प्रेम डोर - भाग 3 Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

प्रेम डोर - भाग 3

मानसी कहती है कि आप जब होटल में चेक इन कर रहे थे तब मैंनें आप लोगों को देखा था और मैं आपकेा देखकर बहुत प्रभावित हुयी थी। आप लोगों के होटल में अंदर जाने के बाद मैंने आपका नाम और बाकी जानकारियाँ जो रजिस्टर में भरी थी वह मुझे मेरी पहचान के कारण प्राप्त हो गई थी। जबलपुर का नाम आते ही मैं समझ गई थी कि आप लोगों के विषय में सबकुछ मालूम हो जायेगा क्योंकि यहाँ पर कार्यरत मेरे एक मित्र उच्च अधिकारी का ट्रांसफर जबलपुर हो गया था और वह अभी भी वहाँ पर कार्यरत है परंतु उनका नाम मैं नही बताऊँगी। उन्होंने ने ही मेरे अनुरोध पर आप दोनों के विषय में सारी जानकारी विस्तृत रूप से उपलब्ध करा दी थी। मुझे पता था कि आपकी पत्नी का एक्सीडेंट हो जाने के कारण वह कभी माँ नही बन सकती है। आपके माता पिता इस कारण हमेशा चिंतित रहते है और वे आप पर दूसरी शादी या किसी बच्चे को गोद लेने का दबाव डाल रहे है। यह सब सुनकर आनंद और गौरव आश्चर्यचकित रह जाते हैं। आनंद मानसी से पूछता है कि तुमने कभी बताया नही कि तुम्हारी कोई मित्र उच्च अधिकारी भी हैं परंतु तुम तो अभी स्वयं ही कॉलेज में हो तब तुम्हारी मित्र इतनी जल्दी कैसे अधिकारी पद पर आ गई।

यह सुनकर मानसी बताताी है कि मैं जिस स्कूल मंे पढ़ती थी वहीं पर सुमन नाम की एक लडकी भी पढती थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी गहन रूचि रखती थी और लम्बी दूरी की दौड़ में हमेशा प्रथम स्थान पर ही आती थी। उसको क्रीड़ा प्रशिक्षक, प्रशिक्षण देकर यह प्रयास कर रहे थे कि वह प्रादेशिक स्तर पर भाग लेकर शाला का नाम उज्ज्वल करे। इसके लिये उसके प्राचार्य, शिक्षक, अभिभावक और उसके मित्र सभी उसे प्रोत्साहित करते थे। वह एक सम्पन्न परिवार की लड़की थी। वह क्रीड़ा गतिविधियों में भाग लेकर आगे आये इसके लिये उसके खान-पान आदि का ध्यान तो रखा ही जाता था उसे अच्छे व्यायाम प्रशिक्षकों का मार्गदर्शन दिये जाने की व्यवस्था भी की गई थी। उसके पिता सदैव उससे कहा करते थे कि मन लगाकर पढ़ाई के साथ-साथ ही खेल कूद में भी अच्छी तरह से भाग लो तभी तुम्हारा सर्वांगीण विकास होगा।

      हमारी कक्षा में सीमा नाम की एक नयी लड़की ने प्रवेश लिया था वह मेरी अच्छी मित्र बन गयी थी। वह अपने माता-पिता की एकमात्र सन्तान थी और एक किसान की बेटी थी। वह गाँव से अध्ययन करने के लिये शहर में आयी थी। उसके माता-पिता उसे समझाते थे कि बेटी पढ़ाई-लिखाई जीवन में सबसे आवश्यक होती है। यही हमारे भविष्य को निर्धारित करती है एवं उसका आधार बनती है। तुम्हें क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में भाग लेने से कोई नहीं रोकता किन्तु इसके पीछे तुम्हारी शिक्षा में व्यवधान नहीं आना चाहिए।

      एक बार शाला में खेलकूद की गतिविधियों में सुमन और सीमा ने लम्बी दौड़ में भाग लिया। सुमन एक तेज धावक थी। वह हमेशा के समान प्रथम आयी और सीमा द्वितीय स्थान पर रही। प्रथम स्थान पर आने वाली सुमन से वह काफी पीछे थी।

      कुछ दिनों बाद ही दोनों की मुलाकात शाला के पुस्तकालय में हुई। सुमन ने सीमा को देखते ही हँसते हुए व्यंग्य पूर्वक तेज आवाज में कहा- सीमा मैं तुम्हें एक सलाह देती हूँ तुम पढ़ाई लिखाई में ही ध्यान दो। तुम मुझे दौड़ में कभी नहीं हरा पाओगी। तुम गाँव से आई हो। अभी तुम्हें नहीं पता कि प्रथम आने के लिये कितना परिश्रम करना पड़ता है। तुम नहीं जानतीं कि एक अच्छा धावक बनने के लिये किस प्रकार के प्रशिक्षण एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है।

मेरे घरवाले पिछले पाँच सालों से हजारों रूपये मेरे ऊपर खर्च कर रहे हैं और मैं प्रतिदिन घण्टों परिश्रम करती हूँ तब जाकर प्रथम स्थान प्राप्त होता है। यह सब तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिये संभव नहीं है इसलिये अच्छा होगा कि तुम अपने आप को पढ़ाई-लिखाई तक ही सीमित रखो। इतना कहकर वह सीमा की ओर उपेक्षा भरी दृष्टि से देखती हुई वहाँ से चली गई।

      सीमा एक भावुक लड़की थी उसे सुमन की बात कलेजे तक चुभ गई। इस अपमान से उसकी आँखों में आंसू छलक उठे। घर आकर उसने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया।

पिता ने उसे समझाया- बेटा! जीवन में शिक्षा का अपना अलग महत्व है। खेलकूद प्रतियोगिताएं तो औपचारिकताएं हैं। मैं यह नहीं कहता कि तुम खेलकूद में भाग मत लो किन्तु अपना ध्यान पढ़ाई में लगाओ और अच्छे से अच्छे अंकों से परीक्षाएं पास करो। तुम्हारी सहेली ने घमण्ड में आकर जिस तरह की बात की है वह उचित नहीं है लेकिन उसने जो कहा है वह ध्यान देने लायक है। तुम हार-जीत की परवाह किए बिना खेलकूद में भाग लो और अपना पूरा ध्यान अपनी शिक्षा पर केन्द्रित करो। उसकी माँ भी यह सब सुन रही थी। उसने सीमा के पिता से कहा- पढ़ाई-लिखाई तो आवश्यक है ही साथ ही खेलकूद भी उतना ही आवश्यक होता है। इसमें भी कोई आगे निकल जाए तो उसका भी तो बहुत नाम होता है।

      सीमा के पिता को उसकी माँ की बात अनुचित लगी। वह भी सीमा को बहुत चाहते थे। उनकी अभिलाषा थी कि बड़ी होकर वह बड़ी अफसर बने। सीमा दोनों की बातें ध्यान पूर्वक सुन रही थी। उसकी माँ ने उससे कहा- दृढ़ इच्छा शक्ति और कठोर परिश्रम से जीवन में सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है।

      सीमा अगले दिन से ही गाँव के एक मैदान में जाकर सुबह दौड़ का अभ्यास करने लगी। वह प्रतिदिन सुबह जल्दी उठ जाती और दैनिक कर्म करने के बाद दौड़ने चली जाती। एक दिन जब वह अभ्यास कर रही थी तो वह गिर गई जिससे उसके घुटने में चोट आ गई। वह कुछ दिनों तक अभ्यास नहीं कर सकी, इसका उसे बहुत दुख था और वह कभी-कभी अपनी माँ के सामने रो पड़ती थी। जब उसकी चोट ठीक हो गई तो उसने फिर अभ्यास प्रारम्भ कर दिया। अब वह और भी अधिक मेहनत के साथ अभ्यास करने लगी। वह उतनी ही मेहनत पढ़ाई में भी कर रही थी। इसके कारण उसे समय ही नहीं मिलता था। वह बहुत अधिक थक भी जाती थी। उसे देखकर मैंने उसे सलाह दी कि वह यही शहर में रहे ताकि गांव आने जाने जो समय लगता है वह बच सके। तुम्हारे रहने की व्यवस्था में अपने पिताजी से कहकर करवा दूंगी। उसने यह बात अपने माता-पिता को बताई पहले तो उन्होंने इंकार कर दिया परंतु जब मैंने और पिताजी उनसे आग्रह किया तो वे राजी हो गये। सीमा की रहने और खाने की व्यवस्था हमारे घर पर कर दी गयी। 

शहर आकर सीमा हमारे जिस घर में रहती थी उससे कुछ दूरी पर एक मैदान था। लोग सुबह-सुबह उस मैदान में आकर दौड़ते और व्यायाम करते थे। सीमा ने भी अपना अभ्यास उसी मैदान में करना प्रारम्भ कर दिया। एक बुजुर्ग वहाँ मॉर्निंग वॉक के लिये आते थे। वे सीमा को दौड़ का अभ्यास करते देखते थे। अनेक दिनों तक देखने के बाद वे उसकी लगन और उसके अभ्यास से प्रभावित हुए। एक दिन जब सीमा अपना अभ्यास पूरा करके घर जाने लगी तो उन्होंने उसे रोक कर उससे बात की। उन्होंने सीमा के विषय में विस्तार से सभी कुछ पूछा। उन्होंने अपने विषय में उसे बतलाया कि वे अपने समय के एक प्रसिद्ध धावक थे। उनका बहुत नाम था। वे पढ़ाई-लिखाई में औसत दर्जे के होने के कारण कोई उच्च पद प्राप्त नहीं कर सके। समय के साथ दौड़ भी छूट गई। उन्होंने सीमा को समझाया कि दौड़ के साथ-साथ पढ़ाई में उतनी ही मेहनत करना बहुत आवश्यक है। अगले दिन से वे सीमा को दौड़ की कोचिंग देने लगे। उन्होंने उसे लम्बी दौड़ के लिये तैयार करना प्रारम्भ कर दिया।  

      शाला में प्रादेशिक स्तर पर भाग लेने के लिये चुने जाने हेतु अंतिम प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इसमें 1500 मीटर की दौड़ में प्रथम आने वाले को प्रादेशिक स्तर पर भेजा जाना था। प्रतियोगिता जब प्रारम्भ हो रही थी सुमन ने सीमा की ओर गर्व से देखा। सुमन पूर्ण आत्मविश्वास से भरी हुई थी और उसे पूरा विश्वास था कि यह प्रतियोगिता तो वह ही जीतेगी। सुमन और सीमा दोनों के माता-पिता भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे। व्हिसिल बजते ही दौड़ प्रारम्भ हो गई।

      सुमन ने दौड़ प्रारम्भ होते ही अपने को बहुत आगे कर लिया था। उसके पैरों की गति देखकर दर्शक उत्साहित थे और उसके लिये तालियाँ बजा-बजा कर उसका उत्साह बढ़ा रहे थे। सीमा भी तेज दौड़ रही थी किन्तु वह दूसरे नम्बर पर थी। वह एक सी गति से दौड़ रही थी। 1500 मीटर की दौड़ थी। प्रारम्भ में सुमन ही आगे रही लेकिन आधी दौड़ पूरी होते-होते तक सीमा ने सुमन की बराबरी कर ली। वे दोनों एक दूसरे की बराबरी से दौड़ रहे थे। कुछ दर्शक सीमा को तो कुछ सुमन को प्रोत्साहित करने के लिये आवाजें लगा रहे थे। सुमन की गति धीरे-धीरे कम हो रही थी जबकि सीमा एक सी गति से दौड़ती चली जा रही थी। जब दौड़ पूरी होने में लगभग 100 मीटर रह गये तो सीमा ने अपनी गति बढ़ा दी। उसकी गति बढ़ते ही सुमन ने भी जोर मारा। वह उससे आगे निकलने का प्रयास कर रही थी लेकिन सीमा लगातार उससे आगे होती जा रही थी। दौड़ पूरी हुई तो सीमा प्रथम आयी थी। सुमन उससे काफी पीछे थी। वह द्वितीय आयी थी।

मेरी सभी सहेलियाँ मैदान में आ गईं थी और वे सीमा को गोद में उठाकर अपनी प्रसन्नता जता रही थीं। वे खुशी से नाच रही थीं। मंच पर प्राचार्य जी आये और उन्होंने सीमा की विजय की घोषणा की। सीमा अपने पिता के साथ प्राचार्य जी के पास पहुँची और उसने बतलाया कि वह प्रादेशिक स्तर पर नहीं जाना चाहती है। उसकी बात सुनकर प्राचार्य जी और वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये थे। प्राचार्य जी ने उसे समझाने का प्रयास किया किन्तु वह टस से मस नहीं हुई।

      सीमा ने उनसे कहा कि वह आईएएस या आईएफएस बनना चाहती है। इसके लिये उसे बहुत पढ़ाई करने की आवश्यकता है। दौड़ की तैयारियों के कारण उसकी पढ़ाई प्रभावित होती है इसलिये वह प्रादेशिक स्तर पर नहीं जाना चाहती। अन्त में प्राचार्य जी स्वयं माइक पर गये और उन्होंने सीमा के इन्कार के विषय में बोलते हुए सुमन को विद्यालय की ओर से प्रादेशिक स्तर पर भेजे जाने की घोषणा की। यह सुनकर सुमन सहित वहाँ पर उपस्थित सभी दर्शक भी अवाक रह गये। सुमन सीमा के पास आयी और उसने पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया। सीमा उसे भी वही बतलाती है जो उसने प्राचार्य से कही थी। उसने सुमन को एक ओर ले जाकर उससे कहा कि मेरा उद्देश्य क्रीड़ा प्रतियोगिता में आने का नहीं था वरन मैं तुम्हें बताना चाहती थी समय सदैव एक सा नहीं होता। कल तुम प्रथम स्थान पर थी आज मैं हूँ कल कोई और रहेगा। उस दिन पुस्तकालय में तुमने जो कुछ कहा था उसे तुम मित्रता के साथ भी कह सकती थी किन्तु तुमने मुझे नीचा दिखाने का प्रयास किया था जो मुझे खल गया था। मेरी हार्दिक तमन्ना है कि तुम प्रादेशिक स्तर पर सफलता प्राप्त करो।

      नियत तिथि पर सुमन स्टेशन पर प्रतियोगिताओं में भाग लेने जाने के लिये उपस्थित थी और सभी लोगों ने उसे हर्षपूर्वक विदा किया। सीमा और मैं दोनो वापस घर आ गये। अब वह भी मेरे घर से विदा लेना चाहती थी क्योंकि उसे आगे की पढाई के लिए राजधानी ईटानगर जाना था। मेरे लिये सीमा से बिछडना बहुत कठिन था क्योंकि हमारे साथ एक ही घर में रहते हुए वह मेरी बहन जैसी हो गयी थी। कुछ साल बाद सीमा पढाई के बल पर आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर के एक उच्च अधिकारी बन गयी परंतु हमारी दोस्ती आज भी वैसी ही है जैसी स्कूल के दिनों में थी। मानसी के बातें सुनकर सभी को उसकी मित्रता के बारे में जानकार बहुत प्रसन्नता एवं गर्व का अनुभव हुआ। तभी गौरव भी मानसी की बात का समर्थन करते हुए कहता है कि हमें अपने शहर लौट जाना चाहिये ताकि हम अपने परिजनों को सारी बातें समझा सकें।

अब गौरव और आनंद दोनो अपने अपने घर फोन करके संक्षिप्त में सारी जानकारी दे देते है। यह सुनकर गौरव के माता पिता तो बहुत खुश होते हैं परंतु आनंद के माता पिता चिंतित हो जाते है। वे यह बात आनंद की पत्नी के स्वास्थ्य को देखते हुए नही बताते है कि कही उसे गहरा सदमा ना लग जाए। दोनो परिवारों के परिजन मानसी और पल्लवी से फोन पर ही बात करते हैं, उन्हें उनके विवाह से पहले एक बार जबलपुर आने का निवेदन करते है। वे दोनो भी इस बात के लिये सहमति दे देती है। आनंद और गौरव के जबलपुर पहुँचने पर गौरव के यहाँ तो बहुत खुशी का माहौल था परंतु आनंद के यहाँ तनाव पूर्ण वातावरण था। शाम को आनंद परिवारजनों के साथ बैठकर चाय पी रहा था तभी उसकी चचेरी बहन कविता आंखों में आंसू भरे हुये आती है और एक रिपोर्ट आनंद के हाथ में दे देती है। आनंद पूछता है कि यह क्या है ? कविता कहती है कि तुम स्वयं ही पढ़ लो। रिपोर्ट पढ़ते ही आनंद के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है। आनंद के पिताजी पूछते है कि क्या बात है ? आनंद रिपोर्ट उनके हाथ में देते हुए कहता है कि निशा को ब्लड कैंसर है जो कि अंतिम अवस्था तक पहुँच चुका है। इस दुखद खबर को सुनकर सभी लोग निढ़ाल से हो गये थे और वातावरण में मायूसी का माहौल छा गया था।

किचन से आते हुये निशा सभी को उदास अवस्था में बैठा देखकर शंकित होते हुये पूछती है कि आप लोगों को क्या हो गया है और आप लोग इस तरह उदास हो कर क्यों बैठे हुये है। तब कविता धीरे धीरे गंभीर मुद्रा में उसे बताती है कि पिछले हफ्ते जो टेस्ट आपके करवाए गये थे उसकी रिपोर्ट आज ही मुझे मिली है और उसके अनुसार आपको ब्लड कैंसर की अंतिम अवस्था है। यह कहते ही कविता फफक फफक कर रो पडती है। सारा माहौल गमगीन हो जाता है। निशा को यह सुनकर गहरा सदमा जैसा लग जाता है। यह देखकर आनंद उसे गले लगा लेता है। निशा अपने आप को संभालते हुये कहती है कि हुइ है वही जो राम रचि राखा। जो होना है सो होगा इसलिये बहुत चिंता नही करनी चाहिये। मानसी को भी यह खबर मिलने पर बहुत दुख होता है और वह अपने माता पिता से वहाँ जाने के लिये जिद करने लगती है। उसके माता पिता उसे समझाते है कि अभी वहाँ जाना उचित नही है परंतु उसके तर्काे के आगे सब बेबस हो जाते हैं।

मानसी ने अपने पिता से कहा कि मैं आनंद की पत्नी निशा को अपनी बड़ी बहन के समान मानती हूँ और दुख की इन कठिन परिस्थितियों में उनकी सेवा करना है मेरा धर्म और कर्तव्य है। समाज चाहे कुछ भी कहे मुझे इन बातों से कोई फर्क नही पडता है। आनंद ने भी मानसी को बहुत समझाने की कोशिश करी परंतु वह टस से मस नही हुई। मानसी के जबलपुर पहुँचने पर कविता उसका परिचय कराते हुये बताती है कि यह मेरी सहेली मानसी है और यहाँ पर उच्च शिक्षा के लिये आयी है। निशा उसका बहुत प्रेमपूर्वक स्वागत करती है। धीरे धीरे मानसी अपने कार्यों और व्यवहार से सभी का दिल जीत लेती है खासकर वह निशा की एकदम अंतरंग मित्र जैसी हो जाती है। एक माह तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था परंतु धीरे धीरे आनंद की पत्नी की तबीयत खराब रहने लगी और कुछ समय बाद उसकी स्थिति ऐसी हो गयी थी कि वह बिस्तर से उठ भी नही पाती थी। ऐसी परिस्थितियों में भी मानसी ने उसकी सेवा करना नही छोडा था, वह बिल्कुल उसे अपनी बडी बहन की तरह ही मानती थी।

उसकी इस सेवा और लगन को देखते हुये एक दिन आनंद की पत्नी ने परिवार के सभी सदस्यों को अपने कमरे में बुलवाया। उसने मानसी से अपने अलमारी के लॉकर में रखे हुए गहनों में से अपनी पसंदीदा हीरे की अंगूठी और एक हार बुलवाकर आनंद का हाथ, मानसी के हाथ में थमाते हुए कहा कि यह अंगूठी और हार इसे पहना दो। मेरे जीने की अब कोई उम्मीद नही है और मैंने भी अब जीवन की आशा छेाड दी है। मुझे बस इसी बात की चिंता थी की मेरे ना रहने पर आनंद कैसे जियेगा ? परंतु तुम्हारी सेवा देखकर वह चिंता भी अब दूर हो गयी है। मैं जानती हूँ कि तुम्हारे मन में भी आनंद के लिये बहुत प्रेम है। यह सुनकर मानसी कहती है कि यह आप क्या कह रही हैं दीदी ? निशा कहती है कि मानसी मुझे सब कुछ पता है आनंद ने मुझे सबकुछ बता दिया था, मैं स्वयं चाहती थी कि इस घर में बच्चे की किलकारियाँ गूंजे परंतु दुर्भाग्य से ऐसा हो नही सका। जब आनंद ने मुझे यह सब बताया तो मैं कुछ समय के लिये व्यथित हो गई थी परंतु जब मैंनें गंभीरतापूर्वक विचार किया तो वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुये आनंद का निर्णय ठीक लगा। अब में पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ और स्वयं चाहती हूँ कि तुम दोंनों अपना प्रेम इसी प्रकार बनाए रखो और विवाह कर लो, यही मेरी अंतिम इच्छा है। इतना कहकर निशा अचानक ही बेहोश हो जाती है। यह देखकर तुरंत डॉक्टर को बुलाया जाता है और वह उनकी जाँच करने के उपरांत कहता है कि इनकी श्वांस थम चुकी है और अब यह इस संसार से विदा हो चुकी है।

निशा की मृत्यु का समाचार जैसे ही मानसी के मातापिता और अन्य रिश्तेदारों केा प्राप्त होता है वे बहुत दुखी मन से आनंद के गृहनगर के लिए निकल पडते है। सभी रिश्तेदारों एवं अन्य निकटतम लोगों के सम्मुख बहुत गमगीन माहौल में उसका अंतिम संस्कार संपन्न होता है। अपनी पत्नी की मृत्यु से जितना दुखी आनंद था, मानसी भी उतना ही दुख महसूस कर रही थी क्योंकि इस एक माह में वह उससे इतनी अधिक जुड चुकी थी कि जैसे दोनो जन्मजात सगी बहने हों। समस्त पारंपरिक रीति रिवाजों के संपन्न हो जाने के बाद यह तय किया जाता है कि आनंद और मानसी का विवाह छः माह पश्चात ही सादगी पूर्ण तरीके करना उचित होगा। मानसी के मातापिता भी इस बात से सहमत हो जाते है और उसके दुखी मन को देखते हुए उसे वापस बोमडिला चलने के लिए कहते है। आनंद भी मानसी को समझाता है कि कुछ समय तुम बोमडिला चली जाओ तुम्हारा मन हल्का हो जायेगा। मानसी सभी की बात मानते हुये मातापिता के साथ वापस बोमडिला चली जाती है। समय चक्र धीरे धीरे चलता रहता है। आनंद और मानसी का जीवन भी धीरे धीरे सामान्य हो रहा था।

      अचानक एक दिन मानसी की तबीयत खराब हो जाती है। उसकी माँ उसे तुरंत नजदीकी पारिवारिक डॉक्टर को दिखाती है। जाँच के उपरांत डॉक्टर उसकी माँ को बताते है कि मानसी गर्भवती है। यह सुनकर उसकी माँ सकते मंे आ जाती हैै और तुरंत यह बात मानसी के पिता को बताती हैै। वे भी यह खबर सुनकर गंभीर हो जाते है। तुरंत इस बात की सूचना आनंद के माता पिता को भी दी जाती है और वे भी यह खबर सुनकर सकते में आ जाते है। तुरंत सभी लोग बोमडिला के लिये रवाना हो जाते है और वहाँ पहुँचकर मानसी के माता पिता के साथ इस गंभीर परिस्थिति से निकलने के उपाय पर चर्चा करते है। आनंद के पिता कहते है कि निशा के देहांत को अभी मात्र 1 महीना ही हुआ है और विवाह जैसा शुभकार्य इतनी जल्दी नही किया जा सकता है और गर्भपात कराना भी उचित नही है। आनंद कहता है कि परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुये शादी जल्द से जल्द सादे समारोह में की जाये ताकि गर्भावस्था के कारण कोई अन्य व्यवधान ना हो।

मानसी के पिता कहते है कि क्यों ना मानसी के साथ साथ पल्लवी का भी विवाह गौरव के साथ उसी समय कर दिया जाए ? इस संबंध में जब गौरव से बात की जाती है तो वह मना देता है और कहता है कि वह आनंद के विवाह के बाद उचित समय पर धूमधाम से विवाह करेगा। पल्लवी भी इस बात पर सहमत हो जाती है कि मानसी की शादी परिस्थितिवश जल्दी और सादगीपूर्ण ढंग से करना पड रही है परंतु वह अपनी शादी धूमधाम से करना चाहती है इसलिये वह भी इंतजार करने के लिये तैयार है। विचार विमर्श के उपरांत सभी लोग यह तय करते है कि आनंद और मानसी का 1 माह बाद बोमडिला में ही हिंदू पद्धति से विवाह संपन्न होगा और गौरव व पल्लवी का विवाह उचित समय पर किया जायेगा। आनंद और मानसी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हो जाते है। पल्लवी धीरे से मानसी से कहती है कि तुम वहाँ सेवा करने गयी थी और ये कौन सा मेवा लेकर आ गयी। यह सुनकर मानसी मुस्कुराते हुये शर्मा जाती है।

आनंद और उसके माता पिता वापिस लौट आते है और शादी की तैयारियों में व्यस्त हो जाते है। एक माह का समय कैसे बीत गया, पता ही नही चला और विवाह का दिन भी आ जाता है। बोमडिला में सादे समारोह में आनंद का विवाह संपन्न हो जाता हैं। विवाह पश्चात सभी लोग गृहनगर के लिये प्रस्थान करते है और यहाँ पर भी बहुत सादगी से स्वागत समारोह संपन्न हो जाता है। आनंद मानसी से हनीमून पर कही बाहर चलने के लिये कहता है परंतु मानसी उसे मना कर देती है और कहती है कि अभी कुछ समय पूर्व ही दीदी की मृत्यु हुई है ऐसे में हनीमून पर कहीं बाहर जाना हमें शोभा नही देता है। यह सुनकर आनंद कहता है कि यह बात तो मैंने तुम्हारी खुशी के लिये कही थी परंतु वास्तविकता में मैं भी नही जाना चाहता था। तुमने मेरे मन की बात कहकर मेरा दिल जीत लिया है। मानसी यह सुनकर आनंद की बांहो में सिमट जाती है और आनंद भी उसे कसकर अपनी बांहो में जकड लेता है। मानसी उसे अलग करती हुयी कहती है कि नही अब नही, हमारी सुहागरात तो पहले ही तवांग में मन चुकी है और यह उसी का परिणाम हैं। अब हमारी परंपरा के अनुसार जब तक प्रसव नही हो जाता है तुम्हें इंतजार करना पडेगा। यह सुनकर आनंद मुस्कुराते हुये उसे अपनी बांहों में भरकर सो जाता है।

      दूसरे दिन सुबह बोमडिला से मानसी के पिताजी का फोन आता है। वे आनंद के पिताजी से बात कर रहे थे, उनकी आवाज बहुत थर्रायी हुयी थी। उन्होंने बताया कि कल शाम को गौरव का फोन आया था। यहाँ वहाँ की बातचीत करने के उपरांत उसने बताया कि मानसी का बडा दुर्भाग्य है कि उसे आगे आने वाले कष्टों को झेलना पडेगा। आनंद के घर से तो उसे बहुत उत्सावर्धक, खुशनुमा माहौल में बोमडिला भेजा जायेगा परंतु फिर उसे कभी ससुराल नही बुलाया जायेगा। बस यही बात मुझेे बहुत परेशान कर रही है। ऐसी क्या बात हो गई है, क्या मानसी से कोई गलती हुई है ? यह सुनकर आनंद के पिताजी भौचक्के रह जाते है। वे कहते है कि यह बात तो बिल्कुल ही गलत है, हम लोगो के मन में ऐसी कोई बात नही है और मानसी तो बहुत ही अच्छी लडकी है जिसे हम कुछ माह अपनी बहू की जी जान से सेवा करते हुये देख चुके है। हम मानसी के प्रति ऐसा बिल्कुल भी नही सोच सकते है। ऐसा लगता है कि गौरव को कुछ गलतफहमी हुई हैं। आप मानसी के बारे में बिल्कुल निश्चिंत रहिये, मानसी हमारी भी बेटी ही जैसी है।

इतना कहकर आनंद के पिताजी ने, मानसी के पिताजी को आश्वस्त करते हुए फोन रख दिया। उन्होंने आनंद को बुलाकर गौरव के बारे में बताया और कहा कि तुम्हारा यह मित्र कैसा है ? जो अपने ही मित्र की गृहस्थी को उजाडने के बारे में सोच रहा है। यह सुनकर आनंद ने कहा कि पिताजी आप चिंता मत करिए मैं गौरव से इस बारे में बात करूँगा। आनंद गौरव को फोन करके पूछता है कि तुमने मानसी के पिताजी को फोन करके अनर्गल बातें क्यों की, इन बातों से हम सभी कितना परेशान हो गये है। यह सुनकर गौरव कहता है कि मैंने तो उन्हंे फोन नही किया है, लगता है तुम्हें किसी ने गलत जानकारी दी है। यह सुनकर आनंद भडक जाता है और कहता है कि गौरव यह अच्छी बात नही है, मानसी के पिताजी ने स्वयं फोन करके यह जानकारी दी है। आनंद गुस्से में कहता है कि इतने बरस की दोस्ती तुमने एक झटके में खत्म कर दी। गौरव उसे बहुत समझाने का प्रयास करता है कि वह फोन उसने नही किया है चाहे वह जाँच करवा ले। यह सुनकर आनंद फोन काट देता है।

अब मानसी के पिताजी अपने उच्च संपर्कों के माध्यम से उस फोन नंबर की जाँच करवाते है तो पता चलता है कि वह नंबर बोमडिला के पास किसी टेलीफोन बूथ का नंबर है। थोडा सख्ती से पूछताछ के बाद टेलीफोन बूथ का मालिक बताता है कि एक लडका उस दिन फोन करने आया था। वह अक्सर यहाँ आता है। आप चाहे तो जब वह यहाँ आयेगा तो मैं आपको इत्तला कर दूँगा। संयोग से वह लडका अगले ही दिन वहाँ आता है तो उसे पकडकर पूछताछ की जाती हैं। पहले तो वह सारी बातों से मुकर गया परंतु जैसे ही उससे पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गयी तो उसने सारी बात बता दी कि वह मानसी के साथ कॉलेज में पढता था और उससे एक तरफा प्यार करता था, उसने कई बार मानसी को बताया भी परंतु मानसी ने हर बार मना कर दिया, फिर एक दिन पता चला कि मानसी की शादी हो गयी है। ईर्ष्यावश मैंने आपको गौरव का नाम लेकर झूठा फोन कॉल किया ताकि मानसी का वैवाहिक जीवन बर्बाद हो जाये। मैं अपने इस कृत्य के लिए आप लोगों से क्षमा चाहता हूँं। जब आनंद को सच्चाई का पता चलता है तो वह तुरंत गौरव को फोन करके माफी मांगता है और कहता है कि मेरे दोस्त मुझे माफ कर दो मैंने आवेश में आकर तुम्हें काफी बुरा भला कह दिया था। यह सुनकर गौरव कहता है कि कोई बात नही मेरे दोस्त अच्छा हुआ तुम्हें सच्चाई का पता समय रहते चल गया वरना एक झूठ के कारण हमारी जीवन भर की दोस्ती टूट जाती।

मानसी को चित्रकारी का बहुत शौक था और वह खाली समय में अक्सर चित्र बनाती रहती थी। एक दिन आनंद ने उसके द्वारा बनाये गये एक चित्र को देखा जिसमें नदी किनारे एक आलीशान हवेली थी। यह चित्र जब आनंद ने देखा तो वह बोल पडा कि इस चित्र को देखकर मुझे, हमारी पुश्तैनी हवेली की याद आ गयी जिसका निर्माण हमारे पूर्वजों ने करवाया था परंतु दुर्भाग्यवश इस हवेली में हमारे कुछ पूर्वजों की असमय मृत्यु हो जाने की वजह से उस हवेली को अपशकुनी माना जाने लगा और उसे छोडकर हमारे पूर्वज यहाँ शहर में निवास करने लगे। कुछ वर्षों बाद यह हवेली सुनसान सी हो गयी और यह धारणा बन गयी कि यह शापित हवेली है। एक दिन आनंद, मानसी को लेकर अपने फार्म हाऊस जाता है, जहाँ से इस प्राचीन हवेली के खंडहर देखकर मानसी के मन में उसे देखने की इच्छा उत्पन्न होती है और वह आनंद से खंडहर को देखने की इच्छा व्यक्त करती है। यह सुनकर आनंद उसे समझाने का प्रयास करता है कि वहाँ जाना अभी ठीक नही है परंतु उसके बहुत जिद करने पर आनंद उसे गर्भवती होने के कारण ऐसी किसी भी जगह पर ले जाने से स्पष्ट मना कर देता है।

मानसी इसके बाद भी अपनी जिद पर अडी रहती है तब आनंद कहता है कि ठीक है परंतु तुम सिर्फ कार में बैठे बैठे ही उस हवेली को देखोगी, कार से नीचे नही उतरोगी। आनंद हवेली के पास कार ले जाता है, उसी समय वहाँ पर अचानक भयानक सी आवाज सुनाई देती है और एक पत्थर कार के पास गिरता है यह देखकर मानसी डर जाती है और आनंद तुरंत वहाँ से कार लेकर अपने घर की ओर निकल जाता है। घर पहुँचकर आनंद इस घटना की जानकारी अपने माता पिता को देता है। वे उसे डाँटते हुये कहते है कि जब तुम्हें पता है कि वह हवेली भूतहा है और मानसी भी गर्भवती है तो तुम उसे लेकर वहाँ क्यों गये थे ? यदि वहाँ कोई दुर्घटना घटित हो जाती तो हम मानसी के माता पिता को क्या जवाब देते ? इस घटना की जानकारी होने पर गौरव भी भागा भागा आता है। मानसी आनंद को बताती है कि मुझे हवेली में किसी व्यक्ति की परछाई दिखाई दी। यह सुनकर आनंद और गौरव के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ जाते है। वे मानसी से कहते है कि ऐसा कुछ भी नही है हो सकता है कि यह तुम्हारा मानसिक भ्रम हो, तुम्हें कुछ दिन आराम करना चाहिए। मानसी कुछ दिन आराम करने के पश्चात इसकी सच्चाई जानने के लिये प्रयासरत हो जाती है। इस हेतु वह पुनः फार्महाऊस आकर गांव के अनेक बडे बुजुर्गों से बातचीत करती है। इन सभी से बातचीत के दौरान उसे पता चलता है कि उस हवेली में अनेकों रहस्यमय घटनायें घटित हुई है तथा ऐसी भी किवदंती है कि इस हवेली में खजाना भी छुपा हुआ है। बडे बुजुर्गों से उसे अनेक घटनायें सुनने मिली जिसमें एक घटना बहुत चर्चित थी।

कुछ वर्ष पूर्व गावं में ही एक वैद्य रहते थे। एक दिन रात में 12 बजे के आसपास उनके दरवाजे पर दस्तक हुयी और दरवाजा खोलने पर एक सज्जन अंदर आकर बोले वैद्य जी एक मरीज बहुत असहनीय पीडा में है। आपको चलकर उसे देखना है यह एक अशर्फी आप अपने पास रखिये। आप के इलाज के उपरांत एक अशर्फी और बतौर फीस दे दी जाएगी। वैद्य जी अशर्फी का मूल्य समझते थे और वे तुरंत ही उसके साथ अपना झोला लेकर चल पडे़ जिसमें आपातकालीन दवाएँ थी।

वे सज्जन बिना कोई बातचीत किये चुपचाप आगे बढ रहे थे और उनके पीछे पीछे वैद्य जी भी चल रहे थे। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि उस व्यक्ति के दोनेा हाथ नही दिख रहे थे। उन्होने इसको अपना दृष्टिभ्रम समझा और चुपचाप चलते रहे। वह व्यक्ति उन्हें उस हवेली में ले गया और ऊपर की ओर सीढी चढ़ने लगा यह देखकर वैद्य जी ठिठके और उन्होने पूछा कि तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो ? यहाँ तो कोई भी नही रहता है। उसी समय उन्हें आभास हुआ कि उनके पीछे एक आदमी और आ गया है और वे दोनो उन्हें इशारा करके ऊपर चढने के लिये कह रहे हैं। वे उनकी बात मानकर चलते रहे और तीसरी मंजिल पर पहुँच गये।

वहाँ पर जीने से बाहर आकर बरामदे का दरवाजा खुलने पर अंदर का दृश्य देखकर वे हतप्रभ हो गये वहाँ दिन के उजाले के समान रोशनी थी, खूबसूरत झाड़ फानूस टंगे हुये थे कुछ लोग हाथ से पंखा चला रहे थे और वहाँ की आंतरिक साज सज्जा देखकर वैद्य जी भौचक्के रह गये। हाल के बीचों बीच एक खूबसूरत औरत जिसके पैरों में घुंघरू बंधे हुये थे, लेटी हुयी थी और पेट दर्द के कारण कराह रही थी। वैद्य जी ने उसे कुछ दवा दी जिससे आश्चर्यजनक रूप से वह आधे घंटे में ही काफी ठीक हो गयी। वैद्य जी ने उसे अगले दो दिन की दवाई बनाकर दे दी। जो व्यक्ति उन्हें वहाँ पर लेकर आया था उसने अपने वादे के अनुसार एक अशर्फी उन्हें बतौर फीस देकर कहा इस घटना का जिक्र आप किसी से भी किसी भी परिस्थिति में कहीं पर भी नहीं करंेगें अन्यथा इसका परिणाम बहुत घातक होगा। वैद्य जी उनसे विदा लेकर तेज कदमों से चलते हुये अपने घर पहुँच गये।

वैद्य जी को रात भर नींद नही आयी और वे इस घटना का विश्लेषण करते रहे। दूसरे दिन सुबह होते ही वे गांव के मुखिया के पास गये और इस अद्भुत घटना की जानकारी दी। यह सुनकर वे बोले कि वैद्य जी आज सुबह सुबह कौन सा सपना देखा है मुझे तो आपने बता दिया लेकिन किसी और से ऐसा मत कहियेगा अन्यथा लोग आपको पागल और सिरफिरा कहने लगेंगे। वैद्य जी ने तुरंत अपनी जेब से दोनो अशर्फियाँ निकालकर सामने रख दी और बोले ये इस बात का सबूत है कि मैं मनगढंत बातें नही कह रहा हूँ।

मुखिया जी यह सुनकर चार पाँच लठैतों के साथ वैद्य जी केा लेकर हवेली के उस स्थान पर पहुँचे तो सभी ने देखा कि उस कमरे में ताला लटक रहा था। बड़ी मुश्किल से उसको तोड़कर दरवाजा खोला गया। उस कमरे के अंदर चमगादड़ लटक रहे थे धूल की परत जमी हुयी थी, दीवारांे का चूना उखड रहा था और अजीब सी गंध फैली हुयी थी। वैद्य जी यह देखकर भौचक्के रह गये और उनसे कुछ भी कहते नही बन रहा था। सभी लोग वापिस आ गये मुखिया जी ने वैद्य जी को घर जाकर आराम करने की सलाह दी। उन्होने अशर्फियों की जाँच करवायी तो वह असली पाई गयीं। जिसे उन्होेने वैद्य जी को सौंपकर हँसते हुये कहा कि हम लोगों को भूत प्रेतों के दर्शन ही नही होते, आपकी मुलाकात होकर बातचीत भी हुयी और आपने उनका इलाज करके अशर्फी भी प्राप्त कर ली। दूसरे दिन वैद्य जी रोते हुये मुखिया के पास पहुँचे और उन्हें बताया कि रात्रि में अचानक उन्हें ऐसा लगा कि जैसे कोई उन्हें बेतहाशा मार रहा हो परंतु दिखाई कोई भी नही दे रहा था। इसलिये मैं अब इस गावं में नही रह सकता। मैं अब इस गांव को छोडकर जा रहा हूँ। जब आसपास के गांववालों को ऐसी घटना का पता चला तो दिन में भी कोई वहाँ जाने की हिम्मत नही करता था। उस सुनसान हवेली के खंडहर में मानो प्रेतात्माओं का वास हो गया हो ऐसी अफवाह सभी लोगों में फैल गयी। धीरे धीरे वह इलाका पूरी तरह से सुनसान हो गया।