजन के पश्चात सभी लोग ताश खेलने के लिये बैठ जाते हैं। बातों ही बातों में आनंद बताता है कि कल हम लोग ईटानगर के लिये प्रस्थान करेंगें तभी मानसी कहती है कि आनंद तुम अपने कार्यक्रम को यही विराम देकर जबलपुर जाने की तैयारी करो। मुझे आप लोगों के विषय में पूरी जानकारी है। मुझे आप लोगों के काम, व्यवसाय, सामाजिक स्थिति आदि के बारे में पूरा ज्ञान है। हमने ऐसे ही आपको शादी के लिये हाँ नही की थी। आनंद पूछता है कि आप को हमारे बारे में इतनी जानकारी कहाँ से प्राप्त हुयी।